धारा 102(3) सीआरपीसी | बैंक खाते को फ्रीज करने के संबंध में सूचना जुरस्डिक्शनल मजिस्ट्रेट को दी जानी चाहिए: मद्रास हाईकोर्ट
Avanish Pathak
8 Aug 2022 2:25 PM GMT
मद्रास हाईकोर्ट ने लोन फ्रॉड की जांच के लिए जब्त एक खाते को डी-फ्रीज करने का आदेश देते हुए माना कि यह सीआरपीसी की धारा 102 (3) की एक अनिवार्य आवश्यकता थी कि जब्ती की जानकारी मजिस्ट्रेट को दी जानी चाहिए।
जस्टिस जीके इलांथिरैया ने कहा कि मामले में जब्ती की जानकारी काफी देरी के बाद दी गई थी।
उन्होंने कहा,
माननीय सुप्रीम कोर्ट और इस न्यायालय ने बार-बार यह माना कि सीआरपीसी की धारा 102 (3) के तहत प्रावधान में यह आवश्यक है कि पुलिस अधिकारी जब्ती की सूचना अधिकार क्षेत्र के मजिस्ट्रेट को तत्काल देगा। मामले में 18.02.2021 को खाते को फ्रीज कर दिया गया था और इसकी सूचना संबंधित मजिस्ट्रेट को 17.09.2021 को ही दी गई थी। इसलिए जब्ती की सूचना मजिस्ट्रेट को 17.09.2021 को ही दी गई। इस प्रकार, सीआरपीसी की धारा 102 (3) के तहत विचार की गई स्थिति का मजिस्ट्रेट के समक्ष जब्ती की तत्काल रिपोर्ट करने के लिए अनुपालन नहीं किया गया है और साथ ही यह भी ज्ञात नहीं है कि क्या वरिष्ठ अधिकारी को सीआरपीसी की धारा 102 (2) के अनुपालन में सूचित किया गया था।"
याचिकाकर्ता ने दलील दी कि प्रतिवादी बैंकों ने आईपीसी की धारा 120 (बी), 420, 465, 467, 468, 471 के तहत दर्ज अपराध के संबंध में उसके बैंक खातों को फ्रीज करने का आदेश दिया था। आरोप था कि आरोपी ने फर्जी पता देकर नामी बैंकों से कर्ज लिया था। जब आरोपी ऋण की राशि चुकाने में विफल रहा तो वसूली की कार्यवाही शुरू की गई। इस छानबीन के दरमियान ही बैंकों ने महसूस किया कि प्रस्तुत किए गए दस्तावेज मनगढ़ंत थे और दुर्भावनापूर्ण इरादे से दायर किए गए थे।
याचिकाकर्ता ने हालांकि दावा किया कि वह इस मामले में न तो आरोपी था और न ही गवाह। वह 'कार्तिका एजेंसीज एक्सपोर्ट हाउस' के नाम से कृषि खाद्य निर्यात कारोबार चला रहा था। प्रतिवादियों ने फर्जी कंपनी के साथ उनके खाते को फ्रीज करने का गलत निर्देश दिया था। इस प्रकार उन्होंने इस आदेश को इस आधार पर चुनौती दी कि सीआरपीसी की धारा 102 (3) के तहत विचार की गई प्रक्रिया का विधिवत पालन नहीं किया गया।
उत्तरदाताओं ने कहा कि सभी प्रक्रियाओं का विधिवत पालन किया गया था। तीस्ता अतुल सीतलवाड़ बनाम गुजरात राज्य में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए, यह प्रस्तुत किया गया था कि सीआरपीसी की धारा 102 (3) के तहत प्रावधान जांच के उद्देश्य से खाताधारक को कोई नोटिस जारी करने पर विचार नहीं करता है और कानून के तहत संदिग्ध को किसी नोटिस की उम्मीद नहीं की जा सकती है।
अदालत ने हालांकि कहा कि वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता आरोपी नहीं है और खाताधारक है। इस प्रकार, उपरोक्त मामले को वर्तमान तथ्यों पर लागू नहीं किया जा सकता है। इसके अलावा, भले ही याचिकाकर्ता किसी पूर्व सूचना का हकदार नहीं था, खाते को फ्रीज करने की सूचना क्षेत्राधिकारी मजिस्ट्रेट को तुरंत दी जानी चाहिए थी।
चूंकि कानून की इस आवश्यक प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया था, अदालत ने बैंक खाते की जब्ती के आदेश को रद्द करना उचित समझा। अदालत ने, हालांकि, यह भी नोट किया कि प्रतिवादी जांच के साथ आगे बढ़ने और याचिकाकर्ता के खाते को कानून के अनुसार फ्रीज करने के लिए स्वतंत्र है।
केस टाइटल: कार्तिका एजेंसीज एक्सपोर्ट हाउस बनाम पुलिस आयुक्त और अन्य
केस नंबर: WP.No.17953 of 2021
साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (Mad) 339