मोटर दुर्घटना न्यायाधिकरण दावेदारों को "जीवन की अत्यावशकताओं" को पूरा करने के लिए समय से पहले एफडी से मुआवजा निकालने की अनुमति दे सकते हैं: गुजरात हाईकोर्ट

Avanish Pathak

11 Aug 2022 12:11 PM IST

  • गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण "जीवन की अत्यावश्यकताओं" को पूरा करने के लिए उन दावेदारों को, जिनका मुआवजा सावधि जमा में निवेश किया गया है, समय से पहले उसे निकालने की अनुमति दे सकता है।

    जस्टिस गीता गोपी ने इस प्रकार एक न्यायाधिकरण के आदेश को खारिज कर दिया, जिसने सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया में अपने पक्ष में की गई सावधि जमा की समयपूर्व निकासी के लिए याचिकाकर्ता के आवेदन को खारिज कर दिया था।

    जस्टिस गोपी ने कहा कि ट्रिब्यूनल इस बात पर विचार करने में विफल रहा है कि 62 वर्षीय दावेदार अमेरिका में बसना चाहता है और उसके नाम पर निवेश की गई राशि उसके भरण-पोषण के लिए उसकी आवश्यकता बन गई है।

    एकल न्यायाधीश पीठ के अनुसार, दावेदार के पैसे को सावधि जमा रसीद में डालने का इरादा राशि की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए दावेदार के अपने लाभ के लिए था।

    एक मोटर दुर्घटना के बाद याचिकाकर्ता को 6.5 लाख रुपये का मुआवजा दिया गया था। वह एक थोक पुस्तक विक्रेता के रूप में काम करता था। 30% राशि उसे चेक में दी गई, जबकि शेष ‌फिक्‍स्ड ‌डिपॉजिट में रखी गई थी।

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि एक वरिष्ठ नागरिक होने के नाते, उसे अपने चिकित्सा खर्च के लिए धन की आवश्यकता थी।

    याचिकाकर्ता ने बेंच का ध्यान एवी पद्मा और अन्य बनाम आर वेणुगोपाल और अन्य पर दिलाया। उसने तर्क दिया कि ट्रिब्यूनल को दावेदार की आवश्यकताओं पर 'गंभीरतपूर्वक विचार' करने की आवश्यकता है और उसे 'एक यांत्रिक दृष्टिकोण' से बचना चाहिए जिसने अधिनियम के उद्देश्य और भावना की अनदेखी की।

    मामले में महाप्रबंधक, केरल राज्य सड़क परिवहन निगम, त्रिवेंद्रम बनाम सुसम्मा थॉमस और अन्य पर भरोसा रखा गया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने दावों के लिए कुछ दिशानिर्देश निर्धारित किए थे-

    -दावा ट्रिब्यूनल को नाबालिगों के मामले में वयस्कता प्राप्त होने तक मुआवजे का सावधि जमा बरकरार रखना चाहिए।

    -अनपढ़ दावेदारों के मामले में भी, ट्रिब्यूनल एकमुश्त भुगतान की अनुमति दे सकता है यदि व्यक्ति को जीविकोपार्जन के लिए इसकी आवश्यकता है।

    -अर्ध-साक्षर व्यक्तियों के लिए, व्यवसाय के विस्तार के लिए या आजीविका कमाने के लिए संपत्ति खरीदने के लिए पूरी या आंशिक राशि दी जा सकती है।

    -फैसले के आदेश में यह भी निर्देश दिया गया कि सभी मामलों में ट्रिब्यूनल को दावेदारों को किसी आपात स्थिति से निपटने के लिए निकासी के लिए आवेदन करने की स्वतंत्रता देनी चाहिए।

    एवी पद्मा में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था,

    "यह स्पष्ट करने की आवश्यकता है कि उपरोक्त दिशानिर्देश इस न्यायालय द्वारा केवल दावेदारों, विशेष रूप से नाबालिगों, निरक्षरों और अन्य लोगों के हितों की रक्षा के लिए जारी किए गए थे, कुछ काल्पनिक आधारों पर जिनका धन विदड्रॉ करने मांग की गई थी। दिशानिर्देशों को मतलब यह नहीं समझा जाए कि ट्रिब्यूनल को धन जारी करने की मांग संबंधी आवेदन पर विचार करते समय कठोर रुख अपनाना है।"

    हाईकोर्ट ने कहा कि यदि याचिकाकर्ता को राशि जारी नहीं की जाती है तो यह उसके लिए किसी काम का नहीं होगा क्योंकि वह बाद में भारत में रहेगा नहीं। तदनुसार, कोर्ट ने याचिका को अनुमति दी।

    केस नंबर: सी/एससीए/13772/2022

    केस टाइटल: बिपिनचंद्र बाबूलाल ठक्कर बनाम गोविंदभाई एम प्रजापति

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