बिजली कंपनी को ओवरहेड ट्रांसमिशन लाइन बिछाने के लिए भूमि मालिक की सहमति की आवश्यकता नहीं: गुजरात हाईकोर्ट

Avanish Pathak

10 Aug 2022 10:06 AM GMT

  • गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने माना कि एक बिजली कंपनी को ओवरहेड हाई टेंशन ट्रांसमिशन लाइन बिछाने के लिए एक निजी भूमि मालिक की सहमति की आवश्यकता नहीं होती है और अधिक से अध‌िक ऐसी भूमि के मालिक किसी भी नुकसान के लिए मुआवजे का दावा कर सकते हैं।

    जस्टिस बीरेन वैष्णव की एकल पीठ ने गुजरात राज्य विद्युत पारेषण निगम लिमिटेड बनाम रतिलाल मगनजी ब्रह्मभट्ट में एक खंडपीठ के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें माना गया था,

    "विद्युत अधिनियम, 2003 सभी क्षेत्रों में औद्योगिक और सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए देश भर में बड़ी संख्या में लोगों को बिजली प्रदान करने के विशिष्ट उद्देश्य के साथ लागू किया गया प्रगतिशील अधिनियम है। एक भूमि मालिक के अधिकार को भारत के संविधान के अनुच्छेद 300-ए के तहत एक संवैधानिक अधिकार के रूप में मान्यता प्राप्त है, ऐसा अधिकार भारत के संविधान के क्रमशः अनुच्छेद 14 और 21 के अधीन है, जो भारत के संविधान की मूल संरचना में निहित संवैधानिक लक्ष्यों को प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।"

    अदालत याचिकाकर्ता के प्लॉट के नीचे 'केवी इलेक्ट्रिक लाइन' लगाने की मांग वाली एक रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी। प्लॉट के ऊपर से गुजरने वाली लाइन याचिकाकर्ता की भूमि का मूल्य खराब कर दिया है।

    याचिकाकर्ता को अपने प्लॉट को दो हिस्सों में बांटना पड़ा है, जिसके बाद आधा हिस्सा 'बेकार' हो गया है।

    हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि डिवीजन बेंच ने अन्य व्यक्तियों द्वारा अपनी भूमि के माध्यम से ट्रांसमिशन लाइनों के गुजरने पर उठाए गए समान तर्कों को खारिज कर दिया था। याचिकाकर्ताओं को कानून के अनुसार टेलीग्राफ अधिनियम की धारा 16(4) के तहत मुआवजे के संबंध में विवाद उठाने की अनुमति दी गई थी। यह माना गया कि न तो भूमि मालिक की सहमति आवश्यक थी और न ही उसकी सुनवाई की आवश्यकता थी।

    मामले में हिम्मतभाई वल्लभभाई पटेल बनाम मुख्य अभियंता (परियोजनाएं) गुजरात एनर्जी ट्रांसमिशन और अन्य पर भरोसा रखा गया, जहां यह माना गया कि कंपनी के पास बिजली अधिनियम की धारा 164 के तहत बिजली की लाइनें बिछाने की पूर्ण शक्ति है, जो अपीलकर्ता के मुआवजे का दावा करने के अधिकार के अधीन है।

    "एक बार जब लाइसेंसधारी या किसी अन्य सक्षम प्राधिकारी को शक्ति प्रदान कर दी जाती है, तो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों पर या भूमि के अनधिकृत उपयोग के आधार पर योजना के कार्यान्वयन पर कोई आपत्ति नहीं हो सकती है।"

    इसलिए याचिका खारिज कर दी गई थी।

    केस नंबर: सी/एससीए/14617/2022

    केस टाइटल: पार्थ कृष्णकांत पटेल बनाम प्रबंध निदेशक/ महा प्रबंधक (कानूनी प्रकोष्ठ)

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें

    Next Story