संयुक्त संपत्ति पर निर्माण के खिलाफ आदेश देने के लिए 'टाइटल' या 'टाइटल और कब्जे दोनों' का विस्तृत दावा पर्याप्त है: कलकत्ता हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

10 Aug 2022 6:39 AM GMT

  • कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट 

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने संयुक्त स्वामित्व और कब्जे के दावे वाली एक संपत्ति के स्वत्वाधिकार (टाइटल) और विभाजन की घोषणा के मामले में कहा कि प्रतिवादी को संपत्ति पर निर्माण करने से रोकने के आदेश की मांग करने वाले वादी को प्रथम दृष्टया यह साबित करने की आवश्यकता है कि उसके पास इसका मालिकाना है या उसके कब्जे का हकदार है या दोनों का हकदार है।

    इस संबंध में आवश्यक विवरण के साथ स्वत्वाधिकार या स्वत्वाधिकार एवं कब्जे दोनों का दावा करना पर्याप्त है। मूल स्वत्वाधिकार विलेख प्रस्तुत करने की कोई आवश्यकता नहीं है। हालांकि, यह खंडन योग्य है, क्योंकि निषेधाज्ञा के आदेश से इनकार किया जा सकता है, यदि प्रतिवादी ने हलफनामे में यह सबूत पेश किया कि वादी का ऐसा दावा बिल्कुल अस्तित्वविहीन है।

    इस मामले में जस्टिस शुभेंदु सामंत और जस्टिस आई.पी. मुखर्जी की पीठ के समक्ष विवाद की विषय वस्तु एक संयुक्त संपत्ति है, जहां यह आरोप लगाया गया था कि प्रतिवादियों ने बंटवारे के मुकदमे के बावजूद निर्माण शुरू कर दिया था। कोर्ट के समक्ष मुद्दा उन पहलुओं को निर्धारित करना था, जिन्हें ऐसे निर्माण के लिए निषेधाज्ञा का एक पक्षीय अंतरिम आदेश देने या इससे इनकार करते समय ध्यान में रखा जाना चाहिए।

    'मॉर्गन स्टेनली म्यूचुअल फंड बनाम कार्तिक दास' के मामले पर भरोसा जताया गया, जिसमें तीन निम्नलिखित विचार थे, जिन्हें एक पक्षीय अंतरिम निषेधाज्ञा देने से पहले अदालत द्वारा ध्यान में रखा जाना चाहिए: सबसे पहले, वादी के साथ होने वाले नुकसान की गंभीरता; दूसरे, एकपक्षीय निषेधाज्ञा को अस्वीकार करने और उसे प्रदान करने के औचित्य को संतुलित करना; तीसरा, वह समय जब वादी का ध्यान पहली बार संबंधित कार्य (निर्माण) की ओर गया; चौथा, वादी की कोई मौन स्वीकृति; पांचवां, आवेदन करने में वादी की सद्भावना; छठा, प्रथम दृष्टया मामला बनता है, जिसका अर्थ है कि यह रिकॉर्ड में प्रकट होना चाहिए कि पार्टियों के बीच एक वास्तविक विरोध है और गंभीर प्रश्नों की सुनवाई की आवश्यकता है। यह भी नोट किया गया कि प्रथम दृष्टया मामला, सुविधा का संतुलन और अपूरणीय क्षति जैसे सामान्य सिद्धांतों पर भी कार्ट द्वारा विचार किया जाएगा। हालांकि, यदि एकपक्षीय निषेधाज्ञा दी भी जाती है, तो यह सीमित अवधि के लिए ही होगी।

    कोर्ट ने आवश्यक सीमा के बारे में प्रश्नावली तैयार की कि प्रतिवादियों द्वारा किये जा रहे निर्माण को रोकने के लिए निषेधाज्ञा आदेश प्राप्त करने के उद्देश्य से अपीलकर्ताओं को अपना स्वत्वाधिकार साबित करने के वास्ते एक प्रथम दृष्टया मामला स्थापित करना आवश्यक था। इस पर कोर्ट ने 'सोपान मारुति थोपटे बनाम पुणे नगर निगम' पर भरोसा जताया और कहा कि वादी को एकपक्षीय निषेधाज्ञा प्राप्त करने के लिए संपत्ति पर कुछ अधिकार, स्वत्वाधिकार या हित साबित की जरूरत है।

    इस मामले में, अपीलकर्ताओं ने अपनी दलील में अपने स्वत्वाधिकार का दावा किया और साथ ही अपने कब्जे का दावा करने के लिए अपने स्वत्वाधिकार का रिकॉर्ड भी पेश किया। दूसरी ओर, प्रतिवादी हलफनामे में साक्ष्य के स्तर पर यह साबित नहीं कर सके थे कि अपीलकर्ता के स्वत्वाधिकार के दावे का कोई आधार नहीं था और अपीलकर्ता संपत्ति के किसी भी अधिकार से रहित थे।

    अदालत ने "सुविधा का संतुलन" के सिद्धांत पर भी जोर दिया, जिसमें यह कहा गया है,

    यदि निषेधाज्ञा से इनकार कर दिया गया था और प्रतिवादी ने निर्माण जारी रखा और अंततः, अपीलकर्ता अपना स्वत्वाधिकार स्थापित करने में सक्षम थे, तो कोर्ट के लिए निर्माण के प्रभाव को आसानी से पलटना और भूमि या संपत्ति को निर्माण से पहले की स्थिति में बहाल करना संभव नहीं हो सकता है। दूसरी ओर, यदि एक निषेधाज्ञा जारी की गई थी और अंततः अपीलकर्ता हार गए थे, तो इस अवधि के दौरान निर्माण करने में असमर्थ होने के लिए प्रतिवादियों को हर्जाना देने पर विचार करने के लिए कोर्ट स्वतंत्र होगा।

    चूंकि मामले की सभी संभावनाओं पर गौर किया जाता है, तो अपीलकर्ता के लिए असुविधा अधिक होगी, कोर्ट ने निचली अदालत के आदेश को रद्द कर दिया, जिसने अपीलकर्ता की निषेधाज्ञा की प्रार्थना को खारिज कर दिया था।

    केस का शीर्षक: प्रशांत माजी और अन्य बनाम सुखबिंदर सिंह व अन्य

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