हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

5 Feb 2023 4:45 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (30 जनवरी, 2023 से 03 फरवरी, 2023) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    कानूनी रूप से मान्य यूनिवर्सिटी से आवश्यक विषय में ग्रेजुएट करने वाले उम्मीदवार से एआईसीटीई अप्रूव संस्थान की डिग्री की मांग नहीं कर सकते: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट की जयपुर बेंच ने कहा कि असिस्टेंट लोको पायलट पोस्ट के लिए आवश्यक योग्यता रखने वाले उम्मीदवार को केवल इस कारण से पैनल में शामिल करने से इनकार नहीं किया जा सकता कि उसके पास जो डिग्री है वह राजस्थान सरकार द्वारा अनुमोदित संस्थान अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) से नहीं है। चीफ जस्टिस पंकज मिथल और जस्टिस शुभा मेहता की खंडपीठ ने पाया कि कानूनी रूप से मान्य यूनिवर्सिटी (Statutory University) से प्राप्त डिग्री या डिप्लोमा AICTE की मान्यता के दायरे से बाहर है।

    केस टाइटल: भारत संघ और अन्य बनाम अतुल खरे

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    एफआईआर दर्ज करने से एसएचओ के इनकार से पीड़ित व्यक्ति को सीआरपीसी की धारा 154 (3) के तहत पुलिक अधीक्षक के समक्ष एक अगल से आवेदन करने की जरूरत: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

    छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने हाल ही कहा कि एक व्यक्ति, जो एक पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी की ओर से एफआईआर दर्ज करने से इनकार करने से व्यथित है, को धारा 154 (3) सीआरपीसी के तहत पुलिस अधीक्षक के समक्ष एक अलग और स्वतंत्र आवेदन दायर करने की आवश्यकता है।

    जस्टिस संजय के. अग्रवाल और जस्टिस राकेश मोहन पांडे की खंडपीठ ने टिप्पणी की, "सीआरपीसी की धारा 154(1) के तहत पुलिस अधीक्षक को केवल आवेदन की एक प्रति का समर्थन करना सीआरपीसी की धारा 154(3) का सख्त अनुपालन नहीं कहा जा सकता है। एसएचओ द्वारा प्राथमिकी दर्ज करने से इंकार करने के बाद सीआरपीसी की धारा 154 (3) के तहत एक अलग और स्वतंत्र आवेदन होना चाहिए।“

    केस टाइटल - प्रशांत वशिष्ठ और अन्य बनाम छत्तीसगढ़ राज्य और अन्य [रिट याचिका (Cr.) संख्या 177 ऑफ 2017]

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    वैकल्पिक उपाय उपलब्ध होने पर एफआईआर दर्ज करने के लिए रिट क्षेत्राधिकार का प्रयोग नहीं कर सकते: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने आशाबेन मुलजीभाई घोरी बनाम गुजरात राज्य में अपने हालिया फैसले में कहा कि एफआईआर दर्ज करने के लिए रिट क्षेत्राधिकार का उपयोग नहीं किया जा सकता है। जस्टिस इलेश जे वोरा की पीठ ने एफआईआर दर्ज करने के लिए रिट अदालत के निर्देशों की मांग वाली एक रिट याचिका का निस्तारण किया। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उसके अभ्यावेदन के बावजूद, वह संबंधित अधिकारियों से एफआईआर दर्ज नहीं करवा सकी। इसलिए, उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत न्यायालय का रुख किया।

    केस टाइटल: आशाबेन मुलजीभाई घोरी बनाम गुजरात राज्य

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    ‘एक बेटी हमेशा बेटी रहती है’: हाईकोर्ट ने कहा विवाहित बेटियों को अनुकम्पा नियुक्ति से बाहर रखने की पंजाब पाॅलिसी अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने माना है कि विवाहित बेटियों को उनके पिता की मृत्यु पर अनुकंपा नियुक्ति के लाभ से बाहर करने की पॉलिसी भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन करने के कारण असंवैधानिक है।

    जस्टिस जीएस संधवालिया और जस्टिस हरप्रीत कौर जीवन की खंडपीठ ने कहा, ‘‘हमारी सुविचारित राय है कि एक विवाहित बेटी के मामले में शुरुआत में बहिष्करण (अपवाद)स्पष्ट रूप से मनमाना है। केवल लिंग के आधार पर दहलीज पर अस्वीकृति भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन होगा क्योंकि इसके विपरीत समान रूप से स्थित भाई जैसे बेटा जो विवाहित हो सकता है और अलग रह रहा हो,फिर भी विचार के दायरे में आएगा क्योंकि उसके मामले में, नोट-I के खंड (बी) के तहत, ऐसा नहीं है कि विवाहित पुत्र होने के नाते उसके नाम को विचार से बाहर रखा गया है।’’

    केस टाइटल- पंजाब राज्य व अन्य बनाम अमरजीत कौर

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    आरटीआई एक्ट के तहत खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट और डोजियर का खुलासा नहीं किया जा सकता, राज्य पुलिस एटीएस को छूट: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि खुफिया एजेंसियों द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट और डोजियर का सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act) के तहत खुलासा नहीं किया जा सकता।

    जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने कहा कि प्रमुख जनहित देश की सुरक्षा की रक्षा करने में है न कि ऐसी रिपोर्टों का खुलासा करने में। अदालत ने कहा, "खुफिया अधिकारियों द्वारा रिपोर्ट और डोजियर, जो जांच का विषय हैं, आरटीआई एक्ट के तहत खुलासा नहीं किया जा सकता, खासकर अगर वे देश की संप्रभुता या अखंडता से समझौता करते हैं।"

    केस टाइटल: एहतेशाम कुतुबुद्दीन सिद्दीकी बनाम सीपीआईओ, गृह मंत्रालय

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    ब्लैकलिस्टिंग के प्रस्ताव के लंबित होने के आधार पर बोली लगाने वाले को टेंडर प्रक्रिया में भाग लेने से नहीं रोक सकते: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने नागपुर जिला परिषद को विभिन्न कार्यों के लिए निर्माण फर्म की बोली पर विचार करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने यह निर्देश यह देखते हुए दिया कि इसे केवल इसलिए अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि राज्य इसे ब्लैकलिस्ट में डालने पर विचार कर रहा है।

    जस्टिस ए.एस. चांदुरकर और जस्टिस वृषाली वी. जोशी की खंडपीठ ने कहा, "हालांकि इस प्रस्ताव पर कोई विवाद नहीं हो सकता है कि उपयुक्त मामले में ब्लैकलिस्टिंग की कार्रवाई को उचित ठहराया जा सकता है। इसे ध्यान में रखा जाना चाहिए जब तक कि ब्लैकलिस्टिंग का आदेश न हो, बोली लगाने वाला बिना किसी बाधा के टेंडर प्रक्रिया में भाग लेने का हकदार है। जिला परिषद के अनुसार भी याचिकाकर्ता को ब्लैकलिस्ट में डालने का प्रस्ताव राज्य सरकार के पास लंबित है। इस प्रकार याचिकाकर्ता को ब्लैकलिस्ट में डालने के किसी भी आदेश के अभाव में उसे उस आधार पर टेंडर प्रक्रिया में भाग लेने से नहीं रोका जा सकता।"

    केस टाइटल- एम/एस. नानक कंस्ट्रक्शन बनाम महाराष्ट्र राज्य

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    आईपीसी की धारा 498ए- क्रूरता के कारण वैवाहिक घर छोड़ने के बाद पत्नी जिस स्थान पर रहती है वहां केस दायर कर सकती हैः उड़ीसा हाईकोर्ट ने दोहराया

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने दोहराया है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए के तहत केस उस स्थान पर दायर किया जा सकता है जहां एक महिला क्रूरता के कारण वैवाहिक घर छोड़ने या बाहर निकाले जाने के बाद रहती है।

    जस्टिस गौरीशंकर सतपथी की पीठ ने पूर्वोक्त आरोप को ‘निरंतर अपराध’ करार देते हुए कहा कि, “...क्रूरता के शारीरिक कृत्यों का निश्चित रूप से यातना के शिकार व्यक्ति के मानसिक संकाय पर प्रभाव पड़ता है। इसलिए, वैवाहिक घर में पत्नी के साथ की गई शारीरिक क्रूरता का उसके माता-पिता के घर में पत्नी के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, खासकर जब आईपीसी की धारा 498-ए के तहत अपराध लगातार चलने वाला अपराध हो और अलग-अलग स्थानों पर पत्नी को दी जाने वाली यातना भी पत्नी को लंबे समय तक मानसिक रूप से प्रताड़ित करेगी।”

    केस टाइटल- श्रीमती गीता तिवारी व अन्य बनाम उड़ीसा राज्य व अन्य

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    [फार्मेसी एक्ट 1948] राज्य सरकार के पास पीसीआई में नामित राज्य सदस्य के नामांकन को रद्द करने की कोई पूर्ण अधिकार नहीं: त्रिपुरा हाईकोर्ट

    त्रिपुरा हाईकोर्ट (Tripura High Court) ने कहा कि राज्य सरकार के पास फार्मेसी अधिनियम, 1948 के तहत फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया में नामित राज्य सदस्य के नामांकन को रद्द करने का पूर्ण अधिकार नहीं है। याचिकाकर्ता को राज्य स्वास्थ्य सचिव (प्रतिवादी संख्या 2) द्वारा 29.11.2018 को फार्मेसी अधिनियम, 1948 (अधिनियम) की धारा 3 (एच) के तहत फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया (पीसीआई) के राज्य सदस्य के रूप में नामित किया गया था।

    केस टाइटल: नीलिमंका दास बनाम त्रिपुरा राज्य और 6 अन्य।

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    अस्थायी रूप से भारत में रहने वाले प्रवासी नागरिक घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत राहत की मांग करने के हकदार : मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि भारत में कानून भारत की विदेशी नागरिकता (ओसीआई) कार्ड रखने वाले व्यक्ति या अस्थायी रूप से यहां रहने वाले व्यक्ति को भारतीय अदालतों में घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत राहत की मांग करने से प्रतिबंधित नहीं करता।

    जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम ने घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण (डीवी) अधिनियम की धारा 27 पर कहा, "स्पष्ट रूप से यह निर्धारित करता है कि पीड़ित व्यक्ति अस्थायी रूप से रह रहा है या व्यवसाय कर रहा है या कार्यरत है, वह भी घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के दायरे में आ रहा है, इसलिए जो व्यक्ति अस्थायी रूप से भारत में रह रहा है या भारत का विदेशी नागरिक है, अगर पति या पत्नी द्वारा आर्थिक रूप से दुर्व्यवहार किया जाता है, जो दूसरे देश में रह रहा है, अधिनियम के तहत राहत की मांग करने का हकदार है।"

    केस टाइटल: केसी बनाम यूके

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    जमानत की संभावना पर राय बनाए बिना डिटेनिंग अथॉरिटी पहले से ही हिरासत रखे गए व्यक्ति को निवारक हिरासत में नहीं ले सकती: मणिपुर हाईकोर्ट

    मणिपुर हाईकोर्ट ने कहा कि निरोधक प्राधिकरण को निवारक निरोध कानूनों के तहत शक्ति का प्रयोग करने से पहले यह देखना होगा कि डिटेन्यू जो पहले से ही हिरासत में है, उसने जमानत याचिका दायर की है या नहीं। डिटेन्यू पहले से ही अन्य दो मामलों में ही न्यायिक हिरासत में था। उसको अक्टूबर 2022 में राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 की धारा 3(2) के तहत जिला मजिस्ट्रेट, थौबल द्वारा हिरासत में लिया गया।

    केस टाइटल: थियम प्रिया देवी बनाम मणिपुर राज्य और 2 अन्य।

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    एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल भर्ती प्रक्रिया के दौरान उम्मीदवार की श्रेणी के वर्गीकरण के संबंध में विवादों का फैसला कर सकता है: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल एक्ट 1985 के तहत गठित एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल के पास 'भर्ती' से संबंधित सभी मामलों पर विचार करने का अधिकार है, जिसमें अधिसूचना के प्रकाशन की तारीख से लेकर सरकारी नौकरी के पदों के लिए आवेदन आमंत्रित करने से लेकर आदेश तक सभी निर्णय शामिल हैं।

    कलाबुरगी पीठ में बैठे एकल न्यायाधीश की पीठ जस्टिस अनंत रामनाथ हेगड़े ने अमीना अफरोज द्वारा दायर याचिका का निस्तारण करते हुए स्पष्टीकरण दिया, जिसने ट्रिब्यूनल के अधिकार क्षेत्र पर सवाल उठाया था, जिसमें शासकीय विद्यालय शिक्षक के पद पर चयन हेतु याचिकाकर्ता को श्रेणी 2-बी/केए-एचके के स्थान पर सामान्य मेरिट अभ्यर्थी के रूप में वर्गीकृत करने हेतु जन निर्देश से संबंधित सब-डायरेक्टर के फैसले को चुनौती दी थी।

    केस टाइटल: अमीना अफरोज बनाम कर्नाटक राज्य और अन्य

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    दोषी ठहराए जाने के बाद भी हाईकोर्ट सीआरपीसी की धारा 482 के तहत घरेलू हिंसा का केस रद्द कर सकता है: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने पति और ससुराल वालों के खिलाफ पत्नी की ओर से दर्ज घरेलू हिंसा के मामले को खारिज करते हुए कहा कि अपील लंबित होने पर भी सजा के बाद भी वैवाहिक विवाद से संबंधित केस को रद्द करने पर कोई रोप नहीं है। इस मामले में आरोपी को ट्रायल कोर्ट ने मार्च 2021 में दोषी ठहराया था।

    जस्टिस अनुजा प्रभुदेसाई और जस्टिस आरएम जोशी की खंडपीठ ने कहा कि हाईकोर्ट सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग सजा के बाद के मामलों में कर सकता सकता है, जब एक न्यायिक मंच के समक्ष अपील लंबित हो।

    केस टाइटल: शेख शौकत पुत्र मजीत @ मजीद पटेल व अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य।

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    भले ही ड्राइवर नशे में हो, बीमाकर्ता तीसरे पक्ष को भुगतान के लिए उत्तरदायी: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने सोमवार को कहा कि बीमा कंपनी मोटर दुर्घटना पीड़ित को आरंभ में मुआवजा देने के लिए उत्तरदायी होगी, भले ही चालक ने नशे की हालत में वाहन चलाकर पॉलिसी की शर्तों का उल्लंघन किया हो।

    जस्टिस मैरी जोसेफ की सिंगल जज बेंच ने कहा, "निस्संदेह, जब चालक नशे की हालत में होता है तो उसकी चेतना और इंद्रियां क्षीण हो जाती हैं, जिससे वह ड्राइविंग करने के लिए अयोग्य हो जाता है। हालांकि पॉलिसी के तहत देयता प्रकृति में वैधानिक है और इसलिए कंपनी को पीड़ित को मुआवजे देने से छूट नहीं दी जाएगी।"

    केस टाइटल: मोहम्मद राशिद @ राशिद बनाम गिरिवासन ईके और अन्य।

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    मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 9 के तहत अंतिम राहत नहीं दी जा सकती: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली के हाईकोर्ट ने माना है कि न्यायालय ऐसी राहत नहीं दे सकता है, जो मध्यस्थता और सुलह अधिनियम (A&C एक्ट) की धारा 9 के तहत आवेदन में अंतिम प्रकृति की हो। जस्टिस चंद्र धारी सिंह की पीठ ने माना कि अधिनियम की धारा 9 के तहत विचारित राहत प्रकृति में केवल अंतरिम है, अर्थात, 'बीच के समय में' या 'अनंतिम' और यह निर्णय के प्रवर्तन की सहायता में और अवार्ड में दी गई अंतिम राहत के अधीन होना चाहिए।

    केस टाइटल: जीएमआर पोचनपल्ली एक्सप्रेसवे लिमिटेड बनाम एनएचएआई

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    पोस्टिंग के स्थान, प्रतिनियुक्ति, काम के घंटे, प्राप्त अवकाश के बारे में जानकारी आरटीआई एक्ट के तहत नहीं दी जा सकती: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने माना कि कर्मचारी की पोस्टिंग की जगह, प्रतिनियुक्ति की अवधि, काम के घंटे, प्रतिनियुक्ति के दौरान मुख्यालय का स्थान, मुख्यालय छोड़ने की अनुमति के साथ ली गई किसी भी प्रकार की छुट्टी, उपस्थिति की प्रति के संबंध में जानकारी रजिस्टर और संचलन रजिस्टर व्यक्तिगत प्रकृति के होते हैं, इसलिए आरटीआई एक्ट के तहत इसका खुलासा नहीं किया जा सकता। अदालत ने उस मामले में फैसला सुनाया, जहां राज्य सूचना आयोग, हरियाणा ने 2015 में आरटीआई एक्ट के तहत आवेदक को डेंटल सर्जन से संबंधित ऐसी जानकारी का खुलासा करने का निर्देश दिया था।

    केस टाइटल: डॉ XXX बनाम राज्य सूचना आयुक्त, हरियाणा और अन्य।

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    निष्पादन कार्यवाही में विभाजन और अलग कब्जे के लिए प्रार्थना नहीं दी जा सकती: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि उन याचिकाकर्ताओं के लिए निष्पादन कार्यवाही फिर से खोलने की अनुमति नहीं दी जा सकती, जिन्होंने 14 साल तक कोई आपत्ती नहीं दर्ज कराई और अदालत द्वारा निष्पादन आदेश पारित होने के दो साल तक उसे कोई चुनौती नहीं दी।

    जस्टिस संदीप वी. मार्ने ने रिट याचिका खारिज करते हुए कहा, “…आपत्तियां केवल औपचारिकता के रूप में दायर की गई प्रतीत होती हैं और उस पर कभी मुकदमा नहीं चलाया गया। निष्पादन अदालत द्वारा डिक्री की संतुष्टि दर्ज किए जाने के दो साल बाद याचिकाकर्ताओं ने अपनी आपत्ति का निर्णय न होने के बहाने निष्पादन की कार्यवाही को फिर से खोलने को कहा, जिस पर उन्होंने 14 वर्षों तक मुकदमा चलाने की जहमत नहीं उठाई। ऐसे निष्क्रिय याचिकाकर्ताओं के लिए बंद निष्पादन कार्यवाही को फिर से खोलने की अनुमति नहीं दी जा सकती, वह भी उनकी आपत्तियों के निर्णय के लिए, जो केवल मुकदमे में तय की जा सकती है।

    केस टाइटल- हीराबाई दत्तात्रेय मानकर बनाम डोडके एसोसिएट्स अपने पार्टनर के माध्यम से

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    पत्नी का भरण-पोषण भत्ता कर्ज नहीं, पति की पेंशन को बकाये के भुगतान के लिए कुर्की से छूट नहींः मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने माना है कि पत्नी को दिया जाने वाला भरण-पोषण भत्ता कर्ज के दायरे में नहीं आएगा और इस प्रकार, पति की पेंशन को भरण-पोषण के बकाये के भुगतान के लिए कुर्की से छूट नहीं दी गई है।

    इस बात पर प्रकाश डालते हुए कि भरण-पोषण एक सामाजिक न्याय है जो अभाव और खानाबदोशी को रोकता है, जस्टिस वी शिवगणनम ने कहा, ‘‘एक संकटग्रस्त महिला के वैध दावे को निर्ममतापूर्वक और कानूनन इनकार नहीं किया जाना चाहिए। सामाजिक न्याय की अंतरात्मा, हमारे संविधान की आधारशिला की रक्षा की जाएगी। इसलिए, मेरा मानना है कि पत्नी को दिए गए भरण-पोषण भत्ते को ऋण के रूप में नहीं माना जा सकता है और वह एक लेनदार नहीं है। इस प्रकार, पेंशन अधिनियम 1871 की धारा 11 के साथ-साथ सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 60(1)(जी) के तहत प्रदान की गई छूट पति को नहीं दी जा सकती है।’’

    केस टाइटल- पी अमुथा बनाम गुनासेकरन

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    [विशेष विवाह अधिनियम] युवा विदेश में बड़े पैमाने पर कार्यरत, 30 दिन का अनिवार्य निवास और उसके बाद की प्रतीक्षा अवधि पर पुनर्विचार की आवश्यकता: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट के समक्ष हाल ही में एक याचिका दायर की गई, जिसमें विशेष विवाह अधिनियम के प्रावधान को इस सीमा तक चुनौती दी गई कि यह इच्छित विवाह की सूचना देने के बाद 30 दिनों की प्रतीक्षा अवधि को अनिवार्य करता है। रिट याचिका में मांग की गई है कि अनिवार्य प्रतीक्षा अवधि को असंवैधानिक घोषित किया जाए, या यह घोषणा की जाए कि धारा 6 में उल्लिखित विवाह की सूचना देने के बाद 30 दिनों की अवधि और अधिनियम के तहत सभी परिणामी प्रावधान केवल निर्देशिका हैं और इस पर जोर नहीं दिया जा सकता है।

    केस टाइटल: बिजी पॉल बनाम द मैरिज ऑफिसर और अन्य।

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    मरने के बाद दोषी अदालत द्वारा लगाए गए जुर्माने का भुगतान करने के दायित्व से मुक्त नहीं होता, दोषी की संपत्ति से जुर्माना वसूल किया जा सकता है : कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि दोषी की मौत अदालत द्वारा लगाए गए जुर्माने और मुआवजे का भुगतान करने के उसके दायित्व का निर्वहन (दायित्व से मुक्त) नहीं करती है। यह उस संपत्ति से वसूल किया जा सकता है जो उसकी मृत्यु के बाद उसके कानूनी उत्तराधिकारियों के पास जाती है और वे कानूनी रूप से जुर्माने के भुगतान के लिए उत्तरदायी होते हैं।

    जस्टिस शिवशंकर अमरनवर की पीठ ने एक थोटलेगौड़ा द्वारा दायर उस अपील को खारिज करते हुए यह अवलोकन किया है, जिसमें उस आदेश को चुनौती दी गई थी,जिसके तहत उसे भारतीय विद्युत अधिनियम, 2003 की धारा 135 और 138 के तहत दंडनीय अपराध के लिए दोषी ठहराया गया था और 29,204 रुपये के जुर्माने का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था।

    केस टाइटल- थोटलेगौड़ा बनाम कर्नाटक राज्य

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    कुछ साल तक इनचार्ज पोस्ट पर रहने के आधार पर पद पर रहने वाले व्यक्ति के पक्ष में कोई इक्विटी नहीं बनती : मणिपुर हाईकोर्ट

    मणिपुर हाईकोर्ट ने माना कि इनचार्ज पोस्ट पर लंबे समय तक बने रहने से प्रभारी पद धारण करने वाले व्यक्ति के पक्ष में कोई इक्विटी (equity) नहीं बन सकती। याचिकाकर्ता का मामला यह है कि वह 10 से अधिक वर्षों से इंफाल के एलएमएस लॉ कॉलेज में इनचार्ज प्रिंसिपल के रूप में कार्यरत हैं। एमपीएससी ने 27.10.2018 को एलएमएस लॉ कॉलेज सहित तीन कॉलेजों में पात्रता शर्तों/योग्यता के साथ प्रिंसिपल पोस्ट के लिए आवेदन आमंत्रित करते हुए विज्ञापन जारी किया।

    केस टाइटल: मोहम्मद सलातुर रहमान बनाम मणिपुर राज्य और 3 अन्य।

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    राज्य नीति के तहत मोटर दुर्घटना शिकार को दी गई अनुग्रह राशि, एमवी एक्ट के तहत मुआवजे के निर्धारण पर बीमाकर्ता को वापस नहीं की जाएगी: गुवाहाटी हाईकोर्ट

    गुवाहाटी हाईकोर्ट की ‌सिंगल जज बेंच ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि राज्य की नीति के अनुसार मोटर दुर्घटना पीड़ित को दी गई अनुग्रह राशि, मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के प्रावधानों के तहत या किसी अन्य कानून के तहत या अन्यथा मुआवजे के वास्तविक भुगतान पर, मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 163 (1) के तहत बीमाकर्ता को वापस नहीं करनी होगी।

    जस्टिस अचिंत्य मल्ला बुजोर बरुआ ने कहा, -"सरकारी अधिसूचना संख्या आरआर.33/2014/66, 15.11.2014 के प्रावधानों को इस कोर्ट के 04.05.2019 के डब्ल्यूपी(सी) नंबर 2100/2019 के फैसले के साथ पढ़ने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि एक व्यक्ति जो एक मोटर दुर्घटना में मारा गया है, उसका पर‌िजन दो लाख रुपये की अनुग्रह राशि के भुगतान का हकदार होगा और अनुग्रह राशि का ऐसा भुगतान इसके अलावा होगा, जिसके लिए ऐसा व्यक्ति 1988 के अधिनियम के प्रावधानों सहित किसी अन्य कानून के तहत मुआवजे का हकदार हो सकता है।

    केस टाइटल: लक्षी दास बनाम ज्ञानेंद्र देव त्रिपाठी और अन्य और अन्य संबंधित मामले

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    सीपीसी आदेश XVI नियम 1 | महत्वपूर्ण गवाह की जांच के अवसर से इसलिए इनकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि गवाहों की सूची में नाम न होने का कारण नहीं बताया गया: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने माना कि सीपीसी के आदेश XVI नियम 1(1) के तहत गवाहों की सूची में गवाहों के नाम शामिल नहीं करने का कारण बताने में विफलता वादी को उन गवाहों की जांच करने से रोकने का कारण नहीं हो सकती है जो विवाद का निर्धारण करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। जस्टिस संदीप वी. मार्ने ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए वादी को दो गवाहों से पूछताछ करने की अनुमति दी।

    केस टाइटल- दिनेश सिंह भीम सिंह बनाम विनोद शोभराज गजरिया

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    आरोपी के पास सुनवाई का बहुमूल्य अधिकार है, एफआईआर दर्ज करने के निर्देश के खिलाफ पुनर्विचार याचिका सुनवाई योग्य: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि एफआईआर दर्ज करने के निर्देश के आदेश के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिका सुनवाई योग्य है, क्योंकि ऐसा आदेश वादकालीन आदेश नहीं है। अदालत ने कहा कि आरोपी को सुनवाई का बहुमूल्य अधिकार है।

    जस्टिस जसमीत सिंह ने कहा कि एफआईआर दर्ज करने से आरोपी के मौलिक अधिकार और स्वतंत्रता प्रभावित होती है। अदालत ने कहा कि संज्ञेय अपराधों के आरोपों के लिए वारंट के बिना गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को जांच के लिए बुलाया जा सकता है।

    केस टाइटल: रविंदर लाल ऐरी बनाम एस शालू निर्माण प्रा. लिमिटेड और अन्य।

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    मुस्लिम महिलाएं 'खुला' के तहत तलाक के लिए फैमिली कोर्ट जा सकती हैं, 'शरीयत काउंसिल' जैसी स्वघोषित संस्थाएं तलाक को प्रमाणित नहीं कर सकतीं: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट (Madras High Court) ने कहा कि शरीयत काउंसिल न तो अदालतें हैं और न ही मध्यस्थ और इस तरह वे ‘खुला (Khula)’ के तहत तलाक के लिए प्रमाणित नहीं कर सकती हैं। जस्टिस सी सरवनन ने शरीयत काउंसिल की ओर से जारी ‘खुला’ प्रमाण पत्र को रद्द कर दिया और एक महिला और उसके पति को अपने विवादों को सुलझाने के लिए तमिलनाडु विधिक सेवा प्राधिकरण या फैमिली कोर्ट से संपर्क करने का निर्देश दिया।

    केस टाइटल: मोहम्मद रफ़ी बनाम तमिलनाडु राज्य और अन्य

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    पति की पेंशन रोककर गुजारा भत्ता बढ़ाने की मांग करना 'कानून का दुरुपयोग': कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 के तहत भरण-पोषण बढ़ाने की पत्नी की याचिका को खारिज करते हुए सोमवार को कहा कि पति की आय के पर्याप्त स्रोत को अवरुद्ध करने के बाद भरण-पोषण बढ़ाने की प्रार्थना करने वाली पत्नी की याचिका कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग के समान है।

    जस्टिस शम्पा दत्त (पॉल) ने रेखांकित किया, "यह एक ऐसा मामला है जहां एक पत्नी पति की आय के एक बड़े स्रोत को अवरुद्ध करती है और फिर भरणपोषण में वृद्धि का दावा करती है, जो पति के लिए वास्तव में कठिन स्थिति है। यह स्पष्ट रूप से कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है और न्याय के हित के भी खिलाफ है। कानून की नजर में दोनों पक्ष समान हैं और अदालत को यह सुनिश्चित करना है कि किसी भी पक्ष के साथ अन्याय न हो।”

    केस टाइटल: शिल्पी लेनका बनाम सुशांत कुमार लेनका और अन्य।

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    मोटर वाहन अधिनियम| एमएसीटी 6 महीने के बाद दायर दावा याचिकाओं को खारिज नहीं कर सकता है: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (एमएसीटी) मोटर वाहन अधिनियम के तहत दायर दावा याचिकाओं को, अगर उन्हें छह महीने के बाद भी दायर किया गया हो तो खारिज नहीं कर सकता है।

    जस्टिस अमित रावल की सिंगल जज पीठ ने एमएसीटी के विवादित आदेशों को रद्द करते हुए कहा कि, "केंद्रीय मोटर वाहन नियम 1989 के नियम 150ए के तहत बनाए गए अनुबंध XIII के नियम 17 को ध्यान में रखते हुए, छह महीने की अवधि से परे भी मुआवजे का दावा करने के लिए याचिकाओं पर विचार करने के लिए सीमा अधिनियम के प्रावधान लागू होंगे। दावा याचिका पर विचार करने की सीमा को छह महीने तक सीमित नहीं किया जा सकता है क्योंकि अधिनियम में सीमा अधिनियम की धारा 29(2) के प्रावधानों की प्रयोज्यता को छोड़कर कोई प्रावधान नहीं है।"

    केस टाइटल: अक्षय राज बनाम कानून और न्याय मंत्रालय व अन्य। और अन्य जुड़े मामले

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    मुआवजा देने के लिए दोनों हाथों के खोने को 100% विकलांगता के रूप में माना जाना चाहिए: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट (Gujarat High Court) ने हाल ही में एक दावेदार को दीवानी अदालत द्वारा दिए गए मुआवजे को इस आधार पर बढ़ा दिया कि दोनों भुजाओं के एक तिहाई हिस्से को खोने को 100% विकलांगता माना जाएगा। अपीलकर्ता को ठेकेदार यानी प्रतिवादी संख्या 3 द्वारा प्रतिवादी संख्या 1 और 2 के लिए काम करने के लिए नियोजित किया गया था। 24.07.2007 को, अपीलकर्ता को बिजली का करंट लगा और इसके परिणामस्वरूप, अपीलकर्ता की दोनों भुजाएं काट दी गईं।

    केस टाइटल: संजय कालूभाई मकवाना बनाम पश्चिम गुजरात विज कंपनी लिमिटेड और 2 अन्य।

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    सीआरपीसी की धारा 409(2) ट्रायल शुरू होने के बाद सेशन जज की मुकदमे को वापस लेने की प्रशासनिक शक्ति पर रोक लगाती है: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

    छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि सीआरपीसी की धारा 409 (2) मामले की सुनवाई शुरू होने के बाद सेशन ट्रायल वापस लेने की सेशन जज की प्रशासनिक शक्ति पर रोक लगाती है। जस्टिस संजय के.अग्रवाल की पीठ ने सेशन जज, बेमेतरा के आदेश को चुनौती देने वाली शिकायतकर्ता द्वारा दायर ट्रांसफर याचिका स्वीकार की, जिसमें 10 अगस्त, 2022 के सेशन ट्रायल वापस लेने का आदेश दिया था, जिसमें प्रथम अपर सेशन जज, बेमेतरा एवं प्रकरण की सुनवाई की कार्यवाही द्वारा आरोप तय किए गए।

    केस टाइटल- टोमन लाल यादव बनाम छत्तीसगढ़ राज्य व अन्य [ट्रांसफर याचिका (Cr.) नंबर 35/2022]

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    जब तक जाति-आधारित अपमान के इरादे से पीड़ित की जाति का उल्लेख न किया गया हो, एससी/एसटी एक्‍ट के तहत अपराध नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक फैसले में माना कि अपमान या जातिवादी टिप्पणी के किसी इरादे के बिना केवल गालियां देना अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत अपराध नहीं है।

    ज‌स्टिस एम नागप्रसन्ना की सिंगल जज बेंच ने शैलेश कुमार वी की ओर से दायर याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार किया, और अधिनियम की धारा 3(1)(आर) और (एस) के तहत लगाए गए आरोपों को खारिज कर दिया। हालांकि भारतीय दंड संहिता के तहत आरोपों के लिए कार्यवाही जारी रखने की अनुमति दी।

    केस टाइटल: शैलेश कुमार वी और कर्नाटक राज्य

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    [सीआरपीसी की धारा 311] गवाह को केवल इसलिए वापस नहीं बुलाया जा सकता, क्योंकि पक्षकार क्रॉस एग्जामिनेशन के दौरान कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न पूछने में विफल रहा: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट की एकल न्यायाधीश पीठ ने दोहराया कि अभियोजन पक्ष के गवाहों को सीआरपीसी की धारा 311 के तहत क्रॉस एग्जामिनेशन के लिए इस आधार पर वापस नहीं बुलाया जा सकता कि क्रॉस एग्जामिनेशन के दौरान कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न नहीं पूछे गए।

    जस्टिस उमेश ए त्रिवेदी ने आपराधिक पुनर्विचार याचिका खारिज करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता ने यह उल्लेख नहीं किया कि उक्त गवाहों से क्या पूछा जाना बाकी है। इसलिए वह यह दिखाने में विफल रहा है, कि गवाहों को वापस बुलाए बिना अदालत निर्णय देने में असमर्थ है।

    केस टाइटल: इमरान करीमभाई मैडम बनाम गुजरात राज्य

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    टेंडर स्क्रूटनी कमेटी के अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप के परिणामस्वरूप वैध टेंडर रद्द नहीं किया जा सकता : कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि टेंडर आमंत्रित करने वाले प्राधिकारी को अनुबंध के निष्पादन और अवार्ड की अधिसूचना से पहले केवल टेंडर रद्द करने का अधिकार है। अदालत ने कहा कि एक बार अधिनिर्णय अधिसूचित हो जाने के बाद टेंडर शर्तों के उल्लंघन को छोड़कर टेंडर वापस लेने या रद्द करने की वैधानिक रूप से अनुमति नहीं है।

    जस्टिस एम नागप्रसन्ना ने मैसर्स एलेंजर्स मेडिकल सिस्टम्स लिमिटेड द्वारा दायर याचिका की अनुमति दी और कर्नाटक राज्य मेडिकल आपूर्ति निगम लिमिटेड को 27-10-2021 की टेंडर अधिसूचना के अनुसार कंपनी के पक्ष में पोर्टेबल एक्स-रे मशीनों के लिए खरीद आदेश को 2 सप्ताह के भीतर इसके पक्ष में टेंडर अवार्ड जारी करने का निर्देश दिया।

    केस टाइटल: मैसर्स एलेंगर्स मेडिकल सिस्टम्स लिमिटेड और कर्नाटक राज्य

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    पक्षकार जब यह निर्दिष्ट किए बिना समझौता करते हैं कि मुकदमा कैसे तय किया जाना है तो समझौता डिक्री पारित नहीं की जा सकती: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि पक्षकार जहां आपस में किए गए समझौते के आधार पर यह बताए बिना मुकदमे को निपटाने के लिए सहमत हुए हैं कि मुकदमे का फैसला कैसे किया जाना है या समझौते की शर्तें क्या हैं तो इस तरह के मुकदमे में न्यायालय द्वारा कोई डिक्री पारित नहीं जा सकती।

    जस्टिस अनिल के. नरेंद्रन और जस्टिस पी.जी. अजित कुमार की खंडपीठ ने फैमिली कोर्ट द्वारा दिए गए उस फैसले को खारिज करते हुए उपरोक्त आदेश पारित किया, जिसमें कहा गया कि पक्षकारों के बीच सभी लंबित मामलों को समझौते के संदर्भ में सुलझा लिया गया। डिवीजन बेंच द्वारा यह नोट किया गया कि क्लॉज 5 में समझौता गिफ्ट डीड को अलग करने से संबंधित मामले के निपटारे से संबंधित है।

    केस टाइटल: डॉ दृश्य डी.टी व अन्य बनाम डॉ. किरण व अन्य।

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    न्यायालय उपयुक्त आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल नियुक्त करने के लिए शक्तिहीन नहीं, भले ही पक्षकार आर्बिट्रेशन क्लॉज के तहत अपना अधिकार खो दे: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि भले ही आर्बिट्रेशन क्लॉज के अनुसार आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल में अपने नामांकित व्यक्ति को नियुक्त करने का पक्षकार का अधिकार रद्द कर दिया गया हो, क्योंकि वह आर्बिट्रेशन का आह्वान नोटिस प्राप्त करने के बाद वैधानिक अवधि के भीतर अपने अधिकार का प्रयोग करने में विफल रहा। तो भी इससे यह नहीं होगा न्यायालय विवादों की प्रकृति पर विचार करने के बाद उपयुक्त आर्बिट्रेल ट्रिब्यूशन नियुक्त करने के लिए शक्तिहीन है।

    केस टाइटल: पीएसपी प्रोजेक्ट्स लिमिटेड बनाम भिवंडी निजामपुर सिटी म्युनिसिपल कार्पोरेशन।

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    [पे एंड रिकवर] दुर्घटना के समय ड्राइवर के फर्जी लाइसेंस रखने मात्र से बीमा कंपनी तीसरे पक्ष को मुआवजा देने के दायित्व से मुक्त नहीं हो सकती: गुवाहाटी हाईकोर्ट

    गुवाहाटी हाईकोर्ट (Gauhati High Court) ने कहा कि दुर्घटना के समय चालक द्वारा फर्जी लाइसेंस रखने मात्र से बीमा कंपनी तीसरे पक्ष को मुआवजा देने के दायित्व से मुक्त नहीं हो जाती है। जस्टिस अरुण देव चौधरी ने राम चंद्र सिंह बनाम राजाराम और अन्य 2018 8 SCC 799 और शमन्ना बनाम द ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड और अन्य 2018 9 SCC 650 पर भरोसा किया। इसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ड्राइविंग लाइसेंस फेक होना बीमाकर्ता को दोषमुक्त नहीं करेगा और उस मामले में, 'पे एंड रिकवर' का सिद्धांत लागू होगा।

    केस टाइटल: यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम दमयंती लहकर और अन्य

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    मुस्लिम लॉ- मृत कर्मचारी की सभी जीवित विधवाएं असम सेवा (पेंशन) नियमों के तहत पारिवारिक पेंशन की हकदार हैंः हाईकोर्ट

    गुवाहाटी हाईकोर्ट की तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश आरएम छाया, जस्टिस अचिंत्य मल्ला बुजोर बरुआ और जस्टिस सौमित्रा सैकिया की पीठ ने हाल ही में कहा था कि जहां पक्षकार मुस्लिम लॉ(कानून) द्वारा शासित होते हैं, वहां दूसरी पत्नी या बाकी सभी पत्नियां 1969 के पेंशन नियमों के नियम 143(1) के तहत पारिवारिक पेंशन के लाभ की हकदार होती हैं।

    केस टाइटल- मुस्त जूनूफा बीबी बनाम मुस्त पद्मा बेगम उर्फ पद्मा बीबी व 4 अन्य

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