मुस्लिम लाॅ- मृत कर्मचारी की सभी जीवित विधवाएं असम सेवा (पेंशन) नियमों के तहत पारिवारिक पेंशन की हकदार हैंः हाईकोर्ट

Manisha Khatri

29 Jan 2023 5:36 AM GMT

  • Gauhati High Court

    Gauhati High Court

    गुवाहाटी हाईकोर्ट की तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश आरएम छाया, जस्टिस अचिंत्य मल्ला बुजोर बरुआ और जस्टिस सौमित्रा सैकिया की पीठ ने हाल ही में कहा था कि जहां पक्षकार मुस्लिम लाॅ(कानून) द्वारा शासित होते हैं, वहां दूसरी पत्नी या बाकी सभी पत्नियां 1969 के पेंशन नियमों के नियम 143(1) के तहत पारिवारिक पेंशन के लाभ की हकदार होती हैं।

    न्यायालय के समक्ष निम्नलिखित मुद्दे निर्धारित करने के लिए थेः

    (1) क्या मृत कर्मचारी की दूसरी या आगे की पत्नियां, जहां दोनों मुस्लिम कानून द्वारा शासित हैं, ऐसे मृत कर्मचारी की पारिवारिक पेंशन के लाभों की हकदार होंगी?

    (2) यदि हां, तो असम सेवा (पेंशन) नियमों, 1969 के अंतर्गत परिवार पेंशन किसे देय है?

    पहले मुद्दे का जवाब देते हुए अदालत ने कहा कि जब पक्षकार मुस्लिम कानून द्वारा शासित होते हैं, तो दूसरी पत्नी या आगे की पत्नियां उक्त नियमों के तहत पारिवारिक पेंशन के लाभ की हकदार होती हैं।

    अदालत ने कहाः

    ‘‘जैसा कि नियम 143(1) को पढ़ने से पता चलता है कि परिवार पेंशन के प्रयोजन के लिए एक परिवार में अधिकारी के रिश्तेदार शामिल होंगे, जिसमें पुरुष अधिकारी के मामले में पत्नी भी शामिल है। यदि किसी पुरुष अधिकारी की दूसरी या आगे की पत्नियां पक्षकारों को शासित करने वाले पर्सनल लॉ के तहत स्वीकार्य और वैध हैं, तो हमें कोई कारण नहीं दिखता कि ऐसी दूसरी या आगे की पत्नियों को पुरुष अधिकारी की पत्नी क्यों नहीं माना जाएगा।”

    हालांकि, अदालत ने फैसला सुनाया कि दूसरी शादी या आगे के विवाह की वैधता और स्वीकार्यता के बावजूद (जहां पक्षकार मुस्लिम कानून द्वारा शासित हैं) 1969 के पेंशन नियमों के नियम 143 के तहत पारिवारिक पेंशन जीवित विधवाओं में से ज्येष्ठ को देय होगी।

    1969 के पेंशन नियमों के नियम 143 की व्याख्या करते हुए, अदालत ने कहा कि यह स्पष्ट और जाहिर है कि पारिवारिक पेंशन पहली बार में जीवित विधवाओं में से सबसे बड़ी को भुगतान की जाएगी और उसके बाद, उसकी मृत्यु पर अगली जीवित विधवा को, यदि कोई भी हो और उसकी अनुपस्थिति में अवयस्क बच्चों (यदि कोई हो) को दी जाएगी।

    अदालत ने आगे स्पष्ट किया कि पेंशन प्राप्त करने वाली सबसे बड़ी जीवित पत्नी या विधवा उन सभी व्यक्तियों के लिए ट्रस्टी के रूप में कार्य करेगी जो पारिवारिक पेंशन के लाभ के हकदार हैं।

    कोर्ट ने कहा,

    ‘‘परिवारिक पेंशन जीवित विधवा या पत्नी में से सबसे बड़ी को देय होने का मतलब यह नहीं होगा कि इस प्रकार देय संपूर्ण पारिवारिक पेंशन जीवित विधवा या पत्नी में सबसे बड़ी की निजी संपत्ति होगी और इस प्रकार देय पारिवारिक पेंशन जीवित विधवाओं या पत्नी में से सबसे बड़ी द्वारा ऐसे सभी अन्य व्यक्तियों के लिए एक ट्रस्टी के रूप में धारित की जाएगी, जो 1969 के पेंशन नियमों के नियम 143 के अनुसार पारिवारिक पेंशन के लाभ के हकदार हैं।’’

    पीठ द्वारा यह भी कहा गया कि ऐसे मामले में जहां पक्ष मुस्लिम कानून द्वारा शासित होते हैं और जीवित विधवाओं या पत्नी में से पेंशन का भुगतान पाने वाली सबसे बड़ी द्वारा उन सभी का उचित रूप से रखरखाव नहीं किया जाता है तो वे कानून के तहत उपयुक्त मंच के समक्ष भरण-पोषण के लिए दावा कर सकती हैं परंतु ऐसे व्यक्तियों को सीधे राज्य के अधिकारियों द्वारा परिवार पेंशन का भुगतान करने के लिए दावा नहीं किया जा सकता है।

    हालांकि, अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि राज्य के अधिकारी अपनी मर्जी से मृत कर्मचारी के परिवार के ऐसे किसी सदस्य को अलग से पेंशन देने के लिए सहमत हैं या आवश्यक हैं, तो इस फैसले को इस तरह के अलग भुगतान पर पूर्ण रोक नहीं माना जा सकता है।

    केस टाइटल- मुस्त जूनूफा बीबी बनाम मुस्त पद्मा बेगम उर्फ पद्मा बीबी व 4 अन्य

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