न्यायालय उपयुक्त आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल नियुक्त करने के लिए शक्तिहीन नहीं, भले ही पक्षकार आर्बिट्रेशन क्लॉज के तहत अपना अधिकार खो दे: बॉम्बे हाईकोर्ट

Shahadat

30 Jan 2023 5:38 AM GMT

  • न्यायालय उपयुक्त आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल नियुक्त करने के लिए शक्तिहीन नहीं, भले ही पक्षकार आर्बिट्रेशन क्लॉज के तहत अपना अधिकार खो दे: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि भले ही आर्बिट्रेशन क्लॉज के अनुसार आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल में अपने नामांकित व्यक्ति को नियुक्त करने का पक्षकार का अधिकार रद्द कर दिया गया हो, क्योंकि वह आर्बिट्रेशन का आह्वान नोटिस प्राप्त करने के बाद वैधानिक अवधि के भीतर अपने अधिकार का प्रयोग करने में विफल रहा। तो भी इससे यह नहीं होगा न्यायालय विवादों की प्रकृति पर विचार करने के बाद उपयुक्त आर्बिट्रेल ट्रिब्यूशन नियुक्त करने के लिए शक्तिहीन है।

    हाईकोर्ट मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (ए एंड सी एक्ट) की धारा 11 के तहत दायर याचिका पर विचार कर रहा था, जिसमें एकमात्र आर्बिट्रेटर की नियुक्ति की मांग की गई थी।

    जस्टिस मनीष पिटाले की बेंच ने कहा कि प्रतिवादी ने आर्बिट्रेशन क्लॉज के अनुसार अपने नॉमिनी को नियुक्त करने का अधिकार खो दिया, जिसमें तीन सदस्यीय आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल पर विचार किया गया। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि अदालत याचिकाकर्ता के आग्रह पर केवल एकमात्र आर्बिट्रेटर नियुक्त करने के लिए विवश है।

    निर्माण अनुबंध के तहत याचिकाकर्ता पीएसपी प्रोजेक्ट्स लिमिटेड और प्रतिवादी भिवंडी निजामपुर शहर नगर निगम के बीच कुछ विवाद उत्पन्न होने के बाद याचिकाकर्ता ने अनुबंध में निहित आर्बिट्रेशन क्लॉज का आह्वान किया और एकमात्र आर्बिट्रेटर का नाम प्रस्तावित किया।

    आर्बिट्रेशन का आह्वान करने वाले नोटिस के अपने जवाब में प्रतिवादी ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल की नियुक्ति के लिए पार्टियों के बीच सहमत प्रक्रिया से भटक गया था, और याचिकाकर्ता/दावेदार द्वारा उठाए गए दावों का खंडन किया।

    परिणामस्वरूप, याचिकाकर्ता ने एकमात्र आर्बिट्रेटर की नियुक्ति की मांग करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट के समक्ष ए&सी एक्ट की धारा 11(6) के तहत याचिका दायर की।

    याचिकाकर्ता पीएसपी प्रोजेक्ट्स ने हाईकोर्ट के समक्ष तर्क दिया कि अनुबंध में निहित आर्बिट्रेशन क्लॉज की धारा 12 (5) का उल्लंघन करती है, जिसे ए एंड सी अधिनियम की सातवीं अनुसूची के साथ पढ़ा जाता है।

    याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि पक्षकारों के बीच आर्बिट्रेशन समझौते के अनुसार, प्रतिवादी निगम को पांच आर्बिट्रेटर के पैनल को अग्रेषित करने की आवश्यकता है, जिसमें से याचिकाकर्ता और प्रतिवादी प्रत्येक आर्बिट्रेटर का चयन करेंगे। उक्त दो आर्बिट्रेटर उसके बाद तीसरे आर्बिट्रेटर का चयन करेंगे।

    याचिकाकर्ता ने Voestalpine Schienen GMBH बनाम दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (2017) में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर भरोसा करते हुए कहा कि आर्बिट्रेशन क्लॉज़ को सातवीं अनुसूची के साथ पढ़ी जाने वाली धारा 12(5) से प्रभावित किया गया। इसलिए इसने दलील दी कि एकमात्र आर्बिट्रेटर की नियुक्ति के लिए जारी किया गया नोटिस वैध है।

    याचिकाकर्ता पीएसपी प्रोजेक्ट्स ने आगे तर्क दिया कि प्रतिवादी-निगम ने आर्बिट्रेटर नियुक्त करने का अधिकार खो दिया। यह माना गया कि एक बार पक्षकार द्वारा आर्बिट्रेशन का नोटिस जारी किया जाता है और प्रतिवादी नोटिस अवधि के भीतर आर्बिट्रेटर नियुक्त करने में विफल रहता है, जिसके अनुसार पक्षकार अधिनियम की धारा 11 (6) के तहत न्यायालय का रुख करता है और आर्बिट्रेटर की नियुक्ति की मांग करता है तो प्रतिवादी ऐसे मामलों में आर्बिट्रेशन क्लॉज के अनुसार आर्बिट्रेटर नियुक्त करने का अधिकार खो देगा।

    पर्किन्स ईस्टमैन आर्किटेक्ट्स डीपीसी और अन्य बनाम एचएससीसी (इंडिया) लिमिटेड (2019) में दिए गए फैसले का जिक्र करते हुए न्यायालय ने ध्यान दिया कि सुप्रीम कोर्ट ने माना कि यदि पक्षकार के पास एकमात्र आर्बिट्रेटर नियुक्त करने का अधिकार है तो ऐसी एकतरफा नियुक्ति आर्बिट्रेशन क्लॉज को समाप्त कर देगी। हालांकि, यदि दो पक्षों को एक-एक आर्बिट्रेटर नामांकित करने का अधिकार है और दो आर्बिट्रेटर ने फिर तीसरा आर्बिट्रेटर नियुक्त किया तो आर्बिट्रेशन क्लॉज की एकतरफा प्रकृति समाप्त हो गई, क्योंकि ऐसे मामले में दोनों पक्षों के अधिकार प्रति संतुलित हो गए।

    इसके अलावा, हाईकोर्ट ने माना कि वोएस्टलपाइन शिएनन जीएमबीएच बनाम दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (2017) में सुप्रीम कोर्ट के पहले के फैसले के अनुसार, जिसमें समान तथ्य शामिल थे, जब आर्बिट्रेशन क्लॉज के तहत पक्षकार की पसंद सीमित है। ऐसे में केवल पांच नामों के पैनल से आर्बिट्रेटर का चयन करें, जैसा कि प्रतिवादी द्वारा अग्रेषित किया गया। यहां उक्त क्लॉज खंडित है और अधिनियम की धारा 12 (5) सपठित सातवीं अनुसूची के तहत आता है।

    मामले के तथ्यों का उल्लेख करते हुए पीठ ने कहा,

    "वर्तमान मामले के तथ्यों और पक्षकारों के बीच निष्पादित विशिष्ट आर्बिट्रेशन क्लॉज, यहां ऊपर उद्धृत किया गया, याचिकाकर्ता को पांच आर्बिट्रेटर के पैनल से एक नाम चुनने के लिए अनिवार्य किया गया। जैसा कि वोएस्टलपाइन शिएनेन जीएमबीएच बनाम दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (सुप्रा) में उक्त क्लोज को उक्त अधिनियम की सातवीं अनुसूची सपठित धारा 12 (5) के उल्लंघन के रूप में माना जाना चाहिए।

    इस प्रकार, न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि Voestalpine Schienen GmbH बनाम दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड सपठित पर्किन्स ईस्टमैन आर्किटेक्ट्स डीपीसी और अन्य बनाम एचएससीसी (इंडिया) लिमिटेड (सुप्रा) के मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का अनुपात मामले को यहां पूरी तरह से याचिकाकर्ता के पक्ष में कवर करता है। इसलिए यह माना जाता है कि वर्तमान मामले में आर्बिट्रेशन क्लॉज उक्त अधिनियम की सातवीं अनुसूची सपठित धारा 12(5) से प्रभावित है।

    पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून के अनुसार, पक्षकार द्वारा एक बार आर्बिट्रेशन का आह्वान करने का नोटिस जारी किया जाता है और 30 दिनों की अवधि समाप्त हो जाती है, जिसके बाद पहला पक्षकार अदालत के समक्ष अधिनियम की धारा 11 के तहत याचिका दायर करता है, दूसरा पक्षकार आर्बिट्रेशन क्लोज के तहत सहमत प्रक्रिया के अनुसार आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल में अपने नामांकित व्यक्ति को नियुक्त करने का पक्षकार का अधिकार जब्त हो जाएगा।

    इस प्रकार, न्यायालय ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून के मद्देनजर, हालांकि यह माना जा सकता है कि प्रतिवादी-निगम ने अपना नामांकित व्यक्ति नियुक्त करने का अधिकार खो दिया। हालांकि, यह हाईकोर्ट को उपयुक्त आर्बिट्रेल ट्रिब्यूनल नियुक्त करने के लिए शक्तिहीन नहीं करेगा, जो न्याय के हित में है।

    अदालत ने कहा,

    "... हालांकि यह माना जा सकता है कि प्रतिवादी निगम ने अपना अधिकार खो दिया है, लेकिन यह वास्तव में इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंचेगा कि यहां तक कि अदालत को भी याचिकाकर्ता के आग्रह पर केवल एकमात्र आर्बिट्रेटर नियुक्त करना चाहिए। दूसरे शब्दों में प्रतिवादी के अधिकार की जब्ती इस न्यायालय को न्याय के हित में उपयुक्त आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल नियुक्त करने के लिए शक्तिहीन नहीं करेगी।”

    न्यायालय ने कहा,

    "निवास इकाइयों के निर्माण से संबंधित अनुबंध के संदर्भ में पक्षकारों के बीच उठाए गए विवादों की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए आवश्यक रूप से तकनीकी मामलों को शामिल करते हुए इस न्यायालय की राय है कि तीन सदस्यों का आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल गठित किया जाना चाहिए।"

    इस प्रकार न्यायालय ने याचिका आंशिक रूप से स्वीकार कर ली और दो आर्बिट्रेटर को क्रमशः याचिकाकर्ता और प्रतिवादी निगम के नामिती के रूप में नियुक्त किया; दो आर्बिट्रेटर को तीसरा आर्बिट्रेटर नियुक्त करने का निर्देश दिया।

    केस टाइटल: पीएसपी प्रोजेक्ट्स लिमिटेड बनाम भिवंडी निजामपुर सिटी म्युनिसिपल कार्पोरेशन।

    दिनांक: 27.01.2023

    याचिकाकर्ता के वकील: शरण जगतियानी a/w रोहिल बांदेकर, मैसर्स शीतल शाह द्वारा मेहता और गिरधरलाल।

    प्रतिवादी के लिए वकील: राम एस. आप्टे के साथ एम.जे. भट्टा।

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