[विशेष विवाह अधिनियम] युवा विदेश में बड़े पैमाने पर कार्यरत, 30 दिन का अनिवार्य निवास और उसके बाद की प्रतीक्षा अवधि पर पुनर्विचार की आवश्यकता: केरल हाईकोर्ट

Avanish Pathak

31 Jan 2023 2:59 PM GMT

  • [विशेष विवाह अधिनियम] युवा विदेश में बड़े पैमाने पर कार्यरत, 30 दिन का अनिवार्य निवास और उसके बाद की प्रतीक्षा अवधि पर पुनर्विचार की आवश्यकता: केरल हाईकोर्ट

    Kerala High Court

    केरल हाईकोर्ट के समक्ष हाल ही में एक याचिका दायर की गई, जिसमें विशेष विवाह अधिनियम के प्रावधान को इस सीमा तक चुनौती दी गई कि यह इच्छित विवाह की सूचना देने के बाद 30 दिनों की प्रतीक्षा अवधि को अनिवार्य करता है।

    रिट याचिका में मांग की गई है कि अनिवार्य प्रतीक्षा अवधि को असंवैधानिक घोषित किया जाए, या यह घोषणा की जाए कि धारा 6 में उल्लिखित विवाह की सूचना देने के बाद 30 दिनों की अवधि और अधिनियम के तहत सभी परिणामी प्रावधान केवल निर्देशिका हैं और इस पर जोर नहीं दिया जा सकता है।

    जस्टिस वीजी अरुण ने कहा कि इस मामले पर विस्तृत विचार की आवश्यकता है।

    उन्होंने कहा,

    हमारे रीति-रिवाजों और परंपराओ में कई परिवर्तन हुए हैं, उदारता आई है। दूसरा पहलू यह है कि बड़ी संख्या में युवा विदेशों में कार्यरत हैं। ऐसे लोग कम दिनों की छुट्टियों पर ही अपने घर वापस आते हैं। ऐसे कई उदाहरण हैं जहां कम दिनों की छुट्टियों में ही शादी हुई है। स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत यह आवश्यक है कि इच्छुक पति-पत्नी में से एक विवाह की सूचना देने से पहले कम से कम 30 दिनों के लिए न्यायिक विवाह अधिकारी की क्षेत्रीय सीमा के भीतर निवास करता हो। इसके बाद इच्छुक पति-पत्नी को शादी करने के लिए और 30 दिनों तक इंतजार करना पड़ता है। क्या यह प्रतीक्षा अवधि सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तनों और स्वयं सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए आवश्यक है, ऐसे मामलै हैं जिन पर कानून निर्माताओं का ध्यान आकर्षित होना चाहिए।

    मौजूदा याचिका एक जोड़े ने दायर की है, ‌जिन्हें विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के प्रावधान के तहत अनिवार्य 30 दिनों की प्रतीक्षा अवधि को पूरा किए बिना विवाह की अनुम‌ति नहीं दी गई थी। पहला याचिकाकर्ता ओमान में कार्यरत है और दूसरी याचिकाकर्ता इटली में रहती है।

    याचिकाकर्ताओं ने अदालत का दरवाजा खटखटाया है क्योंकि 30 दिनों की प्रतीक्षा अवधि का अनुपालन संभव नहीं है।

    याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील, एडवोकेट केएम फिरोज ने यह तर्क देते हुए अंतरिम आदेश की मांग की कि 30 दिनों की अवधि पर जोर दिए बिना, विवाह को संपन्न करने के निर्देश के अभाव में, रिट याचिका को निष्फल कर दिया जाएगा।

    वकील ने तर्क दिया कि 1954 से अब तक सामाजिक परिवेश में व्यापक बदलाव को देखते हुए अधिनियम की उत्तरोत्तर व्याख्या की जानी चाहिए।

    डीएसजी एडवोकेट एस मनु ने हालांकि अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि धारा 5 के तहत निर्धारित 30 दिनों की अवधि को प्रस्तावित विवाह के खिलाफ आपत्तियां उठाने का अवसर प्रदान करने के लिए शामिल किया गया है और यह कि वैधानिक प्रावधान आधी शताब्दी से अधिक समय से लागू है और इसलिए, अंतरिम राहत देने के लिए अनदेखी की जाए। अपने तर्क को पुष्ट करने के लिए डीएसजी ने हेल्थ फॉर मिलियन्स बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट और अजमल अशरफ एम और अन्य बनाम केरल राज्य और अन्य में हाईकोर्ट के फैसले पर भरोसा किया।

    अदालत ने उठाए गए तर्कों पर विचार करने के बाद कहा कि इस मामले पर विस्तृत विचार की आवश्यकता है। हालांकि, अदालत ने डीएसजी के इस तर्क का पक्ष लिया कि अंतरिम आदेश देने से प्रावधान के संचालन पर रोक का प्रभाव पड़ेगा।

    यह अदालत धारा 5 में निर्धारित समय को अनिवार्य रखने वाले डिवीजन बेंच और सिंगल बेंच के फैसलों की भी अनदेखी नहीं कर सकती है, अदालत ने अंतरिम राहत के लिए प्रार्थना को अस्वीकार करते हुए तर्क दिया।

    मामला एक महीने बाद पोस्ट किया गया है।

    केस टाइटल: बिजी पॉल बनाम द मैरिज ऑफिसर और अन्य।

    साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (केरल) 49

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें

    Next Story