दोषी ठहराए जाने के बाद भी हाईकोर्ट सीआरपीसी की धारा 482 के तहत घरेलू हिंसा का केस रद्द कर सकता है: बॉम्बे हाईकोर्ट
Brij Nandan
2 Feb 2023 11:18 AM IST
बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने पति और ससुराल वालों के खिलाफ पत्नी की ओर से दर्ज घरेलू हिंसा के मामले को खारिज करते हुए कहा कि अपील लंबित होने पर भी सजा के बाद भी वैवाहिक विवाद से संबंधित केस को रद्द करने पर कोई रोप नहीं है।
इस मामले में आरोपी को ट्रायल कोर्ट ने मार्च 2021 में दोषी ठहराया था।
जस्टिस अनुजा प्रभुदेसाई और जस्टिस आरएम जोशी की खंडपीठ ने कहा कि हाईकोर्ट सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग सजा के बाद के मामलों में कर सकता सकता है, जब एक न्यायिक मंच के समक्ष अपील लंबित हो।
अदालत ने कहा कि पक्षों ने मामला सुलझा लिया है और पत्नी ने स्वेच्छा से समझौता स्वीकार कर लिया है।
कोर्ट ने कहा,
"आरोपों की प्रकृति और विशेष रूप से यह देखते हुए कि पार्टियों ने अब अपने तनावपूर्ण संबंधों को समाप्त करने और जीवन के साथ आगे बढ़ने का फैसला किया है, हमारा विचार है कि यह सीआरपीसी की धारा 482 के तहत इस न्यायालय की अंतर्निहित शक्ति का प्रयोग करने के लिए एक उपयुक्त मामला है।“
आईपीसी की धारा 498ए, 323, 504, 506 के तहत दर्ज 2017 के मामले को रद्द करने के लिए पति और उसके परिवार ने पिछले साल अदालत का दरवाजा खटखटाया था। जोड़े ने 2014 में शादी की थी। महिला ने दुर्व्यवहार और 5 लाख रुपये की दहेज मांग का आरोप लगाया था।
मुकदमे के बाद, अदालत ने अभियुक्तों को दोषी ठहराया और उन्हें मार्च 2021 में छह महीने की जेल की सजा सुनाई।
उच्च न्यायालय के समक्ष, यह तर्क दिया गया कि पक्षों ने विवाद को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझा लिया है और दंपति समझौते के तहत से अलग हो गए हैं। सहमति की शर्तों के मुताबिक पति ने पत्नी को 50 हजार रुपये का मेहर राशि के साथ 3.25 लाख दिए।
अदालत को बताया गया कि सजा के खिलाफ एक अपील लंबित है। कोर्ट ने रामावतार बनाम मध्य प्रदेश राज्य ने 2021 एससीसी ऑनलाइन एससी 966 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया।
फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रामगोपाल और अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य में, गैर-जघन्य अपराधों या ऐसे अपराधों से जुड़ी आपराधिक कार्यवाही की गई है, जो मुख्य रूप से निजी प्रकृति के हैं, जिन्हें किसी भी स्तर पर रद्द किया जा सकता है।
रामावतार में, शीर्ष अदालत ने एक और चेतावनी दी कि अनुच्छेद 142 या सीआरपीसी की धारा 482 के तहत शक्तियों का प्रयोग सजा के बाद के मामलों में ही किया जाना चाहिए, जहां एक या दूसरे न्यायिक मंच के समक्ष अपील लंबित है।
कोर्ट ने कहा,
"इस फैसले को सीधे तौर पर पढ़ने से, यह स्पष्ट है कि सीआरपीसी की धारा 482 के तहत शक्तियों का इस्तेमाल सजा के बाद के मामलों में किया जा सकता है, जब अपील एक या दूसरे न्यायिक फोरम के समक्ष लंबित हो। मौजूदा मामले में, जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, यह कहा गया है कि आवेदकों द्वारा दायर की गई अपील सत्र न्यायालय, औरंगाबाद के समक्ष लंबित है।“
डिवीजन बेंच ने कहा,
“इसलिए, सीआरपीसी की धारा 482 के तहत सजा के बाद वर्तमान कार्यवाही को रद्द करने के लिए शक्ति का प्रयोग करने में कोई रोक नहीं है, विशेष रूप से इस तथ्य पर विचार करते हुए कि कार्यवाही वैवाहिक विवाद के कारण शुरू हुई है।"
अदालत ने कहा कि महिला ने कार्यवाही को रद्द करने पर कोई आपत्ति नहीं जताई है और कहा है कि आवेदकों का कोई अन्य आपराधिक इतिहास नहीं है।
कोर्ट ने मामले को खारिज करते हुए कहा,
"हम संतुष्ट हैं कि समझौता स्वैच्छिक और वास्तविक है।"
केस टाइटल: शेख शौकत पुत्र मजीत @ मजीद पटेल व अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य।
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