[सीआरपीसी की धारा 311] गवाह को केवल इसलिए वापस नहीं बुलाया जा सकता, क्योंकि पक्षकार क्रॉस एग्जामिनेशन के दौरान कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न पूछने में विफल रहा: गुजरात हाईकोर्ट

Shahadat

30 Jan 2023 7:22 AM GMT

  • [सीआरपीसी की धारा 311] गवाह को केवल इसलिए वापस नहीं बुलाया जा सकता, क्योंकि पक्षकार क्रॉस एग्जामिनेशन के दौरान कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न पूछने में विफल रहा: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट की एकल न्यायाधीश पीठ ने दोहराया कि अभियोजन पक्ष के गवाहों को सीआरपीसी की धारा 311 के तहत क्रॉस एग्जामिनेशन के लिए इस आधार पर वापस नहीं बुलाया जा सकता कि क्रॉस एग्जामिनेशन के दौरान कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न नहीं पूछे गए।

    जस्टिस उमेश ए त्रिवेदी ने आपराधिक पुनर्विचार याचिका खारिज करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता ने यह उल्लेख नहीं किया कि उक्त गवाहों से क्या पूछा जाना बाकी है। इसलिए वह यह दिखाने में विफल रहा है, कि गवाहों को वापस बुलाए बिना अदालत निर्णय देने में असमर्थ है।

    पुनर्विचार याचिका में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वारा दिनांक 02.06.2022 को पारित आदेश को चुनौती दी गई, जिसमें अभियुक्तों द्वारा क्रॉस एग्जामिनेशन के लिए अभियोजन पक्ष की कुछ गवाहों को वापस बुलाने की मांग खारिज कर दी।

    याचिकाकर्ता के वकील आरडी चौहान ने तर्क दिया कि यदि अभियोजन पक्ष के गवाह नंबर 5, 7 और 8 को वापस बुलाया जाता है, क्योंकि क्रॉस एग्जामिनेशन में महत्वपूर्ण प्रश्न उनसे पूछे जाने के लिए छोड़ दिए गए, तो अभियोजन पक्ष के लिए कोई पूर्वाग्रह नहीं है।

    उन्होंने आगे कहा कि मुकदमे के दौरान आरोपी को कई बार अस्थायी जमानत दी गई और इसका कोई दुरुपयोग नहीं हुआ। इसलिए उक्त गवाहों को वापस बुलाने में कोई हर्ज नहीं है।

    राज्य के लिए एपीपी उत्कर्ष शर्मा ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता द्वारा गवाह को वापस बुलाने और कमी को पूरा करने के लिए कोई वैध आधार नहीं बताया गया। इसलिए अभियुक्त के कहने पर भी किसी गवाह को वापस नहीं बुलाया जा सकता।

    अदालत ने फैसला सुनाया,

    "यह स्पष्ट है कि अभियुक्तों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील की पूर्ण संतुष्टि के लिए जिन तीन गवाहों को यह आवेदन दायर किया गया, उन्हें वापस बुलाने के लिए क्रॉस एग्जामिनेशन की गई थी। इसलिए आरोपी द्वारा अदालत के समक्ष उनकी गवाही समाप्त होने के लगभग ढाई साल बाद किए गए आवेदन पर उन्हें वापस बुलाने का कोई सवाल ही नहीं है।”

    अदालत ने यह भी कहा कि मोहनलाल शामजी सोनी बनाम भारत संघ में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय, 1991 (2) जीएलआर 974 में याचिकाकर्ता के वकील द्वारा उद्धृत किया गया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अधिनियम की धारा 311 निर्णय सुनाए जाने तक किसी भी स्तर पर इस संबंध में न्यायालयों को अपनी शक्ति का उपयोग करने का अधिकार देती है, लेकिन साथ ही यह भी कहा गया कि शक्ति का उपयोग विवेकपूर्ण तरीके से किया जाना चाहिए न कि मनमाने ढंग से।

    अदालत ने आगे कहा,

    "न्यायाधीश ने यह सही निष्कर्ष निकाला कि या तो कमी को पूरा करने के लिए या वकील बदल कर अभियुक्त के कहने पर किसी भी गवाह को वापस नहीं बुलाया जा सकता।"

    अतः उपरोक्त कारणों से पुनर्विचार याचिका खारिज की जाती है।

    केस टाइटल: इमरान करीमभाई मैडम बनाम गुजरात राज्य

    कोरम: जस्टिस उमेश ए. त्रिवेदी

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