हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

22 Jan 2023 4:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (16 जनवरी, 2023 से 20 जनवरी, 2023) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    न्यायिक अधिकारियों की पेंशन | वेतन का विशेष वेतन भाग पेंशन की गणना के लिए माना जाना चाहिए: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा कि न्यायिक अधिकारियों को दिया जाने वाला विशेष वेतन उनके वेतन का एक हिस्सा है और इसे पेंशन की गणना के उद्देश्य से गिना जाना चाहिए।

    जस्टिस अनु शिवरामन की सिंगल जज पीठ न्यायिक अधिकारियों द्वारा दायर याचिकाओं के एक बैच पर विचार कर रही थी, जो या तो काम कर रहे हैं या जिला और सत्र न्यायाधीशों के रूप में सेवा से सेवानिवृत्त हो चुके हैं। याचिका में याचिकाकर्ताओं और केरल न्यायिक अधिकारी एसो‌‌‌‌सिएशन के सदस्यों को देय विशेष वेतन, जो उन्हें परिलब्धियों के एक हिस्से के रूप में दी जाती है, की गणना वेतन के ‌एक हिस्से के रूप में करके पेंशन के पुनर्निर्धारण की मांग की गई है।

    केस टाइटल: केरल न्यायिक अधिकारी संघ और अन्य बनाम केरल राज्य और अन्य और अन्य जुड़े मामले

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    स्वतंत्रता सेनानी पेंशन योजना के तहत विधवा या तलाकशुदा बेटी 'आश्रित पात्र': दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि एक विधवा या तलाकशुदा बेटी 1980 की स्वतंत्रता सेनानी पेंशन योजना के तहत लाभ की हकदार है। कोर्ट ने माना कि यह योजना उन्हें लाभ से वंचित करने पर विचार नहीं करती।

    जस्टिस राजीव शकधर और जस्टिस तलवंत सिंह की खंडपीठ ने कहा कि 1980 की योजना और इसके तहत बनाए गए 2014 के दिशा-निर्देशों को "सरसरी तौर पर" पढ़ने से पता चलता है कि एक अविवाहित बेटी योग्य आश्रितों की श्रेणी में आती है, इसलिए स्वतंत्रता सेनानी की मृत्यु के बाद पेंशन की हकदार है।

    केस टाइटल: यूनियन ऑफ इं‌डिया बनाम कोल्ली उदय कुमारी

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    सीआरपीसी की धारा 125 के तहत बहू ससुर से मेंटेनेंस का दावा नहीं कर सकती: पटना हाईकोर्ट

    पटना हाईकोर्ट (Patna High Court) ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत बहू अपने ससुर से मेंटेनेंस का दावा करने की हकदार नहीं है। जस्टिस सुनील दत्ता मिश्रा की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा कि हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम की धारा 19 के तहत मेंटेनेंस के लिए एक आवेदन का निर्णय करते समय फैमिली कोर्ट सीआरपीसी की धारा 125 को अंतरिम मेंटेनेंस प्रदान करने के लिए लागू नहीं कर सकता है।

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    कर्मचारी अनुच्छेद 226 के तहत 'पर्याप्तता या विश्वसनीयता के आधार पर' विभागीय जांच के निष्कर्षों को चुनौती नहीं दे सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि एक कर्मचारी संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत पर्याप्तता या विश्वसनीयता के आधार पर अनुशासनात्मक कार्यवाही में विभागीय अधिकारियों के निष्कर्षों को चुनौती नहीं दे सकता है। जस्टिस दिनेश कुमार शर्मा ने कहा, "यह एक सुलझी हुई स्थिति है कि यदि जांच सही तरीके से की जाती है तो विभागीय अधिकारी तथ्यों के एकमात्र जज होते हैं।"

    केस टाइटल: स्नेह अग्रवाल बनाम पंजाब नेशनल बैंक

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    सार्वजनिक शांति का उल्लंघन करने के लिए किसी भी नेक्सस के बिना केवल एफआईआर दर्ज करना प्रिवेंटिव डिटेंशन लॉ के तहत किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने का कोई आधार नहीं: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट की खंडपीठ ने हाल ही में डिटेंशन ऑर्डर को इस आधार पर रद्द कर दिया कि सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के उल्लंघन के साथ बिना किसी समझौते के केवल एफआईआर दर्ज करने से हिरासत में लिए गए व्यक्ति के मामले को गुजरात विरोधी सामाजिक गतिविधियों की रोकथाम अधिनियम, 1985 (अधिनियम) की धारा 2 (बी) के तहत परिभाषा के दायरे में नहीं लाया जा सकता।

    केस टाइटल: भावेश @ पिंटो जनकभाई कोटक बनाम पुलिस आयुक्त

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    POCSO पीड़ित की उम्र साबित करने के लिए जन्म प्रमाण पत्र की कोई आवश्यकता नहीं, स्कूल प्रमाणपत्र पर्याप्त साक्ष्यः दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि पीड़िता की उम्र साबित करने के लिए जन्म प्रमाण पत्र की कोई आवश्यकता नहीं है और कोई भी स्कूल प्रमाण पत्र पीड़िता की उम्र साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत है। जस्टिस जसमीत सिंह ने किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 94(2)(i) का अवलोकन करते हुए यह टिप्पणी की है, जो उम्र के अनुमान और निर्धारण का प्रावधान करती है।

    केस टाइटल-सुरजीत कुमार बनाम राज्य

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    नियम 12-ए सीसीएस असाधारण पेंशन नियम | विधवा पेंशन की हकदार है, भले ही पति की मृत्यु सरकारी सेवा के कारण न हुई हो: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में केंद्र को एक महिला को पेंशन बहाल करने का निर्देश दिया, जिसके पति भारतीय वायु सेना के एक कर्मचारी थे, जिनकी 1975 में सेवा के दरमियान मृत्यु हो गई थी। अप्रैल 1982 में जब अधिकारियों को पता चला कि महिला ने अपने मृत पति के छोटे भाई से दोबारा शादी कर ली है तो उसकी पारिवारिक पेंशन रोक दी गई थी। ज‌‌स्टिस एमएस रामचंद्र राव और ज‌स्टिस सुखविंदर कौर की पीठ ने अधिकारियों को 29.04.2011 से भुगतान की तिथि तक 6% ब्याज के साथ पेंशन बहाल करने का आदेश दिया।

    केस टाइटल: सुखजीत कौर बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य

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    जेजे अधिनियम | कानून के साथ संघर्षरत बच्चा सीआरपीसी की धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत मांग सकता है: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 438 के तहत प्रदान की गई अग्रिम जमानत का प्रावधान 'कानून के साथ संघर्षरत बच्चों' पर लागू होगा। जस्टिस शशिकांत मिश्रा की एकल पीठ ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि चूंकि किशोर न्याय अधिनियम के तहत 'गिरफ्तारी' का कोई प्रावधान नहीं है, इसलिए अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती क्योंकि 'गिरफ्तारी की प्रत्याशा' जमानत देने की पूर्व शर्त है।

    केस टाइटल: सुभम जेना और अन्य बनाम ओडिशा राज्य

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    मुख्य सुर्खियां साथी के बांझपन के आधार पर तलाक नहीं मांगा जा सकता, यह मानसिक क्रूरता के बराबर: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक फैसले में कहा कि महिला का बांझपन तलाक के ‌लिए वैध आधार नहीं हो सकता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि आईपीसी की धारा 498ए की परिभाषा के तहत पत्नी से आपसी सहमति से तलाक मांगना मानसिक क्रूरता के बराबर है, जबकि वह बांझपन के कारण पीड़ा है।

    जस्टिस शम्पा दत्त (पॉल) ने कहा, "बांझपन का कारण तलाक का आधार नहीं है। माता-पिता बनने के कई विकल्प हैं। एक जीवनसाथी को इन परिस्थितियों में समझना होगा क्योंकि एक साथी ही अपने दूसरे साथी की मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक शक्ति को वापस पाने में मदद कर सकता है।"

    केस टाइटल: श्री उत्तम कुमार बोस बनाम पश्चिम बंगाल राज्य

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    मुख्य सुर्खियां पोक्सो एक्ट| विशेष अदालत के पास निर्धारित न्यूनतम सजा से कम सजा देने की शक्ति नहींः कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने पॉक्सो कानून के तहत दोषी एक अभियुक्त को दी गई पांच साल की सजा को बढ़ा दिया है। उसे विशेष अदालत ने सजा दी थी। कोर्ट ने कहा कि जब कानून ने अपराध के लिए सात साल की न्यूनतम सजा तय की है तो विशेष अदालत के पास न्यूनतम सजा को घटाकर पांच साल करने की कोई शक्ति नहीं है। कालबुरगी स्थित जस्टिस वी श्रीशानंद की एकल पीठ ने अधिनियम की धारा 4 और भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत शेख रऊफ को दी गई सजा को बरकरार रखा और ट्रायल कोर्ट की सजा को बढ़ा दिया।

    केस टाइटल: कर्नाटक राज्य और शेख रऊफ

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    जांच अधिकारी के स्वयं कानूनी विशेषज्ञ होने पर विभागीय कार्रवाई का सामना कर रहे कर्मचारी को अपने बचाव के लिए वकील नियुक्त करने की अनुमति है: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट विभागीय कार्यवाही के संदर्भ में माना कि जांच अधिकारी के स्वयं कानूनी विशेषज्ञ होने पर आरोपी कर्मचारी अपने बचाव के लिए वकील नियुक्त करने का हकदार है।

    जस्टिस ए.एस. सुपेहिया ने ऐसे ही कर्मचारी द्वारा की गई याचिका स्वीकार करते हुए कहा, "वर्तमान मामले में चूंकि जांच अधिकारी खुद सिटी सिविल जज हैं और कानूनी कार्यवाही के विशेषज्ञ हैं, इसलिए याचिकाकर्ता के मामले में बचाव करने के लिए वकील नियुक्त करने से इनकार नहीं किया जा सकता... सुप्रीम कोर्ट ने भी माना कि यदि किसी कर्मचारी के खिलाफ शुरू की गई जांच में कानूनी कौशल रखने वाले किसी भी व्यक्ति को जांच अधिकारी के रूप में नियुक्त किया जाता है, आरोपी कर्मचारी की जांच में सहायता के लिए लीगल प्रैक्टिशनर से इनकार करना अनुचित होगा।"

    केस टाइटल: दिव्येश गोविंदभाई कुंवरिया बनाम गुजरात राज्य

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    'पीड़ित के मन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है': दिल्ली हाईकोर्ट ने ज़मानत सुनवाई के दौरान पॉक्सो पीड़ितों की उपस्थिति पर दिशानिर्देश जारी किए

    दिल्ली हाईकोर्ट ने जमानत की सुनवाई के दौरान पॉक्सो पीड़ितों की उपस्थिति के संबंध में कई निर्देश जारी किए। कोर्ट ने उक्त निर्देश यह देखते हुए जारी किए कि इसका पीड़ित के मन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जस्टिस जसमीत सिंह ने निर्देश दिया कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से या जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (डीएसएलएसए) की सहायता से पीड़ित को वस्तुतः अदालत के समक्ष या तो आईओ या सहायक व्यक्ति द्वारा पेश किया जा सकता है।

    केस टाइटल: X बनाम राज्य

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    पत्रकारों को जांच एजेंसियों को अपने सोर्स का खुलासा करने से छूट नहीं: दिल्ली कोर्ट

    दिल्ली की एक अदालत ने पाया कि पत्रकारों को जांच एजेंसियों के सामने अपने सोर्स का खुलासा करने से कोई वैधानिक छूट नहीं है, विशेष रूप से जहां आपराधिक मामले की जांच में सहायता के लिए इस तरह का खुलासा आवश्यक है।

    राउज एवेन्यू कोर्ट के मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट अंजनी महाजन ने उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के आरोपों के संबंध में समाचार पत्रों में प्रकाशित और टीवी चैनलों पर प्रसारित एक रिपोर्ट से संबंधित मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा मुलायम सिंह यादव और उनके परिवार के सदस्य की क्लोजर रिपोर्ट फ़ाइल को खारिज करते हुए ऐसा कहा।

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    बिजली के कथित अनधिकृत उपयोग के आधार पर अतिरिक्त राशि वसूलने का बिजली बोर्ड का दावा परिसीमा कानून द्वारा वर्जित नहीं : केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि बिजली के कथित अनधिकृत उपयोग के आधार पर अतिरिक्त राशि के लिए बिजली बोर्ड का दावा परिसीमा कानून द्वारा वर्जित नहीं है, जब उल्लंघन लगातार और आवर्ती हो। न्यायालय ने पाया कि यह इलेक्ट्रिसिटी एक्ट, 2003 की धारा 126 (5) के तहत प्रदान किए गए कारकों के अतिरिक्त है।

    जस्टिस शाजी पी चैली ने कहा, मेरा यह भी विचार है कि परिसीमा अधिनियम के तहत परिसीमा याचिकाकर्ता द्वारा संतुष्ट बोर्ड के दावे को प्रभावित नहीं करती, क्योंकि वर्तमान उल्लंघन निरंतर और आवर्ती उल्लंघन है, जब तक कि अनधिकृत भार समाप्त नहीं हो जाता, तब तक बकाया राशि का नवीनीकरण किया जाता।

    केस टाइटल: यूनियन बैंक ऑफ इंडिया बनाम डिप्टी चीफ इंजीनियर और अन्य।

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    आरटीआई | सार्वजनिक हित के लिए उपयोगी ना हो, ऐसी व्यक्तिगत जानकारी का खुलासा नहीं किया जा सकता: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट प्रशासन की ओर से दायर एक याचिका को स्वीकार करते हुए, जस्टिस बीरेन वैष्णव की एकल पीठ ने राज्य सूचना आयोग के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें प्रशासन को सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत एक न्यायिक अधिकारी द्वारा मांगी गई कुछ तीसरे पक्ष की व्यक्तिगत जानकारी का खुलासा करना ‌था। पीठ ने दोहराया कि सूचना जो "व्यक्तिगत" प्रकृति की है और जो किसी भी सार्वजनिक हित की पूर्ति नहीं करती है, उसे सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत प्रदान नहीं किया जा सकता है।

    केस टाइटल: गुजरात हाईकोर्ट बनाम गुजरात सूचना आयोग और एक अन्य

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    गैरकानूनी असेंबली| जमानत याचिका पर फैसला करते समय प्रत्येक अभियुक्त की व्यक्तिगत भूमिका पर विचार नहीं किया जा सकता: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि एक हत्या के आरोपी द्वारा दायर जमानत अर्जी पर फैसला करते समय आरोपी की व्यक्तिगत भूमिका पर विचार नहीं किया जा सकता है, जो एक गैरकानूनी असेंबली का हिस्सा था और जिसने कथित तौर पर एक सामान्य उद्देश्य के अनुसरण में अपराध किया था।

    जस्टिस एचपी संदेश की ‌सिंगल जज बेंच ने आरोपी अब्दुल मजीद द्वारा लगातार दायर जमानत अर्जी को खारिज करते हुए यह अवलोकन किया, जिस पर धारा 143, 144, 147, 148, 341, 342, 323, 324, 364, 307, 302, 506 सहपठित धारा 149 आईपीसी के तहत आरोप लगाए गए थे।

    केस टाइटल: अब्दुल मजीद और कर्नाटक राज्य

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    पत्नी और बच्चों के भरण-पोषण के व्यक्तिगत दायित्व से पति इस आधार पर मुक्त नहीं हो सकता कि उसके पास भुगतान करने का कोई साधन नहींः गुवाहाटी हाईकोर्ट

    गुवाहाटी हाईकोर्ट ने माना है कि वैवाहिक मुकदमेबाजी में उलझे पतियों की यह एक बहुत ही आम दलील होती है कि वे अपनी पत्नी और बच्चों को पालने की आर्थिक स्थिति में नहीं हैं। कोर्ट ने कहा कि ठोस आधार के अभाव में इस तरह की दलील पति को पत्नी और बच्चों के भरण-पोषण के उसके ‘‘व्यक्तिगत दायित्व’’ से मुक्त नहीं कर सकती है।

    जस्टिस मालाश्री नंदी ने कहा कि, ‘‘प्रत्येक याचिका में, आम तौर पर पति द्वारा यह दलील दी जाती है कि उसके पास भुगतान करने का साधन नहीं है या उसके पास नौकरी नहीं है या उसका व्यवसाय अच्छा नहीं चल रहा है... ऐसी दलीलों के संबंध में, न्यायिक प्रतिक्रिया हमेशा बहुत स्पष्ट रही है कि अपनी पत्नी और बेटी को भरण-पोषण का भुगतान करना पति का व्यक्तिगत दायित्व है। ऐसे आधार पर पति अपने इस दायित्व से मुक्त नहीं हो सकता है।’’

    केस टाइटल- रहीम अली प्रोधानी बनाम असम राज्य व अन्य

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    मुंसिफ मजिस्ट्रेट-ट्रेनी न्यायिक अधिकारी नहीं, अनुमति के बाद जिला जज के रूप में नियुक्ति पर रोक नहीं: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने गुरुवार को कहा कि जब एक व्यक्ति जिला जज के रूप में नियुक्ति के लिए आवेदन करने की तिथि पर या उस पद पर नियुक्ति की तिथि पर न्यायिक अधिकारी नहीं था, बल्‍कि केवल मुंसिफ मजिस्ट्रेट-ट्रेनी था, तब यह जिला जज के पद पर उनकी नियुक्ति के लिए बाधक नहीं बनेगा।

    जस्टिस अनु शिवरामन ने एवी टेल्स (तीसरा प्रतिवादी) की नियुक्ति के खिलाफ दायर याचिका पर यह आदेश पारित किया। नियुक्ति को इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि वह केरल न्यायिक अकादमी में मुंसिफ मजिस्ट्रेट की ट्रेनिंग ले रहे थे।

    केस टाइटल: श्री उन्नीकृष्णन वीवी बनाम केरल राज्य और अन्य।

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    नागरिकों को उन नियमों को जानने का अधिकार है जिनके तहत उन्हें शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन करने की अनुमति देने से इनकार किया जाता है: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने माना कि नागरिकों को उन नियमों और विनियमों को जानने का अधिकार है, जिसके तहत उन्हें शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन करने की अनुमति से वंचित किया जाता है। इसमें कहा गया कि पुलिस द्वारा इस तरह के नियमों को प्रचारित करने से इंकार करना सूचना के अधिकार अधिनियम के उद्देश्य को "मारना और गला घोंटना" है।

    कोर्ट ने कहा, "सूचना का अधिकार अधिनियम इस भावना के साथ अधिनियमित किया गया कि लोकतंत्र को सूचित नागरिक और सूचना की पारदर्शिता की आवश्यकता होती है, जो इसके कामकाज के लिए महत्वपूर्ण है और भ्रष्टाचार को रोकने के लिए और सरकारों और उनके तंत्रों को शासित करने के लिए जवाबदेह ठहराती है... अधिनियम की धारा 2( f) सपठित सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 3 और 4 अधिकारियों को सूचना प्रस्तुत करना और पारदर्शिता को बढ़ावा देना अनिवार्य बनाता है। क्या याचिकाकर्ता को उन कारणों और नियमों की आपूर्ति की गई, जिसके तहत उसे 2019 में विरोध करने की अनुमति से वंचित किया गया। वह भूमि के कानून और निर्णय लेने की प्रक्रिया तक पहुंच होगी, जो याचिकाकर्ता को ऐसी जानकारी को चुनौती देने में सक्षम बना सकती है।"

    केस टाइटल: स्वाति राजीव गोस्वामी बनाम पुलिस आयुक्त, अहमदाबाद

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    दोषी ठहराए जाने, सजा के बाद भी नाबालिग होने की दलील दी जा सकती है: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा है कि दोषी ठहराए जाने और सजा के बाद भी एक व्यक्ति द्वारा नाबालिग होने की दलील दी जा सकती है, जिसके अनुसार, अधिकारी आयु निर्धारण जांच करने के लिए बाध्य होंगे। कोर्ट एक ऐसे व्यक्ति की याचिका पर विचार कर रहा था जिसने वर्ष 1995 में 16 वर्ष से थोड़ा अधिक आयु में अपराध किया था।

    जुवेनाइल जस्टिस एक्ट, 1986 के अनुसार, एक पुरुष को 16 वर्ष की आयु तक किशोर माना जाता था और महिला की 18 वर्ष की आयु तक। लेकिन किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2000 के तहत पुरुषों की आयु सीमा 16 से बढ़ाकर 18 वर्ष कर दिया गया था।

    केस टाइटल: एबीसी बनाम हरियाणा राज्य

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    बच्चे के भरण-पोषण में विफल रहने पर अधीनस्थ अधिकारी के खिलाफ जिला कलेक्टर अनुशासनात्मक कार्रवाई कर सकते हैं: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने तमिलनाडु में पुदुकोट्टई से पोन्नेरी में वैवाहिक विवाद को ट्रांसफर करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि पिता, जो ग्राम प्रशासन अधिकारी के रूप में कार्यरत है, अपनी 10 वर्षीय बेटी को अंतरिम भरण-पोषण का भुगतान नहीं कर रहा है।

    जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम ने मुलाक़ात के अधिकार के बावजूद उसे इस तरह का भुगतान करने का निर्देश देते हुए जिला कलेक्टर को यह भी निर्देश दिया कि अगर वह इस तरह के अंतरिम भरण-पोषण का भुगतान करने में विफल रहता है तो अधिकारी के खिलाफ सेवा नियमों के तहत कड़ी कार्रवाई की जाए।

    केस टाइटल: एम महालक्ष्मी बनाम एम विजयकुमार

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    बिजली विभाग के पास उपभोक्ता की संपत्ति के स्वामित्व की जांच करने का कोई अधिकार नहीं है: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि जहां दीवानी विवाद सिविल कोर्ट के समक्ष लंबित है, बिजली विभाग को शिकायत पर विचार करने में सावधानी बरतनी चाहिए, जब तक कि अधिनियम के प्रावधानों का घोर उल्लंघन न हो। जस्टिस अमित रावल ने उपरोक्त आदेश उस याचिका पर पारित किया, जो याचिकाकर्ता को बिजली बोर्ड द्वारा जारी संचार को चुनौती देते हुए दायर की गई, जिसमें उसे संपत्ति का स्वामित्व दिखाने के लिए कहा गया।

    केस टाइटल: रशीदा बनाम केरल स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड लिमिटेड व अन्य।

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    फरार/घोषित अपराधी अग्रिम जमानत का हकदार नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने कहा कि एक व्यक्ति जिसके खिलाफ एक वारंट जारी किया गया है और वारंट के निष्पादन से बचने के लिए फरार है और उसके खिलाफ संहिता की धारा 82 के तहत कार्यवाही शुरू की गई है, तो वह अग्रिम जमानत का हकदार नहीं है। जस्टिस मंजू रानी चौहान की पीठ ने एक व्यक्ति को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोपी तीन व्यक्तियों (मृतक के ससुर, सास और पत्नी) की अग्रिम जमानत नामंजूर करते हुए यह टिप्पणी की।

    आवेदक के वकील: नीरज कुमार द्विवेदी, आद्या प्रसाद तिवारी, प्रदीप कुमार सिंह,

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    फॉरेनर्स स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत विवाह का रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं, दिल्ली सरकार को दिशा-निर्देशों में संशोधन के लिए कदम उठाने चाहिए: हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने कहा कि स्पेशल मैरिज एक्ट, 1954 के प्रावधानों के तहत एक जोड़े के विवाह के अनुष्ठान और पंजीकरण के लिए "कम से कम एक पक्ष भारत का नागरिक होने" की कोई आवश्यकता नहीं है। जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने कहा कि अधिनियम की धारा 4 में कोई संदेह नहीं है कि कोई भी दो व्यक्ति अपनी शादी को तब तक पूरा कर सकते हैं जब तक कि प्रावधान में निर्धारित शर्तें पूरी होती हैं।

    केस टाइटल: अरुशी मेहरा और अन्य बनाम दिल्ली सरकार और अन्य

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    सार्वजनिक अनुबंध में अधिक धन की संभावना अनुबंध को समाप्त करने के लिए एकमात्र मानदंड नहीं हो सकती: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली ने हाईकोर्ट ने हरियाणा में दो टोल प्लाजा पर चल रहे अनुबंधों के निर्वाह के दौरान उपयोगकर्ता शुल्क के संग्रह के लिए नए सिरे से बोली आमंत्रित करने के भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं को स्वीकार करते हुए फैसला सुनाया कि केवल अधिक धन की संभावना सार्वजनिक अनुबंध में अनुबंधों को समाप्त करने का एकमात्र मानदंड नहीं हो सकता। विशेष रूप से जो अनुबंध निश्चित अवधि के लिए होते हैं।

    केस टाइटल: मेसर्स जय सिंह एंड कंपनी बनाम भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण

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    एनडीपीएस एक्‍ट की धारा 50 का 'पर्याप्त' अनुपालन किया गया है या नहीं, यह जमानत में नहीं बल्‍कि ट्रायल में तय किया जा सकता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि जमानत के चरण में केवल यह देखा जाना चाहिए कि एनडीपीएस एक्ट की धारा 50 के प्रावधानों का प्रथम दृष्टया अनुपालन किया गया है या नहीं। कोर्ट ने कहा कि यह ठीक-ठीक पता नहीं लगाया जा सकता है कि एनडीपीएस एक्ट की धारा 50 का अनुपालन किया गया है या नहीं क्योंकि ऐसा केवल परीक्षण के दरमियान ही किया जा सकता है। ज‌स्टिस समीर जैन की पीठ ने इस आधार पर एनडीपीएस अभियुक्त की याचिका पर विचार करते हुए कहा कि तलाशी और बरामदगी के समय एनडीपीएस एक्ट की धारा 50 के अनिवार्य प्रावधानों का पालन नहीं किया गया था।

    केस टाइटलः नीलम देवी बनाम यूपी राज्य [CRIMINAL MISC. BAIL APPLICATION No. - 29318 of 2022]

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    सार्वजनिक आवंटन प्रक्रिया में विचार के लिए आवेदन की अंतिम तिथि पर आवश्यक योग्यता होनी चाहिए: गुवाहाटी हाईकोर्ट ने दोहराया

    गुवाहाटी हाईकोर्ट की एकल न्यायाधीश पीठ ने हाल ही में उस रिट याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया कि सार्वजनिक आवंटन प्रक्रिया (Public Allotment Process) में विचार के लिए आवश्यक योग्यता रखने की तिथि आवेदन जमा करने की अंतिम तिथि है और उसके बाद नहीं।

    अदालत ने देखा, "माननीय सुप्रीम कोर्ट ने रेखा चतुर्वेदी बनाम राजस्थान यूनिवर्सिटी, 1993 के मामले में (3) SCC 168 निर्धारित किया है कि जहां तक पात्रता का संबंध है, उसी तिथि को प्राप्त/धारण किया जाना चाहिए। विज्ञापन और बाद की तारीख में इसे रखने से कोई उम्मीदवार पात्र नहीं होगा। अशोक कुमार शर्मा बनाम चंदर शेखर, (1997) 4 SCC 18] के मामले में भी उक्त विचार को दोहराया गया।

    केस टाइटल: दिलुवारा खातून बनाम बीपीसीएल और 3 अन्य।

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    भारत में कानून दो अलग-अलग रेस्तरां की सजावट में समानता के आधार पर ट्रेडमार्क उल्लंघन के मामले में निषेधाज्ञा प्रदान करने की अनुमति नहीं देता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने पाया कि भारत में कानून केवल दो अलग-अलग रेस्तरां की सजावट में समानता के आधार पर ट्रेडमार्क उल्लंघन के मामले में निषेधाज्ञा प्रदान करने की अनुमति नहीं देता। जस्टिस सी हरि शंकर ने कहा कि सजावट, परिसर के लेआउट, मेनू कार्ड या ऐसे रेस्तरां के कर्मचारियों की वर्दी के संबंध में भारतीय कानून में विशिष्टता का कोई दावा उपलब्ध नहीं है।

    केस टाइटव: Subway आईपी एलएलसी बनाम इन्फिनिटी फूड और ओआरएस।

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    लोकपाल के रूप में पुनर्नियुक्त रिटायर्ड हाईकोर्ट जज की पेंशन सैलरी से नहीं काटी जा सकती: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में विचार किया कि क्या हाईकोर्ट के एक जज, जिसे सेवानिवृत्ति के बाद लोकपाल के रूप में नियुक्त किया गया है, की पेंशन उसके वेतन से काटी जा सकती है। कोर्ट ने सवाल का नकारात्मक उत्तर दिया।

    जस्टिस अनु शिवरामन ने इस संबंध में कहा, "पंचायत राज अधिनियम के प्रावधान और स्थानीय स्वशासन संस्थाओं के लिए लोकपाल (शिकायतों और सेवा शर्तों की पूछताछ) नियम, 1999 के नियम काफी स्पष्ट हैं क्योंकि प्रावधान में विशेष रूप से कहा गया है कि लोकपाल के रूप में नियुक्त व्यक्ति हाईकोर्ट के जज के बराबर वेतन और भत्ते के हकदार होंगे। अधिनियम या नियम, स्वीकार्य रूप से, पेंशन की किसी भी कटौती का प्रावधान नहीं करते हैं।"

    केस टाइटल: न्यायमूर्ति के.के. डेनेसन (सेवानिवृत्त न्यायाधीश) बनाम वरिष्ठ लेखा अधिकारी व अन्य।

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    कानून का गलत प्रयोग विकृति की ओर नहीं ले जा रहा; मध्यस्थता के फैसले को रद्द नहीं किया जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि केवल इसलिए कि मध्यस्थ ने डॉट इन डोमेन नेम डिस्प्यूट रिजोल्‍यूशन पॉल‌िसी (.INDRP) को गलत तरीके से लागू किया था, उक्त पॉलिसी के तहत डोमेन नामों पर विवाद का निर्णय करते समय विकृति के अभाव में फैसले को रद्द नहीं किया जा सकता है।

    जस्टिस चंद्रधारी सिंह की पीठ ने कहा कि मध्यस्थ ने निर्णय में वाक्यांश, पार्टी अपने दावे को "संदेह से परे" साबित करने में विफल रही, का प्रयोग किया है, इसे कानूनी वाक्य 'उचित संदेह से परे' के बराबर नहीं माना जा सकता, जैसा कि में क्रिमिनल ट्रायल में प्रयोग किया जाता है।

    केस टाइटल: ब्राइट सिमंस बनाम स्पॉक्सिल इंक और अन्य।

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