सीआरपीसी की धारा 125 के तहत बहू ससुर से मेंटेनेंस का दावा नहीं कर सकती: पटना हाईकोर्ट

Brij Nandan

20 Jan 2023 5:33 PM IST

  • सीआरपीसी की धारा 125 के तहत बहू ससुर से मेंटेनेंस का दावा नहीं कर सकती: पटना हाईकोर्ट

    Patna High Court

    पटना हाईकोर्ट (Patna High Court) ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत बहू अपने ससुर से मेंटेनेंस का दावा करने की हकदार नहीं है।

    जस्टिस सुनील दत्ता मिश्रा की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा कि हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम की धारा 19 के तहत मेंटेनेंस के लिए एक आवेदन का निर्णय करते समय फैमिली कोर्ट सीआरपीसी की धारा 125 को अंतरिम मेंटेनेंस प्रदान करने के लिए लागू नहीं कर सकता है।

    कोर्ट ने कहा,

    “सीआरपीसी की धारा 125 पत्नी, बच्चों, और माता-पिता के मेंटेनेंस के आदेश से संबंधित है। बहू सीआरपीसी की धारा 125 के तहत मेंटेनेंस का दावा नहीं कर सकती है। लेकिन वह हिंदू दत्तक ग्रहण और रखरखाव अधिनियम की धारा 19 के तहत इसका दावा कर सकती है। सीआरपीसी की धारा 125 का प्रावधान को हिंदू दत्तक ग्रहण और रखरखाव अधिनियम, 1956 की धारा 19 के तहत दायर याचिका में लागू नहीं किया जा सकता है।"

    पूरा मामला

    प्रतिवादी याचिकाकर्ता की विधवा बहू है, जिसने प्रधान न्यायाधीश, फैमिली कोर्ट, खगड़िया की अदालत में HAMA की धारा 19 के तहत भरण-पोषण का आवेदन दायर किया था। इसमें उसने याचिकाकर्ता (उसके ससुर) से भरण-पोषण का दावा किया था।

    इसके बाद, उसी कार्यवाही में, उसने अंतरिम भरण-पोषण के अनुदान के लिए एक आवेदन दायर किया। फैमिली कोर्ट ने आवेदन को स्वीकार कर लिया और सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण की अनुमति दे दी।

    इसके बाद याचिकाकर्ता ने इस सिविल पुनरीक्षण याचिका में आदेश को चुनौती दी।

    विवाद

    याचिकाकर्ता के वकील डॉ. एस.के. श्रीवास्तव ने प्रस्तुत किया कि निचली अदालत ने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अंतरिम भरण पोषण प्रदान किया है। जो कानून में मान्य नहीं है क्योंकि HAMA की सीआरपीसी की धारा 125 और धारा 19 के तहत गुजारा भत्ता देने की प्रक्रिया अलग-अलग है।

    उन्होंने तर्क दिया कि निचली अदालत इस बात की सराहना करने में विफल रही कि जब सीआरपीसी की धारा 125 के तहत कोई याचिका लंबित नहीं थी, तो प्रावधान को अंतरिम गुजारा भत्ता देने के लिए लागू नहीं किया जा सकता था।

    प्रतिवादी के वकील ए.के. चौधरी ने निष्पक्ष रूप से स्वीकार किया कि निचली अदालत को हिंदू दत्तक ग्रहण और रखरखाव अधिनियम की धारा 19 के तहत अंतरिम भरण-पोषण पारित करना चाहिए था न कि धारा 125 सीआरपीसी के तहत। लेकिन उन्होंने तर्क दिया कि जब न्यायालय के पास आदेश पारित करने का अधिकार क्षेत्र है तो केवल एक अनुचित प्रावधान का उल्लेख करना महत्वपूर्ण नहीं है।

    कोर्ट की टिप्पणियां

    कोर्ट ने पाया कि अधिनियम की धारा 19 का उद्देश्य एक विधवा बहू को अपने ससुर से भरण-पोषण का दावा करने में सक्षम बनाना है, जहां वह अपनी संपत्ति से या किसी की संपत्ति से अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है।

    यह भी प्रदान किया जाता है कि ससुर अपनी बहू के भरण-पोषण के लिए बाध्य नहीं होगा सिवाय उन मामलों में जहां उसके कब्जे में कुछ पैतृक संपत्ति है जिससे बहू ने कोई हिस्सा प्राप्त नहीं किया है।

    कोर्ट ने कहा,

    "ससुर के दायित्व को लागू नहीं किया जाएगा अगर उसके पास अपने कब्जे में किसी सहदायिकी संपत्ति से अपनी बहू को बनाए रखने का कोई साधन नहीं है, जिसमें से बहू ने कोई हिस्सा प्राप्त नहीं किया है। यह स्थापित कानून है कि एक वास्तविक राहत प्रदान करने के लिए अधिकृत एक न्यायालय इसे अंतरिम आधार पर भी प्रदान करने के लिए सक्षम है, भले ही इसे प्रदान करने के लिए क़ानून में कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है।"

    कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सीआरपीसी की धारा 125 पत्नी, बच्चों और माता-पिता के भरण-पोषण का आदेश प्रदान करता है। उक्त वैधानिक योजना के अनुसार, बहू सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकती है, लेकिन वह HAMA की धारा 19 के तहत इसका दावा कर सकती है।

    इसलिए, कोर्ट ने कहा कि HAMA की धारा 19 के तहत एक याचिका पर निर्णय लेते समय अंतरिम भरण-पोषण प्रदान करने के लिए फैमिली कोर्ट धारा 125 के तहत प्रावधान को लागू करने में न्यायोचित नहीं था।

    इसके साथ ही फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया गया।

    केस टाइटल: कल्याण साह बनाम मौत रश्मि प्रिया

    केस नंबर: सिविल विविध याचिका संख्या 354 ऑफ 2018

    निर्णय दिनांक: 19 जनवरी 2023

    कोरम: जस्टिस एस.डी. मिश्रा

    याचिकाकर्ता के वकील: एडवोकेट डॉ. सत्येंद्र कुमार श्रीवास्तव

    प्रतिवादी के वकील: एडवोकेट अनिल कुमार चौधरी

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