न्यायिक अधिकारियों की पेंशन | वेतन का विशेष वेतन भाग पेंशन की गणना के लिए माना जाना चाहिए: केरल हाईकोर्ट

Avanish Pathak

21 Jan 2023 9:49 AM GMT

  • न्यायिक अधिकारियों की पेंशन | वेतन का विशेष वेतन भाग पेंशन की गणना के लिए माना जाना चाहिए: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा कि न्यायिक अधिकारियों को दिया जाने वाला विशेष वेतन उनके वेतन का एक हिस्सा है और इसे पेंशन की गणना के उद्देश्य से गिना जाना चाहिए।

    जस्टिस अनु शिवरामन की सिंगल जज पीठ न्यायिक अधिकारियों द्वारा दायर याचिकाओं के एक बैच पर विचार कर रही थी, जो या तो काम कर रहे हैं या जिला और सत्र न्यायाधीशों के रूप में सेवा से सेवानिवृत्त हो चुके हैं।

    याचिका में याचिकाकर्ताओं और केरल न्यायिक अधिकारी एसो‌‌‌‌सिएशन के सदस्यों को देय विशेष वेतन, जो उन्हें परिलब्धियों के एक हिस्से के रूप में दी जाती है, की गणना वेतन के ‌एक हिस्से के रूप में करके पेंशन के पुनर्निर्धारण की मांग की गई है।

    कोर्ट ने इस प्रकार प्रतिवादी अधिकारियों को यह देखने के लिए उचित कदम उठाने का निर्देश दिया कि जिन न्यायिक अधिकारियों ने अपनी सेवानिवृत्ति के समय विशेष वेतन प्राप्त किया था, उनकी पेंशन को संशोधित किया जाए और फैसले की कॉपी की प्राप्ति की तारीख से 3 महीने के भीतर बकाया का भुगतान किया जाए।

    कोर्ट ने पी मुरलीधरन बनाम केरल राज्य (2019) में अपने ही एक पुराने फैसले पर ध्यान दिया और कहा कि उस मामले में कोर्ट ने यह सुनिश्चित किया था कि विशेष वेतन नियम 12(23) के तहत वेतन की परिभाषा के अंतर्गत आएगा।

    कोर्ट ने कहा,

    "विशेष वेतन एक लाभ है जो विशिष्ट पदों, जिसमें प्रशासनिक जिम्मेदारियां होती हैं, पर तैनात अधिकारियों को उनके द्वारा किए जाने वाले अतिरिक्त कार्य लिए प्रदान किया जाता है। यह तर्क कि कुछ अधिकारियों को विशेष वेतन देने से कनिष्ठ-वरिष्ठ विसंगति पैदा होगी, पहले भी उठाया गया है, लेकिन इस न्यायालय ने उसे महत्व नहीं दिया है। इस तथ्य को देखते हुए तर्क को एक पल के लिए भी कायम नहीं रखा जा सकता है कि जिन सिद्धांतों पर एक वरिष्ठ और कनिष्ठ के बीच वेतन में अंतर को एक विसंगति माना जाता है, उन्हें उसी नियम में प्रदान किया जाता है। प्रशासनिक कर्तव्यों के लिए विशेष वेतन का अनुदान किसी भी कनिष्ठ-वरिष्ठ विसंगति को जन्म नहीं देती हैं, क्योंकि यह अतिरिक्त कार्य के लिए दिया गया एक विशेष वेतन है।"

    इन याचिकाओं में विवाद का बिंदु पेंशन और पेंशन संबंधी लाभों की गणना करते समय विशेष वेतन के साथ-साथ महंगाई भत्ते की गणना के संबंध में था।

    याचिकाकर्ताओं की ओर से यह तर्क दिया गया था कि विशेष वेतन को विशेष भत्ता मानने का सरकार का आदेश और यह कि पेंशन संबंधी लाभों के निर्धारण के उद्देश्य से इसे नहीं गिना जाएगा, ऑल इं‌डिया जजेज एसोसिएशन और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य (2002) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ है।

    यह प्रस्तुत किया गया कि इस निर्णय के बाद सरकार ने शेट्टी आयोग की कई सिफारिशों को सरकारी आदेशों के जरिए लागू किया था, और बाद में सुप्रीम कोर्ट द्वारा राज्य सरकारों के आदेशों में कमियां दिखाने के बाद और मुख्य सचिवों को इसे सुधारने का निर्देश देने के बाद, एक और शासनादेश जारी किया गया ‌था, जिसमें जिला न्यायपालिका के सदस्यों को वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुसार अतिरिक्त लाभ प्रदान करने को कहा गया था।

    याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने प्रस्तुत किया कि जस्टिस ई पद्मनाभन आयोग ने भी अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की थी कि पेंशन की मात्रा और गणना के संबंध में शेट्टी आयोग की सिफारिशों का पालन किया जाना चाहिए, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्य सरकारों को अमल में लाने का निर्देश दिया था।

    यह भी बताया गया कि उक्त कार्रवाई पी मुरलीधरन बनाम केरल राज्य (2019) में केरल हाईकोर्ट के पहले एकल पीठ के फैसले का भी उल्लंघन होगा, जहां पेंशन संबंधी लाभों के लिए विशेष वेतन पर विचार करने से इंकार कर दिया गया था कोर्ट द्वारा, और जिसे बाद में खंडपीठ के समक्ष अपील में पुष्टि की गई थी। इस प्रकार यह तर्क दिया गया था कि, "इस कोर्ट द्वारा निर्णयों में कानून की घोषणा के आलोक में, उस मामले में याचिकाकर्ता को लाभ सीमित करने का सरकार का कार्य अकेले ही इस कोर्ट के आदेशों और प्राधिकार का अपमान है।" .

    यह इस संदर्भ में कोर्ट ने कहा कि मुकदमेबाजी के पहले दौर में उसने विशेष रूप से शेट्टी आयोग के निर्देशों के अनुसार न्यायिक अधिकारियों को दिए गए विशेष वेतन की प्रकृति पर विचार किया था और यह सुनिश्चित किया था कि यह नियम 12(23) के तहत 'वेतन' की परिभाषा के भीतर भी आएगा।

    केस टाइटल: केरल न्यायिक अधिकारी संघ और अन्य बनाम केरल राज्य और अन्य और अन्य जुड़े मामले

    साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (केरल) 36

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