नागरिकों को उन नियमों को जानने का अधिकार है जिनके तहत उन्हें शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन करने की अनुमति देने से इनकार किया जाता है: गुजरात हाईकोर्ट
Shahadat
18 Jan 2023 2:45 PM IST
गुजरात हाईकोर्ट ने माना कि नागरिकों को उन नियमों और विनियमों को जानने का अधिकार है, जिसके तहत उन्हें शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन करने की अनुमति से वंचित किया जाता है। इसमें कहा गया कि पुलिस द्वारा इस तरह के नियमों को प्रचारित करने से इंकार करना सूचना के अधिकार अधिनियम के उद्देश्य को "मारना और गला घोंटना" है।
कोर्ट ने कहा,
"सूचना का अधिकार अधिनियम इस भावना के साथ अधिनियमित किया गया कि लोकतंत्र को सूचित नागरिक और सूचना की पारदर्शिता की आवश्यकता होती है, जो इसके कामकाज के लिए महत्वपूर्ण है और भ्रष्टाचार को रोकने के लिए और सरकारों और उनके तंत्रों को शासित करने के लिए जवाबदेह ठहराती है... अधिनियम की धारा 2( f) सपठित सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 3 और 4 अधिकारियों को सूचना प्रस्तुत करना और पारदर्शिता को बढ़ावा देना अनिवार्य बनाता है। क्या याचिकाकर्ता को उन कारणों और नियमों की आपूर्ति की गई, जिसके तहत उसे 2019 में विरोध करने की अनुमति से वंचित किया गया। वह भूमि के कानून और निर्णय लेने की प्रक्रिया तक पहुंच होगी, जो याचिकाकर्ता को ऐसी जानकारी को चुनौती देने में सक्षम बना सकती है।"
याचिकाकर्ता, शांतिपूर्ण ढंग से इकट्ठा होने की इच्छा रखते हुए 29.12.2019 को शाम 5 बजे से 7 बजे के बीच अहमदाबाद के कनोरिया सेंटर फॉर आर्ट्स एंड गुफा से सटे सड़क के फुटपाथ पर सभा करने और शांतिपूर्ण विरोध की अनुमति मांगी।
याचिकाकर्ता को सूचित किया गया कि इस तरह की सभा और शांतिपूर्ण विरोध की अनुमति नहीं है और कानून और व्यवस्था की स्थिति के साथ-साथ यातायात की समस्या के आधार पर इसे खारिज किया जाता है। याचिकाकर्ता ने आदेश का उल्लंघन करते हुए सभा की और उसे कुछ घंटों के लिए हिरासत में रखा गया।
याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी (गुजरात पुलिस) को पत्र लिखकर पुलिस अधिनियम की धारा 33 (1) (ओ) के तहत बनाए गए पूर्ण नियमों की प्रति मांगी और दूसरा यह अनुरोध क्यों अस्वीकार किया गया, चाहे ऐसा किसी नियम या विनियम के तहत किया गया हो। याचिकाकर्ता को 06.03.2020 को जवाब मिला कि मांगी गई जानकारी के लिए उसके अनुरोध को अस्वीकार किया जाता है।
इसलिए याचिकाकर्ता ने कथित इनकार को इस आधार पर चुनौती दी कि यह पूरी तरह से खराब, अवैध, प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन, कानून और लोकतंत्र का उल्लंघन है।
जस्टिस बीरेन वैष्णव ने कहा कि सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 4(1)(बी), 4(2), 4(3) और धारा 4(4) यह प्रवाधान करती है कि याचिकाकर्ता सूचना पाने का हकदार है। इसलिए प्रतिवादी अधिनियम की धारा 4(1)(बी) में निर्दिष्ट सूचनाओं को प्रकाशित करने के लिए कानूनी कर्तव्य के तहत हकदार है। स्पष्ट रूप से याचिकाकर्ता गुजरात पुलिस अधिनियम की धारा 33 के तहत बनाए गए नियमों को जानने का हकदार है।
इस प्रकार इसने पुलिस आयुक्त, अहमदाबाद को गुजरात पुलिस अधिनियम की धारा 33 के तहत बनाए गए सभी नियमों और आदेशों को वेबसाइट पर प्रकाशित करने का निर्देश दिया, जिससे वे जनता के लिए उपलब्ध और सुलभ हों।
अदालत ने देखा,
"न केवल पुलिस प्राधिकरण को अधिनियम की धारा 33 के तहत बनाए गए नियमों के अनुसार लोगों के इकट्ठा होने और जुलूस निकालने के ऐसे आचरण को विनियमित करने का अधिकार है, बल्कि अधिनियम की धारा 33 की उप-धारा 6 में ऐसे नियमों या आदेशों के प्रकाशन को अनिवार्य किया गया है। इन प्रावधानों को सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के कुछ प्रावधानों के आलोक में देखा जाना चाहिए। सूचना का अधिकार अधिनियम की प्रस्तावना को पढ़ने से संकेत मिलता है कि भारत के संविधान ने लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना की है। लोकतंत्र के लिए सूचित जानकारी नागरिकता और पारदर्शिता की आवश्यकता होती है, जो इसके कामकाज के लिए महत्वपूर्ण हैं ..."
अदालत ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता अपने अधिकार में इस तरह की जानकारी मांगने के निर्देश के लिए परमादेश की हकदार है, खासकर जब यह आरटीआई अधिनियम के उद्देश्य को स्पष्ट करने में मदद करेगी, यानी जानकारी प्राप्त करने के लिए, जिससे यह पता चल सके कि निर्णय लेने की प्रक्रिया में पालन की जाने वाली प्रक्रिया राज्य द्वारा कार्यों के निर्वहन के लिए क्या नियम-विनियम हैं।
निष्कर्ष में अदालत ने कहा,
"आरटीआई अधिनियम की धारा 4 के तहत जनादेश के अनुसार और भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 के तहत याचिकाकर्ता को दिए गए मौलिक अधिकारों के आलोक में इस न्यायालय की राय में याचिकाकर्ता सूचना का हकदार है।"
अतः उपरोक्त निर्देशों के साथ याचिका स्वीकार कर ली गई।
केस टाइटल: स्वाति राजीव गोस्वामी बनाम पुलिस आयुक्त, अहमदाबाद
कोरम: जस्टिस बीरेन वैष्णव
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