इलाहाबाद हाईकोर्ट ईयरली डाइजेस्ट 2021 पार्ट 3 : लिव इन रिलेशनशिप, तलाक, गैगस्टर मामलों पर महत्वपूर्ण निर्णय/आदेश

LiveLaw News Network

2 Jan 2022 7:02 AM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट ईयरली डाइजेस्ट 2021 पार्ट 3 : लिव इन रिलेशनशिप, तलाक, गैगस्टर मामलों पर महत्वपूर्ण निर्णय/आदेश

    साल 2021 के बीतने के साथ लाइव लॉ आपके लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट से महत्वपूर्ण अपडेट का ईयरली राउंड-अप लेकर आया है। इस ईयरली डाइजेस्ट में 250 आदेश और निर्णय शामिल हैं, जिन्हें विभिन्न विषय में विभाजित किया गया है। इसका पहला और दूसरा पार्ट प्रकाशित हो चुका है।

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ईयरली राउंड-अप का तीसरा भाग यहां पेश है।

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ईयरली डाइजेस्ट 2021 : प्रमुख ऑर्डर/जजमेंट पार्ट- 1

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ईयरली डाइजेस्ट 2021 : प्रमुख ऑर्डर/जजमेंट पार्ट- 2

    एनएसए डिटेंशन/गुंडा एक्ट/गैंगस्टर एक्ट मामले

    1.प्रतिनिधित्व तय करने में देरी को सही ठहराने के लिए केंद्र का प्रयास फाइलों की आवाजाही में लालफीताशाही को बढ़ाता: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एनएसए हिरासत आदेश रद्द किया


    [मोहम्मद साजिद बनाम अधीक्षक, जिला जेल, लखनऊ और अन्य]

    जस्टिस रमेश सिन्हा और जसप्रीत सिंह की खंडपीठ ने बंदी द्वारा किए गए प्रतिनिधित्व पर निर्णय लेने में देरी के लिए केंद्र और राज्य सरकार की खिंचाई करते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) के तहत पारित गिरफ्तारी आदेश को रद्द कर दिया। खंडपीठ ने कहा कि देरी को सही ठहराने के केंद्र के प्रयास फाइलों की आवाजाही में नौकरशाह लालफीताशाही को बढ़ते हैं।

    कोर्ट ने कहा, "भारत संघ द्वारा दायर जवाबी हलफनामे के अवलोकन से यह इंगित करता है कि केंद्र सरकार द्वारा प्रतिनिधित्व तय करने में देरी को सही ठहराने का प्रयास किया गया है। पैराग्राफ 5 (ए) से 5 (डी) विभिन्न तिथियों में का उल्लेख किया गया है जो केवल एक डेस्क से दूसरे डेस्क तक फाइल की आवाजाही को इंगित करता है जो फाइलों की आवाजाही में नौकरशाही/लालफीताशाही को और बढ़ाता है। हमें मामले पर तत्काल ध्यान दिया जाना चाहिए।"

    2. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डीएम से दो लंबित मामलों के लिए महिला पर 'गैंगस्टर एक्ट' लगाने के लिए सवाल किया

    उच्च न्यायालय ने इसे एक अजीब मामला बताया कि एक महिला के खिलाफ सिर्फ दो आपराधिक मामले लंबित होने के कारण उस पर गैंगस्टर अधिनियम [उत्तर प्रदेश गैंगस्टर्स और असामाजिक गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1986] लगाया गया।

    न्यायमूर्ति विवेक कुमार सिंह की खंडपीठ ने जिला मजिस्ट्रेट, कानपुर नगर से व्यक्तिगत हलफनामा मांगा। इसमें बताया गया कि किन परिस्थितियों में एक महिला (आवेदक) के खिलाफ केवल दो मामले लंबित होने के कारण उसको गैंगस्टर अधिनियम के तहत अपराधी बनाया गया।

    3. गरीबी, बेरोजगारी या भूख के कारण गोपनीयता में बीफ काटना 'सार्वजनिक व्यवस्था' का मुद्दा नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एनएसए के तहत हिरासत रद्द की

    [परवेज थ्रू हिज ब्रदर इमरान बनाम यूपी राज्य]

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में तीन लोगों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून, 1980 के तहत पारित हिरासत आदेश को रद्द कर दिया, जिन पर एक घर में गुप्त रूप से बेचने के उद्देश्य से बीफ के छोटे टुकड़े काटने का आरोप लगाया गया है।

    न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति सरोज यादव की खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं / बंदियों के अपने ही घर में गोपनीयता से गोमांस के टुकड़े करने के मामले को कानून और व्यवस्था को प्रभावित करने वाले मामले के रूप में वर्णित तो किया जा सकता है, लेकिन सार्वजनिक व्यवस्था प्रभावित करने वाले मामले के रूप में नहीं।

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    4. एक ही मामले के आधार पर 'यूपी गैंगस्टर्स एक्ट' के तहत एफआईआर दर्ज करना वैध और अनुमेय: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि उत्तर प्रदेश गैंगस्टर्स एंड एंटी सोशल एक्ट‌िवीट‌ीज (प्र‌िवेंशन) एक्ट, 1986 के तहत एक व्यक्ति के खिलाफ एफआईआर, भले ही उसकी केवल एक ही मामले में भागीदारी हो, वैध और स्वीकार्य है। जस्टिस समित गोपाल और जस्टिस प्रिटिंकर दिवाकर की खंडपीठ ने इस मुद्दे पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के कई ऐतिहासिक फैसलों पर भरोसा करने के बाद यह निष्‍कर्ष दिया।

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    5. "प्रतिनिधित्व तय करने में देरी हुई": इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 'पत्रकार शुभम त्रिपाठी हत्याकांड' में आरोपियों की एनएसए हिरासत रद्द की

    [कन्हैया अवस्थी बनाम भारत संघ]

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) के तहत कन्हैया अवस्थी की हिरासत को रद्द कर दिया। उस पर उन्नाव स्थित पत्रकार शुभम मणि त्रिपाठी की हत्या के मामले में आरोप लगे थे। त्रिपाठी उन्नाव से प्रकाशित एक समाचार दैनिक 'कम्पुमली' के जिला संवाददाता थे और भू-माफियाओं से संबंधित कहानियों को कवर करते थे। अवस्थी और अन्य सह-आरोपियों द्वारा कथित तौर उनकी हत्या कर दी गई थी।

    जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस सरोज यादव की खंडपीठ ने देखा कि जिला मजिस्ट्रेट, उन्नाव के साथ-साथ केंद्र सरकार द्वारा अवस्थी के प्रतिनिधित्व के निस्तारण में संचयी देरी हुई, जिसके बाद उन्होंने एनएसए की नजरबंदी को खारिज कर दिया।

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    6. "प्राधिकरण ने वैवाहिक विवादों में 'गुंडा अधिनियम' नोटिस जारी किया": इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डीएम/एडीएम/पुलिस द्वारा कानून के दुरुपयोग पर सरकार से जवाब मांगा

    (शिव प्रसाद गुप्ता बनाम यूपी राज्य और तीन अन्य)

    एक ऐसे मामले की सुनवाई करते हुए जिसमें एक वैवाहिक विवाद में उत्तर प्रदेश गुंडा नियंत्रण अधिनियम, 1970 के तहत एक व्यक्ति को कारण बताओ नोटिस दिया गया था, उच्च न्यायालय ने कानून के 'दुरुपयोग' पर उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब मांगा।

    न्यायमूर्ति सूर्य प्रकाश केसरवानी और न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल की पीठ एक शिव प्रसाद गुप्ता की आपराधिक रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इसके खिलाफ उसकी पत्नी द्वारा दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3/4 और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498-ए, 354, 323, 504, 506 और 120-बी के तहत मामला दर्ज किया गया था।

    7. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हिंदू समाज पार्टी के कमलेश तिवारी की हत्या के आरोपी व्यक्ति के खिलाफ पारित एनएसए हिरासत आदेश बरकरार रखा

    [मोहसीन सलीम शेख बनाम यू.ओ.आई. सचिव के माध्यम से, मिन. गृह मंत्रालय, नई दिल्ली एवं अन्य।]

    अदालत ने मोहसिन सलीम शेख के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत पारित निरोध आदेश को बरकरार रखा। इस पर हिंदू समाज पार्टी के अध्यक्ष कमलेश तिवारी की 'क्रूर हत्या' की साजिश रचने का आरोप लगाया गया है।

    भले ही नजरबंदी की अवधि पहले ही खत्म हो चुकी हो, लेकिन न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति सरोज यादव की खंडपीठ ने हिरासत में लिए गए व्यक्ति/याचिकाकर्ता मोहसीन सलीम शेख के खिलाफ पारित निरोध आदेश में औचित्य पाया और इसलिए, नजरबंदी के आदेश को बरकरार रखा।

    9. "चार दिनों का अस्पष्टीकृत ‌विलंब": इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एनएसए के तहत उस व्यक्ति की हिरासत को रद्द किया, जिसने कथित तौर पर पुलिस बल पर हमला किया था

    [सोनू @ मोहम्मद। इश्तियाक माँ शमीम बानो बनाम भारत संघ और अन्य के माध्यम से]

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत पारित एक डिटेंशन ऑर्डर को रद्द कर दिया। आदेश यूनियन ऑफ इंडिया द्वारा याचिकाकर्ता/बंदी के अभ्यावेदन के निस्तारण में चार दिनों के अस्पष्टीकृत विलंब के कारण दिया गया था। यह आदेश जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस सरोज यादव की खंडपीठ ने बंदी सोनू@मोहम्मद इश्तियाक अपनी मां शमीम बानो की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया।

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    10. 'यदि कोई व्यक्ति हिरासत में है और उसके रिहा होने की कोई संभावना नहीं है तो प्रिवेंटिव डिटेंशन की शक्ति का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए': इलाहाबाद हाईकोर्ट

    [अभयराज गुप्ता बनाम अधीक्षक, केंद्रीय जेल, बरेली]

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 के तहत शक्तियों का प्रयोग करके हत्या के आरोपी के खिलाफ पारित डिटेंशन के आदेश को रद्द किया। कोर्ट ने देखा कि यदि कोई व्यक्ति हिरासत में है और उसके रिहा होने की कोई संभावना नहीं है तो प्रिवेंटिव डिटेंशन की शक्ति का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने एक अभय राज गुप्ता की बंदी प्रत्यक्षीकरण (habeas corpus) याचिका पर सुनवाई की, जो वर्तमान में सेंट्रल जेल, बरेली में हिरासत में है। उसने अपनी मां के माध्यम से 23 जनवरी, 2021 को डिटेंशन के आदेश को चुनौती दी।

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    लिव इन रिलेशन्स/संरक्षण याचिकाओं/साझेदारों को चुनने के अधिकार से संबंधित मामले

    1. दो वयस्कों के शांतिपूर्ण जीवन में कोई भी हस्तक्षेप नहीं कर सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंटरफेथ युगल को संरक्षण प्रदान किया

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि अगर दो वयस्क स्वेच्छा से एक साथ रह रहे हैं, तो कोई भी उनके जीवन को बाधित करने का हकदार नहीं है। कोर्ट के इस फैसले ने एक बार फिर इंटरफेथ दंपति को उनके अपने परिवारों के हाथों उत्पीड़न का शिकार करने से बचा लिया। न्यायमूर्ति सराल श्रीवास्तव की एकल पीठ ने यह फैसला सुनाया।

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    2. ''महिला ने तलाक की याचिका भी दायर नहीं की'': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लिव-इन रिलेशन में रहने वाली महिला की पति से सुरक्षा दिलाने की मांग खारिज की

    [सुरभि बनाम यूपी राज्य और अन्य।]

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली एक महिला की तरफ से दायर सुरक्षा याचिका खारिज कर दी। याचिका में आरोप लगाया गया था कि उसने अपने पति की असामाजिक गतिविधियों को देखते हुए अपना वैवाहिक घर छोड़ दिया है और अब वह एक मोहित नामक व्यक्ति के साथ लिव-इन रिलेशन में रह रही है।

    जस्टिस सुनीता अग्रवाल और जस्टिस साधना रानी (ठाकुर) की बेंच एक महिला की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने अपने पति से सुरक्षा मांगी थी।

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    3. इंटरफेथ कपल- "ऐसा कोई सबूत नहीं पेश किया गया कि वह बालिग है और वैवाहिक जीवन चाहती है": इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महिला को सुरक्षा प्रदान करने से इनकार किया

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को एक महिला / लड़की (एक हिंदू पुरुष से शादी करने का दावा करने वाली) के पक्ष में सुरक्षा आदेश पारित करने से इनकार कर दिया और कहा कि महीला ने ऐसा कोई दस्तावेजी सबूत पेश नहीं किया कि वह मुस्लिम धर्म से संबंधित है और वह अब हिंदू धर्म अपनाना चाहती है।

    यह देखते हुए कि याचिका में यह भी नहीं दिखाया गया है कि कपल बालिग हैं, न्यायमूर्ति डॉ कौशल जयेंद्र ठाकर की खंडपीठ ने आगे कहा कि इस बात का कोई संकेत नहीं था कि पक्षकार वैवाहिक जीवन चाहते हैं।

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    4. ऑनर किलिंग- 'जीवन साथी चुनने के लिए परिवार के सदस्य को खत्म करने वाले लोगों की समाज में जगह नहीं हो सकती': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जमानत देने से इनकार किया

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपनी बहन की 'ऑनर किलिंग' में भूमिका निभाने वाले एक व्यक्ति को जमानत देने से इनकार करते हुए पिछले सप्ताह कहा था कि समाज में उन नागरिकों के लिए कोई जगह नहीं है, जो अपनी पसंद का जीवन साथी चुनने के लिए परिवार के सदस्य को खत्म करने की हद तक जाते हैं।

    कोर्ट ने कहा, "इस न्यायालय की राय में प्रथम दृष्टया यदि इन आरोपों को मुकदमे में स्थापित किया जाना था, तो हमारे समाज में ऐसे नागरिकों के लिए कोई जगह नहीं है जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संवैधानिक मूल्यों का अपमान करते हैं। इसके बजाय पारिवारिक सम्मान के पुरातन सामाजिक मूल्यों में इस हद तक विश्वास करते हैं कि वे अपने लिए जीवन साथी चुनने वाले परिवार के किसी सदस्य को खत्म करने की हद तक चले जाएंगे।"

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    5. "इस देश के सामाजिक ताने-बाने की कीमत पर लिव-इन रिलेशन की अनुमति नहीं दी जा सकती": इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने पार्टनर के साथ रहने वाली विवाहित महिला पर पांच हजार रूपये का जुर्माना लगाया

    (श्रीमती अनीरा और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य)

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में अपने पार्टनर के साथ रहने वाली एक विवाहित महिला की सुरक्षा याचिका खारिज किया और याचिकाकर्ता पर 5,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया। कोर्ट ने कहा कि इस देश के सामाजिक ताने-बाने की कीमत पर लिव-इन-रिलेशन की अनुमति नहीं दी जा सकती।

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    6. वयस्कों को अपने वैवाहिक साथी की पसंद का अधिकार है, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    [शिफा हसन और एक अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य]

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि यह विवादित नहीं हो सकता है कि दो वयस्कों को अपने पसंद का जीवन साथी चुनने का अधिकार है, भले ही उनका धर्म कुछ भी हो।

    न्यायमूर्ति दीपक वर्मा और न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता की खंडपीठ ने एक शिफा हसन (19 वर्षीय) और उसके पुरुष साथी (24 वर्षीय) द्वारा दायर एक याचिका में इस प्रकार देखा, जिन्होंने एक दूसरे के साथ प्यार करने का दावा किया और प्रस्तुत किया कि वे अपनी खुद की इच्छा से एक साथ रह रहे हैं।

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    7. लिव-इन रिलेशन को सामाजिक नैतिकता की धारणा के बजाय व्यक्तिगत स्वायत्तता की आंखों से देखने की जरूरत: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    [शायरा खातून बनाम उत्तर प्रदेश राज्य]

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि लिव-इन संबंधों को सामाजिक नैतिकता की धारणा के बजाय व्यक्तिगत स्वायत्तता की आंखों से देखा जाना चाहिए। न्यायमूर्ति प्रिंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव की खंडपीठ ने इंटरफेथ लिव-इन जोड़ों द्वारा दायर दो सुरक्षा की मांग वाली याचिकाओं पर विचार करते हुए यह टिप्पणी की।

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    8. धर्मांतरण की अनुमति पर जोर देकर अंतरधार्मिक विवाह पंजीकरण से इनकार नहीं किया जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पंसद के अधिकार की पुष्टि की

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि विवाह पंजीयक/अधिकारी के पास, केवल इस कारण से कि पक्षों ने जिला प्राधिकरण से धर्मांतरण की आवश्यक स्वीकृति प्राप्त नहीं की है, विवाह के पंजीकरण को रोकने की शक्ति नहीं है। जस्टिस सुनीत कुमार की पीठ ने अंतरधार्मिक विवाह संबंधित याचिकाओं पर (17 याचिकाएं) सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की।

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    मानवाधिकार/मौलिक अधिकार/नागरिकों की स्वतंत्रता

    1. तर्कहीन और अंधाधुंध गिरफ्तारियां मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन, पुलिस के लिए गिरफ्तारी आखिरी विकल्प होना चाहिए: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुधवार (06 जनवरी) को यह देखा कि प्राथमिकी दर्ज होने के बाद, पुलिस द्वारा कभी भी गिरफ़्तारी की जा सकती है और पुलिस द्वारा अभियुक्तों (जिनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है) की गिरफ़्तारी के लिए कोई निश्चित अवधि निर्धारित नहीं होती है। न्यायमूर्ति सिद्धार्थ की पीठ ने हालांकि कहा कि गिरफ्तारी, पुलिस के लिए अंतिम विकल्प होना चाहिए और ऐसा "उन असाधारण मामलों में किया जाना चाहिए जहां अभियुक्त को गिरफ्तार करना अनिवार्य है या उसकी हिरासत में पूछताछ आवश्यक है।"

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    2. बिना उद्घोषणा के फ्लाईशीट बोर्ड पर अभियुक्तों के नाम प्रकाशित करना मानव गरिमा और निजता के अधिकार का उल्लंघनः इलाहाबाद उच्च न्यायालय

    इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि संविधान की धारा 21 धारा के तहत उद्घोषणा जारी किए बिना आरोपी व्यक्तियों के नाम फ्लाईशीट बोर्ड पर डालने की सीआरपीसी की धारा 82 के तहत प्रतिष्ठापित मानवीय गरिमा और गोपनीयता की अवधारणा के लिए अपमानजनक है।

    न्यायमूर्ति पंकज नकवी और न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाया। न्यायमूर्ति नकवी ने पीठ की अध्यक्षता की और सहमति व्यक्त की।

    3. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शरीर के अंगों और ऊतकों के लिविंग बॉडी डोनेशन (जीवित देह दान) करने की मांग वाली याचिका खारिज की

    [रंजन श्रीवास्तव बनाम भारत संघ]

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले हफ्ते एक याचिका खारिज कर दी। इस याचिका में अपने मानव शरीर और उसके सभी जीवित अंग और ऊतकों के लीविंग बॉडी डोनेशन (जीवत देह दान) करने के लिए याचिकाकर्ता को सक्षम बनाने और इसे वैध बनाने के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी।

    न्यायमूर्ति संजय यादव और न्यायमूर्ति जयंत बनर्जी की खंडपीठ एक रंजन श्रीवास्तव की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में मेडिकल डॉक्टरों / अस्पताल / संस्थान के लिए उसे सक्षम बनाने के लिए कानून एक दिशा-निर्देश देने की मांग की। इसके साथ लीविंग बॉडी डोनेशन यानी जीवत देह दान के अपने कार्य का आवश्यक चिकित्सा प्रक्रियाएं करने के लिए अनुमति दी जाए।

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    4. व्यक्तिगत बॉन्ड पेश किए जाने के बावजूद किसी व्यक्ति की हिरासत अनुच्छेद 21 का उल्लंघन: इलाहाबाद उच्च न्यायालय

    [शिव कुमार वर्मा और अन्य बनाम यूपी और अन्य राज्य]

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना है कि किसी व्यक्ति को आवश्यक निजी बांड प्रस्तुत करने के बाद भी हिरासत में रखना, संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए निजी स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है।

    जस्टिस सूर्य प्रकाश केसरवानी और जस्टिस शमीम अहमद की डिवीजन बेंच ने दो व्यक्तियों को, आवश्यक कागजात पेश करने के बावजूद, रिहा करने में विफल रहने पर कार्यकारी मजिस्ट्रेट की आलोचना की। उन दो व्यक्तियों को सार्वजनिक शांति भंग करने की आशंका में किया गया था।

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    5. कृषि क्षेत्रों में पानी की आपूर्ति को बाधित करने वाली कोई भी घटना अनुच्छेद 19 के तहत व्यापार के अधिकार का उल्लंघन: इलाहाबाद उच्च न्यायालय

    [नाथू प्रसाद कुशवाहा और अन्य बनाम यूपी और अन्य राज्य]

    मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की खंडपीठ ने कहा कि बिजली की आपूर्ति बंद करना जिसके परिणामस्वरूप कृषि क्षेत्रों में पानी की आपूर्ति बाधित होती है, यह किसानों के व्यापार और पेशे के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।

    एक ट्यूबवेल पर बिजली की बहाली की मांग करने वाली जनहित याचिका पर निर्णय लेते समय अवलोकन किया गया था, जिसका उपयोग सिंचाई के लिए आसपास के सभी कृषि क्षेत्रों में किया जाता है। बेंच ने कहा, "हमारी राय है कि कमांड एरिया में कोई भी घटना जो कृषि क्षेत्रों में पानी की आपूर्ति को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती है, वस्तुतः भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 का उल्लंघन है क्योंकि इससे किसानों के व्यवसाय और पेशे पर असर पड़ता है।"

    6. 'बोलने की स्वतंत्रता का अधिकार धार्मिक भावनाओं को आहत करने का लाइसेंस नहीं': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अयोध्या राम मंदिर के खिलाफ दुष्प्रचार करने के आरोपी पीएफआई सदस्य को अग्रिम जमानत देने से इनकार किया

    [मो. नदीम बनाम यूपी राज्य]

    इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अयोध्या में राम मंदिर के शिलान्यास समारोह के खिलाफ दुष्प्रचार करके दो धार्मिक समुदायों के बीच दुश्मनी को बढ़ाने के आरोपी को अग्रिम जमानत देने से इनकार किया।

    न्यायमूर्ति चंद्र धारी सिंह की एकल पीठ ने कहा कि, "धर्मनिरपेक्ष राज्य में लोगों को प्राप्त भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार, नागरिकों की धार्मिक भावनाओं और विश्वासों और आस्था को चोट पहुंचाने का पूर्ण लाइसेंस नहीं है।"

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    8. जेजे बोर्ड द्वारा किशोर को दोषी ठहराना रोजगार के लिए अयोग्यता नहीं: इलाहाबाद उच्च न्यायालय

    [अनुज कुमार बनाम यूपी राज्य]

    न्यायमूर्ति अजय भनोट की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा कि नियुक्ति के लिए अपनी उपयुक्तता के बारे में राय बनाने के लिए एक किशोर के रूप में एक उम्मीदवार द्वारा सामना किए गए आपराधिक अभियोजन का उपयोग करना मनमाना, अवैध और भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।

    इसके अलावा, यह मानते हुए कि एक नियोक्ता किसी भी उम्मीदवार को एक किशोर के रूप में सामना किए गए आपराधिक अभियोजन के विवरण का खुलासा करने के लिए नहीं कह सकता है, अदालत ने यह भी माना कि एक किशोर के रूप में सामना किए गए आपराधिक मुकदमों के विवरण का खुलासा करने की आवश्यकता अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत बच्चे की प्रतिष्ठा और निजता के अधिकार और अधिकार का उल्लंघन है।

    9. पूर्व आईएएस अधिकारी COVID-19 प्रभावित शवों के बारे में ट्वीट करने पर हुए गिरफ्तार: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने गिरफ्तारी पर रोक लगाई

    [सूर्य प्रताप सिंह बनाम यूपी राज्य प्रिंस के माध्यम से. सचिव घर और अन्य।]

    न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति जसप्रीत सिंह की पीठ ने एक सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी। उक्त अधिकारी पर आईपीसी, उत्तर प्रदेश सार्वजनिक स्वास्थ्य और महामारी रोग नियंत्रण अधिनियम, 2000, आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 और आईटी अधिनियम के तहत विभिन्न अपराधों के तहत मामला दर्ज किया गया है। अधिकारी को सोशल मीडिया पर कुछ तस्वीरें और वीडियो ट्वीट कर उत्तर प्रदेश में COVID शवों के संबंध में COVID कुप्रबंधन का आरोप लगाने पर गिरफ्तार किया गया था।

    हाईकोर्ट सेवानिवृत्त आईएएस कार्यालय की याचिका पर सुनवाई कर रहा था। उनके खिलाफ आरोप यह है कि उन्होंने ट्वीट के साथ जो तस्वीरें संलग्न कीं और ट्विटर पर पोस्ट कीं, उन्होंने जानबूझकर नफरत फैलाई और इससे इलाके के विभिन्न वर्गों में तनाव फैल गया।

    10. COVID-19 शवों के साथ सरकार के व्यवहार की आलोचना करने वाले वीडियो के लिए गिरफ्तारी: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सरकार को नोटिस जारी किया

    उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश राज्य को एक ऐसे व्यक्ति की याचिका पर नोटिस जारी किया, जिस पर अपने भाषण के लिए धर्म के आधार पर समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देने के लिए आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया। इसमें उसने COVID-19 मृतकों को संभालने के सरकारी निकायों के तरीके की आलोचना की थी।

    न्यायमूर्ति पंकज नकवी और न्यायमूर्ति नवीन श्रीवास्तव की खंडपीठ ने यह भी निर्देश दिया कि लंबित जांच में सहयोग करने पर याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी।

    11. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुख्यमंत्री के खिलाफ कथित टिप्पणी पर राजद्रोह मामले में यूपी के पूर्व राज्यपाल डॉ अजीज कुरैशी को गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण प्रदान किया

    [डॉ. अजीज कुरैशी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और तीन अन्य]

    दो अन्य राज्यों सहित उत्तर प्रदेश के पूर्व राज्यपाल डॉ. अजीज कुरैशी को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ उनकी कथित अपमानजनक टिप्पणी को लेकर उनके खिलाफ दर्ज देशद्रोह के मामले में उच्च न्यायालय द्वारा गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण प्रदान किया गया।

    न्यायमूर्ति प्रिंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति मो. राज्य के वकील के अनुरोध पर मामले को छह अक्टूबर के लिए सूचीबद्ध करते हुए असलम ने उन्हें सुनवाई की अगली तारीख तक सुरक्षा प्रदान की।

    13 "मजिस्ट्रेट ने विवेकपूर्ण ढंग से विचार नहीं किया": इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सीएए-एनआरसी प्रदर्शनकारी के खिलाफ दाखिल तीन चार्जशीट को क्लब करने का आदेश दिया

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा सीएए-एनआरसी प्रदर्शनकारी के खिलाफ दायर तीन आरोपपत्रों को जोड़ने का आदेश दिया, जिसमें कमोबेश इसी तरह की घटनाओं के संबंध में उनकी संलिप्तता का आरोप लगाया गया है।

    न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान की खंडपीठ ने कहा कि पहले आरोप पत्र का संज्ञान लेते हुए मजिस्ट्रेट को जांच एजेंसी से पूछना चाहिए कि तीनों में अलग-अलग जांच करने के बाद कमोबेश एक जैसी घटनाओं में तीन अलग-अलग आरोप पत्र क्यों दाखिल किए गए हैं।

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    परिवार/अभिरक्षा/रखरखाव/ वैवाहिक मामले

    1. तलाक लिए बिना नए रिश्ते में प्रवेश करने वाली महिला को उसके बच्चे की कस्टडी प्राप्त करने से वंचित नहीं किया जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    [अनमोल शिवहरे (नाबालिग) बनाम यूपी राज्य। और 4 अन्य]

    इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में यह तय किया है कि यदि एक माँ, अपने पति से तलाक लिए बिना, कथित रूप से एक नए रिश्ते में प्रवेश करती है, तो इसके चलते समाज उस पर भले ही सवाल उठाए, लेकिन यह तथ्य, उसे अपने नाबालिग बच्चे की कस्टडी प्राप्त करने से वंचित नहीं करेगा।

    न्यायमूर्ति जे. जे. मुनीर की पीठ ने कहा कि "नाबालिग को उसकी मां की कंपनी से वंचित करने से, उसके समग्र विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है और यह नाबालिग के कल्याण को प्रभावित करेगा।"

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    2. सीआरपीसी की धारा 125 के तहत रखरखाव के लिए विवाह के आवश्यक परंपरा के प्रदर्शन के सख्त प्रमाण प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं : इलाहाबाद हाईकोर्ट

    [इरशाद अली बनाम यूपी राज्य और अन्य।]

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत रखरखाव का दावा करते हुए, पक्षकार को विवाह के आवश्यक परंपरा के प्रदर्शन के सख्त प्रमाण प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं है।

    न्यायमूर्ति राज बीर सिंह की एकल खंडपीठ ने कहा है कि, "अगर सबूतों का नेतृत्व किया जाता है और मजिस्ट्रेट या अदालत सीआरपीसी की धारा 125 के तहत कार्यवाही में शादी के प्रदर्शन के संबंध में संतुष्ट है, जो सारांश प्रकृति के हैं, तो सख्त सबूत विवाह के आवश्यक पंरपरा के प्रदर्शन के लिए आवश्यक नहीं है।"

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    3. "दोनों पक्ष (पति-पत्नी) अपने विवादों को खत्म करना चाहते हैं"; दोनों ने तलाक स्वीकारा: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पति के खिलाफ चल रही आपराधिक कार्यवाही को खत्म किया

    [मोहम्मद गुफरान बनाम यूपी राज्य और 3 अन्य]

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार (12 जनवरी) को तलाक के मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि दोनों पक्ष (पति-पत्नी) ने तलाक को स्वीकार कर लिया है, इसलिए अब इस तलाक को 'खुला तलाक' माना जाएगा। न्यायमूर्ति डॉ. कौशल जयेंद्र ठाकर और न्यायमूर्ति गौतम चौधरी की खंडपीठ भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत मोहम्मद गुफरान की तरफ से दायर की गई याचिका पर सुनवाई की।

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    4.सीआरपीसी की धारा 125 (3) के तहत भरण पोषण का अधिकार ; डिफॉल्टर के खिलाफ इसका आह्वान गलत नहीं हो सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    [अलखराम बनाम यूपी राज्य और अन्य।]

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत एक व्यक्ति का अपनी पत्नी, बच्चों या माता-पिता का भरण पोषण करना और इसे बनाए रखने का दायित्व "निरंतर प्रकृति" में से एक है और एक मजिस्ट्रेट को डिफ़ॉल्ट के मामले में धारा 125 (3) के तहत वारंट जारी करने के लिए दोष नहीं दिया जा सकता है।

    न्यायमूर्ति डॉ. योगेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की एकल पीठ ने कहा कि, "सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण पोषण का भुगतान करने की देयता निरंतर देयता की प्रकृति है। इसलिए भरण पोषण के भुगतान के लिए या किसी भी उल्लंघन के लिए धारा 125 (1) के तहत पारित आदेश के अनुपालन में डिफ़ॉल्ट के मामले में मजिस्ट्रेट द्वारा धारा 125 (3) के तहत सत्ता के अभ्यास का आह्वान गलत नहीं हो सकता है।

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    5. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने युवा जोड़े और उनके परिवार वालों को मिलाने के लिए पूरे दिन का समय दिया

    [उषा अनुरागी और तीन अन्य बनाम यूपी राज्य और दो अन्य]

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह अपने स्तर पर पूरी कोशिश की, कि दो परिवारों को फिर से एक मामले में आपस में उत्पन्न विवादों को सुलझाकर एक साथ लाया जाए। इसमें पत्नी और उनके पति ने कोर्ट के सामने कहा कि वे सभी पुराने मतभेदों और बुरे सपने को दूर करना चाहते हैं।

    न्यायमूर्ति डॉ. कौशल जयेंद्र ठाकर और न्यायमूर्ति गौतम चौधरी की खंडपीठ ने कहा कि, "हम आम तौर पर इस तरह के अपराध से संबंधित विवाद में नोटिस जारी नहीं करते हैं, लेकिन अब हम महसूस करते हैं कि राज्य के सर्वोच्च न्यायालय में लोगों को हमसे अधिक उम्मीद है। वे ट्रायल न्यायपालिका से जितना चाहते थे, उससे अधिक हमसे चाहते हैं।"

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    6. अपनी मर्ज़ी से शादी करने के बावजूद एक नाबालिक लड़की को बालिग होने तक उसके पति के साथ रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती : इलाहाबाद हाईकोर्ट

    [प्रदीप तोमर और एक अन्य बनाम यू.पी. राज्य और अन्य]

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि एक नाबालिग लड़की को एक ऐसे व्यक्ति के साथ वैवाहिक संबंध में रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, जो उसके पति होने का दावा करता है, भले ही उसने अपना घर छोड़ दिया हो और अपनी मर्जी से उस व्यक्ति से शादी कर ली हो, जिसे वह चाहती है।

    न्यायमूर्ति जे. जे. मुनीर की खंडपीठ ने हाई स्कूल सर्टिफिकेट को ध्यान में रखते हुए यह फैसला सुनाया। इसमें स्पष्ट रूप से दर्शाया गया है कि वह नाबालिग है, क्योंकि उसकी जन्म तिथि 04 नवंबर 2004 है।

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    7. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पति से बच्चे की कस्टडी की मांग वाली मां की हेबियस कॉर्पस याचिका मंजूर की

    [मास्टर अद्वैत शर्मा बनाम यूपी राज्य और अन्य]

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने (शुक्रवार) मां की बंदी प्रत्यक्षीकरण (हेबियस कॉर्पस) याचिका को अनुमति दी, जिसमें उसने अपने पति (बच्चे के पिता) से साढ़े तीन साल की उम्र के बच्चे की कस्टडी मांगी थी। न्यायमूर्ति जेजे मुनीर की एकल पीठ ने कहा कि मां के पास में बच्चे के कल्याण के लिए बेहतर तरीके से देखभाल करने की मजबूत धारणा है।

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    8. हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम, 1956, के तहत गोद लेने की प्रक्रिया में तलाक के बिना पति से अलग रही पत्नी की सहमति आवश्यकः इलाहाबाद उच्च न्यायालय

    [भानु प्रताप सिंह बनाम यूपी राज्य]

    इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि एक व्यक्ति, जो अपनी पत्नी से तलाक के बिना अलग रह रहा है, को हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 के तहत एक बच्चे को गोद लेने के लिए, अलग रह रही पत्नी की सहमति की आवश्यकता होती है।

    ज‌स्टिस जेजे मुनीर की खंडपीठ ने कहा, "पति से अलग रहने वाली एक पत्नी, तब भी एक पत्नी होती है, जब तक कि दोनों पक्षों के बीच वैवाहिक बंधन में तलाक के आदेश या विवाह को शून्य घोष‌ित किए जाने से से समाप्त नहीं हो जाता है।"

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    9. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पति की हत्या की आरोपी मां को बेटी की कस्टडी सौंपने से इनकार किया, बरी होने पर दोबारा कस्टडी मांगने की आज़ादी दी

    [ज्ञानमती कुशवाहा और अन्य बनाम यूपी और अन्य राज्य।]

    एक महत्वपूर्ण फैसले में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पिछले हफ्ते याचिकाकर्ता महिला को दो साल की बेटी की कस्टडी सौंपने से इनकार कर दिया। महिला पर अपने पति (यानी बच्चे के पिता) की हत्या का आरोप है।

    जस्टिस जेजे मुनीर की खंडपीठ ने हालांकि, मां को यह आजादी दी कि यदि वह संदेह या अन्यथा के आधार पर हत्या के आरोप से बरी हो जाती है तो बेटी की कस्टडी के लिए दोबारा अपील कर सकती है।

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    10. वैवाहिक क्रूरता : आखिर पुलिस क्यों महिला को उसके पति के घर वापस जाने के लिए मजबूर कर रही है?" इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पुलिस अधीक्षक से जवाब मांगा

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुधवार को वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, अलीगढ़ और कासगंज के पुलिस अधीक्षक से स्पष्टीकरण मांगा कि एक महिला को उसके पति द्वारा प्रताड़ित करके उसके ससुराल से बाहर निकालने के बाद पुलिस क्यों उस महिला को उसके पति के घर जाने के लिए मजबूर कर रही है।

    न्यायमूर्ति जे जे मुनीर की पीठ ने कहा: "याचिकाकर्ता प्रथम दृष्टया एक अकेली महिला है, जिसके पास जाने के लिए कोई जगह नहीं है और अब उसे अपने पति के पास वापस जाने के लिए पुलिस सहित उत्तरदाताओं के हाथों उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है, जहां वह वैवाहिक क्रूरता का शिकार हो सकती है और हो सकता है कि उसके जीवन को खतरा हो।"

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    11. पत्नी को वापस पाने के लिए पति के कहने पर बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट मामले के रूप में उपलब्ध नहीं: इलाहाबाद उच्च न्यायालय

    [मो. अहमद और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य]

    न्यायमूर्ति डॉ. योगेंद्र कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि पति के कहने पर बंदी प्रत्यक्षीकरण के रिट का उपाय अपनी पत्नी को वापस पाने की मांग के लिए निश्चित रूप से उपलब्ध नहीं है।

    अपनी पत्नी को पेश करने की पति की याचिका पर विचार करते हुए अदालत ने कहा: "आपराधिक और नागरिक कानून के तहत इस उद्देश्य के लिए उपलब्ध अन्य उपायों के मद्देनजर, अपनी पत्नी को वापस पाने के लिए पति के कहने पर बंदी प्रत्यक्षीकरण की रिट जारी करना निश्चित रूप से उपलब्ध नहीं हो सकता। इस संबंध में शक्ति का प्रयोग तभी किया जा सकता है जब एक स्पष्ट मामला बनाया गया हो।"

    12. दूसरे स्टेशन पर पोस्टिंग के कारण पति की सुविधा के लिए वैवाहिक मामले को ट्रांसफर नहीं किया जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    [सुरेंद्र सिंह बनाम विनीता सिंह]

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि केवल इसलिए कि पति को अब दूसरे स्टेशन पर पोस्टिंग कर दी गई है, वैवाहिक विवाद के मामले को उनकी सुविधा के अनुसार ट्रांसफर नहीं किया जा सकता है।

    न्यायमूर्ति जेजे मुनीर की खंडपीठ ने यह टिप्पणी की, जो एक सुरेंद्र सिंह की याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, जिसमें उन्होंने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 के तहत उनके द्वारा दायर तलाक के मामले को प्रधान न्यायाधीश, फैमिली कोर्ट, हापुड़ से बांदा या कोई अन्य निकटवर्ती जिला की अदालत ट्रांसफर करने की मांग की थी।

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    13. वरिष्ठ नागरिक अधिनियम के तहत संक्षिप्त कार्यवाही के आधार पर महिला को वैवाहिक घर से नहीं निकाला जा सकता : इलाहाबाद हाईकोर्ट

    [खुशबू शुक्ला बनाम जिला मजिस्ट्रेट, लखनऊ और अन्य।]

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया है कि वरिष्ठ नागरिक अधिनियम (Senior Citizens Act) , 2007 के तहत संक्षिप्त कार्यवाही के आधार पर एक पत्नी को उसके वैवाहिक घर से बाहर नहीं किया जा सकता है।

    न्यायमूर्ति विवेक चौधरी की खंडपीठ ने एक विधवा और उसके बेटे का बचाव करते हुए उस आदेश को रद्द कर दिया है,जिसके तहत इस महिला व उसके बेटे को ससुराल से बेदखल करने का निर्देश दिया गया था।

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    ट्रांसजेंडर व्यक्ति / कमजोर वर्ग / अल्पसंख्यक / एससी / एसटी

    1. 'समाज की कठोर वास्तविकता': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भेदभाव का सामना कर रहे समलैंगिक जोड़े को संरक्षण प्रदान किया

    [पूनम रानी और एक अन्य बनाम यूपी राज्य और पांच अन्य]

    इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने जनवरी 2021 में एक समलैंगिक जोड़े को सुरक्षा प्रदान की। इस जोड़े ने अदालत के समक्ष आरोप लगाया कि उन्हें केवल उनके यौन अभिविन्यास के आधार पर भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उनके अधिकारों के उल्लंघन की धमकी दी जा रही है।

    न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति संजय कुमार पचौरी की पीठ पूनम रानी और उसके साथी की सुरक्षा की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि उन्हें अपने परिवार के सदस्यों के कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है।

    2. एससी/एसटी एक्ट: पीड़ित को समय पर जमानत की नोटिस देने और इसे अदालत में पेश करने के संबंध में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने निर्देश जारी किया

    [अजीत चौधरी बनाम यूपी राज्य और अन्य]

    'अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989' के तहत जमानत आवेदनों/ जमानत की अपील की सुनवाइयों में विसंगत‌ियां होने की चिंताओं पर सुनवाई करते हुए, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सोमवार (11 जनवरी) को न्यायालय के समक्ष अधिनियम के तहत जमानत आवेदन / जमानत अपील दायर करने और पीड़ित को समय पर नो‌टिस देने के संबंध में दिशा निर्देश जारी किए।

    जस्टिस अजय भनोट की खंडपीठ ने कहा कि जमानत आवेदनों पर तेजी से कार्रवाई की जानी चाहिए और उचित और निश्चित समय सीमा में सुनवाई के लिए अदालत के समक्ष पेश किया जाना चाहिए।

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    3. "मुस्लिम समुदाय के धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन": इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने असामाजिक तत्वों द्वारा कबरिस्तान पर अतिक्रमण रोकने का आदेश दिया

    [मोहम्मद शाहिद और 2 अन्य बनाम यूपी राज्य और 7 अन्य]

    इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पिछले हफ्ते अवैध अतिक्रमण के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई की मांग करने वाली याचिका में कुछ निर्देश जारी करते हुए कहा, "प्रत्येक नागरिक को किसी भी अन्य नागरिक के समान शांतिपूर्वक रहने, असामाजिक तत्वों के डर के बिना और धार्मिक स्वतंत्रता का आनंद लेने का अधिकार है।" उत्तर प्रदेश के जिला कौशाम्बी में स्थित एक कब्रिस्तान (मुस्लिम कब्रिस्तान) को हुई क्षति।

    न्यायमूर्ति जयंत बनर्जी और न्यायमूर्ति संजय यादव की खंडपीठ ने आगे कहा, "जहां भी, उच्च न्यायालय के पास यह मानने का कारण है कि नागरिकों के मौलिक और संवैधानिक अधिकारों को खतरा है, भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 में हस्तक्षेप करने और आवश्यक निर्देश जारी करने के लिए पर्याप्त शक्तियां निहित हैं।"

    4. किसानों का विरोध प्रदर्शन : ट्रैक्टरों के साथ किसानों से 'अत्यधिक' निजी बॉन्ड क्यों मांगे गए? इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यूपी अधिकारियों से पूछा

    एक महत्वपूर्ण न्यायिक हस्तक्षेप में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के अधिकारियों से यह बताने के लिए कहा कि उप-मंडल मजिस्ट्रेटों ने किसानों के विरोध के मद्देनजर 'अत्यधिक व्यक्तिगत बॉन्ड' प्रस्तुत करने के लिए ट्रैक्टर वाले किसानों को नोटिस क्यों जारी किया।

    जस्टिस रमेश सिंघा और राजीव सिंह की खंडपीठ ने 19 जनवरी को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 111 के तहत जारी नोटिस को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका में आदेश पारित किया, जिसमें किसानों को 50,000 रुपये से 10 लाख रुपये तक के व्यक्तिगत बांड प्रस्तुत करने के लिए कहा गया था। किसानों के विरोध के बीच कानून-व्यवस्था भंग होने की आशंका का हवाला देते हुए इतनी ही राशि की दो जमानतें मंजूर की।

    5. "अगर एलजीबीटी जोड़े के बीच स्नेह का प्रदर्शन अशोभनीय नहीं तो इसे बहुमत की धारणा से नहीं रोका जा सकता:" इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एलजीबीटी सदस्य को सेवा में बहाल किया

    [प्रमोद कुमार शर्मा बनाम यूपी राज्य और दो अन्य]

    इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता के एक वायरल वीडियो के आधार पर याचिकाकर्ता (एक प्रमोद कुमार शर्मा) की नियुक्ति रद्द करने के आदेश को पिछले हफ्ते रद्द कर दिया।

    न्यायमूर्ति सुनीता अग्रवाल की खंडपीठ ने कहा कि काउंटर हलफनामे (रद्द करने का आदेश पारित करने वाले अधिकारी द्वारा दायर) में याचिकाकर्ता के यौन अभिविन्यास को अप्रिय गतिविधि में लिप्त बताया गया था।

    6. धार्मिक और धर्मार्थ संस्थानों की संपत्तियों का अपराधियों द्वारा हड़पना दुर्भाग्यपूर्ण : इलाहाबाद उच्च न्यायालय

    [भारत दास @ राम न्यूज सिंह बनाम यूपी राज्य]

    इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस महीने की शुरुआत में भू-माफियाओं के पक्ष में जाली और मनगढ़ंत दस्तावेजों के आधार पर एक मठ (अखिल भारतीय उदासीन संगत ठाकुरजी विराजमान ठाकुरद्वारा झाउलाल) की संपत्ति बेचने के आरोपी एक व्यक्ति द्वारा दायर जमानत याचिका को खारिज कर दिया।

    न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की खंडपीठ ने जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा, "यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अपराधियों द्वारा धार्मिक और धर्मार्थ संस्थानों की संपत्तियों को हड़पा जा रहा है।"

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    7. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सरकार को ब्रेस्ट कैंसर से पीड़ित एक गरीब महिला को मुफ्त इलाज मुहैया कराने का निर्देश दिया

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को राज्य सरकार और अस्पताल के अधिकारियों को ब्रेस्ट कैंसर से पीड़ित एक गरीब महिला को मुफ्त चिकित्सा सुविधा देने का निर्देश दिया है, जो आय और धन की कमी के कारण इलाज का खर्च उठाने में असमर्थ है। न्यायमूर्ति देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति मनीष कुमार की खंडपीठ ने यह आदेश दिया है।

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    8 "सुनिश्चित करें कि स्थानीय पुलिस हिंदू धर्म अपनाने वाली मुस्लिम महिला के विवाहित जीवन में हस्तक्षेप न करे": इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एसएसपी से कहा

    इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बुधवार (26 मई) को एक मुस्लिम महिला के जीवन को बढ़ाने और आवश्यक सुरक्षा प्रदान करने का आदेश दिया। इस महिला ने हिंदू धर्म में धर्मांतरण किया और हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार एक पुरुष से शादी की।

    न्यायमूर्ति जे जे मुनीर की खंडपीठ ने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, मेरठ को यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया कि स्थानीय पुलिस याचिकाकर्ताओं (महिला और उसके पति) के शांतिपूर्ण वैवाहिक जीवन में हस्तक्षेप न करे।

    9. पीड़िता अपनी मर्जी से होटल के कमरे में गई": इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी के धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को जमानत दी

    [सोनू राजपूत @ जुबैर बनाम यूपी राज्य]

    न्यायमूर्ति समित गोपाल की एकल पीठ ने उत्तर प्रदेश गैरकानूनी धर्म परिवर्तन अधिनियम, 2020 के तहत गिरफ्तार किए गए एक व्यक्ति को जमानत दे दी। इजिस पर एक होटल के एक कमरे में पीड़िता के साथ बलात्कार करने का आरोप लगाया गया है।

    यह देखते हुए कि पीड़िता बालिग है और आरोपी के साथ उसके सहमति से संबंध थे, अदालत ने कहा: "(जमानत) आवेदक और पहले मुखबिर/पीड़ित लंबे समय से रिश्ते में थे और वह आवेदक के साथ समय बिताती थी और उसके साथ यात्रा करती थी और अपनी मर्जी से एक होटल के एक कमरे में जाती थी।"

    10. गरीब नवाज़ मस्जिद विध्वंस मामला: जालसाजी मामले में मस्जिद कमेटी के सदस्यों को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कठोर कार्रवाई से सुरक्षा प्रदान की

    [मुश्ताक अली और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के माध्यम से प्रिं. गृह सचिव और अन्य]

    इलाहाबाद हाईकोर्ट (लखनऊ बेंच) ने पिछले हफ्ते गरीब नवाज मस्जिद की समिति के सदस्यों की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी। इनके खिलाफ मस्जिद के दस्तावेजों को जाली बनाने का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज की गई है।

    यह ध्यान दिया जा सकता है कि इस महीने की शुरुआत में बाराबंकी में जिला प्रशासन द्वारा मस्जिद को एक "अवैध निर्माण" होने का दावा करते हुए ध्वस्त कर दिया गया था। इसके बाद, बाराबंकी पुलिस ने मस्जिद को वक्फ संपत्ति के रूप में पंजीकृत कराने के लिए कथित तौर पर धोखाधड़ी का सहारा लेने के आरोप में आठ लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया था।

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    11. 'लव जिहाद' अध्यादेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक्ट को चुनौती देने की स्वतंत्रता दी

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुधवार को याचिकाकर्ताओं से उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को निष्प्रभावी बताते हुए वापस लेने को कहा, क्योंकि अध्यादेश को एक अधिनियम से बदल दिया गया है।

    मुख्य न्यायाधीश संजय यादव और न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा की खंडपीठ ने आवेदनों में संशोधन की अनुमति देने से इनकार कर दिया और याचिकाकर्ताओं से कहा कि वह नए सिरे से याचिका फाइल करें।

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    12. 'प्रथम दृष्टया महत्वपूर्ण प्रश्न उठते हैं': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी में गरीब नवाज मस्जिद के विध्वंस के खिलाफ याचिका पर नोटिस जारी किया

    [यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड बनाम यूपी राज्य और अन्य।]

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड द्वारा दायर एक रिट याचिका पर नोटिस जारी किया है। इस याचिका में उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले (राम सनेही घाट क्षेत्र) में गरीब नवाज मस्जिद के विध्वंस को चुनौती दी गई है।

    जस्टिस सौरभ लावानिया और जस्टिस राजन रॉय की बेंच ने कहा कि याचिकाएं प्रथम दृष्टया सार्वजनिक उपयोगिता भूमि पर एक मस्जिद के अस्तित्व के बारे में महत्वपूर्ण सवाल उठाती हैं।

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    13 "असामाजिक गतिविधि": इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कथित तौर पर बलात्कार, फेसबुक पर उस महिला की अश्लील तस्वीरें पोस्ट करने के आरोपी को जमानत देने से इनकार किया

    [मानव शर्मा बनाम यूपी राज्य]

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महिला के साथ बलात्कार करने और उसकी अश्लील तस्वीरें फेसबुक पर पोस्ट करने के आरोपी को प्रथम दृष्टया जमानत देने से इनकार कर दिया है। न्यायमूर्ति जे जे मुनीर की पीठ आईपीसी की धारा 376 (1), धारा 506 और सूचना प्रौद्योगिकी (संशोधन) अधिनियम, 2008 की धारा 67-ए के तहत मानव शर्मा की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

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    14. गरीब नवाज मस्जिद विध्वंस: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 'द वायर' रिपोर्ट पर मस्जिद समिति सचिव के खिलाफ एफआईआर रद्द करने से इनकार किया

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गरीब नवाज मस्जिद समिति के सचिव मोहम्मद अनीस और बाराबंकी के एक स्थानीय निवासी मो. नईम ने उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने से इनकार कर दिया। विचाराधीन एफआईआर उनके और समाचार पोर्टल द वायर और उसके दो पत्रकारों के खिलाफ दर्ज की गई थी, जो उत्तर प्रदेश में गरीब नवाज मस्जिद के कथित अवैध विध्वंस (रामसानेहीघाट, बाराबंकी) मुद्दे पर अपने पोर्टल पर इसकी रिपोर्टिंग की थी।

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    15 "पीड़ित के धर्म परिवर्तन के लिए कोई अधिनियम प्रतिबद्ध नहीं": इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यूपी 'लव जिहाद' कानून के तहत आठ से जेल में कैद व्यक्ति को जमानत दी

    इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने गुरुवार को एक 19 वर्षीय लड़की के धर्म परिवर्तन के लिए गिरफ्तार किए गए एक व्यक्ति को यह कहते हुए जमानत दे दी कि उसके धर्म परिवर्तन के लिए कोई कार्य नहीं किया गया।

    न्यायमूर्ति प्रदीप कुमार श्रीवास्तव की खंडपीठ विशेष न्यायाधीश, एससी / एसटी अधिनियम, सहारनपुर द्वारा उनके खिलाफ पारित जमानत अस्वीकृति आदेश को चुनौती देने वाले एक आरिफ की आपराधिक अपील पर सुनवाई कर रही थी।

    16 "राज्य की ओर से कुछ भी नहीं समझा गया": इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यूपी 'लव जिहाद' कानून के तहत गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को जमानत दी

    (मोतीलाल @ मोतीराम बनाम यूपी राज्य और अन्य)

    हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश के 'लव जिहाद' कानून के रूप में लोकप्रिय उत्तर प्रदेश के गैरकानूनी धार्मिक धर्मांतरण निषेध अध्यादेश के तहत गिरफ्तार किए गए एक व्यक्ति को जमानत दे दी। हाईकोर्ट ने यह देखते हुए जमानत दी कि शिकायतकर्ता और राज्य की ओर से उसे जमानत देने से इनकार करने के लिए कुछ भी तर्क नहीं दिया गया।

    न्यायमूर्ति अरविंद कुमार मिश्रा- I की खंडपीठ अपीलकर्ता/आरोपी मोतीराम की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इस पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा - 342, 366, 384, 506 और उत्तर प्रदेश के अवैध धार्मिक रूपांतरण निषेध अध्यादेश के 3/5 और 67A आई.टी. के तहत मामला दर्ज किया गया था।

    17. यूपी पुलिस ने 'एंटी-लव जिहाद कानून' के तहत मामले की जांच कर्नाटक पुलिस को ट्रांसफर की: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आदेश पर रोक लगाई, राज्य से जवाब मांगा

    (उम्मे कुलसुम बनाम यूपी राज्य थ्रू प्रधान गृह सचिव और अन्य)

    उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा 'एंटी-लव जिहाद कानून' मामले की जांच को स्थानांतरित करने के आदेश पर रोक लगा दी [यू.पी. कर्नाटक पुलिस को गैरकानूनी धार्मिक रूपांतरण अध्यादेश, 2020] का निषेध और राज्य सरकार से जवाब मांगा।

    न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति सरोज यादव की खंडपीठ एक महिला उम्मे कुलसुम की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने यूपी के पुलिस आयुक्त, लखनऊ द्वारा पारित एक आदेश को यूपी लव जिहाद कानून के तहत दर्ज मामले में जांच को पुलिस आयुक्त, बंगलौर शहर को स्थानांतरित करने की मांग की थी।

    18 ''अगर पीड़िता धर्म परिवर्तन करती है तो आरोपी व्यक्ति शादी करने को तैयार है, शादी का कोई झूठा वादा नहीं किया गया'': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बलात्कार के आरोपी को जमानत दी

    [जावेद आलम बनाम उत्तर प्रदेश राज्य]

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उस आरोपी जावेद आलम को जमानत दे दी है, जिस पर शादी के झूठे वादे पर पीड़िता के साथ शारीरिक संबंध स्थापित करने का आरोप लगाया गया है। हाईकोर्ट ने पाया कि अगर पीड़िता धर्म परिवर्तन करती है तो आरोपी व्यक्ति शादी करने को तैयार है।

    न्यायमूर्ति आलोक माथुर की खंडपीठ ने यह टिप्पणी आलम की जमानत याचिका पर सुनवाई करने के बाद की। आलम के खिलाफ पीड़ित महिला के पिता द्वारा एफआईआर दर्ज करवाई गई है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि उसने पीड़िता पर यह शर्त रखी कि वह अपना धर्म बदल ले और उसके बाद ही वह उससे शादी करेगा और इसलिए भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई है।

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    19. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस्लामिक स्टेट की विचारधारा के प्रचार के आरोप में गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को जमानत दी

    [मोहम्मद राशिद खान बनाम यूपी राज्य]

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को मोहम्मद राशिद खान को जमानत दे दी। राशिद खान पर इस्लामिक स्टेट की विचारधारा को 'प्रसार' करने और लोगों को हिंसा और अन्य राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में लिप्त होने के लिए उकसाने के लिए मामला दर्ज किया गया था।

    न्यायमूर्ति विवेक कुमार सिंह की खंडपीठ ने उसे आरोप की प्रकृति, दोषसिद्धि के मामले में सजा की गंभीरता, आरोप के समर्थन में न्यायालय की प्रथम दृष्टया संतुष्टि, सजा के सुधारात्मक सिद्धांत और भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के बड़े जनादेश को देखते हुए जमानत दी।

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    20. इलाहाबाद एचसी ने यूपी शिक्षा बोर्ड के इनकार के बाद शैक्षिक रिकॉर्ड में एक ट्रांसजेंडर का नाम और लिंग परिवर्तन करने का निर्देश दिया

    उच्च न्यायालय (लखनऊ बेंच) ने उत्तर प्रदेश सरकार के अधिकारियों को निर्देश दिया कि वह एक ट्रांसजेंडर के नाम और लिंग को उसकी शैक्षिक मार्कशीट और प्रमाण पत्र में बदलने के लिए तत्काल कदम उठाए।

    न्यायमूर्ति विवेक चौधरी की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता को जिला मजिस्ट्रेट द्वारा जारी प्रमाण पत्र के अनुसार उन्हें नई बदली हुई मार्कशीट और प्रमाण पत्र जारी करने का भी आदेश दिया।

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