'यदि कोई व्यक्ति हिरासत में है और उसके रिहा होने की कोई संभावना नहीं है तो प्रिवेंटिव डिटेंशन की शक्ति का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए': इलाहाबाद
LiveLaw News Network
24 Dec 2021 3:46 PM IST
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 के तहत शक्तियों का प्रयोग करके हत्या के आरोपी के खिलाफ पारित डिटेंशन के आदेश को रद्द किया। कोर्ट ने देखा कि यदि कोई व्यक्ति हिरासत में है और उसके रिहा होने की कोई संभावना नहीं है तो प्रिवेंटिव डिटेंशन की शक्ति का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने एक अभय राज गुप्ता की बंदी प्रत्यक्षीकरण (habeas corpus) याचिका पर सुनवाई की, जो वर्तमान में सेंट्रल जेल, बरेली में हिरासत में है। उसने अपनी मां के माध्यम से 23 जनवरी, 2021 को डिटेंशन के आदेश को चुनौती दी।
पूरा मामला
अनिवार्य रूप से, 2 दिसंबर, 2019 को हुई हत्या की एक भी घटना के कारण याचिकाकर्ता के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 और 307 सहित और उत्तर प्रदेश गैंगस्टर्स और असामाजिक गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1986 के तहत तीन प्राथमिकी दर्ज की गईं।
कथित तौर पर, याचिकाकर्ता द्वारा रची गई साजिश के अनुसरण में राकेश यादव की मौत हो गई और बाद में जब पुलिस ने उसे 2 दिसंबर, 2019 को हुई उक्त घटना के लिए गिरफ्तार करने के लिए आई, तो उसने पुलिस कर्मियों को मारने के इरादे से उन पर गोली चलाई।
याचिकाकर्ता के खिलाफ एनएसए, 1980 के तहत शक्तियों का प्रयोग करके डिटेंशन आदेश पारित किया गया। इसमें यह कहा गया कि याचिकाकर्ता के सहयोगियों द्वारा उनके द्वारा रची गई साजिश के तहत की गई हत्या के अपराध के कारण, लोग डर गए और घबरा गए और सार्वजनिक व्यवस्था भंग हो गई।
कोर्ट की टिप्पणियां
शुरुआत में, याचिकाकर्ता के खिलाफ पारित डिटेंशन आदेश को जारी रखते हुए अदालत ने कहा कि डिटेंशन आदेश में कहा गया है कि यदि याचिकाकर्ता जमानत पर बाहर आता है, तो वह फिर से अपराध में शामिल हो सकता है, यह तथ्यात्मक ढंग से उचित प्रतित नहीं होता है।
कोर्ट ने आगे कहा,
"(डिटेंशन आदेश में) न तो इस आशंका को दर्ज करने का कोई उचित आधार है और न ही ऐसा कोई अनुमान है कि गिरफ्तार गतिविधि सार्वजनिक व्यवस्था के प्रतिकूल होगी और इसलिए सार्वजनिक व्यवस्था के रखरखाव के लिए किसी भी तरह से प्रतिकूल कार्रवाई करने से रोकने की दृष्टि से उसे हिरासत में लेना आवश्यक है।"
अदालत ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा कथित रूप से किए गए कृत्य से सार्वजनिक व्यवस्था भंग नहीं हुई क्योंकि इसने समाज को इस हद तक परेशान नहीं किया कि सार्वजनिक शांति में सामान्य अशांति पैदा हो।
अदालत ने आगे कहा,
"पुरानी पारिवारिक दुश्मनी के कारण किसी व्यक्ति की हत्या का एकल कृत्य भविष्य में इसी तरह से कृत्य करने के लिए याचिकाकर्ता की ओर से दोहराव की प्रवृत्ति या झुकाव का संकेत नहीं है ताकि एनएसए, 1980 की धारा 3 (2) के तहत शक्तियों के आह्वान को सही ठहराया जा सके। अधिनियम की धारा 3 (2) के तहत पारित प्रिवेंटिव डिटेंशन का आदेश बरकरार रखने योग्य नहीं है।"
कोर्ट ने यह भी नोट किया कि घटना 2 दिसंबर, 2019 को हुई थी, यानी डिटेंशन आदेश पारित होने से लगभग 14 महीने पहले और कोर्ट ने इस प्रकार देखा,
"एक पुरानी घटना जो उस समय के करीब नहीं है जब 23-01-2021 को प्रिवेंटिव डिटेंशन का आदेश पारित किया गया था और कथित प्रतिकूल गतिविधि और डिटेंशन के उद्देश्य और प्रावधानों के आह्वान के बीच कोई सीधा संबंध नहीं है और लगभग चौदह महीने की लंबी देरी के बाद याचिकाकर्ता के खिलाफ एनएसए, 1980 लगाया गया है, इसे जस्टिफाई नहीं किया जा सकता।"
कोर्ट ने महत्वपूर्ण रूप से सर्वोच्च न्यायालय के कई महत्वपूर्ण फैसलों का हवाला देते हुए निष्कर्ष निकाला कि उसके हिरासत से रिहा होने की कोई संभावना नहीं है और इस प्रकार, एनएसए के तहत प्रिवेंटिव डिटेंशन का आदेश पारित करना अनुचित था।
कोर्ट ने देखा,
"याचिकाकर्ता उत्तर प्रदेश गैंगस्टर्स और असामाजिक गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1986 की धारा 2/3 के तहत एक मामले में पहले से ही जेल में है और उसने इस मामले में जमानत के लिए आवेदन दायर नहीं किया और तब भी जब वह जमानत के लिए एक आवेदन दायर करेगा, उसे जमानत पर रिहा नहीं किया जाएगा। यह स्वीकार नहीं किया जा सकता है कि हिरासत में लेने वाले प्राधिकारी की संतुष्टि को दर्ज करने के लिए कोई सामग्री है कि याचिकाकर्ता को किसी भी तरह से प्रतिकूल कृत्य करने से रोकने के लिए सार्वजनिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए एनएसए, 1980 के तहत याचिकाकर्ता को हिरासत में लेना आवश्यक है।"
अंत में, कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि एनएसए,1980 की धारा 3 (2) के तहत सार्वजनिक व्यवस्था को बनाए रखने लिए के याचिकाकर्ता की हिरासत जरूरी है, यह आधार तत्काल मामले में स्पष्ट रूप से अनुपस्थित है।
कोर्ट ने माना कि 23-01-2021 का डिटेंशन आदेश इस आधार पर भी कानून में टिकाऊ नहीं है। रिट याचिका की अनुमति दी गई और इसके साथ ही एनएसए, 1980 की धारा 3 (3) के तहत याचिकाकर्ता अभय राज गुप्ता के खिलाफ जिला मजिस्ट्रेट शाहजहांपुर द्वारा दिनांक 23-01-2021 को पारित डिटेंशन आदेश रद्द किया गया।
प्रतिवादियों को दिनांक 23-01-2021 के आदेश के तहत याचिकाकर्ता को डिटेंशन से रिहा करने का आदेश दिया गया।
केस का शीर्षक - अभयराज गुप्ता बनाम अधीक्षक, सेंट्रल जेल, बरेली
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