''महिला ने तलाक की याचिका भी दायर नहीं की'': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लिव-इन रिलेशन में रहने वाली महिला की पति से सुरक्षा दिलाने की मांग खारिज की
LiveLaw News Network
24 Jun 2021 10:45 AM IST
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली एक महिला की तरफ से दायर सुरक्षा याचिका खारिज कर दी। याचिका में आरोप लगाया गया था कि उसने अपने पति की असामाजिक गतिविधियों को देखते हुए अपना वैवाहिक घर छोड़ दिया है और अब वह एक मोहित नामक व्यक्ति के साथ लिव-इन रिलेशन में रह रही है।
जस्टिस सुनीता अग्रवाल और जस्टिस साधना रानी (ठाकुर) की बेंच एक महिला की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने अपने पति से सुरक्षा मांगी थी।
अपनी याचिका में, उसने दावा किया कि उसने अपने पति से सुरक्षा दिलाए जाने की मांग करते हुए, अध्यक्ष, मानवाधिकार आयोग, नई दिल्ली के समक्ष एक अभ्यावेदन/आवेदन प्रस्तुत किया था।
हालांकि, कोर्ट ने नोट किया किः
''इस मामले का यह स्वीकार किया गया तथ्य है कि याचिकाकर्ता ने अपने पति की किसी भी धमकी या हिंसा के कृत्य के लिए घरेलू हिंसा अधिनियम और भारतीय दंड संहिता जैसे प्रासंगिक प्रावधानों के तहत कोई आवेदन दायर नहीं किया है। यह भी इस मामले का स्वीकृत तथ्य है कि याचिकाकर्ता ने हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक के लिए भी कोई याचिका दायर नहीं की है।''
उक्त स्वीकृत तथ्य को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय ने कहा कि,
''रिट याचिका में यह अस्पष्ट दलील है कि प्रतिवादी नंबर 4, याचिकाकर्ता का पति, उसे परेशान कर रहा है। इसलिए इस रिट पर विचार नहीं किया जा सकता है।''
इसके साथ ही उसकी याचिका खारिज कर दी गई।
हाल ही में, पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति से सवाल किया था कि उसने अपनी पत्नी से अपने वैवाहिक संबंध को वैध रूप से समाप्त क्यों नहीं किया? कोर्ट ने यह सवाल उस समय किया जब इस व्यक्ति (और उसकी महिला लिव-इन पार्टनर) ने एक सुरक्षा याचिका दायर की और दावा किया कि उसकी पत्नी उसे छोड़कर चली गई है और उसे अपने बच्चों को मातृ देखभाल प्रदान करने के लिए मजबूर किया गया है।
न्यायमूर्ति अरुण मोंगा की खंडपीठ ने कहा था कि अपने बच्चों की जैविक मां से अपने वैवाहिक संबंध को वैध रूप से समाप्त करने में उसकी निष्क्रियता ने उसकी ओर से नेकनीयती की कमी का संकेत दिया है।
हालांकि, महिला साथी को किसी भी अनावश्यक जोखिम में डालने और/या पुरुष द्वारा गुमराह किए जाने की किसी भी संभावना से बचने के लिए, कोर्ट ने महिला लिव-इन पार्टनर (याचिकाकर्ता संख्या 2/एक विधवा) को सुरक्षा देने का आदेश दिया था।
अदालत ने कहा था कि, ''अगर उसे अपने जीवन और/या स्वतंत्रता के लिए कोई जोखिम उठाना पड़ता है तो यह न्याय का उपहास होगा और इसलिए, वह उस हद तक संरक्षित होने की हकदार है।।''
एक अन्य मामले में यह देखते हुए कि महिला पहले से ही शादीशुदा है और किसी अन्य पुरुष के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में है, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में उसकी सुरक्षा याचिका को खारिज करते हुए पांच हजार रुपये जुर्माना लगा दिया था।
न्यायमूर्ति कौशल जयेंद्र ठाकर और न्यायमूर्ति दिनेश पाठक की खंडपीठ ने कहा था कि,
''हम यह समझने में विफल हैं कि इस तरह की याचिका को कैसे स्वीकार किया जा सकता है,जो समाज में अवैधता को अनुमति देती हो।''
हालांकि, बाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्पष्ट करते हुए कहा था कि वह लिव-इन रिलेशनशिप के खिलाफ नहीं है, परंतु कोर्ट ने उस कपल की तरफ से दायर सुरक्षा याचिका को खारिज कर दिया था,जो लिव-इन रिलेशनशिप में रहना चाहते थे क्योंकि सुरक्षा की मांग करने वाले कपल में से एक याचिकाकर्ता पहले से शादीशुदा था।
केस का शीर्षक- सुरभि बनाम यूपी राज्य व 3 अन्य
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