इलाहाबाद हाईकोर्ट ईयरली डाइजेस्ट 2021 : प्रमुख ऑर्डर/जजमेंट पार्ट- 2
LiveLaw News Network
1 Jan 2022 1:07 PM IST
साल 2021 के बीतने के साथ लाइव लॉ आपके लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट से महत्वपूर्ण अपडेट का ईयरली राउंड-अप लेकर आया है। इस ईयरली डाइजेस्ट में 250 आदेश और निर्णय शामिल हैं, जिन्हें विभिन्न विषय में विभाजित किया गया है। इसका पहला पार्ट प्रकाशित हो चुका है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ईयरली राउंड-अप का दूसरा भाग यहां पेश है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ईयरली डाइजेस्ट 2021 : प्रमुख ऑर्डर/जजमेंट पार्ट- 1
संवैधानिक महत्व के मामले
1. विशेष विवाह अधिनियम के तहत भावी विवाह के नोटिस का प्रकाशन अनिवार्य करना निजता के अधिकार उल्लंघनः इलाहाबाद हाईकोर्ट
[सफिया सुल्ताना बनाम उत्तर प्रदेश राज्य]
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में ,माना है कि विशेष विवाह अधिनियम की धारा 6 के तहत भावी विवाह का नोटिस प्रकाशित करने और धारा 7 के तहत उस पर आपत्तियां आमंत्रित कराने/ स्वीकार करने की आवश्यकता अनिवार्य नहीं है।
जस्टिस विवेक चौधरी ने कहा कि इस प्रकार के प्रकाशन को अनिवार्य बनाना स्वतंत्रता और निजता के मौलिक अधिकारों पर हमला करेगा, जिनके तहत संबंधित व्यक्ति द्वारा, राज्य और गैर-राज्य कारकों के हस्तक्षेप के बिना, विवाह के लिए चयन की स्वतंत्रता भी शामिल है।
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2. महिंद्रा फाइनेंस अनुच्छेद 12 के तहत एक प्राधिकरण नहीं, इसके खिलाफ रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं: इलाहाबाद उच्च न्यायालय
[आरिफ खान बनाम शाखा प्रबंधक महिंद्रा फाइनेंस सुल्तानपुर और अन्य]
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आरिफ खान बनाम शाखा प्रबंधक महिंद्रा फाइनेंस सुल्तानपुर और एक अन्य मामले में कहा कि किसी निजी निकाय के खिलाफ़ रिट याचिका पर परमादेश (Mandamus) जारी नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 12 के दायरे में नहीं आता।
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4. संविधान व्यापार का अधिकार देता है, लाभ का नहीं; इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने ऑल-यूपी स्टांप वेंडर्स एसोसिएशन की रिट याचिका खारिज की
[ऑल यूपी स्टांप वेंडर्स एसोसिएशन बनाम भारत संघ और अन्य]
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने ऑल-यूपी स्टांप वेंडर्स एसोसिएशन की एक रिट याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने न्यायिक और गैर-न्यायिक स्टांप पेपर को भौतिक रूप में जारी रखने की मांग की थी।
जस्टिस यशवंत वर्मा की एकल पीठ ने एसोसिएशन के इस दलील को खारिज कर दिया कि राज्य सरकार द्वारा पेपर स्टांप को बंद करना संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (जी), 21 और 38 के तहत गारंटीकृत संवैधानिक सुरक्षा का उल्लंघन है।
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5. कथित धर्मांतरण रैकेट- "पुलिस प्रेस नोट ने उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं किया": इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मीडिया ट्रायल के खिलाफ उमर गौतम की याचिका खारिज की
न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति विकास श्रीवास्तव की पीठ ने उमर गौतम की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिस पर जांच एजेंसी द्वारा मीडिया को कथित रूप से 20 जून, 2021 को एक प्रेस नोट में संवेदनशील/पूर्वाग्रही जानकारी लीक करने के खिलाफ एक राष्ट्रव्यापी धर्मांतरण रैकेट का हिस्सा होने का आरोप है। कोर्ट ने कहा कि उक्त पुलिस संचार ने याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकारों या किसी कानून के प्रावधानों का उल्लंघन नहीं किया।
अदालत ने विशेष रूप से फैसला सुनाया कि कुछ भी रिकॉर्ड में नहीं लाया गया, जो यह दर्शाता हो कि जांच एजेंसी ने याचिकाकर्ता से संबंधित किसी भी आरोप को मीडिया में जांच के लिए लीक किया या गृह मंत्रालय द्वारा जारी कार्यालय ज्ञापन दिनांक 01.04.2010 में निर्धारित मानदंडों का उल्लंघन किया।
6. क्या मदरसों और अन्य धार्मिक शैक्षणिक संस्थानों को राज्य का अनुदान संविधान की धर्मनिरपेक्ष योजना के अनुरूप है? इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सरकार से जवाब मांगा
(सी/एम, मदरसा अंजुमन इस्लामिया फैजुल उलूम और अन्य बनाम यूपी राज्य और 3 अन्य)
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में मदरसा जैसे धार्मिक शिक्षण संस्थानों, संविधान के ढांचे के भीतर राज्य सरकार और ऐसे संस्थानों के बीच की भूमिका और परस्पर क्रिया संबंधित मुद्दों पर उसके द्वारा तैयार किए गए प्रश्नों के एक समूह पर विचार करने का निर्णय लिया।
जस्टिस अजय भनोट की पीठ मदरसा बोर्ड द्वारा विधिवत मान्यता प्राप्त और राज्य सरकार द्वारा सहायता प्राप्त एक मदरसे की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें छात्रों की बढ़ती संख्या को देखते हुए शिक्षकों के अतिरिक्त पदों के सृजन की मांग की गई थी।
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7. प्रति माह 450 रुपये का भुगतान 'जबरन श्रम' और अनुच्छेद 23 का उल्लंघन: इलाहाबाद हाईकोर्ट
[तुफैल अहमद अंसारी बनाम यूपी राज्य और 2 अन्य]
कोर्ट ने 2001 में अपनी प्रारंभिक नियुक्ति के बाद से चतुर्थ श्रेणी के पद पर वेतन के रूप में 450 प्रति माह रुपये का भुगतान करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार की खिंचाई की। यह राज्य में निर्धारित न्यूनतम मजदूरी से कम है।
न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की खंडपीठ ने कहा कि यह समझ से परे है कि राज्य सरकार पिछले 20 वर्षों से प्रति माह 450 रुपये का भुगतान जारी रखकर चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी का शोषण कैसे कर सकती है।
8. अनुच्छेद 233- न्यायिक अधिकारी जिला न्यायाधीशों के पद पर सीधी भर्ती के लिए आवेदन और प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते: इलाहाबाद हाईकोर्ट
[शशांक सिंह और 4 अन्य बनाम इलाहाबाद में न्यायिक उच्च न्यायालय और अन्य]
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 233 के तहत एक न्यायिक अधिकारी एक वकील के रूप में 7 साल के प्रैक्टिस के अपने पिछले अनुभव के आधार पर जिला न्यायाधीश के पद पर सीधी भर्ती के लिए आवेदन और प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकता है।
न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव और न्यायमूर्ति प्रिंकर दिवाकर की खंडपीठ ने आगे स्पष्ट किया कि न्यायिक अधिकारी का जिला न्यायाधीश के पद पर नियुक्ति भारतीय संविधान के अनुच्छेद 233 के तहत बनाए गए नियमों और अनुच्छेद 309 के प्रावधान के अनुसार पदोन्नति के माध्यम से होगा।
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प्रेस की स्वतंत्रता/पत्रकारों के अधिकारों पर मामले
1. "प्रेस को रिपोर्ट करने का अधिकार": इलाहाबाद हाईकोर्ट ने धार्मिक रूपांतरण रैकेट मामले में मीडिया ट्रायल के खिलाफ उमर गौतम की याचिका पर आदेश सुरक्षित रखा
न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति विकास श्रीवास्तव की खंडपीठ ने उमर गौतम की याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया। गौतम पर राष्ट्रव्यापी धर्म परिवर्तन रैकेट का हिस्सा होने का आरोप है। याचिकाकर्ता ने मीडिया पर उसके मामले के संबंध में गलत रिपोर्टिंग और समय से पहले बयान देने से प्रतिबंध लगाने की मांग की गई है।
कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा, "प्रेस को रिपोर्ट करने का अधिकार है। क्या आपने जस्टिस चंद्रचूड़ के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पढ़ा है?"
2. पत्रकार से अपने अभिनेता को मौत के खतरे में डालकर भयावह घटना को नाटकीय बनाने और समाचार बनाने की उम्मीद नहींः इलाहाबाद हाईकोर्ट
[शमीम अहमद बनाम यूपी राज्य]
न्यायमूर्ति विकास कुंवर श्रीवास्तव की खंडपीठ ने कहा कि एक पत्रकार से सनसनीखेज और भयावह घटना का नाटक करने और अपने अभिनेता को दयनीय स्थिति में मौत के खतरे में डालकर खबर बनाने की उम्मीद नहीं की जाती। कोर्ट ने इस प्रकार एक पत्रकार को जमानत देने से इनकार कर दिया। उक्त पत्रकार ने एक व्यक्ति (मृत होने के बाद) को कथित रूप से प्रलोभन दिया कि यदि वह विधानसभा भवन के सामने आत्महत्या करने की कोशिश करेगा तो उसका वीडियो बनाकर वह टेलीविजन पर इसका प्रसारण करेगा।
पत्रकार की भूमिका के बारे में कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की, "पत्रकार समाज में होने वाली प्रत्याशित या अचानक होने वाली घटनाओं पर नज़र रखता है और बिना किसी छेड़छाड़ के विभिन्न समाचार मीडिया के माध्यम से सभी लोगों की जानकारी में लाता है, यह उसका व्यवसाय है।"
3. "तर्क ठोस हैं": इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने वसूली, जालसाजी के आरोपी पत्रकार की गिरफ्तारी पर रोक लगाई
(शरद कुमार द्विवेदी बनाम यूपी राज्य के माध्यम से, सचिव, गृह, लखनऊ और अन्य)
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पिछले हफ्ते जिला हरदोई में भारतीय जनता पार्टी के उपाध्यक्ष द्वारा की गई शिकायत पर उद्दापन (extortion) और जालसाजी के आरोप में दर्ज पत्रकार शरद कुमार द्विवेदी की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी।
न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति सरोज यादव की खंडपीठ ने प्रथम दृष्टया पाया कि आवेदकों के वकील द्वारा दी गई दलीलों ठोस है और जिसपर अदालत द्वारा विचार किया जाना आवश्यक है, इसलिए, न्यायालय ने माना कि अंतरिम राहत के लिए एक मामला बनाया गया है।
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5. झूठी, मनगढ़ंत और सुनियोजित खबरों का खतरा हमारे समाज को नुकसान पहुंचा रहा है: इलाहाबाद हाईकोर्ट
(विष्णु कुमार श्रीवास्तव बनाम यूपी राज्य के माध्यम से अपर मुख्य सचिव. सूचना लोको और अन्य)
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को कहा कि झूठी, मनगढ़ंत और सुनियोजित खबरों का खतरा समाज को नुकसान पहुंचा रहा है। न्यायमूर्ति देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति अब्दुल मोइन की खंडपीठ ने विभिन्न समाचार मीडिया को विनियमित करने के लिए दिशा-निर्देश तैयार करने के लिए राज्य के अधिकारियों को उचित निर्देश देने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए यह कहा। याचिका में कहा गया है कि इससे झूठी, मनगढ़ंत और सुनियोजित समाचार फैलाने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाया जा सकता है।
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6. "आईपीसी की धारा 411, 413 के तहत दर्ज एफआईआर दुर्भावनापूर्ण ": इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोशल मीडिया पर पुलिस के कदाचार के बारे में न्यूज पोस्ट करने वाले दो पत्रकारों की गिरफ्तारी पर रोक लगाई
[दीपमाला दुबे एवं अन्य बनाम यूपी राज्य के माध्यम से प्रधान सचिव, गृह, लखनऊ और अन्य]
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 411 और 413 के तहत दर्ज एफआईआर में 2 पत्रकारों की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने देखा कि एफआईआर दुर्भावनापूर्ण है।
अनिवार्य रूप से, कोर्ट प्रणम ममभूमि हिंदी समाचार पत्र के साथ काम करने वाले दो पत्रकारों की याचिका पर विचार कर रहा था, जिनके खिलाफ बेईमानी से चोरी की संपत्ति प्राप्त करने (धारा 411) और चोरी की संपत्ति का अभ्यासत: व्यापार करने (धारा 413) के लिए प्राथमिकी दर्ज की गई है।
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7. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कानूनी पत्रकारों द्वारा दायर याचिका के बाद अपनी वेबसाइट पर वीसी लिंक साझा करना शुरू किया
[अरीब उद्दीन अहमद और अन्य बनाम इलाहाबाद उच्च न्यायालय एवं अन्य।]
न्यायमूर्ति पंकज नकवी और न्यायमूर्ति जयंत बनर्जी की खंडपीठ ने कहा कि इसका प्रशासनिक पक्ष व्यापक सार्वजनिक पहुंच के लिए अदालती कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग और लाइव रिपोर्टिंग के सभी पहलुओं पर काम कर रहा है। कोर्ट ने मामले को छह सप्ताह के लिए स्थगित करते हुए कहा, "कोई भी आपके अधिकार पर विवाद नहीं कर रहा है। वे मामले के सभी पहलुओं पर काम कर रहे हैं, हमें उन्हें कुछ समय देना होगा।"
गौरतलब है कि कोर्ट का मत था कि इस मामले में कोई अंतरिम आदेश पारित करने की जरूरत नहीं है। जब याचिकाकर्ता के वकील शाश्वत आनंद ने अदालत से यह निर्देश देने का आग्रह किया कि अदालत की कार्यवाही की लाइव रिपोर्ट करने वाले मीडियाकर्मियों के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी, तो पीठ ने जवाब दिया, "आपको कौन रोक रहा है?"
महिलाओं/बच्चों के अधिकारों पर मामले
1. इस पुरुष 'वर्चस्ववाद' कि महिलाएं 'आनंद की वस्तु' हैं, से निपटने आवश्यकता : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 'विवाह का झूठा वादा कर संभोग करने' के मामलों पर विशिष्ट कानून बनाने की बात की
(हर्षवर्धन यादव बनाम यूपी राज्य और अन्य)
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि विधायिका के लिए यह आवश्यक है कि ऐसे मामलों के लिए, जहां आरोपी शादी का झूठा वादा कर संभोग की सहमति पा लेता है, के निस्तारण के लिए स्पष्ट और विशिष्ट कानूनी ढांचा प्रदान करे।
जस्टिस प्रदीप कुमार श्रीवास्तव की पीठ ने कहा, " एक स्वस्थ्य समाज का निर्माण करने और महिलाओं के मन में सुरक्षा और संरक्षण की भावना को बढ़ाने के लिए इस सामंती मानसिकता और पुरुष 'वर्चस्ववाद' कि महिलाएं कुछ भी नहीं है, बल्कि आनंद की वस्तु हैं, को कड़ाई से संबोधित करने और सख्ती से निपटने की आवश्यकता है।"
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2. भारत कन्या की पूजा करता है, फिर भी पीडोफिलिया के मामले बढ़ रहे हैं: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 13 साल की बच्ची के दुष्कर्म आरोपी को जमानत देने से इनकार किया
[जसमान सिंह @ पप्पू यादव बनाम यूपी राज्य और अन्य]
इस बात पर जोर देते हुए कि भारत कन्या की पूजा करता है, हालांकि साथ ही, देश में पीडोफिलिया के मामले बढ़ रहे हैं , इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उस व्यक्ति को जमानत देने से इनकार कर दिया, जिस पर 13 वर्षीय लड़की के साथ बलात्कार का मामला दर्ज किया गया है।
जस्टिस संजय कुमार सिंह की खंडपीठ ने कहा, "ऐसी स्थिति में, अगर सही समय पर न्यायालय से सही निर्णय नहीं लिया जाता है, तो पीड़ित/आम आदमी का विश्वास न्याय व्यवस्था में नहीं रह जाएगा। इस प्रकार के अपराध को रोकने यह समय है।"
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3. बेटियां परिवार की शान होती हैं; जो लोग उन्हें सेक्स-ट्रेड में मजबूर करते हैं वे किसी भी सहानुभूति के हकदार नहीं : इलाहाबाद हाईकोर्ट
[आकाश बनाम यूपी राज्य]
एक सभ्य समाज में बेटियों को परिवार का गौरव और सम्मान बताते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक ऐसे व्यक्ति को जमानत देने से इनकार कर दिया जिसने नाबालिग पीड़िता को जबरन वेश्यावृत्ति में शामिल किया और उनके साथ बलात्कार भी किया।
न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह की खंडपीठ ने कहा कि जो लोग अनैतिक तस्करी की गतिविधियों में शामिल हैं, वे भी समग्र रूप से समाज पर हानिकारक प्रभाव डालते हैं और वे बड़े पैमाने पर सभ्य समाज के लिए खतरनाक हैं।
4. "महिला को बदनाम करने के लिए याचिका दायर की गई": इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महिला को 50 हजार रूपये का जुर्माना लगाया
[नेत्रावती यादव और एक अन्य बनाम यू.पी. राज्य और तीन अन्य]
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बुधवार को 50,000/- रुपये की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को खारिज कर दिया। इसमें कहा गया कि यह एक महिला की छवि को बदनाम करने के लिए दायर की गई है, जिसका एकमात्र उद्देश्य उसे 'किसी तरह' कस्टडी में लेना था।
न्यायमूर्ति शमीम अहमद की पीठ धर्मेंद्र की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इसने एक महिला को पेश करने की मांग की, जिसके साथ उसने शादी करने का दावा किया था। उसे उसके पिता की अवैध हिरासत से मुक्त करने के लिए याचिका दायर की थी।
5. "सामाजिक मानदंडों के खिलाफ पुरुष अधिनियम; महिला को बदनाम करने के लिए याचिका दायर": इलाहाबाद हाईकोर्ट
(प्रीतोष यादव बनाम यूपी राज्य और पांच अन्य के माध्यम से शिवानी गुप्ता)
उच्च न्यायालय ने अपने कथित प्रेमी के एक लड़की की कस्टडी की मांग करने वाले एक व्यक्ति द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को खारिज कर दिया। इसने खुद को अदालत के सामने पेश करते हुए आरोपों से इनकार किया कि उसे उसके पिता द्वारा अवैध रूप से कस्टडी में लिया गया है। इसलिए, न्यायमूर्ति उमेश कुमार की खंडपीठ ने बंदी की याचिका दायर करने में व्यक्ति की कार्रवाई को "अवैध और उस समाज के मानदंडों के खिलाफ" कहा। इसके साथ ही कोर्ट ने उसके खिलाफ 5,000 के जुर्माना के साथ उसकी याचिका को खारिज कर दिया।
6. "ऐसी घटनाओं के कारण श्रद्धा और विश्वास घट रहा है": इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने नाबालिग से बलात्कार के आरोपी साधु को जमानत देने से इनकार किया
[भूतनाथ बनाम यूपी राज्य और अन्य]
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पिछले हफ्ते नाबालिग पीड़िता/लड़की से बलात्कार के आरोपी एक साधु (बाबा) को यह कहते हुए जमानत देने से इनकार कर दिया कि वह पीड़िता के पिता को जानता था और अक्सर उसके घर आता था।
न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह की खंडपीठ ने कहा:
"इस मामले में एक असहाय लड़की को आरोपी ने कुचल दिया था। यौन उत्पीड़न का कृत्य किसी भी लड़की के लिए या समाज में उसकी सामाजिक स्थिति की परवाह किए बिना आघात और आतंक पैदा करता है ... वास्तव में अपराध न केवल पीड़िता के खिलाफ है, यह पूरे समाज के खिलाफ भी है। यह न्यायालय से उचित निर्णय की मांग करता है और ऐसी मांग के लिए कानून के न्यायालय कानूनी मानकों के भीतर जवाब देने के लिए बाध्य हैं। "
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7. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 14 साल की रेप पीड़िता की प्रेग्नेंसी टर्मिनेशन की अनुमति दी; राज्य सरकार को सभी मेडिकल खर्च वहन करने का निर्देश दिया
[माँ गंगा पक्का महल ट्रस्ट बनाम यूपी राज्य और 6 अन्य]
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने मंगलवार को एक 14 वर्षीय लड़की के प्रेग्नेंसी टर्मिनेशन करने की अनुमति देते हुए कहा कि वह बलात्कार की शिकार है और एक अवांछित गर्भावस्था को ले जी रही है। यह उस कम उम्र लड़की के लिए आघात और मानसिक प्रताड़ना का कारण है। चूंकि नाबालिग लड़की एमटीपी अधिनियम 1971 की धारा 3 द्वारा सीमित अवधि के भीतर 20 सप्ताह और तीन दिनों की गर्भवती है और पीड़ित को जीवन के जोखिम को ध्यान में रखते हुए मुख्य चिकित्सा अधिकारी, खीरी को 24 घंटे के भीतर प्रेग्नेंसी टर्मिनेशन कराने की व्यवहार्यता की जांच करने के लिए एक मेडिकल बोर्ड का गठन करने का निर्देश दिया।
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8. ''महिला के पवित्र शरीर के खिलाफ अपराध, गरिमा का दफन'': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नाबालिग लड़की से सामूहिक बलात्कार करने के आरोपी को अग्रिम जमानत देने से इनकार किया
[छोटू @ सुनील कुमार बनाम यूपी राज्य। और अन्य।]
यह रेखांकित करते हुए कि महिलाओं के खिलाफ अपराध अंधेरे में गरिमा का एक राक्षसी दफन है, और यह एक महिला के पवित्र शरीर और समाज की आत्मा के खिलाफ भी है, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह एक नाबालिग से सामूहिक बलात्कार करने के आरोपी एक व्यक्ति को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया।
न्यायमूर्ति चंद्रधारी सिंह की पीठ ने आरोपी को यह कहते हुए जमानत देने से इनकार कर दिया कि नाबालिग पीड़िता ने अपने सीआरपीसी की धारा 164 के बयान में आवेदक और अन्य सह-आरोपी पर सामूहिक बलात्कार करने के विशिष्ट आरोप लगाए हैं।
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9. "पीड़ित को बेरहमी से कुचला गया; महिला इस तरह के फैशन में इस्तेमाल होने वाली वस्तु नहीं": इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सामूहिक बलात्कार के आरोपी को जमानत देने से इनकार किया
[वाशु बनाम राज्य और दो अन्य]
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक रेप आरोपी को जमानत देने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा, आरोपी सितंबर 2020 हुई घटना में शामिल था, जिसमें पीड़िता के शरीर को "आदिम होमो सेपियंस ने कुचला और मसल दिया।" जस्टिस राहुल चतुर्वेदी की खंडपीठ ने कहा कि महिलाएं इस प्रकार इस्तेमाल की जाने वाली वस्तु नहीं है।
उन्होंने जमानत याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि आरोपी द्वारा कथित रूप से किए गए अपराध के प्रति सभ्य समाज में कोई सहानुभूति नहीं है।
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1. 'राज्य के कितने पुलिस स्टेशनों में महिलाओं के लिए टॉयलेट नहीं हैं?' इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से पूछा
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष विभिन्न लॉ कॉलेजों के छात्रों द्वारा एक याचिका दायर की गई है, जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार को ऐसे पुलिस स्टेशनों में महिलाओं के शौचालयों के निर्माण को सुनिश्चित करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई है, जहां लेडिज़ टॉयलेट का निर्माण नहीं हुआ है।
याचिका में यह भी निर्देश देने की मांग की गई है कि राज्य सरकार यह सुनिश्चित करे कि इस तरह के शौचालयों में शौचालय, पानी, बिजली, पंखा, डोरबर्न जैसी सभी आवश्यक सुविधाएं हों, जिससे महिलाओं की निजता और गरिमा का ध्यान रखा जा सके।
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2. "BSNL ने गैरकानूनी रूप से जमीन पर कब्ज़ा किया" : सरकारी कंपनी से इस तरह के आचरण की उम्मीद नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
[तसीरुल निशा बनाम भारत संचार निगम लिमिटेड के माध्यम से, इसका जे.टी.ओ., नई दिल्ली और अन्य]
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यह देखते हुए कि राज्य की कंपनी भारत संचार नागम लिमिटेड (बीएसएनएल), जो कि एक सरकारी कंपनी है, अदालत के समक्ष मौजूद याचिककर्ता की भूमि पर अवैध कब्जा कर रही है, सोमवार (01 फरवरी) को बीएसएनएल के प्रति अपनी नाराजगी व्यक्त की।
न्यायमूर्ति देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति मनीष कुमार की खंडपीठ एक तसिरुल निशा की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने अदालत के समक्ष यह कहा कि बी.एस.एन.एल अभी भी बिना किराया चुकाए उसकि जमीन का उपयोग कर रहा है।
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3. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य में आंगनवाड़ी परियोजनाओं के कार्यान्वयन पर यूपी सरकार से जवाब मांगा
[निशांत चंद्र और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य।]
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य में आंगनबाड़ियों की स्थिति पर यूपी सरकार से पोषण कार्यक्रमों के संबंध में जवाब मांगा। मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमश्री की खंडपीठ ने राज्य सरकार के संबंधित विभाग को निर्देश देते हुए टिप्पणी करते हुए कहा, "रिट के लिए यह याचिका एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, जिसमें पोषण आहार से संबंधित योजना सहित आंगनवाड़ी परियोजनाओं को लागू करना है।" इसके साथ ही कोर्ट ने राज्य सराकर को एक महीने के भीतर इस पर हलफनामा दायर करने को कहा।
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5. न्यायालय की अनुमति के बाद ही उत्तर प्रदेश शैक्षिक सेवा न्यायाधिकरण की स्थापना करें: इलाहाबाद हाईकोर्ट
[शिक्षा न्यायाधिकरण के पुन: गठन में]
मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की खंडपीठ ने आदेश दिया कि उत्तर प्रदेश शिक्षा सेवा न्यायाधिकरण की स्थापना से पहले इसकी अनुमति की आवश्यकता है, जो वकीलों की चल रही हड़ताल का विषय है। सरकार से यह भी अनुरोध किया गया कि प्रयागराज और लखनऊ में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के बार एसोसिएशनों के प्रतिनिधियों को उनकी मांगों के संबंध में विचार-विमर्श करने के लिए आमंत्रित किया जाए, जो विभिन्न डिमांड चार्टर्स द्वारा उत्तेजित किए जा रहे हैं।
6. यूपी पंचायत चुनाव- 'COVID-19 के कारण 30 दिन के भीतर मौत होने पर परिवार को मुआवजा देने की नीति पर फिर से विचार करें': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार से कहा
(केस - कुसुम लता यादव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 4 अन्य)
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से कहा है कि वह यूपी पंचायत चुनाव कार्यकर्ताओं के परिवार को मुआवजा प्रदान करने के लिए अपनी नीति पर फिर से विचार करे, जिनकी ड्यूटी के दौरान COVID से अनुबंध करने के 30 दिनों के भीतर मृत्यु हो गई।
न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति विक्रम डी. चौहान की खंडपीठ का प्रथम दृष्टया विचार है कि उत्तर प्रदेश सरकार की मुआवजा नीति के खंड 12 में निहित COVID-19 के 30 दिनों के भीतर मृत्यु का प्रतिबंध किसी तर्कसंगत वर्गीकरण पर आधारित नहीं है।
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7. किस कानून के तहत शिया वक्फ बोर्ड-प्रशासक नियुक्त किया गया जब वक्फ अधिनियम इसकी अनुमति नहीं देता?: इलाहाबाद उच्च न्यायालय
[असद अली खान बनाम यू.पी. राज्य के माध्यम से प्रिं. सचिव अल्पसंख्यक कल्याण/वक्फ, लखनऊ, और अन्य]
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार से यह स्पष्ट करने के लिए कहा कि किस कानून के तहत उसने शिया वक्फ बोर्ड में एक प्रशासक नियुक्त किया है, यह देखते हुए कि वक्फ अधिनियम 1995 इसकी अनुमति नहीं देता है।
आगे यह देखते हुए कि एक प्रशासक को केवल 16 मार्च 2021 को नियुक्त किया गया था, न्यायमूर्ति देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति मनीष कुमार की खंडपीठ ने इसे 'परेशान करने वाला' पाया क्योंकि यह देखा गया कि वक्फ अधिनियम 1995 की योजना के तहत राज्य सरकार में कोई अधिकार निहित नहीं है। एक प्रशासक नियुक्त करने के लिए।
8 "जेल में आवेदक को राज्य/अभियोजक की दया पर नहीं छोड़ा जा सकता": इलाहाबाद हाईकोर्ट ने काउंटर एफिडेविट/रिपोर्ट समय पर न दाखिल करने पर नाराजगी व्यक्त की
[अनमोल रस्तोगी बनाम यूपी राज्य]
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि पर्याप्त समय मिलने के बावजूद, लगभग हर मामले में, AGA समय पर काउंटर एफिडेविट और मृतक के विसरा रिपोर्ट देने में विफल रहते हैं।
न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी की खंडपीठ ने सख्त तौर पर टिप्पणी करते हुए कहा कि, "राज्य के पक्ष से न्यायालय को पर्याप्त सहयोग नहीं मिल रहा है। यह दयनीय स्थिति है और न्यायालय राज्य के इस तरह के रवैये पर अपनी आपत्ति दर्ज करता है।"
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9. अपील दायर करने का निर्णय लेने से पहले मामलों की उचित रूप से जांच करें, जब कोई त्रुटि न हो तो अपील दायर करने से बचें: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से कहा
[यू.पी. राज्य बनाम गुरुचरण उर्फ सानी सरदारे और अन्य]
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में उत्तर प्रदेश राज्य सरकार को यह निर्देश दिया कि अपील दायर करने का निर्णय लेने से पहले मामलों की उचित जांच करें। "अन्यथा, यह न्यायालयों के साथ-साथ सरकारी अधिवक्ता के कार्यालय पर एक अनावश्यक बोझ का कारण बनता है", अदालत ने आगे जोड़ते हुए कहा। एक मामले से निपटते हुए, जिसमें दिए गए आदेश में कोई त्रुटि नहीं पाते हुए (जो अपील दायर करने के फैसले को सही ठहरा सके), न्यायमूर्ति मुनीश्वर नाथ भंडारी और न्यायमूर्ति शमीम अहमद की खंडपीठ ने निर्देश दिया, "राज्य सरकार को ऐसे मामले में अपील दायर करने से बचना चाहिए जहां कोई त्रुटि न हो।"
10. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ई-नोटिस स्वीकार नहीं करने पर यूपी सरकार को फटकार लगाई
[मो. अहमद व अन्य बनाम यूपी और अन्य राज्य]
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुधवार को यूपी सरकार को COVID-19 महामारी के बीच केवल उनके द्वारा दायर याचिकाओं / आवेदनों की प्रतियों पर सुनवाई के लिए अपने घरों से बाहर निकलने के लिए मजबूर करने के लिए यूपी सरकार की खिंचाई की।
न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता और न्यायमूर्ति गौतम चौधरी की खंडपीठ ने कहा, "फिलहाल, महामारी के कारण अदालत की कार्यवाही वर्चुअल मोड द्वारा आयोजित की जा रही है। व्यक्तियों के बीच शारीरिक संपर्क से बचने के लिए इस न्यायालय द्वारा वर्चुअल मोड द्वारा रिट याचिका दायर करने के संबंध में विभिन्न छूट दी गई हैं, ताकि कोई भी किसी को लंबी दूरी की यात्रा करने या शारीरिक रूप से केवल याचिका दायर करने के उद्देश्य से हाईकोर्ट में आने के लिए मजबूर नहीं किया जा सके। ऐसे परिदृश्य में राज्य के प्रतिवादियों की ओर से अपने कार्यालय में याचिका की हार्ड कॉपी पर सुनवाई करने का आग्रह स्वीकार्य नहीं है। विशेष रूप से जब ई-मेल द्वारा नोटिस की सेवा अब कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त सेवा का एक तरीका है।"
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14. लोकतांत्रिक राज्य व्यवस्था में कानून बनाकर अपराध को नियंत्रित करना विधायिका का सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्य: इलाहाबाद उच्च न्यायालय
[अर्जुन बनाम यू.पी. और 2 अन्य जुड़े मामलों के साथ]
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि उचित कानून बनाकर अपराध को नियंत्रित करना एक लोकतांत्रिक राज्य व्यवस्था में विधायिका का सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्य है। इस कारण नागरिकों की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरों को रोकना आवश्यक है।
न्यायमूर्ति सूर्य प्रकाश केसरवानी और न्यायमूर्ति शमीम अहमद की खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश गैंगस्टर्स और असामाजिक गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1986 का जिक्र करते हुए कहा कि इस कानून का उद्देश्य ऐसे अपराधों पर अंकुश लगाना है, जो समाज में महामारी बन गए हैं।
अदालत ने कहा, "विधायिका ने महसूस किया है कि गैंगस्टरों की गतिविधियों में कटौती की जानी चाहिए और तदनुसार, समाज में स्थिरता स्थापित करने के लिए ऐसी गतिविधियों के साथ कठोर चित्रण प्रदान किया जाना चाहिए जहां नागरिक शांति से रह सकें और सुरक्षित जीवन का आनंद ले सकें।"
15. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अनुसूचित जनजाति श्रेणी के तहत गोंड उप-जातियों को नामित करने के उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश को रद्द किया
[नायक जन सेवा संस्थान बनाम यूपी राज्य और 2 अन्य]
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के उस आदेश को रद्द किया, जिसके तहत दो गोंड उप-जातियों - नायक और ओझा को अनुसूचित जनजाति (एसटी) की श्रेणी में नामित किया गया था।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मुनीश्वर नाथ भंडारी और न्यायमूर्ति राजेंद्र कुमार-चतुर्थ की खंडपीठ ने कहा कि यूपी सरकार को गोंड जाति या उसके पर्यायवाची / उपजाति नायक और ओझा को अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में नामित करने की अनुमति नहीं है।
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16 "प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ" : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बीफ बेचने के लाइसेंस कैंसिल करने के यूपी सरकार के आदेश को रद्द किया
(इकरार हुसैन बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य।)
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक खाद्य सुरक्षा अधिकारी के एक आदेश को रद्द कर दिया, जिसने खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 के तहत इकरार हुसैन नाम के एक व्यक्ति को प्राप्त खुदरा विक्रेता लाइसेंस रद्द कर दिया था, जबकि यह लाइसेंस 21 जनवरी, 2022 तक वैध था। लाइसेंस रद्द करने का आधार यह था कि याचिकाकर्ता खुदरा विक्रेता हुसैन भैंस का मांस बेचने का व्यवसाय करता है, जिससे एक विशेष समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंची।
न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता और न्यायमूर्ति दीपक वर्मा की खंडपीठ ने कहा कि सरकारी वकील को दिए गए निर्देशों में उपरोक्त याचिका से इनकार नहीं किया गया और न ही निर्देशों के साथ ऐसी कोई सामग्री संलग्न की गई, जो यह दर्शाए कि कोई नोटिस या सुनवाई का अवसर आक्षेपित आदेश पारित करने से पूर्व याचिकाकर्ता को दिया गया हो।
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24 अगस्त 2009 से पहले रिटायर्ड हुए पीएमएस डॉक्टर संशोधित 'नॉन-प्रैक्टिसिंग भत्ते' के हकदार: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार के आदेश को रद्द किया
(डॉ अविनाश चंद्र श्रीवास्तव और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य)
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार के एक आदेश को खारिज़ कर दिया, जिसमें 24 अगस्त 2009 से पहले रिटायर्ड हुए प्रांतीय चिकित्सा सेवा (पीएमएस) के डॉक्टरों को संशोधित एनपीए (नॉन-प्रैक्टिसिंग भत्ते) का लाभ देने से इनकार किया गया था।
कोर्ट ने निर्देश किया सरकार के आदेश के बाद वसूली गई एनपीए राशि को तीन महीने के भीतर वापस किया जाए। राज्य की दलील कि याचिकाकर्ताओं को संशोधित एनपीए लाभ देने में वित्तीय बाधाएं हैं, के जवाब में जस्टिस आलोक माथुर की पीठ ने जोर देकर कहा कि राज्य कर्मचारियों के वैधानिक बकाया का भुगतान करने के लिए बाध्य है, वह वित्तीय बाधाओं का हवाला देते हुए अपनी देयता से बच नहीं सकता है।
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18. धार्मिक स्थलों के नाम पर अनधिकृत निर्माण से सार्वजनिक भूमि को कैसे बचाया जाएगा: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यूपी सरकार से पूछा
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को एक विस्तृत योजना का खुलासा करते हुए एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने और परिणामी सरकारी कार्रवाई का प्रस्ताव देने के लिए कहा कि कैसे सार्वजनिक भूमि को धार्मिक स्थलों के नाम पर अनधिकृत निर्माण से बचाया जा रहा है।
न्यायमूर्ति अजीत कुमार की खंडपीठ एक अवमानना याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें यह आरोप लगाया गया था कि राज्य सरकार ने 2013 के रिट-सी संख्या- 26941 में पारित न्यायालय के आदेश का पालन नहीं किया था।
19 "डीएम की निष्क्रियता के कारण अपरिहार्य आरईआरए मामले कोर्ट में आ रहे हैं": इलाहाबाद एचसी ने जीबी नगर डीएम सुहास एलवाई को व्यक्तिगत रूप से पेश होने को कहा
[प्रिया कपाही और एक अन्य बनाम यूपी राज्य और पांच अन्य]
उच्च न्यायालय ने गौतमबुद्धनगर के जिलाधिकारी सुहास एलवाई की व्यक्तिगत रूप से पेश होने को कहते कहा कि उनकी निष्क्रियता के कारण 'अपरिहार्य' रेरा मामले अदालत में आ रहे थे।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश (एसीजे) मुनीश्वर नाथ भंडारी और न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल की खंडपीठ ने उन्हें कई मामलों में रेरा प्राधिकरण द्वारा जारी किए गए वसूली प्रमाण पत्र के संदर्भ में अपनी निष्क्रियता को स्पष्ट करने के लिए 4 अक्टूबर, 2021 को अदालत के समक्ष उपस्थित रहने के लिए कहा है।
22. पटाखों की बिक्री के लिए सुरक्षित क्षेत्रों की पहचान करना प्रशासन की जिम्मेदारी: इलाहाबाद हाईकोर्ट
[मनोज मित्तल बनाम भारत संघ और पांच अन्य]
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि यह प्रशासन की जिम्मेदारी है कि वह सुरक्षित क्षेत्रों की पहचान करे जहां पटाखों की बिक्री की अनुमति होगी।
न्यायमूर्ति अजय भनोट की खंडपीठ मनोज मित्तल की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ता के पटाखों के भंडारण और बिक्री के संबंध में लाइसेंस के नवीनीकरण के आवेदन को सहारनपुर जिला प्रशासन ने इस साल की शुरुआत में खारिज कर दिया था।
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23. राज्य को लोगों की जमीन लेने और मुआवजा नहीं देने की उम्मीद- इलाहाबाद एचसी ने राज्य के मुख्य सचिवों के हलफनामा दायर को कहा
[जीत नारायण यादव और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य।]
इस बात पर जोर देते हुए कि राज्य से लोगों की जमीन लेने और मुआवजे का भुगतान नहीं करने की उम्मीद नहीं है, उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश राज्य सरकार के अतिरिक्त मुख्य सचिवों से उन लोगों की शिकायत के संबंध में व्यक्तिगत हलफनामा मांगा जो उनकी भूमि के लिए मुआवजे की मांग करते हैं।
मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल की खंडपीठ तीन याचिकाकर्ताओं की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इसमें कहा गया कि उनकी जमीन ले ली गई। हालांकि, उन्हें कोई मुआवजा नहीं दिया गया था।
24. "सही निर्णय लेने में दुविधा हो तो महात्मा गांधी के 'जंतर' का इस्तेमाल करें": इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के अधिकारियों को बताया
[उन्नति प्रबंधन कॉलेज और 4 अन्य बनाम राकेश कुमार, निदेशक]
एक महत्वपूर्ण अवलोकन में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार के अधिकारियों से कहा कि जब भी वो संदेह से घिरे हों या किसी निर्णय को लेकर दुविधा में हो तो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जंतर का इस्तेमाल करें। जस्टिस अजय भनोट की खंडपीठ 15 मार्च, 2021 के न्यायालय के आदेश के उल्लंघन के कारण दायर अवमानना याचिका से निपट रही थी, जो सबसे निचले तबके के जरूरतमंद छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान करने से संबंधित थी।
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25. इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यूपी सरकार, उसके अधिकारियों और समितियों को गवाह संरक्षण योजना लागू करने का निर्देश दिया
[मिथलेश नारायण तिवारी बनाम यूपी राज्य और अन्य]
उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार और उसके सभी संबंधित अधिकारियों/समितियों को गवाह संरक्षण योजना, 2018 को तत्काल लागू करने का निर्देश दिया।
यह निर्देश न्यायमूर्ति सूर्य प्रकाश केसरवानी और न्यायमूर्ति विकास बुधवार की खंडपीठ से आया, जो एक याचिकाकर्ता मिथलेश नारायण तिवारी की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जो 2018 की हत्या के मामले में गवाह है, और सुरक्षा के लिए उनका आवेदन जिला स्तर द्वारा दो बार खारिज कर दिया गया था। समिति/पुलिस अधीक्षक, प्रयागराज।
26. आजादी के 75 साल बाद भी छोटे किसानों को रिश्वत देने के लिए मजबूर करना सबसे दुर्भाग्यपूर्ण: इलाहाबाद हाईकोर्ट
[रसूल अहमद बनाम यूपी राज्य थ्रू प्रिंस, सचिव, राजस्व विभाग लखनऊ और अन्य]
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि आजादी के 75 साल बाद भी छोटे किसानों को रिश्वत देने के लिए मजबूर करना सबसे दुर्भाग्यपूर्ण है। न्यायमूर्ति मनीष कुमार और न्यायमूर्ति राजन रॉय की खंडपीठ ने अपीलीय अदालत के आदेश के खिलाफ एक सरकारी कर्मचारी (रिश्वत मांगने के आरोप में दोषी) द्वारा दायर एक अपील को खारिज किया। दरअसल, निचली अदालत द्वारा सुनाई गई सजा को अपीलीय अदालत ने बरकरार रखा था।
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27. [49 मामले 'गलत तरीके से एक आदमी पर लगाए गए] "राज्य की भारी-भरकम शक्ति का प्रयोग अदालत के हस्तक्षेप के लिए कहता है": इलाहाबाद एचसी
[गौरव @ गौरा बनाम यूपी राज्य]
एक व्यक्ति से संबंधित एक मामले से निपटने के लिए, जिसके खिलाफ 23 वर्षों की अवधि में उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा 49 मामले दर्ज किए गए थे, न्यायालय ने कहा कि राज्य की शक्तियों के भारी-भरकम प्रयोग के परिणामस्वरूप अप्रत्याशित परिस्थितियां उत्पन्न होती हैं, जो जीवन के लिए शरारत को समझने के लिए हस्तक्षेप की मांग करती हैं।
यह देखते हुए कि यूपी से इसकी उम्मीद नहीं है। पुलिस, न्यायमूर्ति विवेक कुमार सिंह की खंडपीठ ने पिछले महीने नोट किया था कि अनुशासित बल के अधिकारियों से इस तरह की कठोर कार्रवाई की कल्पना नहीं की जा सकती है।
28. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डीजीपी, लखनऊ सीपी को दो व्यक्तियों द्वारा 'अवैध रूप से बंदी' बनाई गई 15 वर्षीय लड़की को बरामद करने का निर्देश दिया
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दूसरे धर्म के दो युवकों की अवैध हिरासत से एक हिंदू नाबालिग लड़की का पता लगाने के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस के सुस्त रवैये पर निराशा व्यक्त करते हुए मंगलवार को डीजीपी और पुलिस आयुक्त (सीपी), लखनऊ को मामले में आवश्यक कार्रवाई करने का निर्देश दिया। न्यायमूर्ति विकास कुंवर श्रीवास्तव की खंडपीठ ने डीजीपी और सीपी, लखनऊ को नाबालिग लड़की को बरामद करने और 23 दिसंबर को अदालत के समक्ष पेश करने का निर्देश दिया।
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29. हत्या के दोषियों को तीन बार मिली COVID पैरोल: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार से जवाब मांगा, जांच के आदेश
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हत्या के चार दोषियों को COVID पैरोल पर रिहा करने के उत्तर प्रदेश सरकार के कदम पर सवाल उठाते हुए सोमवार को राज्य सरकार के मुख्य सचिव को इस मामले की जांच करने का निर्देश दिया कि किन परिस्थितियों में दोषी/अपीलकर्ता को तीन बार पैरोल पर रिहा किया गया।
जस्टिस विवेक वर्मा और जस्टिस रमेश सिन्हा की खंडपीठ ने यह रिपोर्ट भी मांगी है कि ऐसे कितने दोषसिद्ध व्यक्ति हैं, जिन्हें ट्रायल कोर्ट ने मृत्युदंड और आजीवन कारावास की सजा दी गई है, और अन्य दोषियों, जो सात साल से अधिक की सजा वाले अपराधों के लिए जेल में हैं, उन्हें यूपी सरकार ने रिहा किया है।