"चार दिनों का अस्पष्टीकृत ‌विलंब": इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एनएसए के तहत उस व्यक्ति की हिरासत को रद्द किया, जिसने कथित तौर पर पुलिस बल पर हमला किया था

LiveLaw News Network

11 Nov 2021 12:33 PM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत पारित एक डिटेंशन ऑर्डर को रद्द कर दिया। आदेश यूनियन ऑफ इंडिया द्वारा याचिकाकर्ता/बंदी के अभ्यावेदन के निस्तारण में चार दिनों के अस्पष्टीकृत विलंब के कारण दिया गया था।

    यह आदेश जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस सरोज यादव की खंडपीठ ने बंदी सोनू@मोहम्मद ​​इश्तियाक अपनी मां शमीम बानो की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया।

    तथ्य

    कथित तौर पर बाराबंकी के तहसील राम सनेही घाट में कुछ लोग डिप्टी कलेक्टर और सर्कर ऑफिसर के कार्यालय और आवासों से सटी सरकारी जमीन पर अवैध मकान बनाकर रह रहे थे।

    आरोप के अुनसार उन्होंने अनधिकृत रूप से एक मार्ग का निर्माण भी किया था, जिसका उपयोग संदिग्ध श्रेणी के व्यक्त‌ि कर रहे थे, जिससे सरकारी रिकॉर्ड और अन्य संपत्तियों को खतरा हो रहा था और सरकारी काम भी बाधित हो रहा था।

    यह भी पाया गया कि सरकारी भूमि पर कुछ कमरों का निर्माण अनधिकृत रूप से किया गया था और उनका उपयोग "नमाज" के लिए किया गया था। इसलिए तहसीलदार राम सनेही घाट ने इस संबंध में एक नोटिस जारी किया, लेकिन अनधिकृत रहने वालों से कोई जवाब नहीं मिला और इस प्रकार तहसीलदार प्रशासन ने दीवार का निर्माण करवाकर अनधिकृत मार्ग को बंद कर दिया, लेकिन दोनों कानूनी मार्गों को खुला रखा जो पहले से ही मौजूद थे।

    इसी के अनुसरण में 19.03.2021 को ''नमाज'' के बाद याचिकाकर्ता और उसके साथी घातक हथियारों से लैस मौके पर पहुंचे और उन्होंने पुलिस बल पर हमला कर दिया और उन्होंने राज्य सरकार की नीतियों और अवैध अतिक्रमण को हटाने का विरोध किया।

    इस घटना में कई पुलिस कर्मी घायल हो गए और सार्वजनिक व्यवस्था भंग हो गई। याचिकाकर्ता को कई अन्य सह अभियुक्तों के साथ मौके पर ही गिरफ्तार किया गया। याचिकाकर्ता के कब्जे से देशी पिस्टल बरामद किया गया।

    याचिकाकर्ता के खिलाफ धारा 120-बी, 147, 148, 149, 323, 504, 506, 307, 332, 333, 336, 352, 427, 34 और 188 आईपीसी और आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम की धारा 7 के तहत मामला दर्ज किया गया था।

    चूंकि याचिकाकर्ता को संबंधित न्यायालय द्वारा जमानत दी गई है, इसलिए याचिकाकर्ता को परेशानी पैदा करने से रोकने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत कार्यवाही की गई। इसलिए, 11 अप्रैल, 2021 को आक्षेपित ड‌िटेंशन ऑर्डर पारित किया गया, जिसमें कहा गया था कि ड‌िटेंशन ऑर्डर सार्वजनिक व्यवस्था और सार्वजनिक शांति बनाए रखने के लिए पारित किया गया था।

    याचिकाकर्ता का तर्क

    याचिकाकर्ता/बंदी ने यह तर्क दिया कि केंद्र सरकार, गृह मंत्रालय, नई दिल्ली की ओर से उनके अभ्यावेदन के निपटान में अनुचित देरी हुई थी, क्योंकि 18 मई, 2021 के अभ्यावेदन पर संबंधित प्राधिकारी द्वारा एक महीने से अधिक की देरी के बाद 25 जून, 2021 को निर्णय लिया गया था।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    शुरुआत में, राज्य सरकार के हलफनामे को देखते हुए कोर्ट ने कहा कि हिरासत में लिए गए व्यक्ति के प्रतिनिधित्व को तय करने में राज्य सरकार की ओर से कोई देरी नहीं हुई।

    हालांकि, यूनियन ऑफ इंडिया की ओर से दायर हलफनामे पर विचार करते हुए न्यायालय ने कहा कि 18 मई, 2021 को बंदी के अभ्यावेदन के साथ-साथ हिरासत में लेने वाले प्राधिकारी की पैरा वार टिप्पणियों को 18 जून, 2021 को यूनियन ऑफ इंडिया के गृह सचिव के विचारार्थ प्रोसेस किया गया था। अभ्यावेदन को खारिज कर दिया गया और बंदी को 25 जून, 2021 को अस्वीकृति के बारे में सूचित किया गया।

    इस पृष्ठभूमि में न्यायालय ने कहा, "यूनियन ऑफ इंडिया की ओर से दायर हलफनामे में 19.06.2021 और 20.06.2021 को हुई देरी की व्याख्या की गई है (19 और 20 जून 2021 को शनिवार और रविवार को अवकाश था), लेकिन 21.06.2021 से 24.06.2021 तक की देरी पर हलफनामा मौन है। इस प्रकार चार दिनों की देरी की व्याख्या नहीं की गई है।"

    इसलिए, न्यायालय ने माना कि यूनियन ऑफ इंडिया की ओर से चार दिनों के अस्पष्टीकृत ‌विलंब के कारण, निवारक निरोध की निरंतरता खराब रही।

    इस संबंध में, कोर्ट ने राजम्मल बनाम तमिलनाडु राज्य और अन्य: (1999) 1 एससीसी 417 और हरीश पाहवा बनाम यूपी राज्य: एआईआर 1981 एससी 1126 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लेख किया, जो बंदी द्वारा उनकी नजरबंदी के खिलाफ दायर अभ्यावेदन के शीघ्र निपटान से संबंधित है।

    कोर्ट ने इन चर्चाओं के आलोक में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को स्वीकार कर लिया और निरोध के आक्षेपित आदेशों और अन्य परिणामी आदेशों को रद्द कर दिया गया।

    केस शीर्षक - सोनू @ मोहम्मद इश्तियाक मां शमीम बानो के माध्यम से बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य

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