"इस देश के सामाजिक ताने-बाने की कीमत पर लिव-इन रिलेशन की अनुमति नहीं दी जा सकती": इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने पार्टनर के साथ रहने वाली विवाहित महिला पर पांच हजार रूपये का जुर्माना लगाया

LiveLaw News Network

6 Aug 2021 7:26 AM GMT

  • Allahabad High Court expunges adverse remarks against Judicial Officer

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में अपने पार्टनर के साथ रहने वाली एक विवाहित महिला की सुरक्षा याचिका खारिज किया और याचिकाकर्ता पर 5,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया। कोर्ट ने कहा कि इस देश के सामाजिक ताने-बाने की कीमत पर लिव-इन-रिलेशन की अनुमति नहीं दी जा सकती।

    न्यायमूर्ति डॉ कौशल जयेंद्र ठाकर और न्यायमूर्ति सुभाष चंद की खंडपीठ ने अपने पार्टनर के साथ उसके लिव-इन संबंध को अवैध संबंध बताते हुए कहा कि,

    "पुलिस को उन्हें सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश देना अप्रत्यक्ष रूप से ऐसे अवैध संबंधों को हमारी सहमति मानी जा सकती है।"

    विवाहित महिला ने तत्काल सुरक्षा याचिका दायर करते हुए कहा कि चूंकि वह अपने लिव-इन पार्टनर के साथ रह रही है, लेकिन उसका पति (प्रतिवादी संख्या 4) उनके शांतिपूर्ण जीवन को खतरे में डालने की कोशिश कर रहा है और इस प्रकार, उसने उसके खिलाफ सुरक्षा मांगी।

    विवाहित महिला ने इसके अलावा यह भी प्रस्तुत किया कि उसने याचिकाकर्ता संख्या 2 / लिव इन पार्टनर से शादी नहीं की है, लेकिन प्रतिवादी संख्या 4 (उसके पति) के उदासीन और अत्याचारी व्यवहार के कारण उसके साथ संबंध बना रही है।

    कोर्ट ने इस पर कहा कि अगर उसका पति याचिकाकर्ता नंबर 2 के घर में घुसा था, तो यह आपराधिक विवाद के दायरे में आता है, जिसके लिए वह देश में उपलब्ध आपराधिक तंत्र में जा सकती थी।

    कोर्ट ने आगे कहा कि,

    "लेकिन कोई भी कानून का पालन करने वाला नागरिक जो पहले से ही हिंदू विवाह अधिनियम के तहत विवाहित है, अवैध संबंधों के लिए इस न्यायालय की सुरक्षा की मांग नहीं कर सकता है, जो इस देश के सामाजिक ताने-बाने के दायरे में नहीं है। विवाह की पवित्रता तलाक को पूर्व मानती है। यदि उसका अपने पति से कोई मतभेद है और यदि हिंदू कानून उस पर लागू नहीं होता है तो उसे अपने पति से अलग होने के लिए समुदाय पर लागू कानून के अनुसार आगे बढ़ना होगा।"

    अदालत ने अंत में पक्षकारों को इस तरह की अवैधता की अनुमति नहीं दी क्योंकि आगे चलकर याचिकाकर्ता यह कह सकते हैं कि हमने उनके अवैध संबंधों को पवित्र कर दिया है और इसी के साथ अदालत ने याचिका खारिज कर दी।

    कोर्ट ने यह स्पष्ट करते हुए निष्कर्ष निकाला कि बेंच लिव-इन रिलेशनशिप के खिलाफ नहीं है, बल्कि अवैध संबंधों के खिलाफ है।

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    इलाहाबाद उच्च न्यायालय में इस साल जून में इसी प्रार्थना के साथ एक याचिका खारिज कर दी थी। कोर्ट ने देखा कि महिला पहले से ही शादीशुदा है और किसी अन्य पुरुष के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सुरक्षा याचिका खारिज कर दी और याचिकाकर्ता पर पांच हजार रूपये का जुर्माना लगाया था।

    न्यायमूर्ति कौशल जयेंद्र ठाकर और न्यायमूर्ति दिनेश पाठक की खंडपीठ ने कहा था कि,

    "हम यह समझने में विफल हैं कि इस तरह की याचिका को समाज में अवैधता की अनुमति कैसे दी जा सकती है।"

    इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने संबंध में रहने की इच्छा रखने वाले युवा जोड़े के मामले में कहा था कि यह लिव इन रिलेशनशिप के खिलाफ नहीं है और लेकिन एक जोड़े द्वारा दायर सुरक्षा याचिका को खारिज कर दिया था। याचिकाकर्ताओं में से एक के विवाह के निर्वाह के दौरान दायर किया गया था।

    इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक अन्य मामले में जून 2021 में लिव-इन रिलेशनशिप में एक महिला की सुरक्षा याचिका खारिज कर दी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उसने अपने पति की असामाजिक गतिविधियों को देखते हुए अपना वैवाहिक घर छोड़ दिया और अब लिव-इन रिलेशनशिप में मोहित के साथ रह रही है।

    न्यायमूर्ति सुनीता अग्रवाल और न्यायमूर्ति साधना रानी (ठाकुर) की खंडपीठ एक महिला की याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसने अपने पति से सुरक्षा की मांग की थी।

    राजस्थान उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं (महिला-पुरुष) की एक याचिका पर विचार किया था, जिन्होंने जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा की मांग की थी। राजस्थान उच्च न्यायालय ने यह ध्यान देने के बाद कि याचिकाकर्ता संख्या 2 (पुरुष) पहले से ही विवाहित है, ने फैसला सुनाया था कि,

    "एक विवाहित और अविवाहित व्यक्ति के बीच लिव-इन-रिलेशन की अनुमति नहीं है।"

    न्यायमूर्ति पंकज भंडारी की पीठ 29 साल की एक महिला और 31 साल के एक पुरुष की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा की मांग की थी।

    जून 2021 में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने एसएसपी, फरीदकोट को एक विवाहित महिला और एक अविवाहित पुरुष के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहने और निजी पक्षकारों के खिलाफ जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा की मांग की शिकायत पर गौर करने का निर्देश दिया था।

    न्यायमूर्ति विवेक पुरी की खंडपीठ ने याचिकाकर्ताओं (विवाहित महिला और अविवाहित पुरुष) की शिकायत पर विचार करने के लिए वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, फरीदकोट को निर्देश के साथ उनकी याचिका का निपटारा किया था।

    आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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