इलाहाबाद हाईकोर्ट ईयरली डाइजेस्ट 2021 : प्रमुख ऑर्डर/जजमेंट पार्ट- 1

LiveLaw News Network

31 Dec 2021 11:39 AM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट ईयरली डाइजेस्ट 2021 : प्रमुख ऑर्डर/जजमेंट पार्ट- 1

    साल 2021 के बीतने के साथ लाइव लॉ आपके लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट से महत्वपूर्ण अपडेट का ईयरली राउंड-अप लेकर आया है। इस ईयरली डाइजेस्ट में 250 आदेश और निर्णय शामिल हैं, जिन्हें विभिन्न विषय में विभाजित किया गया है। इसका पहला पार्ट यहां प्रस्तुत है-

    आपराधिक कानून के मामले

    1. अन्वेषण अधिकारी अग्रिम जमानत मामलों को आवश्यक गंभीरता से नहीं लेते: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य को उचित सहायता सुनिश्चित करने का निर्देश दिया

    [पवन कुमार यादव और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य ]

    यह देखते हुए कि अग्रिम जमानत मामले प्रकृति में 'गंभीर' होते हैं और इन्हें प्राथमिकता पर लिया जाना आवश्यक है, क्योंकि वे देश के नागरिकों की स्वतंत्रता से संबंधित होते हैं।

    इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में देखा, "बड़ी संख्या में ऐसे मामलों में यह पाया गया है कि अन्वेषण अधिकारी/सर्किल अधिकारी ऐसे मामलों को आवश्यक गंभीरता के साथ नहीं लेते हैं और उनके द्वारा बार-बार निर्देश/प्रति शपथपत्र या न्यायालय के समक्ष संबंधित रिकॉर्ड रखने के लिए समय मांगा जाता है।"

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    2. सीआरपीसी के तहत वैधानिक उपचार प्राप्त किए बिना एफआईआर दर्ज करने के क्षेत्राधिकार को लागू नहीं किया जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    [वसीम हैदर बनाम यूपी राज्य और अन्य।]

    इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने हाल ही में कहा कि सूचना देने वालों/शिकायतकर्ताओं को अपनी शिकायतों पर एफआईआर दर्ज करने के लिए पुलिस को निर्देश देने के लिए सीधे हाईकोर्ट के रिट अधिकार क्षेत्र का उपयोग नहीं करना चाहिए, बल्कि उन्हें पहले संहिता के तहत वैकल्पिक वैधानिक उपायों आपराधिक प्रक्रिया, जिला पुलिस अधीक्षक या मजिस्ट्रियल कोर्ट से संपर्क करने का लाभ उठाना चाहिए।

    जस्टिस चंद्र धारी सिंह और जस्टिस रमेश सिन्हा की खंडपीठ ने कहा, "एक शिकायतकर्ता ने यह सुनिश्चित करने के लिए वैधानिक रूप से उपाय किए कि उसकी शिकायत को उसके तार्किक अंत तक ले जाया जाए। इस प्रकार, उसे पहले उक्त उपायों का प्रयोग करना चाहिए और निश्चित रूप से असाधारण रिट उपचार का आह्वान नहीं कर सकता, भले ही अपराध पंजीकृत न हो और जांच में कोई प्रगति नहीं हुई।"

    3. अपील की सुनवाई के दौरान सत्र न्यायाधीश के पास ऐसा कोई न्यायिक अधिकार नहीं है जिसके अनुसार वह न्यायिक अधिकारी द्वारा दिए गए निर्णय की कमियां निकाले : इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोट ने कहा कि संयम, संतुलन और रिर्जव एक न्यायिक अधिकारी के सबसे बड़े गुण हैं और उसे कभी भी इन गुणों को छोड़ना नहीं चाहिए।

    न्यायमूर्ति आलोक माथुर की खंडपीठ एक न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा दायर एक अर्जी पर सुनवाई कर रहे थे। इस मामले में सत्र न्यायाधीश, हरदोई द्वारा उसके खिलाफ की गई टिप्पणी को रद्द करने के लिए न्यायालय के समक्ष प्रार्थना की थी, जबकि राज्य बनाम यमोहन सिंह (क्रिमिनल केस नंबर-909/2019) आपराधिक मामले में हरदोई ने अपना एक अलग फैसला सुनाया।

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    4. धारा 41ए सीआरपीसी: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 498 ए मामलों में मनमानी गिरफ्तारी से बचाव के लिए तय सुरक्षा उपायों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए

    [विमल कुमार और अन्य बनाम यूपी राज्य और अन्य]

    एक महत्वपूर्ण फैसले में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पुलिस अधिकारियों को, विशेषकर दहेज मामलों (498 ए आईपीसी) में स्वचालित / नियमित गिरफ्तारी को रोकने और सीआरपीसी की धारा 41 ए के तहत निर्धारित पूर्व शर्तों का कड़ाई से पालन करने के निर्देश दिए हैं।

    उच्च न्यायालय ने सभी मजिस्ट्रेटों को ऐसे पुलिस अधिकारियों के नामों को रिपोर्ट करने का निर्देश दिया, जिन्हें संभवतः यांत्रिक या दुर्भावनापूर्ण तरीके से गिरफ्तारी की हैं, ताकि उनके खिलाफ उचित कार्रवाई की जा सके।

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    5. सीआरपीसी की धारा 107 और धारा 116 के तहत मनमाने और अवैध तरीके से चालान रिपोर्ट पेश की गई : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार को फटकार लगाई

    [शिव कुमार वर्मा और एक अन्य बनाम यू.पी. राज्य और तीन अन्य]

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह उत्तर प्रदेश सरकार के वाराणसी के एसडीएम को फटकार लगाई, जिसने दो व्यक्तियों को शांति भंग करने के आरोप में "मनमाने और अवैध रूप से" से हिरासत में रखने का काम किया।

    न्यायमूर्ति सूर्य प्रकाश केसरवानी और न्यायमूर्ति शमीम अहमद की खंडपीठ शिव कुमार वर्मा की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इस याचिका में 12 अक्टूबर 2020 से 21 अक्टूबर 2020 तक सीआरपीसी की धारा 151, धारा 107 और धारा 116 के तहत वाराणसी के रोहनिया पुलिस थाने में अवैध हिरासत में रखने के बदले मुआवजे की मांग की गई थी।

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    6. 14 साल की कैद के बाद छूट के मामलों का पुनर्मूल्यांकन करें, भले ही अपील हाईकोर्ट में लंबित हो: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार से कहा

    [विष्णु बनाम उत्तर प्रदेश राज्य]

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को सभी जिलाधिकारियों को यह निर्देश देने के लिए कहा है कि वे 14 साल की कैद के बाद छूट के मामलों का पुनर्मूल्यांकन करें, भले ही ऐसे मामलों में अपील हाईकोर्ट में लंबित हों।

    जस्टिस डॉ कौशल जयेंद्र ठाकर और जस्टिस अजय त्यागी की खंडपीठ बलात्कार के एक दोषी की अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, विशेष न्यायालय (डकैती प्रभावित क्षेत्र), जिला कानपुर देहात द्वारा सुनाई गई आजीवन कारावास की सजा को चुनौती दी थी।

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    7. पति के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला-''पत्नी को चिकित्सा सहायता प्रदान करना, उसे अपराधबोध से मुक्त नहीं करेगा: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    [समीर अली खान बनाम यूपी राज्य]

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में उस पति की जमानत याचिका को खारिज कर दिया, जिस पर अपनी पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया गया था। पीठ ने कहा कि केवल अपनी पत्नी को चिकित्सा सहायता देना आवेदक को उसके आरोपों से मुक्त नहीं करेगा।

    न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी की खंडपीठ ने आगे कहा कि पति का निरंतर आचरण गलत रहा है। उसने अपनी पत्नी को अपने बेटे से मिलने की अनुमति भी नहीं दी थी, जो उसकी पत्नी के लिए गंभीर उदासीनता का कारण बन गया और गंभीर मनोवैज्ञानिक उथल-पुथल के इस चरण में उसके पास यह चरम कदम उठाने के सिवाय कोई विकल्प नहीं रह गया था।

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    8. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने साढ़े सात साल से अधिक समय से जेल में बंद हत्या के आरोपी को जमानत दी

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में साढ़े सात सालों से अधिक समय से जेल में बंद हत्या के एक आरोपी को जमानत दी। लंबे समय से जेल में बंद रहने के बावजूद ट्रायल कोर्ट में आरोपी के खिलाफ किसी भी भौतिक गवाह या सबूत को पेश नहीं किया जा सका था।

    आरोपी के तीसरे जमानत आवेदन को अनुमति देते हुए हाईकोर्ट ने कहा,

    "हालांकि, जिस अपराध के लिए आवेदक को आरोपित किया गया है, वह गंभीर है, लेकिन विचार के लिए यह भी एक प्रासंगिक कारक है कि आरोप दो गवाहों की गवाही पर आधारित है, जबकि दोनों में से किसी को भी सीबीआई ने पेश नहीं किया है, और मुकदमा 2013 से लंबित है। सीबीआई का जवाबी हलफनामा भी उस समय सीमा के संबंध में मौन है, जिसमें उन दोनों गवाहों को मुकदमे की कार्यवाही में पेश किया जाना है।"

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    9. ''समझौता संस्कृति व्यापक रूप से प्रचलित, मृतक का जीवन इतना सस्ता नहीं है जिसे दो व्यक्तियों के बीच निगोशिएट किया जा सके : इलाहाबाद हाईकोर्ट

    [रितेश चौहान बनाम यूपी राज्य]

    यह देखते हुए कि केस लड़ने वाले पक्षों के बीच 'समझौता संस्कृति' अब तेजी से प्रचलित हो रही है, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह कहा कि, ''मृतक का जीवन इतना सस्ता नहीं है, जिसे दो व्यक्तियों के बीच निगोशिएट किया जा सके।''

    न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी की खंडपीठ ने यह टिप्पणी एक जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए की। इस मामले में आवेदक के खिलाफ आईपीसी की धारा 498ए,304बी,120बी और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3/4 के तहत केस दर्ज किया गया था।

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    10.'पीड़िता की गवाही विश्वसनीय नहीं': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 20 साल जेल में बिताने वाले आरोपी को बलात्कार के मामले में बरी किया

    [विष्णु बनाम यूपी राज्य]

    इलाहाबाद हाईकोर्ट हाल ही में उस व्यक्ति के बचाव में आया है,जिसने झूठे बलात्कार के मामले में बीस साल जेल में बिता दिए हैं। कथित तौर पर एक भूमि विवाद के कारण एक महिला ने उसके खिलाफ झूठा बलात्कार का केस दायर किया था।

    न्यायमूर्ति डॉ कौशल जयेंद्र ठाकर और न्यायमूर्ति गौतम चैधरी की खंडपीठ ने एक विष्णु की रिहाई का आदेश पारित करते हुए,वर्ष 2003 में एक ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित आदेश को रद्द कर दिया है। ट्रायल कोर्ट ने आईपीसी की धारा 376 और 506 और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम, 1989 की धारा 3 (2) (वी) रिड विद 3 (1) (xii) के तहत विष्णु को दोषी करार दिया था।

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    11. पुलिस के मुखबिर के दरवाजे पर होने पर भी घटना की तत्काल रिपोर्टिंग रोक दी गई: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एफआईआर दर्ज करने में हुई देरी से हत्या के आरोपी को बरी किया

    [मुकेश तिवारी बनाम यूपी राज्य]

    जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस संजय कुमार पचोर की खंडपीठ ने एक आपराधिक अपील की अनुमति दी और कथित के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने में तीन घंटे 20 मिनट की देरी का हवाला देते हुए हत्या के अपराध के लिए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 के तहत पारित दोषसिद्धि के आदेश को रद्द कर दिया। कोर्ट ने माना कि उक्त देरी इस तथ्य के मद्देनजर 'अनुचित' थी कि घटना के तुरंत बाद पुलिस अधिकारी घटना स्थल पर पहुंचे।

    आदेश में कहा गया, "आम तौर पर कुछ घंटों की देरी विशेष रूप से रात की घटनाओं में महत्वपूर्ण नहीं माना जा सकता है, लेकिन यहां पुलिस मुखबिर के दरवाजे पर थी और घायल (प्रताप शंकर मिश्रा) को पुलिस द्वारा अस्पताल ले जाया गया था। मजरूबी चिट्ठी और एक तथाकथित गवाह के साथ, जो घटना स्थल पर मौजूद था और जो प्रत्यक्षदर्शी का भाई था, फिर भी घटना की तत्काल रिपोर्टिंग रोक दी गई। इससे पता चलता है कि या तो घटना नहीं देखी गई थी या यदि देखा जाता है तो हमलावर की पहचान निश्चित नहीं है, इसलिए अनुमान-कार्य ने एफआईआर में देरी की।"

    12. इच्छुक गवाहों के साक्ष्य को सावधानीपूर्वक जांच के साथ स्वीकार किया जाना चाहिए: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    [रामपाल सिंह और अन्य बनाम यूपी राज्य]

    इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माना है कि इच्छुक गवाह की गवाही, हालांकि स्वीकार्य है, लेकिन अदालत द्वारा रिकॉर्ड पर रखी गई अन्य सामग्रियों के साथ सावधानीपूर्वक जांच और पुष्टि के बाद स्वीकार किया जाना चाहिए।

    जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह की डिवीजन बेंच ने कहा, "किसी भी ठोस निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले एक इच्छुक गवाह को अधिक सावधानी से जांचना चाहिए।"

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    13. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चयन प्रक्रिया के दौरान एक उम्मीदवार के आपराधिक पूर्ववृत्त की जांच के लिए प्रक्रिया और साक्ष्य के मानक निर्धारित किए

    [सनी कुमार बनाम यूपी राज्य और अन्य।]

    जस्टिस अजय भनोट की एकल पीठ ने चयन के उद्देश्य से एक उम्मीदवार के आपराधिक इतिहास की जांच के लिए सक्षम प्राधिकारी द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया निर्धारित की। कोर्ट ने उस प्रकार की सामग्री को स्पष्ट किया जिस पर ऐसे प्राधिकरण द्वारा प्रमाण का मानक और इस उद्देश्य के लिए अन्य उत्तेजक/कम करने वाले कारक पर विचार किया जा सकता है।

    बेंच ने यह भी स्पष्ट किया कि इस तरह की जांच एक अदालत के समक्ष एक ट्रायल/दीवानी कार्यवाही से अलग है। इसलिए, सक्षम प्राधिकारी हमेशा अदालत के निष्कर्षों से बाध्य नहीं होता है, न ही यह हमेशा जांच अधिकारी की राय से बाधित होता है। यह आदेश सन्नी कुमार द्वारा दायर एक रिट याचिका पर आया है। सन्नी पुलिस अधीक्षक, जालौन द्वारा पारित एक आदेश से व्यथित है, जिसमें उसके खिलाफ कई आपराधिक मामलों की पृष्ठभूमि में यूपी पुलिस में कांस्टेबल के रूप में उसका चयन रद्द कर दिया गया।

    14. चार्जशीट दाखिल होने के बाद भी दी जा सकती है अग्रिम जमानतः इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में माना है कि आपराधिक मामले में चार्जशीट दायर होने के बाद भी अग्रिम जमानत दी जा सकती है। यह निर्णय न्यायमूर्ति सिद्धार्थ की एकल पीठ ने,8 दिसंबर को, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के एक लॉ स्टूडेंट आदिल की तरफ से दायर की गई प्री-अरेस्ट जमानत याचिका पर सुनवाई के बाद दिया है। आदिल के खिलाफ आईपीसी की धारा 307 (हत्या का प्रयास) और 504 (शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान करना) के तहत केस दर्ज किया गया था।

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    15. यदि कोई आवेदन/अनुरोध प्रस्तुत नहीं किया जाता है तो समयपूर्व रिहाई पर विचार करने वाली शर्त को हटाने पर विचार करें: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार से कहा

    [सत्यव्रत राय बनाम यूपी राज्य और अन्य]

    जस्टिस पंकज नकवी और जस्टिस विवेक अग्रवाल की खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार से आजीवन दोषियों की रिहाई के लिए बनाई गई नीति से एक प्रावधान को हटाने के लिए कहा। यह नोट किया गया कि एक अगस्त, 2018 की नीति में एक खंड है जो समय से पहले रिलीज पर विचार करने पर रोक लगाता है, यदि उसके साथ कोई आवेदन/अनुरोध नहीं है।

    16.'Covid-19 महामारी के कारण मौत की आशंका, अग्रिम जमानत दिए जाने के लिए एक वैध आधार है': इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को आपराधिक अपराध के आरोपी के जीवन के अधिकार से संबंधित एक बहुत ही महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि COVID-19 महामारी के कारण मौत की आशंका अग्रिम जमानत दिए जाने के लिए एक वैध आधार है।

    न्यायमूर्ति सिद्धार्थ की एकल पीठ द्वारा यह आदेश राज्य में अपर्याप्त चिकित्सा सुविधाओं को देखते हुए पारित किया गया है, जो सामान्य समय में सामान्य प्रक्रिया के अनुसार गिरफ्तार किए गए आरोपी व्यक्तियों के COVID19 के कारण जीवन के खतरे को देखते हुए अग्रिम जमानत देना चाहिए।

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    17. आरोपी को जमानत याचिका पर उचित समय में सुनवाई का अधिकार है: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सरकारी वकीलों को निर्देश देने के लिए समयबद्ध प्रक्रिया की मांग की

    [साहिल बनाम यूपी राज्य]

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा, "जमानत आवेदनों में सरकारी अधिवक्ता / अतिरिक्त सरकारी अधिवक्ता को समय पर निर्देश प्रदान करने में पुलिस अधिकारियों की विफलता के कारण जमानत आवेदनों की सुनवाई में देरी होती है, और अक्सर जेल में एक आरोपी को अनुचित तरीके से कैद किया जाता है।"

    इसलिए जस्टिस अजय भनोट की एकल पीठ ने पुलिस महानिदेशक, उत्तर प्रदेश को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि हाईकोर्ट के समक्ष जमानत आवेदनों में जीए / एजीए को निर्देश देने के लिए एक निष्पक्ष, पारदर्शी और स्पष्ट प्रक्रिया बनाई जाए।

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    18. महिला के खिलाफ यौन अपराधः अभियुक्त के साथ किसी भी प्रकार का समझौता/विवाह जमानत की शर्त का हिस्सा नहीं होना चाहिए: इलाहाबाद उच्च न्यायालय

    [इमरान बनाम यूपी राज्य]

    एक महत्वपूर्ण अवलोकन में, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि एक महिला के खिलाफ यौन अपराधों में जमानत देते समय, जमानत की शर्तें, जो पीड़ित को "निष्पक्ष न्याय" की शर्तों के खिलाफ हैं, जैसे कि आरोपी के साथ समझौता या शादी, को किसी भी रूप में लागू नहीं किया जाना चाहिए।

    जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी की खंडपीठ ने यह भी कहा कि अदालत, ऐसे मामलों में जमानत देते समय, सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपर्णा भट्ट और अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य, एलएल 2021 एससी 168 में पारित निर्देशों को ध्यान में रखेगी।

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    19 अभियुक्त की उम्र के एक विलंबित चरण में शारीरिक टेस्ट घटना की तारीख को किशोर के रूप में निर्धारित करने के लिए निर्णायक नहीं हो सकता

    [किरणपाल @ किन्ना बनाम यूपी राज्य और अन्य]

    जस्टिस प्रदीप कुमार श्रीवास्तव और जस्टिस सुनीता अग्रवाल की खंडपीठ ने कहा कि आरोपी या दोषी की उम्र बढ़ने के बाद देर से होने वाला अस्थि-पंजर टेस्ट निर्णायक नहीं हो सकता है ताकि घटना की तारीख पर उसे किशोर के रूप में निर्धारित किया जा सके। किशोर न्याय बोर्ड द्वारा पारित आयु निर्धारण के आदेश को रद्द करते हुए न्यायालय ने इस प्रकार कहा:

    "आरोपी/दोषी की उम्र बढ़ने के बाद विलंबित अवस्था में अस्थिकरण टेस्ट घटना की तारीख पर उसे किशोर के रूप में निर्धारित करने के लिए निर्णायक नहीं हो सकता है, क्योंकि रेडियोलॉजिकल टेस्ट द्वारा वहन किए गए साक्ष्य निस्संदेह यह निर्धारित करने के लिए एक उपयोगी मार्गदर्शक कारक है। व्यक्ति की उम्र लेकिन निर्णायक और निर्विवाद प्रकृति की नहीं है और यह त्रुटि के एक मार्जिन के अधीन है।"

    20. जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान बलात्कार के आरोपी की पीड़िता से शादी करने की इच्छा पर संज्ञान नहीं ले सकतेः इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए बलात्कार के एक आरोपी के उस बयान पर विचार करने से इनकार कर दिया,जिसमें उसने कहा था कि वह बलात्कार पीड़िता से शादी करने का इच्छुक है।

    महत्वपूर्ण रूप से, न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल की खंडपीठ ने कहा कि दण्ड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 164 के तहत दर्ज पीड़िता के बयान को पढ़ने के बाद कोर्ट को इस तरह के किसी भी समझौते (बलात्कार के आरोपी और पीड़िता के बीच) पर संज्ञान लेने से रोक दिया गया है।

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    21. 'अर्णब गोस्वामी और अमीश देवगन' के फैसले तब लागू नहीं होंगे जब एक ही अपराध के तहत अलग-अलग घटनाओं में अलग-अलग एफआईआर दर्ज की जाएंगी: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    [डॉ. विजय कुमार शर्मा बनाम यूपी राज्य और अन्य]

    जस्टिस मुनीश्वर नाथ भंडारी और जस्टिस अजय त्यागी की खंडपीठ ने फैसला सुनाया कि जहां अलग-अलग घटनाओं के लिए एक ही संज्ञेय अपराध में शामिल अलग-अलग एफआईआर दर्ज की गई हैं, अर्नब रंजन गोस्वामी और अमीश देवगन के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले लागू नहीं होंगे। यह अवलोकन एक व्यक्ति के मामले की सुनवाई करते हुए किया गया था। इसमें लगभग तीन लाख लोगों को लगभग चार हजार करोड़ रुपए का धोखा देने का आरोप लगाया गया था। इसके परिणामस्वरूप उनके खिलाफ अलग-अलग तिथियों पर अलग-अलग प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की गई।

    हाईकोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने उन मामलों में निम्नलिखित बिंदुओं का फैसला किया: (i) एक से अधिक संज्ञेय अपराधों को जन्म देने वाली एक घटना के परिणामस्वरूप प्रत्येक संज्ञेय अपराध के लिए अलग प्राथमिकी दर्ज नहीं की जा सकती है; (ii) एक घटना के परिणामस्वरूप कई एफआईआर हो सकती हैं, लेकिन बाद की एफआईआर, पहली के बाद, धारा 162 सीआरपीसी के तहत एक बयान के रूप में माना जाना चाहिए।

    हालांकि, कोर्ट ने वर्तमान मामले को अलग करते हुए कहा, "मौजूदा मामले में प्रत्येक एफआईआर एक अलग व्यक्ति द्वारा दर्ज की जाती है। उसके साथ अलग घटना के संबंध में और तदनुसार, इसे अलग से दर्ज किया गया है, इस प्रकार सुप्रीम कोर्ट के निर्णय में टीटी एंटनी या अमीश देवगन के मामले में भी यह लागू नहीं होगा।"

    22. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पूर्व बसपा विधायक हत्याकांड में सुरक्षा गार्ड को जमानत दी

    यह देखते हुए कि मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित है और मुकदमे के दौरान परिस्थितियों को स्थापित किया जाना बाकी है, उच्च न्यायालय ने एक सुरक्षा गार्ड को जमानत दे दी। इस पर पूर्व बसपा विधायक हाजी अलीम की कथित तौर पर मृतक के बेटे के निर्देश पर हत्या करने का आरोप लगाया गया।

    न्यायमूर्ति प्रदीप कुमार श्रीवास्तव की खंडपीठ ने टिप्पणी की: "आरोपी आवेदक के खिलाफ मामला पूरी तरह से परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित है कि वह मृतक के साथ एक ही कमरे में सो रहा था। यह तथ्य किसी भी विश्वसनीय सबूत या प्रत्यक्षदर्शी खाते द्वारा समर्थित प्रतीत नहीं होता है। .

    23. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्थानीय पुलिस, सीडब्ल्यूसी को POCSO मामलों में पीड़ितों के अधिकारों पर 'जुनैद केस' में दिए गए निर्देशों का सख्ती से पालन करने के निर्देश दिए

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को कहा है कि पॉक्सो अधिनियम (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम) से संबंधित सभी मामलों में, हाईकोर्ट द्वारा (जुनैद बनाम यू.पी. राज्य व अन्य के मामले में) जारी निर्देशों का अनुपालन स्थानीय पुलिस के साथ-साथ संबंधित जिले के सीडब्ल्यूसी ने भी नहीं किया है।

    यह ध्यान दिया जा सकता है कि जुनैद के मामले में, हाईकोर्ट ने अन्य बातों के साथ, पॉक्सो अधिनियम, 2012 के तहत जमानत आवेदनों के निपटान के लिए निर्देश और समयसीमा जारी की थी। अदालत ने पुलिस और बाल कल्याण समिति को भी निर्देश जारी किया था कि आरोपी के जमानत आवेदन की सूचना मिलने पर पीड़ित/पीड़ित पक्ष को सूचित करें, उन्हें उनके अधिकारों के बारे में बताया जाए और कानूनी सेवाएं प्रदान की जाएं।

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    24.पत्नी, चार नाबालिग बेटियों की सुनियोजित हत्या: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मौत की सजा के फैसले को बरकरार रखा

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपनी पत्नी और सात, पांच, तीन साल की चार नाबालिग बेटियों की बेरहमी से हत्या करने के एक व्यक्ति की सजा को बरकरार रखा। इस हत्याकांड में मरने वाली सबसे छोटी बेटी महज डेढ़ महीने की थी।

    न्यायमूर्ति राजीव सिंह और न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा की खंडपीठ ने भी अभियुक्तों पर मृत्युदंड लगाने की पुष्टि करते हुए कहा कि यह एक 'दुर्लभतम' मामला है।

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    25. पुलिस की पुलिसिंग कौन करेगा?' इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बिकरू एनकाउंटर षडयंत्र मामले में यूपी के 2 पुलिसकर्मियों को जमानत देने से किया इनकार

    इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश पुलिस दो कर्मचारियों एसओ विनय कुमार तिवारी और बीट ऑफिसर कृष्ण कुमार शर्मा को जमानत देने से इनकार कर दिया। उन पर तीन जुलाई, 2020 को बिकरु गांव में पुलिस पर हुए घात लगा कर हुए हमले, जिसमें आठ पुलिसकर्मी मारे गए थे, की साजिश रचने का आरोप है। गैंगस्टर विकास दुबे पर पुलिस वालों को मारने का आरोप लगा था।

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    26. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चिकित्सा उपचार के दौरान पत्नी की मृत्यु पर दु:ख व्यक्त करते हुए फेसबुक पर पोस्ट लिखने वाले शख्स के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही पर रोक लगाई

    (अशोक कुमार गौतम बनाम यूपी राज्य और अन्य)

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक ऐसे व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही पर रोक लगा दी, जिस पर एक सरकारी अस्पताल में इलाज के दौरान उसकी पत्नी की मौत पर दुख व्यक्त करते हुए फेसबुक पर पोस्ट लिखने खिलाफ मामला दर्ज किया गया है।

    न्यायमूर्ति योगेंद्र कुमार श्रीवास्तव की पीठ अशोक गौतम की एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसके खिलाफ एक फेसबुक पोस्ट से संबंधित आरोप के मामले में कार्यवाही शुरू की गई है।

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    27.P पोक्सो अपराध- "पीड़ित के माता-पिता/अभिभावक को जमानत याचिका और कानूनी सहायता के उनके अधिकार के बारे में सूचित किया जाना चाहिए": इलाहाबाद हाईकोर्ट

    (रोहित बनाम यूपी राज्य के माध्यम से, सचिव, गृह लखनऊ।)

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में निर्देश दिया कि प्रत्येक पोक्सो मामले में जमानत आवेदन दाखिल करने की सूचना पीड़िता या शिकायतकर्ता के माता-पिता/अभिभावक को संबंधित थाने के जांच अधिकारी/एसएचओ के माध्यम से दी जानी चाहिए।

    न्यायमूर्ति विवेक चौधरी की खंडपीठ ने जांच अधिकारी/एसएचओ के लिए भी इसे अनिवार्य कर दिया। संबंधित पुलिस थाने के नोटिस में हिंदी भाषा में कानूनी सहायता के अधिकार के बारे में विवरण भी शामिल करें, ताकि वे कानूनी सेवा प्राधिकरण से सहायता ले सकें।

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    28. महिला अधिकारी द्वारा ऑडियो-वीडियो माध्यम से पीड़िता के बयान को दर्ज किया जाना चाहिए: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 161 (3) के प्रावधानों के अनुपालन के निर्देश दिए

    [बुले बनाम यूपी राज्य]

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि अधिकांश मामलों में सीआरपीसी की धारा 161 (3) का पहला और दूसरा प्रावधान जो एक महिला अधिकारी द्वारा ऑडियो-वीडियो माध्यम से यौन अपराधों की पीड़िता के बयान की रिकॉर्डिंग को अनिवार्य करता है, सही मायने जांच अधिकारी द्वारा इसका पालन नहीं किया जा रहा है।

    न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह की खंडपीठ ने पुलिस महानिदेशक, उत्तर प्रदेश और प्रमुख सचिव, गृह को दो माह के भीतर इन वैधानिक प्रावधानों के अनुपालन के संबंध में सभी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षकों को आवश्यक निर्देश/दिशानिर्देश जारी करने का निर्देश दिया।

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    29 आपराधिक प्रकृति के निजी विवाद में शामिल कोई व्यक्ति सार्वजनिक शांति को कैसे भंग कर सकता है?: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 111 के तहत जारी नोटिस पर रोक लगाई

    [नूर आलम @ नूर आलम खान बनाम यूपी राज्य और अन्य]

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक एसडीएम द्वारा नूर आलम को भेजे गए सीआरपीसी की धारा 111 के तहत नोटिस पर रोक लगा दी, जिसमें उसके खिलाफ 'कड़े शब्द' थे। कोर्ट ने कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता के साथ-साथ किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा से कीमती कुछ भी नहीं हो सकता है।

    जस्टिस मो. फैज आलम खान की पीठ ने कहा कि धारा 111 सीआरपीसी नोटिस में यह भी स्पष्ट नहीं है कि आपराधिक प्रकृति के निजी विवाद में खुद को शामिल करके आवेदक द्वारा सार्वजनिक शांति को कैसे भंग किया जा सकता है।

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    30. धारा 319 CrPC के तहत शक्ति का प्रयोग: जांच के दौरान जुटाई गई सामग्री पर ट्रायल के दौरान रिकॉर्ड किए गए साक्ष्य को प्राथमिकता दी जाएगी: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    [आदेश त्यागी बनाम यूपी राज्य और अन्य]

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि CrPC की धारा 319 के तहत शक्ति के प्रयोग के ‌लिए, सुनवाई के दौरान अदालत द्वारा रिकॉर्ड किए गए साक्ष्य को जांच के दौरान एकत्र की गई सामग्री से अधिक दी प्रधानता दी जाएगी।

    जस्टिस योगेंद्र कुमार श्रीवास्तव की खंडपीठ ने कहा, " संहिता की धारा 319 के तहत शक्तियों के प्रयोग के उद्देश्य से जांच के दौरान जांच अधिकारी द्वारा एकत्र की गई सामग्री पर भरोसा करते हुए जो तर्क दिया गया है, उसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है ।"

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    31. आरोपी यह दावा नहीं कर सकता कि उसके इकबालिया बयान को केवल कुछ अपराधों के लिए माना जाए और दूसरों के लिए नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    [विनोद माली बनाम यूपी राज्य]

    एक महत्वपूर्ण अवलोकन में, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में यह माना कि जब किसी घटना या घटनाओं के सेट के संबंध में समग्र रूप से दोषसिद्ध किया जाता है तो आरोपी बाद में यह दावा नहीं कर सकता है कि उसके द्वारा दिए गए इकबालिया बयान पर केवल कुछ अपराधों के संबंध में विचार किया जाना चाहिए और दूसरों के लिए नहीं।

    जस्टिस अजय त्यागी की खंडपीठ अपीलकर्ता-आरोपी की एक दलील पर विचार कर रही थी कि उसे उसकी स्वीकारोक्ति के आधार पर धारा 413 IPC के तहत दोषी नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि निचली अदालत ने धारा 411 IPC के तहत उसकी दोषसिद्धि से संबंधित कम से कम दो निर्णय नहीं मांगे थे।

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    32. फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी की रिपोर्ट को इसके निदेशक को सीआरपीसी के तहत एक सार्वजनिक दस्तावेज के रूप में बुलाकर साबित करने की आवश्यकता नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    [जोस लुइस क्विंटनिला सैक्रिस्टन बनाम यूपी राज्य]

    हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि चूंकि राज्य फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला की एक रिपोर्ट साक्ष्य में स्वीकार्य है (सीआरपीसी की धारा 293 के प्रावधान के अनुसार) इसलिए, उस लेबोरेटरी के निदेशक को इसे साबित करने के लिए बुलाने की कोई आवश्यकता नहीं है।

    न्यायमूर्ति अजय कुमार त्यागी की खंडपीठ एनडीपीएस अधिनियम के तहत निचली अदालत के फैसले और सजा के आदेश के खिलाफ स्पेन के एक राष्ट्रीय आरोपी/अपीलकर्ता की अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसका ट्रॉली बैग 10 किलो था। चरस बरामद किया गया।

    34. पत्नी के परिवार में उसके साथ कोर्ट आने के लिए किसी का उपलब्ध न होना, वैवाहिक मामले के स्थानांतरण के लिए अच्छा आधारः इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ने हाल ही में तलाक के मामले की कार्यवाही को स्थानांतरित (ट्रांसफर) करने की मांग करने वाले एक महिला की तरफ से दायर स्थानांतरण आवेदन को अनुमति देते हुए कहा है कि आवेदक-पत्नी के परिवार में ऐसा कोई भी नहीं है जो उसके साथ कोर्ट आ सके,इसलिए यह केस को ट्रांसफर करने का एक अच्छा आधार है। न्यायमूर्ति विवेक वर्मा की खंडपीठ ने पत्नी के आवेदन को यह कहते हुए स्वीकार कर लिया कि वैवाहिक मामलों में, पत्नी की सुविधा एक मामले के हस्तांतरण को सही ठहराने के लिए प्रमुख कारक है।

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    35. अदालतों को सावधान रहना चाहिए कि शादी की आड़ में आरोपी द्वारा अपराधों से बचने के लिए पीड़िता का इस्तेमाल ढाल के रूप में न किया जाएः इलाहाबाद हाईकोर्ट

    [उमाशंकर और एक अन्य बनाम यूपी राज्य और दो अन्य]

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में अदालतों को यह देखने के लिए आगाह किया है कि विवाह की आड़ में आरोपी द्वारा अपराधों से बचने के लिए पीड़िता/लड़की को ढाल के रूप में इस्तेमाल न किया जाए। हाईकोर्ट ने कहा कि,''अदालतों को यह देखने के लिए पर्याप्त सतर्क रहने की आवश्यकता है कि किसी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता की आड़ में, पीड़ित की व्यक्तिगत स्वतंत्रता आहत न हो या उसके साथ विवाह की आड़ में, उसे अपराध से बचने के लिए ढाल के रूप में इस्तेमाल न किया जा सके।''

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    36. 'सीआरपीसी की धारा 173 के तहत जांच अधिकारी 2 महीने के भीतर जांच पूरी करें': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार को सर्कुलर जारी करने के निर्देश दिए

    [महेंद्र प्रताप सिंह बनाम यूपी राज्य, सचिव (गृह) और 2 अन्य के माध्यम से]

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार को मैनपुरी की एक 16 वर्षीय लड़की की मौत के मामले से निपटते हुए उत्तर प्रदेश सरकार से पूछा कि क्या उसने यौन अपराधों की जांच एक समय सीमा के भीतर पूरी करने के लिए जांच अधिकारियों को सीआरपीसी की धारा 173 का पालन करने के लिए आदेश जारी किया है। कोर्ट ने निर्देश दिया है कि अगर अभी तक सर्कुलर/निर्देश जारी नहीं किया गया है तो तुरंत आदेश जारी किया जाए।

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    38. यदि पुरुष अपनी पत्नी को अपने जीवन से अलग करता है और इस कारण वह आत्महत्या कर लेती है तो आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला नहीं बनता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    [जगवीर सिंह उर्फ बंटू बनाम यूपी राज्य]

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह अपनी पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में एक पति के खिलाफ पारित दोषसिद्धि के आदेश को रद्द करते हुए कहा कि पत्नी को अपने जीवन से अलग करना उकसाने की श्रेणी में आने वाला एक कारण नहीं हो सकता है।

    न्यायमूर्ति अजय त्यागी की पीठ के समक्ष जगवीर सिंह उर्फ​ बंटू ने एक अपील दायर कर अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, पीलीभीत के उस आदेश को चुनौती दी थी,जिसमें उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए और 306 के तहत दोषी ठहराया गया था।

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    39.बलात्कार/पॉक्सो मामले- "सरकार के सर्कुलर के अनुसार 15 दिनों के भीतर संबंधित अधिकारियों को डीएनए और अन्य रिपोर्ट भेजें": इलाहाबाद हाईकोर्ट

    [महफुज बनाम यूपी राज्य]

    हाईकोर्ट ने पुलिस महानिदेशक को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि बलात्कार के मामलों में पॉक्सो केस एक्ट या डीएनए रिपोर्ट आदि की जांच के दौरान बरामद या हिरासत में लिए गए सामानों की रिपोर्ट संबंधित जिला अधिकारियों को 15 दिनों के भीतर दी जानी चाहिए।

    न्यायमूर्ति राजीव सिंह की खंडपीठ ने सरकार के 2018 के परिपत्रों के मद्देनजर यह निर्देश जारी किया और कहा कि कई मामलों में परिपत्रों में निहित निर्देशों का पालन नहीं किया जा रहा है।

    40. गवाह की सुरक्षा- "आश्चर्यजनक है कि जीवन के लिए खतरा स्वीकार करने के बावजूद गवाह की सुरक्षा कम की गई": इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुरक्षा व्यवस्था बहाल की

    [वृजेंद्र प्रताप सिंह बनाम यूपी राज्य के माध्यम से प्रिं. सचिव होम लको. और अन्य]

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक गवाह (एक आपराधिक मुकदमे में) को उसके जीवन के लिए खतरा स्वीकार करने के बावजूद उसे प्रदान की गई सुरक्षा को कम करने के जिला न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली एक समिति के निर्णय पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए गवाह/याचिकाकर्ता की सुरक्षा व्यवस्था आगे के आदेश तक बहाल कर दी।

    न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति सुरेश कुमार गुप्ता की पीठ एक आपराधिक मामले में गवाह व्रिजेंद्र प्रताप सिंह की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसे पहले आरोपी से उसके जीवन के लिए खतरे की धारणा के मद्देनजर चौबीसों घंटे एक गनर के साथ सुरक्षा प्रदान किया गया था।

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    41. 14 साल की कैद के बाद छूट के मामलों का पुनर्मूल्यांकन करें, भले ही अपील हाईकोर्ट में लंबित हो: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार से कहा

    [रग्गू बनिया @ राघवेंद्र बनाम यूपी राज्य]

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को सभी जिलाधिकारियों को यह निर्देश देने के लिए कहा है कि वे 14 साल की कैद के बाद छूट के मामलों का पुनर्मूल्यांकन करें, भले ही ऐसे मामलों में अपील हाईकोर्ट में लंबित हों।

    जस्टिस डॉ कौशल जयेंद्र ठाकर और जस्टिस अजय त्यागी की खंडपीठ बलात्कार के एक दोषी की अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, विशेष न्यायालय (डकैती प्रभावित क्षेत्र), जिला कानपुर देहात द्वारा सुनाई गई आजीवन कारावास की सजा को चुनौती दी थी।

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    42. यदि निर्धारित समय के भीतर आरोप पत्र दायर नहीं किया जाता तो आरोपी को सीआरपीसी की 167(2) के तहत 'डिफ़ॉल्ट जमानत' का अक्षम्य अधिकार: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    [वरुण तिवारी बनाम यूपी राज्य]

    हाईकोर्ट ने कहा कि एक आरोपी को सीआरपीसी की धारा 167 (2) के प्रावधान के तहत 'डिफ़ॉल्ट जमानत' का एक अक्षम्य अधिकार है। यदि आरोप पत्र निर्धारित समय के भीतर दाखिल नहीं किया जाता है।

    न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान की पीठ ने सामूहिक बलात्कार के एक आरोपी की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा। इसके खिलाफ पुलिस 90 दिनों की अवधि के भीतर विशेष न्यायाधीश, पॉक्सो अधिनियम, लखनऊ के समक्ष आरोप पत्र दायर करने में विफल रही।

    43. अगर कोर्ट नाराजी याचिका से सहमत नहीं है तो इसे शिकायत माना जा सकता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    [महेश चंद्र द्विवेदी बनाम यूपी राज्य सचिव के माध्यम से, होम लको. और 3 अन्य]

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि यदि न्यायालय नाराजी याचिका (Protest Petition) से सहमत नहीं है तो न्यायपूर्ण और उचित कार्यवाही यह हो सकती है कि कोर्ट इस आवेदन को एक शिकायत याचिका के रूप में पढ़े।

    जस्टिस विकास कुंवर श्रीवास्तव की खंडपीठ ने पुनरीक्षण न्यायालय की क्षमता में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश / सुल्तानपुर (यूपी) के फास्ट ट्रैक कोर्ट द्वारा पारित 2006 के आदेश के खिलाफ भारत के संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्‍पणी की।

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    44. विपरीत लिंग के दो व्यक्तियों के घनिष्ठ संबंध के बारे में कहना मानहानि के दायरे में नहीं माना जा सकता : इलाहाबाद हाईकोर्ट

    [नकली सिंह बनाम यूपी राज्य और अन्य]

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह मानहानि शिकायत मामले में समन आदेश को रद्द करते हुए कहा कि विपरीत लिंग के दो लोग के बीच करीबी संबंध होने के बारे में कहना मानहानि नहीं होगी।

    न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह की खंडपीठ ने आगे कहा कि प्राकृतिक या सामान्य मानवीय संबंध में किसी के करीब होना और अवैध संबंध बनाना दो पूरी तरह से अलग चीजें हैं।

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    45 "पीड़ित को आरोपी के साथ आखिरी बार देखा गया था, यह सबूत भरोसे का नहीं": इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नाबालिग के बलात्कार, हत्या के मामले में मौत की सजा पाए व्यक्ति को बरी किया

    [बाल गोविंद उर्फ गोविंदा बनाम यूपी राज्य]

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक नाबालिग लड़की की हत्या और बलात्कार के, मौत की सजा पाए दोषी को बरी कर द‌िया। कोर्ट ने कहा कथित घटना से पहले मृतक को आरोपी-अपीलकर्ता के साथ अंतिम बार देखे जाने के साक्ष्य को आश्वस्त करने वाला नहीं पाया गया।

    ज‌स्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस समीर जैन की खंडपीठ ने यह भी कहा कि मामले को सुलझाने के लिए पुलिस पर अत्यधिक दबाव रहा होगा और कहा कि आरोपी-अपीलकर्ता का नाम मामले को सुलझाने के लिए केवल संदेह के आधार पर शामिल किया गया होगा, न कि सबूत के आधार पर।

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    46.POCSO अधिनियम के तहत 10 साल के लड़के के साथ ओरल सेक्स 'गंभीर यौन हमला' नहीं बल्कि 'पेनेट्रेटिव यौन हमला': इलाहाबाद हाईकोर्ट

    [सोनू कुशवाहा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य]

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 10 साल के लड़के के साथ ओरल सेक्स करने के आरोपी POCSO अपराधी की अपील पर सुनवाई करते हुए कहा कि लिंग को मुंह में डालना 'गंभीर यौन हमला' या 'यौन हमले' की श्रेणी में नहीं आता है। यह पेनेट्रेटिव यौन हमले की श्रेणी में आता है जो POCSO अधिनियम की धारा 4 के तहत दंडनीय है।

    न्यायमूर्ति अनिल कुमार ओझा की खंडपीठ ने पॉक्सो अधिनियम के विशिष्ट प्रावधानों के अनुसरण में कहा कि अधिनियम [एक बच्चे के मुंह के अंदर लिंग डालना] पोक्सो एक्ट 2012 की धारा 4 के तहत दंडनीय 'पेनेट्रेटिव' यौन हमले की श्रेणी में आता है।

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    47. 'बलात्कार की शिकार को डीएनए टेस्ट कराने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता': इलाहाबाद हाईकोर्ट

    [गुलाफ्सा बेगम बनाम यूपी राज्य]

    हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि बलात्कार की पीड़िता को उसके बच्चे के पितृत्व का निर्धारण करने के लिए डीएनए टेस्ट के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।

    अदालत अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, सुल्तानपुर के 25 जून, 2021 के आदेश को चुनौती देने वाली एक पुनर्विचार याचिका पर फैसला सुना रही थी। इसमें इस तरह के डीएनए टेस्ट की अनुमति दी गई थी।

    न्यायमूर्ति संगीता चंद्रा ने निराशा के साथ कहा कि संबंधित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने 'अपनी ऊर्जा का गलत इस्तेमाल' किया, क्योंकि उनके समक्ष विचाराधीन प्रश्न यह नहीं था कि क्या पीड़ित को पैदा हुआ बच्चा आरोपी (पक्षकार नंबर दो के विपरीत) का बच्चा था, लेकिन क्या अपराध का अपराध था आरोपी ने रेप किया था।

    48. बरी करने के आदेश के खिलाफ केवल सरकारी अपील लंबित होने के कारण पासपोर्ट आवेदन को रोक नहीं सकते: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    [प्रमोद कुमार राजभर बनाम यूपी राज्य और दो अन्य]

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि किसी व्यक्ति के पासपोर्ट जारी करने के आवेदन को केवल इसलिए नहीं रोका जा सकता है, क्योंकि उस व्यक्ति के एक्व‌िटल ऑर्डर के खिलाफ सरकार की अपील लंबित है।

    जस्टिस अश्विनी कुमार मिश्रा और जस्टिस विक्रम डी चौहान की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि जब तक (एक आपराधिक मामले में) एक्विटल का आदेश रहता है, तब तक याचिकाकर्ता की बेगुनाही मानी जाएगी।

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    49 "धारा 313 के तहत अनुचित परीक्षण आरोपी के लिए गंभीर पूर्वाग्रह" : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 30 साल से जेल में बंद हत्या के आरोपी को बरी किया

    [इशाक बनाम यूपी राज्य]

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक आरोपी व्यक्ति (जो 30 साल से अधिक समय तक जेल में रहा) को हत्या के आरोप से बरी करते हुए कहा कि सीआरपीसी की धारा 313 के तहत हत्या के एक आरोपी के अनुचित परीक्षण ने उसके लिए गंभीर पूर्वाग्रह पैदा किया और जिसके परिणामस्वरूप न्याय की विफलता हुई।

    न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति समीर जैन का निर्णय बांग्लादेश के एक नागरिक, इशाक द्वारा जून 1996 में अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, गाजियाबाद द्वारा धारा 302 आईपीसी और धारा 4/25 शस्त्र अधिनियम के तहत दंडनीय अपराधों के लिए पारित दोषसिद्धि आदेश के खिलाफ दायर एक अपील में आया था।

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    50. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 12 साल की यौन उत्पीड़न पीड़िता के मामले में 'जुनैद केस' दिशानिर्देशों का पालन नहीं करने पर सीडब्ल्यूसी अध्यक्ष के खिलाफ कार्रवाई का आदेश दिया

    [शिवानी मिश्रा बनाम यूपी राज्य और अन्य]

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जिला पीलीभीत की बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष के खिलाफ कार्रवाई का आदेश दिया। अध्यक्ष जुनैद बनाम यू.पी. राज्य और अन्य मामले में हाईकोर्ट द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देशों का पालन करने में विफल रहे है। यह ध्यान दिया जा सकता है कि जुनैद के मामले में हाईकोर्ट ने अन्य बातों के साथ-साथ पॉक्सो अधिनियम, 2012 के तहत जमानत आवेदनों के निपटान के लिए निर्देश और समयसीमा जारी की थी।

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