गिरफ्तारी पुलिस के लिए अंतिम विकल्प होना चाहिए; अतार्किक गिरफ्तारी मानव अधिकारों का घोर उल्लंघन है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

SPARSH UPADHYAY

9 Jan 2021 12:22 PM IST

  • Allahabad High Court expunges adverse remarks against Judicial Officer

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुधवार (06 जनवरी) को यह देखा कि प्राथमिकी दर्ज होने के बाद, पुलिस द्वारा कभी भी गिरफ़्तारी की जा सकती है और पुलिस द्वारा अभियुक्तों (जिनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है) की गिरफ़्तारी के लिए कोई निश्चित अवधि निर्धारित नहीं होती है।

    न्यायमूर्ति सिद्धार्थ की पीठ ने हालांकि कहा कि गिरफ्तारी, पुलिस के लिए अंतिम विकल्प होना चाहिए और ऐसा "उन असाधारण मामलों में किया जाना चाहिए जहां अभियुक्त को गिरफ्तार करना अनिवार्य है या उसकी हिरासत में पूछताछ आवश्यक है।"

    न्यायालय के समक्ष मामला

    पीठ आवेदक, एक सचिन सैनी की ओर से धारा -452, 323, 504, 506 आईपीसी के तहत दर्ज मामले से संबंधित अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

    आवेदक के वकील ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि पहले, आवेदक के पिता ने 24 अगस्त 2020 को धारा 147, 148, 323, 504, 506 I.P.C के तहत इन्फॉर्मन्ट के बेटे के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी।

    यह दावा किया गया था कि काउंटर ब्लास्ट के माध्यम से, तत्काल मामले में प्राथमिकी 20 सितंबर 2020 को दर्ज की गई थी, जिसमें आवेदक को झूठे तरीके से फंसाया गया था।

    यह भी तर्क दिया गया कि आरोप बिल्कुल गलत हैं और आवेदक ने अपनी आशंका व्यक्त की कि उसे किसी भी समय पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया जा सकता है।

    कोर्ट का आदेश

    तर्कों पर विचार करने के बाद, न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि आवेदक के खिलाफ एक मामला दर्ज होना था।

    महत्वपूर्ण रूप से, कोर्ट ने कहा,

    "जोगिंदर कुमार बनाम उत्तर प्रदेश एआईआर 1994 एससी 1349 के मामले में शीर्ष अदालत ने राष्ट्रीय पुलिस आयोग की तीसरी रिपोर्ट का उल्लेख किया है जिसमें यह उल्लेख किया गया है कि भारत में पुलिस द्वारा गिरफ्तारियां भ्रष्टाचार के मुख्य स्रोतों में से एक है।"

    कोर्ट ने आगे कहा,

    "रिपोर्ट ने सुझाव दिया कि लगभग 60 प्रतिशत गिरफ्तारियां या तो अनावश्यक या अनुचित थीं।"

    यह तर्क देते हुए कि अतार्किक और अंधाधुंध गिरफ्तारी मानव अधिकारों का घोर उल्लंघन है।

    न्यायालय ने टिप्पणी की,

    "व्यक्तिगत स्वतंत्रता एक बहुत कीमती मौलिक अधिकार है और इस पर तभी प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए जब यह अनिवार्य हो जाए। तथ्यों और परिस्थितियों के अनुसार, किसी मामले में एक अभियुक्त की गिरफ्तारी की जानी चाहिए।"

    अंत में, अदालत ने निर्देश दिया कि तत्काल अपराध में शामिल आवेदक को ट्रायल कोर्ट की संतुष्टि के साथ अग्रिम जमानत पर रिहा किया जाए।

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