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Hindu Marriage Act में Judicial Separation
इस एक्ट की धारा 10 के अधीन Judicial Separation को उल्लेखित किया गया है। विवाह के दोनों पक्षकारों में से कोई भी पक्षकार कोर्ट के समक्ष आवेदन करके Judicial Separation की डिक्री पारित करने हेतु निवेदन कर सकता है।कोर्ट की डिक्री से विवाह को कुछ समय के लिए मृत कर दिया जाता है। इस उपचार का यह मूल आधार है कि यदि विवाह पुनर्जीवित हो सकता हो तो कर लिया जाए क्योंकि विवाह के उपरांत संतान भी उत्पन्न होती है पति और पत्नी के विवाह विच्छेद के परिणामस्वरूप बच्चों का पालन पोषण अत्यधिक कष्टदायक हो जाता है। विवाह...
क्या केंद्र सरकार सेवा से जुड़े मामलों में विधायी या कार्यपालिका कार्रवाई के ज़रिए दिल्ली की निर्वाचित सरकार की शक्तियों को निरस्त कर सकती है?
Government of NCT of Delhi v. Union of India (29 नवंबर 2023) के ऐतिहासिक निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के बीच लंबे समय से चले आ रहे संवैधानिक और प्रशासनिक विवाद पर फैसला दिया। इस मामले में मुख्य प्रश्न यह था कि दिल्ली सरकार के अधिकारियों की नियुक्ति (Appointment), स्थानांतरण (Transfer), और अनुशासनात्मक कार्रवाई (Disciplinary Action) जैसे सेवा संबंधी मामलों पर नियंत्रण किसका होगा – चुनी हुई दिल्ली सरकार का या केंद्र सरकार का।यह निर्णय संविधान के अनुच्छेद 239AA (Article...
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 15-16: तलाक के बाद पुनर्विवाह और शून्य/शून्यकरणीय विवाहों के बच्चों की वैधता
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act, 1955) न केवल विवाह को भंग करने के लिए आधार (Grounds for Dissolution) प्रदान करता है, बल्कि यह तलाक के बाद की महत्वपूर्ण कानूनी स्थितियों (Crucial Legal Situations) को भी संबोधित करता है।धारा 15 (Section 15) तलाकशुदा व्यक्तियों (Divorced Persons) के पुनर्विवाह (Remarriage) के अधिकारों को नियंत्रित करती है, जबकि धारा 16 (Section 16) विवाह की कानूनी वैधता (Legal Validity) में अनियमितताओं (Irregularities) के बावजूद बच्चों की वैधता (Legitimacy of...
Indian Partnership Act, 1932 की धारा 59-62: फर्मों का पंजीकरण और परिवर्तनों का अभिलेखन
भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 (Indian Partnership Act, 1932) का यह खंड फर्मों के पंजीकरण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाता है और पंजीकृत (Registered) फर्मों से संबंधित विभिन्न परिवर्तनों (Alterations) को आधिकारिक रिकॉर्ड (Official Record) में दर्ज करने के महत्व पर प्रकाश डालता है। ये प्रावधान फर्म के कानूनी रिकॉर्ड की सटीकता (Accuracy) और पारदर्शिता (Transparency) सुनिश्चित करते हैं, जो तीसरे पक्षों (Third Parties) के लिए और फर्म के अपने हित के लिए महत्वपूर्ण है।धारा 59: पंजीकरण (Registration) भारतीय...
पंजीकरण अधिनियम, 1908 की धारा 3-8 : रजिस्ट्रार और उप-रजिस्ट्रार
यह लेख पंजीकरण अधिनियम, 1908 (Registration Act, 1908) के कुछ महत्वपूर्ण अनुभागों (sections) को समझाता है, जो पंजीकरण से संबंधित सरकारी ढांचे और कामकाज के बारे में हैं।धारा 3. पंजीकरण महानिरीक्षक (Inspector-General of Registration) इस धारा के अनुसार, राज्य सरकार (State Government) को अपने अधिकार क्षेत्र (territories) में एक अधिकारी को पंजीकरण महानिरीक्षक (Inspector-General of Registration) नियुक्त करना होता है। यह व्यक्ति राज्य में पंजीकरण से जुड़े सभी मामलों का सबसे बड़ा अधिकारी होता है।...
Registration Bill, 2025,: भारत में संपत्ति पंजीकरण का आधुनिकीकरण
पंजीकरण विधेयक (Registration Bill), 2025, भारत सरकार द्वारा ग्रामीण विकास मंत्रालय (Ministry of Rural Development) के भूमि संसाधन विभाग (Department of Land Resources) की एक महत्वपूर्ण विधायी पहल (legislative initiative) है। इस प्रस्तावित कानून का उद्देश्य भारत में मौजूदा संपत्ति पंजीकरण प्रणाली (property registration system) को आधुनिक बनाना और उसमें सुधार करना है, जो काफी हद तक संविधान-पूर्व (pre-Constitution) पंजीकरण अधिनियम (Registration Act), 1908 द्वारा शासित रहा है।विधेयक का लक्ष्य एक...
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 15-16: तलाक के बाद पुनर्विवाह और शून्य/शून्यकरणीय विवाहों के बच्चों की वैधता
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act, 1955) न केवल विवाह को भंग करने के लिए आधार (Grounds for Dissolution) प्रदान करता है, बल्कि यह तलाक के बाद की महत्वपूर्ण कानूनी स्थितियों (Crucial Legal Situations) को भी संबोधित करता है।धारा 15 (Section 15) तलाकशुदा व्यक्तियों (Divorced Persons) के पुनर्विवाह (Remarriage) के अधिकारों को नियंत्रित करती है, जबकि धारा 16 (Section 16) विवाह की कानूनी वैधता (Legal Validity) में अनियमितताओं (Irregularities) के बावजूद बच्चों की वैधता (Legitimacy of...
क्या केवल सज़ा पर रोक से दोषसिद्ध सरकारी कर्मचारी सेवा में बने रह सकते हैं, जबकि दोषसिद्धि बनी रहे?
State of Punjab v. Punjab State Veterinary Officers Association (2023) के महत्वपूर्ण निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि जब किसी सरकारी कर्मचारी को आपराधिक मामले में दोषी ठहराया गया हो, और अपील में केवल उसकी सज़ा पर रोक (Stay of Sentence) लगी हो, लेकिन दोषसिद्धि (Conviction) को स्थगित (Stayed) नहीं किया गया हो तो क्या वह सेवा में बना रह सकता है?यह निर्णय पंजाब सिविल सेवा (सजा एवं अपील) नियम, 1970 की नियम 18(1) और संविधान के अनुच्छेद 311(2)(a) की व्याख्या करता है, तथा K.C. Sareen v....
Indian Partnership Act, 1932 की धारा 56-58: फर्मों का पंजीकरण
भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 (Indian Partnership Act, 1932) का अध्याय VII (Chapter VII) फर्मों के पंजीकरण (Registration) से संबंधित महत्वपूर्ण प्रावधानों को विस्तृत रूप से वर्णित करता है। यह अध्याय फर्मों को कानूनी पहचान प्रदान करने और उनके संचालन में पारदर्शिता (Transparency) लाने के लिए एक ढाँचा (Framework) स्थापित करता है। पंजीकरण अनिवार्य नहीं है, अर्थात फर्म का पंजीकरण कराए बिना भी उसे कानूनी रूप से वैध माना जा सकता है।हालाँकि, अपंजीकृत (Unregistered) फर्मों को कुछ कानूनी अधिकार और...
Hindu Marriage Act की धारा 9 के प्रावधान
जब विवाह के पक्षकारों में से कोई पक्षकार बिना किसी युक्तियुक्त कारण के विवाह के दूसरे पक्षकार को छोड़कर चला गया है तो ऐसी परिस्थिति में जिस पक्षकार को छोड़ कर गया है वह पक्षकार कोर्ट की शरण ले सकता है। हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 9 विवाह को उस पक्षकार को यह अधिकार देती है कि वह कोर्ट के माध्यम से विवाह के उस पक्षकार को वापस अपने साथ रहने के लिए बुला सकता है जो उसे छोड़ कर गया है।'जबकि पति या पत्नी में से किसी ने युक्तियुक्त प्रतिहेतु के बिना दूसरे से अपना साहचर्य प्रत्याहृत कर लिया है तब...
Hindu Marriage Act में मैरिज के लिए सपिंड नहीं होना और विवाह के लिए ज़रूरी संस्कार का होना
इस एक्ट की धारा 5 के अधीन किसी भी हिंदू विवाह के संपन्न होने के लिए विवाह के पक्षकारों का आपस में सपिंड संबंध का नहीं होना चाहिए। यदि विवाह के पक्षकार आपस में सपिंड संबंध के होते हैं तो इस प्रकार का विवाह अधिनियम की धारा 11 के अनुसार शून्य होता है। सपिंडा रिलेशनशिप का हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत कड़ाई से पालन किए जाने का प्रयास किया गया है।सपिंड नातेदारी के अंदर वाले दो हिंदू पक्षकारों के बीच विवाह प्रारंभ से ही कोई भी वजूद नहीं रखता है तथा इस प्रकार का विवाह किए जाने पर तो अधिनियम के अंतर्गत...
Sales of Goods Act, 1930 की धारा 66 : बचत खंड और अनुप्रयोग की सीमाएं
माल विक्रय अधिनियम (Sales of Goods Act), 1930 का अध्याय VII विविध प्रावधानों (Miscellaneous Provisions) के साथ समाप्त होता है। धारा 66, जिसे बचत खंड (Savings Clause) के रूप में जाना जाता है, यह सुनिश्चित करती है कि अधिनियम का प्रवर्तन (enforcement) कुछ मौजूदा अधिकारों, दायित्वों, कानूनी कार्यवाही या अन्य कानूनों को प्रभावित न करे। यह अधिनियम के दायरे और सीमाओं को स्पष्ट करती है।बचत प्रावधान (Savings Provisions) धारा 66(1) उन पहलुओं को सूचीबद्ध करती है जिन्हें माल विक्रय अधिनियम प्रभावित नहीं...
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 14: विवाह के एक वर्ष के भीतर तलाक याचिका पर प्रतिबंध
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act, 1955) विवाह को एक पवित्र और महत्वपूर्ण संस्था (Sacred and Significant Institution) मानता है। इसलिए, यह विवाहों को अनावश्यक रूप से जल्दी तोड़ने से रोकने का प्रयास करता है।धारा 14 (Section 14) इसी सिद्धांत पर आधारित है, जो विवाह के एक वर्ष के भीतर (Within One Year) तलाक के लिए याचिका दायर करने पर प्रतिबंध (Restriction) लगाती है। यह प्रावधान जोड़ों को अपने मतभेदों (Differences) को सुलझाने और अपने वैवाहिक बंधन (Marital Bond) को मजबूत करने के लिए...
भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 की धारा 55: फर्म के विघटन के बाद सद्भावना की बिक्री और व्यापार पर प्रतिबंध के समझौते
भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 (Indian Partnership Act, 1932) की धारा 55 (Section 55) फर्म के विघटन (Dissolution of a Firm) के बाद सद्भावना (Goodwill) की बिक्री और उससे संबंधित जटिल अधिकारों और व्यापारिक प्रतिबंधों पर विस्तार से बताती है। यह एक महत्वपूर्ण धारा है जो फर्म की अमूर्त संपत्ति (Intangible Asset) के मूल्य को पहचानती है और उसके निपटान के तरीके को नियंत्रित करती है।सद्भावना की बिक्री के नियम (Rules for Sale of Goodwill) 1. सद्भावना का परिसंपत्ति में शामिल होना और बिक्री (Inclusion in...
क्या लिखित रूप में गिरफ्तारी के आधार न देने से ED की गिरफ्तारी अवैध मानी जाएगी?
राम किशोर अरोड़ा बनाम प्रवर्तन निदेशालय (2023) के निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया से जुड़ा सवाल स्पष्ट किया — क्या प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा गिरफ्तारी के समय गिरफ्तारी के कारणों की लिखित प्रति (Written Copy of Grounds of Arrest) न देना, गिरफ्तारी को अवैध बनाता है?यह फैसला Prevention of Money Laundering Act, 2002 (PMLA) की धारा 19 की व्याख्या करता है और Vijay Madanlal Choudhary, V. Senthil Balaji तथा Pankaj Bansal जैसे पूर्व निर्णयों को ध्यान में रखते हुए स्पष्ट करता है कि...
Sales of Goods Act, 1930 की धारा 64A: बिक्री अनुबंधों में करों का समायोजन
माल विक्रय अधिनियम (Sales of Goods Act), 1930 का अध्याय VII विविध प्रावधानों (Miscellaneous Provisions) को शामिल करता है। धारा 64A, जो बाद में जोड़ी गई थी, विशेष रूप से बिक्री अनुबंधों में कर (Tax) के प्रभाव से संबंधित है, जब अनुबंध बनने के बाद कर की दरों में बदलाव होता है या नया कर लगाया जाता है। यह धारा सुनिश्चित करती है कि माल की कीमत पर कर परिवर्तनों का उचित प्रभाव पड़े, चाहे वह विक्रेता (Seller) या खरीदार (Buyer) को हो।बिक्री अनुबंधों में बढ़े हुए या घटे हुए करों को जोड़ना या घटाना (Amount...
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 धारा 13A-13B: तलाक कार्यवाही में वैकल्पिक राहत और आपसी सहमति से तलाक
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act, 1955) में संशोधन (Amendments) समय-समय पर वैवाहिक संबंधों की बदलती सामाजिक गतिशीलता (Changing Social Dynamics) को दर्शाते हैं। धारा 13A (Section 13A) न्यायालय को तलाक की कार्यवाही में वैकल्पिक राहत (Alternate Relief) प्रदान करने का विवेक (Discretion) देती है, जबकि धारा 13B (Section 13B) आपसी सहमति (Mutual Consent) से तलाक के लिए एक महत्वपूर्ण प्रावधान (Crucial Provision) प्रस्तुत करती है।ये धाराएँ लचीलापन (Flexibility) लाती हैं और उन स्थितियों में...
भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 की धारा 53-54: फर्म के विघटन के बाद व्यापार और सद्भावना से संबंधित प्रावधान
भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 (Indian Partnership Act, 1932) के ये खंड फर्म के विघटन (Dissolution of a Firm) के बाद के महत्वपूर्ण पहलुओं पर प्रकाश डालते हैं, विशेष रूप से व्यापार के निरंतरता, फर्म के नाम के उपयोग, और सद्भावना (Goodwill) की बिक्री से जुड़े अधिकारों और प्रतिबंधों पर।फर्म के नाम या फर्म की संपत्ति के उपयोग को प्रतिबंधित करने का अधिकार (Right to Restrain from Use of Firm Name or Firm Property) धारा 53 (Section 53) यह प्रावधान करती है कि फर्म के विघटन के बाद, प्रत्येक भागीदार या...
क्या कोई Non-signatory कंपनी भी Group of Companies सिद्धांत के तहत Arbitration के लिए बाध्य हो सकती है?
Cox & Kings Ltd. बनाम SAP India Pvt. Ltd. (2024) में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्न पर विचार किया कि क्या कोई ऐसा पक्ष जो मध्यस्थता अनुबंध (Arbitration Agreement) पर हस्ताक्षरकर्ता (Signatory) नहीं है, उसे भी मध्यस्थता के लिए बाध्य किया जा सकता है यदि वह उसी व्यावसायिक लेनदेन (Commercial Transaction) और कॉर्पोरेट समूह (Corporate Group) का हिस्सा हो। यह फैसला Arbitration and Conciliation Act, 1996 की धारा 11(6) और Group of Companies Doctrine की व्याख्या करता है, जो पिछले कुछ...
Hindu Marriage Act में मैरिज के लिए पूर्व पति या पत्नी का जीवित नहीं होना और पक्षकारों की मानसिक स्थिति का ठीक होना
हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 5 के अंतर्गत यह महत्वपूर्ण शर्त अधिरोपित की गई है कि हिंदू विवाह तभी संपन्न होगा जब विवाह के समय दोनों पक्षकारों में से न तो वर कि कोई पत्नी जीवित होगी और न ही वधू का कोई पति जीवित होगा। प्राचीन शास्त्रीय हिंदू विवाह बहुपत्नी को मान्यता देता था परंतु आधुनिक हिंदू विवाह अधिनियम 1955 बहुपत्नी का उन्मूलन करता है।लीला गुप्ता बनाम लक्ष्मी नारायण 1978 (3) सुप्रीम कोर्ट 558 के मामले में कहा गया है कि दांपत्य युगल शब्द से आशय पूर्व दांपत्य युगल से नहीं है यदि वर या वधू...



















