Transfer Of Property में लीज किस तरह से होती है?
Shadab Salim
20 Feb 2025 3:09 AM

एक्ट की धारा 107 धारा उन विधियों या तरीकों का उल्लेख करती है जिनके द्वारा पट्टों को निष्पादित किया जा सकेगा। धारा का पैराग्राफ एक अनिवार्य रजिस्ट्रीकरण के सम्बन्ध में प्रावधान प्रस्तुत करता है। पट्टे के मामले में रजिस्ट्रीकरण की अनिवार्यता हस्तान्तरित हित के मूल्य पर निर्भर नहीं करता है, जैसा कि विक्रय या बन्धक के मामलों में होता है, अपितु यह अन्तरण भी शर्तों पर निर्भर करता है। चौक लीज़ के मामलों में हित का मूल्य निर्धारित करना कठिन होता है जिसे रजिस्ट्रीकरण के प्रयोजन के लिए युक्तियुक्त आँकड़ा के रूप में प्रयोग में लाया जा सके।
ऐसा होने के कारण स्थावर सम्पत्ति का लीज़, उसका मूल्य कुछ भी क्यों हो, यदि एक वर्ष या इससे कम की अवधि के लिए सृजित किया जा रहा है तो यह संव्यवहार अरजिस्ट्रीकृत आश्वासन पर पूर्ण किया जा सकेगा यदि इसे कब्जे के परिदान के साथ प्रभावी बनाया गया हो। यदि यह संव्यवहार लीज़ का संव्यवहार न होकर किसी अन्य प्रकार का संव्यवहार होता तो रजिस्ट्रीकरण आवश्यक होता है।
क्षेत्र विस्तार धारा 107 चार पैराग्राफ में विभक्त है। प्रथम तीन पैराग्राफ विशिष्ट सिद्धान्त प्रतिपादित करते हैं जबकि चौथा पैराग्राफ एक परन्तुक है जो राज्य सरकार को विशिष्ट अधिसूचना जारी करने के लिए प्राधिकृत करता है।
पैराग्राफ एक उन पट्टों के सम्बन्ध में प्रावधान प्रस्तुत करता है जिनमें रजिस्ट्रीकरण आवश्यक है। जिनमें रजिस्ट्रीकरण आवश्यक होगा वे पट्टे हैं, स्थावर सम्पत्ति का वर्षानुवर्षी लीज़, या एक वर्ष से अधिक को किसी अवधि का लीज़ या वार्षिक किराया (भाटक) आरक्षित करने वाला लीज़ ऐसे मामलों में यदि रजिस्ट्रीकरण की प्रक्रिया नहीं अपनायी गयी है तो यह निष्कर्ष निकाला जाएगा कि एक वर्ष से अधिक की अवधि का लीज़ सृजित नहीं किया गया है। ऐसा दस्तावेज, यदि रजिस्ट्रीकृत नहीं है तो इसे धारा 17 सपठित धारा 29 (1) रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1908 के अन्तर्गत साक्ष्य के रूप में मान्यता नहीं प्राप्त होगी, चाहे लीज़ की अवधि साबित करने के लिए या किसी अन्य प्रयोजन के लिए हो।
पैराग्राफ दो, उन पट्टों के सम्बन्ध में प्रावधान प्रस्तुत करता है जो मौखिक करार द्वारा मात्र सम्पत्ति का कब्जा हस्तगत कर अस्तित्व में लाए जा सकते हैं। इस प्रकार पैराग्राफ दो पैराग्राफ एक का अपवाद प्रस्तुत करता है। पैराग्राफ दो के अनुसार ऐसे सभी पट्टे सिवाय पैराग्राफ एक में वर्णित प्रयोजन के लिए सृजित पट्टों के, या तो रजिस्ट्रीकृत दस्तावेज द्वारा या मौखिक करार द्वारा सृजित किए जा सकेंगे। मौखिक करार की दशा में सम्पत्ति के कब्जे का परिदान होना आवश्यक होगा। कब्जे का परिदान भौतिक या विवक्षित हो सकेगा। उदाहरणार्थ यदि Lessee अनुज्ञाधारी के रूप में सम्पत्ति को धारण कर रहा था तो वह पट्टेदार के रूप में कब्जे की निरन्तरता बनाये रखे। अनुज्ञाधारी जो अब पट्टेदार है धारा 53 क के अन्तर्गत संरक्षण पाने का अधिकारी होगा।"
पैराग्राफ तीन सुस्पष्ट करता है कि यदि स्थावर/ अचल सम्पत्ति का लीज़ सृष्ट किया जा रहा है और इसे रजिस्ट्रीकृत विलेख द्वारा पूर्ण किया जा रहा है तो वह विलेख अथवा यदि एक से अधिक विलेख हैं तो उनमें से प्रत्येक विलेख का Lessor एवं पट्टेदार द्वारा निष्पादन होना आवश्यक होगा।
यदि किसी सम्पत्ति का लीज़ अस्तित्व में है तो उसी सम्पत्ति का दूसरा लीज़ उसी दौरान मौखिक परिवर्तन या अन्य रूप में अस्तित्व में नहीं आ सकता है।
एक वर्ष से अधिक की अवधि का लीज़ सृजित करने के लिए मौखिक करार के अन्तर्गत यदि सम्पत्ति का कब्जा प्रदान कर दिया गया हो तो लीज़, पट्टे की अवधि के प्रथम वर्ष के लिए वैध होगा और यदि पट्टेदार इसके पश्चात् भी कब्जा बनाये रखता है तो Lessor की सहमति से वह अतिधारण द्वारा, धारा 116 के अन्तर्गत Lessee होगा। यदि यह साक्ष्य प्रस्तुत किया जाता है कि किराये का भुगतान हो चुका है अतः सृजित पट्टेदारी, आजीवन पट्टेदारी है तो आजीवन पट्टेदारों के सृजन के लिए यह अपने आप में पर्याप्त नहीं है। इस प्रयोजन हेतु इससे कुछ अधिक साबित करना होगा।
एक वर्ष के लिए किसी सम्पत्ति का निश्चित वार्षिक किराये पर जो अग्रिम रूप में देय हो पट्टे पर दिया जाना वर्षानुवर्षी पट्टे के तुल्य होगा तथा लीज़ विलेख का रजिस्ट्रीकरण आवश्यक होगा। अन्यथा इसे साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत नहीं किया जा सकेगा।
एक विद्यमान रजिस्ट्रीकृत लीज़ के रेन्ट में यदि परिवर्तन किया जा रहा है तो उसका रजिस्ट्रेशन आवश्यक होगा। कोई भी ऐसा प्रयास जो रजिस्ट्रीकृत लीज़ विलेख में परिवर्तन करने के लिए आशयित है, ऐसा प्रयास केवल एक अन्य रजिस्ट्रीकृत विलेख द्वारा ही सम्भव हो पायेगा एक स्थापर सम्पत्ति का लीज़ वर्षानुवर्ष के लिए या वार्षिक किराया आरक्षित करने के लिए, केवल रजिस्ट्रीकृत विलेख द्वारा ही हो सकेगा। किसी भी राज्य के रेन्ट कन्ट्रोल अधिनियम ने इस प्रावधान के प्रभाव को नष्ट नहीं किया है।
उपरोक्त से स्पष्ट है कि सृजन की दृष्टि से पट्टों को दो श्रेणियों में विभक्त किया गया है जिन्हें क्रमश: धारा 107 के प्रथम एवं द्वितीय पैराग्राफ में वर्णित किया गया है। यह वर्गीकरण इस तथ्य पर आधारित है कि पट्टे के सृजन के लिए रजिस्ट्रीकरण आवश्यक है या नहीं।
खेती के लिए लीज़
श्याम लाल बनाम दीप दास चेलाराम के वाद में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने अभिनिर्णीत किया है कि धारा 107 में उपबन्धित प्रावधान कृषि प्रयोजनार्थ पट्टों के सम्बन्ध में प्रवर्तित नहीं होता है। अतः यदि कृषि प्रयोजनार्थ पट्टे का सृजन किया गया है तथा उसका रजिस्ट्रीकरण नहीं किया गया है, तो भी यह दस्तावेज साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य होगा क्योंकि कृषि प्रयोजनार्थं पट्टों की स्थिति सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम में वर्णित पट्टों से पृथक होती है। पर हाईकोर्ट ने इस निर्णय को रद्द कर और यह निर्णय दिया है कि धारा 107 के उपबन्ध अचल सम्पत्ति से सम्बन्धित सभी पट्टों पर लागू होगा जिसमें कृषि प्रयोजनार्थ पट्टे भी सम्मिलित हैं। जब तक कि राज्य सरकार धारा 117 के अन्तर्गत अन्यथा आदेशित न करे।
पैराग्राफ एक – एक स्थावर सम्पत्ति का लीज़ केवल एक रजिस्ट्रीकृत दस्तावेज द्वारा ही सृजित किया जा सकेगा, यदि यह लीज़ :-
(क) वर्षानुवर्ष के लिए है या
(ख) एक वर्ष से अधिक को किसी अवधि के लिए है या
(ग) वार्षिक किराया आरक्षित करने के लिए है।
पैराग्राफ एक के अन्तर्गत ही स्थायी प्रकृति के पट्टे भी आयेंगे। अतः ऐसे पट्टे के सृजन के लिए रजिस्ट्रीकृत विलेख की आवश्यकता होगी। पट्टेदार के जीवनकाल के लिए सृजित लीज़ एक वर्ष से अधिक अवधि का लीज़ होता है, अतः इसे रजिस्ट्रीकृत होना चाहिए।
राजेन्द्र प्रताप सिंह बनाम रामेश्वर प्रसाद के वाद में सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया है कि एक वर्ष से अधिक की अवधि का लीज़ अनिवार्य रूप से रजिस्ट्रीकृत होना चाहिए। परन्तु यह आवश्यक नहीं है कि Lessor तथा पट्टेदार दोनों द्वारा लिखित पर हस्ताक्षर हो। इसकी वैधता के लिए केवल यह आवश्यक है कि दस्तावेज का संयुक्त रूप में निष्पादन हो। जीवनकालिक पट्टे स्थायी प्रकृति के पट्टों से भिन्न होते हैं।
प्रमुख अन्तर इस प्रकार हैं-
(क) साधारणतया स्थायी पट्टों में कोई अवधि निर्धारित नहीं होती है।
(ख) पट्टेदार एवं Lessor को मृत्यु के पश्चात् उनके विधिक उत्तराधिकारी, अधिकारों, जिनका उल्लेख लीज़ विलेख में होता है, सक्षम होते हैं।
साधारणतया स्थायी पट्टेदार क्रेता न होते हुए भी क्रेता के समस्त अधिकारों का प्रयोग करने के लिए सक्षम होता है क्योंकि विक्रय की भाँति स्थायी पट्टे के मामले में भी कालावधि का कोई अस्तित्व नहीं होता है।
अरजिस्ट्रीकरण का प्रभाव जैसा कि धारा 107 प्रथम पैरा में उल्लिखित है, स्थावर सम्पत्ति का वर्षानुवर्षी या एक वर्ष से अधिक किसी अवधि का या वार्षिक किराया आरक्षित करने वाला लीज़ केवल रजिस्ट्रीकृत लिखत द्वारा किया जा सकेगा, साथ ही धारा 106 (1) उपवन्धित करती है कि तत्प्रतिकूल संविदा या स्थानीय विधि या प्रथा न होते कृषि या विनिर्माण के प्रयोजनों के लिए स्थावर सम्पत्ति का लीज़ वर्षानुवर्षी प्रकृति का लीज़ समझा जाएगा।
अतः यदि लीज़ अनिवार्यतः रजिस्ट्रीकरणीय है, परन्तु रजिस्ट्रीकरण नहीं किया गया है तो ऐसा लीज़ अवैध होगा। एक अवैध पट्टे का नवीकरण नहीं हो सकेगा। ऐसा लीज़ केवल इच्छाजनित प्रकृति का लीज़ होगा। यदि लीज़ वैधत स्पष्ट किया गया था और लीज़ विलेख में नवीकरण प्रसंविदा का उल्लेख है तो ऐसी प्रसंविदा तभी प्रभावी होगी जय नवीकृत लीज़ की भी रजिस्ट्री हो। नवीकृत लीज़ बिना रजिस्ट्री के वैध नहीं होगा। मूल पट्टे को रजिस्ट्री नवीकृत पट्टे के लिए प्रभावी नहीं होगी। नवीकृत पट्टे की भी रजिस्ट्री उसी प्रकार होनी चाहिए जिस प्रकार मूल पट्टे की हुई थी।
एक पट्टेदार को जो अरजिस्ट्रीकृत पट्टे के अध्यधीन सम्पति धारण करता है जबकि पट्टे का रजिस्ट्रीकरण होना अनिवार्य था उसे अतिचारी नहीं माना जा सकता क्योंकि सम्पत्ति का पट्टे के रूप में कब्जा उसे सम्पत्ति स्वामी की सहमति से हो प्राप्त हुआ होगा। यदि तथाकथित पट्टेदार, संपत्ति स्वामी की सहमति के बिना सम्पत्ति पर प्रवेश करता है उसका कब्जा ले लेता है तो यह अतिचारी होगा। एक वैध पट्टे का संव्यवहार Lessor तथा पट्टेदार की इच्छा या मंशा से अस्तित्व में आता है। इसको अनुपस्थिति में कब्जा धारक भारतीय दण्ड संहिता की धारा के अन्तर्गत अतिचारी होगा।
सहमति की उपस्थिति तथा संव्यवहार प्रक्रिया का अननुपालन, संव्यवहार को इच्छाजनित लीज़ का स्थान प्रदान करता है तथा लीज़ धारक विशिष्ट अधिनियम की धारा 27 क के अन्तर्गत विशिष्ट अनुपालन हेतु एवं सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम की धारा 53 क के अन्तर्गत भागिक पालन हेतु वाद संस्थित करने में समर्थ होगा। परन्तु वर्तमान में रजिस्ट्रेशन एवं अन्य सम्बन्धित विधियाँ (संशोधन) अधिनियम, 2001 (2001 का 48) तथा सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम, 2002 (2003 का 3) इस स्थिति पर प्रश्नचिह्न लगाता हुआ प्रतीत होता है। इस स्थिति का यथाशीघ्र स्पष्टीकरण होना आवश्यक है।
अरजिस्ट्रीकृत लीज़ विलेख को साक्ष्य के रूप में स्वीकार नहीं किया जाएगी और न ही प्रमाण के रूप में द्वितीयक या मौखिक साक्ष्य प्रस्तुत किया जा सकेगा, परन्तु कब्जा की प्रकृति दर्शाने हेतु इसे साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जा सकेगा। रेन्ट को मात्रा या रकम भी साबित करने के लिये यह स्वीकार्य है।
इस प्रावधान में यह अपेक्षित है कि यदि लीज़ एक वर्ष से अधिक अवधि के लिए निष्पादित होता है तो उसका पंजीकृत होना आवश्यक होगा। यदि यह अभिकथित किया जाता है कि लीज़ पंजीकृत नहीं था किन्तु यदि इस आशय का प्रमाण दिया जाता है कि लीज़ 30 वर्ष से अधिक अवधि का है, तो यह प्रकल्पित किया जाएगा कि लीज़ साक्ष्य अधिनियम की धारा 90 के अध्यधीन निष्पादित एवं प्रमाणित है। यदि दस्तावेज को साक्ष्य के रूप में अस्वीकार्य भी समझा जाए तो भी दस्तावेज वादी के पूर्वजों के कब्जा एवं कब्जे की निरन्तरता के साक्ष्य के रूप में किराये के भुगतान को साबित करने के लिए पर्याप्त है। Lessee का सम्पत्ति पर दावा स्वीकार्य होगा
लीज़ करार का भागिक पालन रजिस्ट्रेशन की अनिवार्यता को समाप्त नहीं करता भागिक पालन के सिद्धान्त को केवल वहाँ पर उपयोग में लाया जा सकेगा जय विशिष्ट अनुपालन हेतु वाद संस्थित किया गया हो, परन्तु भागिक पालन का सिद्धान्त इस धारा में वर्णित प्रावधान या रजिस्ट्रेशन अधिनियम की धारा (1) में वर्णित सिद्धान्त पर अभिभावी नहीं होगा।