हिमाचल प्रदेश अर्बन रेंट कंट्रोल अधिनियम, 1987: गलत तरीके से दिए गए किराए की वसूली और स्थानीय करों के कारण किराए में बढ़ोतरी के नियम

Himanshu Mishra

18 Feb 2025 12:58 PM

  • हिमाचल प्रदेश अर्बन रेंट कंट्रोल अधिनियम, 1987: गलत तरीके से दिए गए किराए की वसूली और स्थानीय करों के कारण किराए में बढ़ोतरी के नियम

    हिमाचल प्रदेश अर्बन रेंट कंट्रोल अधिनियम, 1987 (Himachal Pradesh Urban Rent Control Act, 1987) किरायेदारों (Tenants) के अधिकारों की सुरक्षा करता है और मकान मालिकों (Landlords) को उनके दायित्व (Responsibilities) निर्धारित करता है।

    इस अधिनियम के सेक्शन (Section) 9 और 10 दो महत्वपूर्ण विषयों से जुड़े हुए हैं—पहला, यदि किरायेदार ने कोई ऐसा किराया (Rent) या राशि (Amount) का भुगतान किया है जो कानूनन उसे नहीं देना चाहिए था, तो वह इसे वापस कैसे प्राप्त कर सकता है।

    दूसरा, किन परिस्थितियों में मकान मालिक को किराया बढ़ाने (Rent Increase) का अधिकार है, विशेष रूप से जब सरकार या स्थानीय निकाय (Local Authority) किसी नए कर (Tax) को लागू करती है। ये नियम इस बात को सुनिश्चित करते हैं कि मकान मालिक अनावश्यक रूप से किरायेदारों पर आर्थिक बोझ न डालें और किरायेदारों को उनकी मेहनत की कमाई का अनुचित नुकसान न हो।

    सेक्शन 9: गलत तरीके से दिया गया किराया वापस लेने का अधिकार (Recovery of Wrongly Paid Rent)

    सेक्शन 9 यह स्पष्ट करता है कि यदि किसी किरायेदार ने कोई ऐसी राशि मकान मालिक को दी है जो इस अधिनियम के तहत वैध (Legal) नहीं है, तो उसे वापस पाने का पूरा अधिकार है। यह प्रावधान (Provision) उन किरायेदारों की सुरक्षा करता है जो किसी दबाव या जानकारी के अभाव में गलत तरीके से अधिक किराया या अन्य शुल्क चुका देते हैं।

    यदि किरायेदार ने ऐसा कोई भुगतान किया है, तो वह इसे एक साल (One Year) के भीतर वापस मांग सकता है। यदि भुगतान इस अधिनियम के लागू होने से पहले किया गया था, तो किरायेदार के पास इसे वापस लेने के लिए अधिनियम के लागू होने की तारीख से एक साल का समय होगा।

    किरायेदार इस राशि को मकान मालिक से सीधे मांग सकता है, और यदि मकान मालिक वापस करने से इनकार करता है, तो किरायेदार इसे आने वाले किराए में समायोजित (Adjust) कर सकता है। इसका मतलब है कि जितनी राशि गलत तरीके से दी गई थी, उतनी राशि वह अपने मासिक किराए में घटाकर चुका सकता है।

    उदाहरण (Illustration)

    एक किरायेदार राहुल अपने मकान मालिक श्री वर्मा को हर महीने ₹5,000 किराए के रूप में दे रहा था। मकान मालिक ने ₹10,000 "सिक्योरिटी डिपॉजिट" (Security Deposit) के रूप में मांगे, जो कि इस अधिनियम के तहत अवैध था। राहुल, अपनी कानूनी अधिकारों की जानकारी न होने के कारण, यह राशि दे देता है। बाद में, जब उसे सेक्शन 9 के बारे में जानकारी मिलती है, तो वह समझता है कि यह राशि गलत तरीके से वसूली गई थी। अब, वह इसे वापस लेने के लिए अगले दो महीनों का किराया नहीं चुकाता और इसे उस गलत भुगतान के बराबर समायोजित कर देता है। यह पूरी तरह से कानूनन वैध (Legally Valid) है।

    कानूनी उत्तराधिकारी (Legal Representative) और किराए की वसूली

    कई बार ऐसा हो सकता है कि किरायेदार या मकान मालिक की मृत्यु (Death) हो जाए और गलत तरीके से दिया गया किराया वापस न लिया जा सके। इस स्थिति में, कानून यह स्पष्ट करता है कि किरायेदार के कानूनी उत्तराधिकारी (Legal Heir) को यह पैसा वापस लेने का अधिकार होगा। इसी तरह, यदि मकान मालिक की मृत्यु हो जाती है, तो किरायेदार उस राशि की वसूली मकान मालिक के उत्तराधिकारी से कर सकता है।

    सेक्शन 9 में "कानूनी उत्तराधिकारी" (Legal Representative) का वही अर्थ है जो सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (Code of Civil Procedure, 1908) में दिया गया है। यदि यह राशि संयुक्त परिवार संपत्ति (Joint Family Property) से संबंधित हो, तो पूरा परिवार उत्तराधिकारी माना जाएगा।

    उदाहरण (Illustration)

    सुरेश, एक किरायेदार, ने गलती से ₹15,000 मकान मालिक श्री शर्मा को दिए थे। सुरेश की मृत्यु हो गई, लेकिन यह राशि वापस नहीं मिली। अब सुरेश का बेटा रमेश, जो उसका कानूनी उत्तराधिकारी है, इस राशि को श्री शर्मा से वापस लेने का हकदार होगा। यदि श्री शर्मा की भी मृत्यु हो जाती है, तो रमेश यह पैसा उनके उत्तराधिकारी से मांग सकता है।

    सेक्शन 10: स्थानीय करों के कारण किराया बढ़ाने के नियम (Increase in Rent Due to Local Government Taxes)

    सेक्शन 10 यह स्पष्ट करता है कि सामान्य रूप से मकान मालिक किराया नहीं बढ़ा सकता, लेकिन यदि सरकार या स्थानीय निकाय (Local Authority) नए कर (Tax), शुल्क (Cess), या अन्य शुल्क लगाते हैं, तो मकान मालिक को उन अतिरिक्त शुल्कों के आधार पर किराया बढ़ाने की अनुमति है।

    अगर किसी किराए की अवधि शुरू होने के बाद सरकार कोई नया कर, उपकर (Cess), या शुल्क (Rate) लगाती है या पहले से लगे करों में वृद्धि करती है, तो मकान मालिक उसी अनुपात में किराया बढ़ा सकता है। हालांकि, यह वृद्धि केवल उस अतिरिक्त कर या शुल्क की राशि तक सीमित होगी।

    उदाहरण (Illustration)

    पूजा, जो कि एक दुकान किराए पर चला रही थी, हर महीने ₹7,000 किराया देती थी। नगरपालिका ने नए संपत्ति कर (Property Tax) के रूप में हर महीने ₹500 लगाने का निर्णय लिया। इस स्थिति में, पूजा के मकान मालिक को अधिकतम ₹500 तक किराया बढ़ाने की अनुमति होगी, लेकिन उससे अधिक नहीं।

    अन्य करों के लिए मकान मालिक किराया नहीं बढ़ा सकता (Rent Cannot Be Increased for Other Taxes)

    सेक्शन 10(2) यह सुनिश्चित करता है कि मकान मालिक अन्य किसी भी प्रकार के कर (Taxes) का बोझ किरायेदार पर नहीं डाल सकता। अगर मकान मालिक किराया बढ़ाकर या किसी अन्य तरीके से किरायेदार से कर वसूलने की कोशिश करता है, तो यह कानूनन अवैध होगा।

    उदाहरण (Illustration)

    अनिता, जो ₹6,500 प्रति माह किराया देती थी, को उसके मकान मालिक श्री कपूर ने बताया कि उसे नगरपालिका को सालाना ₹10,000 संपत्ति कर (Property Tax) देना पड़ता है। इस कारण से, उन्होंने अनिता का किराया ₹800 प्रति माह बढ़ा दिया। लेकिन क्योंकि संपत्ति कर मकान मालिक की जिम्मेदारी होती है, यह किराया वृद्धि अवैध (Illegal) होगी। अनिता इस मामले को अदालत में चुनौती दे सकती है।

    सेक्शन 9 और 10 किरायेदारों और मकान मालिकों के अधिकारों को संतुलित (Balance) करते हैं। सेक्शन 9 यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी किरायेदार गलती से दिया गया अतिरिक्त किराया वापस प्राप्त कर सकता है, चाहे वह मकान मालिक से सीधे मांगा जाए या भविष्य के किराए से समायोजित किया जाए।

    वहीं, सेक्शन 10 मकान मालिकों को यह अनुमति देता है कि यदि सरकार नए कर या शुल्क लागू करती है, तो वे किराया बढ़ा सकते हैं। हालांकि, यह वृद्धि केवल नए करों तक सीमित होगी, और मकान मालिक अन्य करों का भार किरायेदार पर नहीं डाल सकते।

    ये प्रावधान किरायेदारों को अनुचित किराया वृद्धि से बचाने और मकान मालिकों को उचित किराया संशोधन (Fair Rent Adjustment) की अनुमति देने के लिए बनाए गए हैं।

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