अपराध के आरोपी अस्वस्थ मानसिकता वाले व्यक्तियों के लिए धारा 367, BNSS 2023 के प्रावधान
Himanshu Mishra
20 Feb 2025 11:54 AM

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023 – BNSS), जो पहले की दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure – CrPC) की जगह लाई गई है, इसमें यह सुनिश्चित करने के लिए प्रावधान (Provisions) किए गए हैं कि अस्वस्थ मानसिकता (Unsound Mind) या बौद्धिक अक्षमता (Intellectual Disability) वाले व्यक्तियों को न्यायिक प्रक्रिया (Judicial Process) में उचित तरीके से संभाला जाए।
धारा 367 (Section 367) विशेष रूप से इस बात को तय करती है कि अगर किसी आरोपी (Accused) के मानसिक रूप से अस्वस्थ (Mentally Unsound) होने का संदेह हो, तो मजिस्ट्रेट (Magistrate) को क्या प्रक्रिया अपनानी होगी।
इस धारा में यह तय किया गया है कि मानसिक रोग विशेषज्ञों (Psychiatrists) और चिकित्सा अधिकारियों (Medical Officers) की राय ली जाए, और आरोपी को उसकी स्थिति के अनुसार उचित देखभाल दी जाए। इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि ऐसे व्यक्तियों के साथ कोई अन्याय न हो और उन्हें उनकी मानसिक स्थिति के अनुसार सही न्याय मिले।
मजिस्ट्रेट द्वारा मानसिक स्थिति की जांच (Inquiry by Magistrate into Unsoundness of Mind)
धारा 367 के उपखंड (1) के अनुसार, यदि कोई मजिस्ट्रेट किसी आरोपी के व्यवहार (Behavior) को देखकर यह समझता है कि वह अस्वस्थ मानसिकता (Unsound Mind) वाला हो सकता है और अपने बचाव (Defense) में सक्षम नहीं है, तो मजिस्ट्रेट को आरोपी की मानसिक स्थिति की जांच करनी होगी।
इस जांच के लिए मजिस्ट्रेट को जिले के सिविल सर्जन (Civil Surgeon) या राज्य सरकार द्वारा नामित किसी अन्य चिकित्सा अधिकारी (Medical Officer) से आरोपी का परीक्षण (Examination) करवाना होगा। इसके बाद, इस चिकित्सा अधिकारी से गवाही (Testimony) भी ली जाएगी और इसे लिखित रूप में दर्ज (Record) किया जाएगा।
उदाहरण के तौर पर, यदि कोई व्यक्ति चोरी (Theft) के आरोप में पकड़ा जाता है लेकिन अदालत (Court) में असंगत बातें करता है और समझने में असमर्थ प्रतीत होता है, तो मजिस्ट्रेट को यह सुनिश्चित करना होगा कि उसकी मानसिक स्थिति (Mental Condition) की पहले जांच करवाई जाए। इससे यह सुनिश्चित होगा कि किसी मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति पर गलत तरीके से मुकदमा (Trial) न चलाया जाए।
मानसिक रोग विशेषज्ञ या क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट को रेफर करना (Referral to Psychiatrist or Clinical Psychologist)
धारा 367 के उपखंड (2) के अनुसार, यदि सिविल सर्जन किसी आरोपी को मानसिक रूप से अस्वस्थ पाता है, तो उसे आगे एक मानसिक रोग विशेषज्ञ (Psychiatrist) या किसी सरकारी अस्पताल (Government Hospital) या मेडिकल कॉलेज (Medical College) में कार्यरत क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट (Clinical Psychologist) के पास भेजा जाएगा।
इस विशेषज्ञ (Specialist) का कार्य केवल इलाज (Treatment) करना ही नहीं बल्कि यह भी तय करना है कि आरोपी मानसिक बीमारी (Mental Illness) से ग्रसित है या बौद्धिक अक्षमता (Intellectual Disability) से।
उदाहरण के लिए, अगर कोई व्यक्ति स्किज़ोफ्रेनिया (Schizophrenia) से पीड़ित है और उस पर हत्या (Murder) का आरोप है, तो मानसिक रोग विशेषज्ञ यह जांच करेंगे कि उसकी स्थिति (Condition) ऐसी है कि वह कानूनी प्रक्रिया (Legal Process) को समझ सकता है या नहीं। यदि वह अपने बचाव में सक्षम नहीं है, तो आगे की प्रक्रिया इस धारा के अनुसार चलेगी।
मानसिक स्थिति पर विशेषज्ञ की राय को चुनौती देने का अधिकार (Right to Appeal Against Psychiatric Opinion)
इस धारा में यह भी प्रावधान किया गया है कि यदि आरोपी या उसका वकील (Lawyer) मानसिक रोग विशेषज्ञ (Psychiatrist) या क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट (Clinical Psychologist) की रिपोर्ट से संतुष्ट नहीं है, तो वह मेडिकल बोर्ड (Medical Board) के समक्ष अपील (Appeal) कर सकता है।
मेडिकल बोर्ड में दो विशेषज्ञ (Experts) होते हैं:
1. नजदीकी सरकारी अस्पताल के मानसिक रोग विभाग (Psychiatry Department) के प्रमुख।
2. नजदीकी सरकारी मेडिकल कॉलेज (Medical College) के मानसिक रोग विशेषज्ञ संकाय सदस्य (Faculty Member)।
उदाहरण के लिए, यदि किसी आरोपी को मानसिक रूप से स्वस्थ घोषित कर दिया जाता है, लेकिन उसके परिवार को लगता है कि वह वास्तव में गंभीर मानसिक बीमारी (Serious Mental Illness) से पीड़ित है, तो वे इस रिपोर्ट को चुनौती (Challenge) देकर मेडिकल बोर्ड के पास पुनः परीक्षण (Re-Examination) के लिए अपील कर सकते हैं।
जांच पूरी होने तक मजिस्ट्रेट की शक्तियां (Magistrate's Authority Pending Examination)
धारा 367 के उपखंड (3) के तहत मजिस्ट्रेट को यह अधिकार दिया गया है कि जब तक आरोपी की मानसिक स्थिति की जांच (Examination) और चिकित्सा परीक्षण (Medical Inquiry) पूरा नहीं हो जाता, तब तक वह आरोपी को अस्थायी रूप से संभालने (Temporary Handling) के लिए उचित निर्णय ले सकता है।
उदाहरण के लिए, यदि मजिस्ट्रेट को लगता है कि कोई व्यक्ति गंभीर मानसिक बीमारी से ग्रसित है, तो उसे जेल (Jail) में रखने की बजाय किसी मानसिक स्वास्थ्य संस्थान (Mental Health Institution) में भेजा जा सकता है।
मानसिक अक्षमता के आधार पर मुकदमे की प्रक्रिया (Determination of Mental Incapacity to Stand Trial)
धारा 367 के उपखंड (4) के अनुसार, यदि मानसिक रोग विशेषज्ञ या क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट यह पुष्टि करते हैं कि आरोपी अस्वस्थ मानसिकता का है, तो मजिस्ट्रेट को यह तय करना होगा कि क्या यह अस्वस्थता आरोपी को अपने बचाव (Defense) में अक्षम बनाती है या नहीं।
1. अगर कोई प्राथमिक साक्ष्य (Prima Facie Evidence) नहीं है – मजिस्ट्रेट को मामले की सुनवाई (Hearing) को स्थगित (Postpone) करने की बजाय आरोपी को तत्काल रिहा (Discharge) करना होगा और उसे धारा 369 के अनुसार संभाला जाएगा।
2. अगर प्राथमिक साक्ष्य मौजूद है – मजिस्ट्रेट को सुनवाई स्थगित कर देनी होगी और आरोपी को उचित चिकित्सा उपचार (Medical Treatment) के लिए भेजना होगा।
उदाहरण के लिए, अगर किसी व्यक्ति पर हमले (Assault) का आरोप है लेकिन मानसिक परीक्षण से पता चलता है कि वह कानूनी प्रक्रिया को समझने में सक्षम नहीं है, तो सुनवाई को स्थगित कर दिया जाएगा जब तक कि उसकी मानसिक स्थिति सुधर न जाए।
बौद्धिक अक्षमता के मामलों में प्रक्रिया (Cases Involving Intellectual Disability)
धारा 367 के उपखंड (5) के अनुसार, यदि किसी आरोपी को मानसिक बीमारी के बजाय बौद्धिक अक्षमता (Intellectual Disability) है, तो मजिस्ट्रेट को यह तय करना होगा कि क्या यह अक्षमता उसे अपने बचाव में अक्षम बना रही है।
अगर आरोपी वास्तव में अपनी रक्षा करने में असमर्थ है, तो मजिस्ट्रेट को मुकदमे की कार्यवाही बंद (Closure of Inquiry) करनी होगी और आरोपी को धारा 369 के अनुसार उचित देखभाल (Care) दी जाएगी।
उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति जो जन्मजात मानसिक मंदता (Congenital Intellectual Disability) से पीड़ित है, उस पर अपराध का आरोप लगाया जाता है, लेकिन वह कानूनी प्रक्रिया को नहीं समझ सकता, तो मामला आगे नहीं बढ़ेगा।
धारा 367 न्याय सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो मानसिक रूप से अस्वस्थ या बौद्धिक रूप से अक्षम आरोपियों को कानूनी सुरक्षा (Legal Protection) देता है। इस प्रावधान के तहत मेडिकल जांच, विशेषज्ञों की राय, अपील का अधिकार, और कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किया जाता है ताकि किसी भी मानसिक रूप से अक्षम व्यक्ति के साथ अन्याय न हो। यह प्रावधान न्याय प्रणाली को अधिक मानवीय (Humane) और निष्पक्ष (Fair) बनाता है।