Transfer Of Property में किसी भी लीज के Lessor की लाइबिलिटी
Shadab Salim
21 Feb 2025 3:23 AM

धारा 108 Lessor तथा Lessee के अधिकारों एवं दायित्वों के सम्बन्ध में प्रावधान प्रस्तुत करता है, परन्तु ये अधिकरण एवं दायित्व आत्यन्तिक नहीं हैं। ये संविदा या स्थानीय प्रथा के अध्यधीन होते हैं, किन्तु किसी स्थानीय विधि के अध्यधीन नहीं होते हैं। Lessor तथा Lessee स्वयं इसमें वर्णित अधिकारों एवं कर्तव्यों से भिन्न अधिकारों एवं कर्तव्यों पर सहमत हो सकते हैं। यह धारा केवल तब प्रवर्तित होती है जब कोई तत्प्रतिकूल संविदा न हो ।
Lessor की लाइबिलिटी
सम्पत्ति में के किसी अप्रत्यक्ष सारवान दोष प्रकट करने का कर्तव्य-
यह दायित्व विक्रय के मामले में प्रचलित दायित्व के समान है। Lessor लीज़ दी जाने वाली सम्पत्ति में के उन सभी दोषों को Lessee को प्रकट करने के लिए बाध्य है जो प्रस्तावित उपभोग के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण हो, जो Lessor को ज्ञात हो, जो Lessee को ज्ञात न हो जो मामूली सावधानी बरतने से मालूम नहीं किया जा सके।
दूसरे शब्दों में Lessor का उक्त कर्तव्य गुप्त दोषों को प्रकट करने तक सीमित है। यदि Lessor प्रकटीकरण के अपने इस दायित्व का निर्वहन करने में विफल रहता है तो उसका कृत्य संविदा अधिनियम की धारा 17 के अन्तर्गत कपट का कृत्य होगा तथा सामान्य संविदाओं की भाँति पट्टे की संविदा भी शून्यकरणीय होगी।
सारवान दोष, जो पट्टे की संविदा को प्रभावित कर सकेगा ऐसी प्रकृति का होना चाहिए जिसे, यदि लीज़ग्रहीता जानता, तो वह इस संव्यवहार का भागीदार नहीं बनता। उदाहरणार्थ सम्पत्ति पर अधिरोपित दायित्व जिसके अन्तर्गत सम्पत्ति को अनिवार्यतः अधिगृहीत किया जाना था. इस प्रयोजन हेतु सारवान् दोष की प्रकृति का माना जाएगा। यह एक ऐसा दोष है जिसे Lessee साधारण सावधानी से नहीं खोज सकेगा।
ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि यह उपखण्ड Lessor से यह अपेक्षा नहीं करता है कि वह तुच्छ प्रकृति के दोषों को प्रकट करे जैसा लीज़ सम्पत्ति का भौतिक रूप से उपयोग हेतु अच्छी स्थिति में न होगा खिड़की के शीशे का टूटा होना या दरवाजे के पल्लों का ठीक से बन्द न होना पदावलि "साधारण सावधानी" एक अनिश्चित प्रकृति की अभिव्यक्ति है।
Lessor को टाइटिल में किसी प्रकार का दोष, इस धारा के अर्थ के अन्तर्गत सारवान दोष, नहीं है। लैण्डलार्ड का यह कर्तव्य है कि वह अपने टेनेन्ट को सम्पत्ति के सभी निहित दोषों को प्रकट करें। यदि किसी छप्परयुक्त बंगला में आग लगने से टेनेण्ट का फर्नीचर जल जाता है तथा आग, चिमनी में विद्यमान किसी दोष के कारण लगती है एवं ऐसे दोष के विषय में लैण्डलाई ने टेनेण्ट को अवगत नहीं कराया था तो टेनेण्ट को हुई हानि के लिए लॅण्डलाई उत्तरदायी होगा।
लैण्डलाई का यह दायित्व है कि वह टूटा प्रदान करते समय सम्पत्ति में विद्यमान दोषों को Lessee को प्रकट करे, यद्यपि यह बताना आवश्यक नहीं है कि संदत सम्पत्ति कालान्तर में विनष्ट होकर उसकी उपयोगिता को कम कर सकेगी।
तारक नाथ बनाम भुटोरिया ब्रदर्स के वाद में एक कम्पनी ने एक परिसर किराये पर लिया जिसमें कम्पनी का डायरेक्टर निवास कर रहा था। डायरेक्टर का अभिकथन था कि कम्पनी ने अपने पट्टे का समर्पण कर दिया था तथा उसने अपनी व्यक्तिगत हैसियत में उक्त परिसर का नवीन लीज़ अपने पक्ष में करा लिया था। प्रश्न यह था कि क्या कंपनी द्वारा पट्टे का वैध पर्यवसान हुआ है। इस प्रश्न का उत्तर इस आधार पर प्राप्त किया जा सकेगा कि टेनेन्ट कम्पनी किस प्रकार का साक्ष्य प्रस्तुत करती है। पट्टे का पर्यवसान हुआ, इसको अवधारणा नहीं की जा सकेगी। इस तथ्य का अभिकथन करने वाले पक्षकार को साक्ष्य प्रस्तुत कर पट्टे के पर्यवसान की स्थिति को साबित करना होगा।
यदि इस प्रश्न का उत्तर सकारात्मक है तभी और केवल तभी नवीन Lesseeों के प्रश्न पर विचार हो सकेगा। दोषों को प्रकट करने का Lessor संपत्ति में सारवान दोषों जो सम्पत्ति को आशयित उपभोग से सम्बन्धित हो, को प्रकट करने तक सीमित है। ये शब्द केवल सम्पत्ति की प्रकृति एवं स्थिति से सम्बन्धित हैं। इस प्रावधान में यह बाध्यता नहीं है कि Lessor दस्तावेज प्रस्तुत करे अथवा पूछे गये प्रश्नों का उत्तर दे। Lessee, Lessor से यह अनुरोध नहीं कर सकेगा कि वह अपने स्वत्व के सम्बन्ध में संध्यवहार को पूर्ण होने से पूर्व सन्तोषजनक साक्ष्य प्रस्तुत करे परन्तु Lessee को यह अधिकार होगा कि वह संव्यवहार को पूर्ण करने से इन्कार कर दे पूरा आशय का साक्ष्य प्रस्तुत करें कि Lessor का स्वत्व (टाइटिल) दोषपूर्ण है।
कब्जा का परिदान
Lessor Lessee की प्रार्थना पर उसे सम्पत्ति पर कब्जा देने के लिए आबद्ध है। यह प्रावधान इसी अधिनियम की धारा 55 (1) (च) में उपवन्धित दायित्व के समानान्तर है। धारा 108 (ख) का महत्वपूर्ण लक्षण यह है कि Lessor तब सम्पत्ति का कब्जा देने के लिए आबद्ध होगा जब कब्जा की माँग Lessee द्वारा की गयी हो। सम्पत्ति का कब्जा न मिलने के कारण Lessee किराया अदा करने के दायित्वाधीन नहीं होगा। यदि Lessor किराया हेतु वाद संस्थित करता है तो Lessee कब्जा न मिलने की स्थिति को अपने बचाव हेतु एक महत्वपूर्ण साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत कर सकेगा।
यदि Lessee को लीज़ सम्पत्ति के केवल एक अंश का कब्जा प्राप्त होता है तो वह केवल उसी अंश के लिए किराया देने के दायित्वाधीन होगा यदि Lessor सम्पूर्ण लीज़ सम्पत्ति का कब्जा संदत करने में विफल रहता है तो Lessee को यह अधिकार होगा कि सम्पूर्ण लीज़ संविदा को इन्कार कर दे, किन्तु यदि वह ऐसा न कर, सम्पत्ति के उस अंश को, जिसका कब्जा उसे प्राप्त हुआ है, धारण किए रहता है तो यह उक्त अंश के लिए आनुपातिक किराया अदा करने के दायित्वाधीन होगा।
यदि पट्टे के सृजन के समय सम्पत्ति किसी तीसरे व्यक्ति के पास थी तथा यह तथ्य Lessor एवं Lessee दोनों को ज्ञात था, तो Lessor का यह कर्तव्य होगा कि वह ऐसी स्थिति उत्पन्न करे जिससे सम्पत्ति का कब्जा तीसरे व्यक्ति के पास से Lessee को मिल जाए, किन्तु यदि Lessee को सम्पत्ति के विषय में पूर्ण ज्ञान था तथा सम्पत्ति का कब्जा प्राप्त करने में किसी प्रकार की बाधा या अड़चन नहीं थी, तो Lessor, Lessee को सम्पत्ति का कब्जा दिलाने के दायित्वाधीन नहीं है।
जब तक कि Lessee इस आशय का अनुरोध Lessor से न करे। यदि Lessee न तो स्वयं सम्पत्ति का कब्जा प्राप्त करता है और न ही यह Lessor से अनुरोध करता है कि वह उसे सम्पत्ति का कब्जा प्रदान करे या दिलाये तो यह किराया हेतु संस्थित वाद का विरोध इस आधार पर नहीं कर सकेगा कि उसे सम्पत्ति का कब्जा नहीं प्राप्त हुआ है। यदि सम्पत्ति एक तीसरे व्यक्ति के कब्जे में है उदाहरणार्थ पूर्विक Lessee के कब्जे में, तो पाश्चिक बन्धकदार को यह अधिकार होगा कि वह Lessor तथा पूर्वक Lessee, दोनों के ही विरुद्ध बाद संस्थित करे। वस्तुतः वैध कार्यवाही यही है कि दोनों ही के विरुद्ध वाद संस्थित किया जाए।
यदि Lessee इस बात से इन्कार करता है कि उसे लीज़ सम्पत्ति का कब्जा कभी प्राप्त हुआ था, जिसकी शिनाख्त कभी विवादास्पद नहीं थी, तो Lessor तब तक किराया की मांग नहीं कर सकेगा जब तक कि वह यह साबित न कर दे कि Lessee को सम्पत्ति का कब्जा प्रदान किया गया था और यह कब्जा लीज़ की संविदा के अध्यधीन दिया गया था। परन्तु यदि Lessee ने किराया का भुगतान कर दिया है, तो यह साबित करने का भार उस पर ही होगा कि उसने उस सम्पत्ति के लिए भी किराया अदा कर दिया है जिसका कब्जा उसे नहीं प्राप्त हुआ था पर जिसका कब्जा उसे मिलना चाहिए।
यदि Lessee को सम्पत्ति का कब्जा नहीं प्राप्त हुआ है तो यह Lessor के विरुद्ध अचल सम्पत्ति के प्रलाभ हेतु जो उसने अवैध ढंग से प्राप्त किया हो या संविदा भंग हेतु क्षतिपूर्ति के लिए वाद संस्थित कर सकेगा।
शान्तिपूर्ण उपभोग के लिए प्रसंविदा
Lessor का यह परम कर्तव्य है कि वह लीज़ सम्पत्ति के शांतिपूर्ण उपभोग हेतु Lessee के पक्ष में एक प्रसंविदा करे। यह प्रसंविदा लीज़ संविदा का एक अभिन्न अंग होती है तथा इसे लीज़ संविदा में सम्मिलित माना जाता है। इसके विपरीत विक्रय के मामले में धारा 55 के अन्तर्गत यह संविदा का अंग नहीं होती है। यह मात्र एक सांविधिक दायित्व होता है। वर्तमान प्रावधान सपठित धारा 18 एवं 25, विशिष्ट अनुतोष अधिनियम 1963 यह सुस्पष्ट करती है कि Lessor का सम्पत्ति में हित, पट्टे के मामले में उतना ही सारवान है जितना कि विक्रम के मामले में परन्तु जब Lessee, Lessor के विरुद्ध किराये या प्रीमियम की वसूली के लिए वाद संस्थित करता है तो Lessor की त्रुटिपूर्ण या दोषपूर्ण हित को साबित करने का दायित्व Lessee पर होता है। यदि Lessor लीज़जनित सम्पत्ति पर कोई स्वत्व नहीं रखता है तथा एक अनजाना व्यक्ति एक पटेदार को कब्जा लेने से रोकता है तो ऐसी स्थिति में Lessee Lessor से प्रीमियम की रकम को वापस पाने का अधिकारी होगा।
यह प्रसंविदा कि Lessee को सम्पत्ति के शान्तिपूर्ण उपभोग का अधिकार प्राप्त होगा प्रत्येक पट्टे की संविदा में अन्तर्विष्ट होता है, किन्तु वह प्रत्यक्षतः इससे सम्बन्धित नहीं है। इसका अभिप्राय यह है कि Lessee को सम्पत्ति का कब्जा प्रदान किया जाएगा तथा वह क्षतिपूर्ति प्राप्त करने के लिए प्राधिकृत होगा। यदि उसके उपभोग में सारवान व्यवधान उत्पन्न किया जाता है तो या तो स्वयं Lessor के किसी कृत्य से या उसके अधीन दावा करने वाले किसी व्यक्ति के किसी फूल्य से। व्यवधान से मुक्ति हेतु वह प्रसंविदा होती है।
उदाहरण के लिए, यदि लीज़ प्रदान करते समय Lessor ने यह अधिकार सुरक्षित रखे हुए है कि यह खनिजों की खुदाई करेगा और वह खुदाई इस प्रकार करता है कि जमीन धंस जाती है या जहाँ शिकार करने के लिए भूमि पट्टे पर दी गयी थी, Lessor जमीन पर एक भवन का इस प्रकार निर्माण करता है कि शिकार के लिए भूमि कम पड़ जाती है अथवा यह Lessee को विवश करना चाहता है जिससे यह लीज़ सम्पत्ति छोड़ दे, और इस निमित्त यह मकान के दरवाजे एवं खिड़कियाँ निकाल लेता है अथवा Lessee को लगातार धमकियों देता है या रास्ते में इस प्रकार अवरोध उत्पन्न करता है कि Lessee का आना-जाना कठिन हो जाता है।
ऐसे कृत्य लीज़ सम्पत्ति के उपभोग में सारवान व्यवधान उत्पन्न करते हुए माने जाएंगे। परन्तु यदि ऐसे कृत्य एक ऐसे व्यक्ति द्वारा किए जा रहे हैं जो अपने स्वतंत्र अधिकार एवं सार्वभौम हित के अन्तर्गत कर रहा है तो इसे व्यवधान नहीं माना जाएगा। धारा 108 (ग) के अन्तर्गत Lessee को यह विकल्प प्राप्त है कि वह चाहे तो पट्टे को समाप्त कर सके या उसे बनाये रखे। यदि वह चाहे तो उसे शून्य घोषित करा सकेगा और यदि वह ऐसा निर्णय लेता है तो उसे सम्पत्ति का कब्जा Lessor को वापस करना होगा जैसा कि धारा 108 (घ) में अपेक्षित है।
प्रस्तुत प्रावधान सार्वभौम उपयोग का है चाहे वह प्रावधान किसी क्षेत्र या इलाके में प्रवर्तित हो या नहीं। यह ध्यान देने योग्य तथ्य है कि इस प्रावधान में उल्लिखित शान्तिपूर्ण उपभोग की प्रसंविदा, Lessor या उसके अधीन माँग करने वाले व्यक्ति द्वारा Lessee के कब्जे में व्यवधान उत्पन्न करने तक विस्तारित है। इसी प्रकार Lessor का भूस्वामी भी व्यवधान उत्पन्न करता है तो वह इस धारा के अन्तर्गत प्रभावित होगा, परन्तु यदि कोई अजनबी व्यवधान उत्पन्न करता है तो यह व्यवधान इस धारा के अन्तर्गत प्रभावित नहीं होगा।
यदि एक तीसरा पक्षकार Lessor एवं Lessee दोनों को अपदस्थ कर देता है निष्पादन विक्रय में सार्वभौम स्वत्व प्राप्त कर तथा Lessee नये स्वामी का अपने आपको अभिधारी किराया का भुगतान कर मान लेता है तो ऐसी स्थिति में Lessor का स्वत्व (टाइटिल) समाप्त हो जाएगा तथा के प्रवर्तन से पट्टे का समर्पण हो जाएगा। परिणामस्वरूप, Lessee की बेदखली के पश्चात् Lessor, Lessee से किराया की मांग नहीं कर सकेगा।
गजाधर बनाम राममाऊ के मामले में मूल लीज़कतां ने उपLessee को इस आधार पर थिएटर चलाने से मना कर दिया क्योंकि उसने पट्टे के पर्यवसान हेतु Lessee को नोटिस दे दिया है तथा उप Lessee थिएटर स्वामी से, अतिरिक्त रकम का भुगतान कर नवीन लीज़ प्राप्त कर ले। इन तथ्यों पर यह अभिनिर्णीत हुआ कि शान्तिपूर्ण उपभोग को प्रसंविदा का उल्लंघन हुआ है, फलतः उपLessee, मूल Lessee के विरुद्ध क्षतिपूर्ति प्राप्त करने हेतु वाद संस्थित कर सकेगा।
इस प्रखण्ड में प्रयुक्त निर्विघ्न" या "व्यवधान रहित" शब्द किसी भी रूप में अहिंत नहीं है। अतः इसे अअर्हित रूप में शान्तिपूर्ण उपभोग के अधिकार के तुल्य माना जाएगा।
इस प्रावधान के अन्तर्गत Lessor, Lessee को अपने अधीन माँग करने वाले प्रत्येक व्यक्ति द्वारा कारित व्यवधान से संरक्षण प्रदान करने के दायित्वाधीन है। परन्तु यह प्रश्न उठता है कि किस सीमा तक Lessor संरक्षण प्रदान करने के दायित्वाधीन है। इस प्रश्न का उत्तर कलकत्ता हाईकोर्ट ने नवरंग बनाम ए० जे० मेक के बाद में दिया है। न्यायालय के मतानुसार Lessor को ऐसे किसी भी व्यक्ति द्वारा कारित सभी व्यवधानों के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकेगा चाहे यह व्यवधान या विघ्न कितना ही साशय या उपेक्षापूर्ण क्यों न हो। Lessor के दायित्व की कतिपय सीमा निर्धारित होनी चाहिए।
ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि इस प्रखण्ड को सशर्त रूप में उपबन्धित किया गया है। परन्तु इससे यह अर्थ नहीं निकाला जाना चाहिए कि किराये का वास्तविक पूर्विक भुगतान, Lessee के शान्तिपूर्ण कब्जा एवं उपभोग के अधिकार की पूर्विक शर्त है। इसका अर्थ यह नहीं है कि यदि Lessee किराया की किसी किस्त का भुगतान करने में विफल रहता है तो उसे सम्पत्ति से बेदखल कर दिया जाएगा यह सम्पत्ति का कब्जा धारण किए रहेगा तथा सम्पत्ति का उपभोग करता रहेगा।
Lessor द्वारा बेदखली यदि Lessee को दी गयी सम्पत्ति एक अतिचारी के वास्तविक कब्जे में है तथा Lessor एक तीसरे पक्षकार के साथ समझौता कर सम्पत्ति उसे सौंप देता है तथा तीसरा पक्षकार उस अतिचारी को सम्पत्ति से बेदखल कर उसका कब्जा प्राप्त कर लेता है तो अतिचारों का बहिष्कृत या बेदखल होना Lessee के बेदखल होने के तुल्य है। यदि Lessor ने अपने कार्य से Lessee को बेदखल कर दिया है या Lessee Lessor के किसी कार्य के फलस्वरूप सम्पत्ति का कब्जा प्राप्त नहीं कर सका या उसके किसी अंश का कब्जा नहीं प्राप्त कर सका तो वह किराया का भुगतान करने से इन्कार कर सकेगा।
पट्टे की निरन्तरता के दौरान लीज़फर्ता भू-स्वामी कब्जा प्राप्त करने हेतु वाद संस्थित नहीं कर सकेगा भले ही लीज़ सम्पत्ति पर अतिचारी विद्यमान हो। अतिचारी द्वारा प्रतिकूल कब्जा भू-स्वामी के विरुद्ध पट्टे की निरन्तरता के दौरान प्रभावी नहीं होगा। एक टेनेन्ट संदत्त प्रीमियम को वापस लेने का अधिकारी केवल इस आधार पर नहीं होगा कि अतिचारी द्वारा व्यवधान उत्पन्न किया गया है।
अनुवृद्धियाँ- यदि पट्टे के चालू रहने के दौरान सम्पत्ति में कोई अनुवृद्धि होती है तो ऐसी वृद्धि पट्टे में समाविष्ट समझी जायेगी। अतः यदि पट्टे की निरन्तरता के दौरान Lessor को आसन्न भूमि पर Lessee अतिक्रमण कर लेता है तो इस प्रकार अतिक्रमित भूमि लीज़जनित कृषि का अंश बन जाएगी तथा पट्टे को निरन्तरता के दौरान Lessee को उक्त अनुवृद्धि से बेदखल नहीं किया जा सकेगा, परन्तु Lessee ऐसी अनुवृद्धि पर अपनी सम्पत्ति के रूप में दावा प्रस्तुत नहीं कर सकेगा। यदि Lessee ने अनुवृद्धि पर प्रतिकूल कब्जा के रूप में स्वत्व प्राप्त किया है तो उसका यह कब्ज़ा अपने भू-स्वामी Lessor के लिए है न कि स्वयं के लिए।
चूंकि अनुवृद्धि मूल भूभूति का अंश होती है अतः भू-स्वामी अनुवृद्धि से संयुक्त भूमि को पृथक भूभूति के रूप में मान्यता नहीं दे सकेगा तथा Lessee द्वारा उक्त अनुवृद्धि के उपभोग एवं धारणा हेतु क्षतिपूर्ति का दावा प्रस्तुत नहीं कर सकेगा, परन्तु वह अतिरिक्त किराया पाने के लिए प्राधिकृत होगा जिसका निर्धारण अनुद्धि का मूल्यांकन करने के पश्चात् किया जाएगा।
इस खण्ड में वर्णित नियम उन मामलों में लागू नहीं होता है जिनमें Lessee अपने Lessor की भूमि पर अतिक्रमण करता है। ऐसे मामलों में Lessor भू-स्वामी का यह विकल्प होता है कि वह चाहे तो Lessee को अतिचारी समझे अतः उसे बेदखल करने हेतु कार्यवाही करे या उक्त अनुवृद्धि के सम्बन्ध में उसे टैनेन्ट समझे यदि एक बार Lessor उसे Lessee के रूप में मान्यता दे देता है उक्त अतिक्रमित भूमि के सम्बंध में तो वाद में उसे अतिचारी के रूप में मान्यता नहीं दे सकेगा।
मरम्मत कराने का अधिकार
यदि Lessor सूचना के पश्चात् युक्तियुक्त समय के अन्दर सम्पत्ति की मरम्मत करने में उपेक्षा करे जिसे करने के लिए वह आबद्ध है, तो Lessee उसे स्वयं करा सकेगा तथा ऐसी मरम्मत का व्यय भाटक में से ब्याज सहित काट सकेगा या Lessor से अन्यथा वसूल कर सकेगा। उपबन्ध (च) Lessor को केवल सूचना देने की बात करता है। Lessee, Lessor को यह आदेश नहीं दे सकेगा कि वह सम्पत्ति की मरम्मत कराये लीज़जनित सम्पत्ति की मरम्मत हेतु Lessor एवं Lessee के बीच प्रत्यक्ष संविदा होनी आवश्यक है, अन्यथा Lessor, लीज़धृत सम्पत्ति की मरम्मत कराने के लिए बाध्य नहीं है यदि लीज़ सम्पत्ति में कोई खराबी आयो है तो उस खराबी की सूचना Lessee द्वारा Lessor को दी जानी आवश्यक है और इस सूचना के उपरान्त यदि Lessor मरम्मत कराने में उपेक्षा करता है तो मरम्मत का कार्य स्वयं Lessee करा सकेगा।
"मरम्मत" शब्द को अधिनियम में परिभाषित नहीं किया गया है। इसे इसके सामान्य अर्थ में हो स्वीकार किया जाना चाहिए। शब्द कोश के अनुसार, 'मरम्मत' से अभिप्रेत है कि किसी क्षतिग्रस्त वस्तु को उसके मूल स्वरूप में लाना, उसे इस स्थिति में लाना जिससे वह उप प्रयोजन हेतु उपयुक्त हो सके जिसके लिए उसका अस्तित्व है; कार्यकारी बनाना छिद्रों, दीवारों में पड़ी दरारों को भरना इत्यादि। इस अधिनियम के प्रयोजन हेतु 'मरम्मत' से अभिप्रेत है लीज़जनित सम्पत्ति को उस प्रयोजन हेतु युक्तियुक्त बनाना जिसके लिए वह आशयित है। उदाहरण के लिए यदि भवन के छत से बारिश में पानी टपकता है तो यह आवासीय प्रयोजनों के लिए उपयुक्त नहीं है।
इसी प्रकार दरवाजे निजता की सुरक्षा करने में असमर्थ हैं; या मकान में पानी नहीं उपलब्ध हो पा रहा है तो वह भवन आवासोय प्रयोजन हेतु उपयुक्त नहीं है। किन्तु Lessee द्वारा मरम्मत के नाम में वस्तु या सम्पत्ति में आमूल परिवर्तन नहीं किया जा सकता है। उदाहरण के लिए Lessee इस उपबन्ध में प्रदत्त अधिकार का प्रयोग करते हुए खपरैल को छत को सीमेण्ट कांक्रीट की छत में परिवर्तित करने के लिए प्राधिकृत नहीं है। वह मरम्मत के नाम में टूटो खपरैल को नई खपरैल से प्रतिस्थापित करने हेतु हो प्राधिकृत है। इसी प्रकार यदि Lessee को म्यूनिसिपिलटी ने यह आदेश दिया है कि वह परिसर में विद्यमान कुएँ को ढक दे तो उसे यह अधिकार नहीं होगा कि वह मिट्टी एवं कंकड़ से कुएँ को भर दे। यदि वह ऐसा करता है तो इसमें हुआ व्यय वह Lessor से नहीं प्राप्त कर सकेगा।
Lessor द्वारा मरम्मत न कराने का प्रभाव- यदि Lessor, Lessee जाने पर युक्तियुक्त समय के अन्दर सम्पत्ति को मरम्मत कराने में उपेक्षा करता है, जिसे कराने के सूचना दिए लिए वह आबद्ध है तो Lessee स्वयं वह मरम्मत करा सकेगा और ऐसी मरम्मत में हुआ व्यय, ब्याज सहित लीज़कतों को देय किराया में से काट सकेगा या अन्यथा उससे वसूल कर सकेगा। Lessee लीज़ को समाप्त कराने के लिए प्राधिकृत नहीं है। मरम्मत न कराने के आधार पर पट्टे का समापन वहाँ भी नहीं हो सकेगा जहाँ पर लीज़कतों ने मरम्मत कराने की वचनबद्धता दो है।
परन्तु Lessee के अनुरोध पर अपने वचन का पालन करने में विफल रहता है। Lessee का केवल यह अधिकार है कि वह मरम्मत का कार्य स्वयं कराकर, मरम्मत में हुए व्यय को या तो देय किराया में से काट ले Lessor से अन्यथा प्राप्त करे Lessee को यह साबित करना होगा कि मरम्मत का जो कार्य कराया गया था वह सम्पत्ति के युक्तियुक्त उपयोग के लिए आवश्यक था; वह सुख का साधन नहीं था। टेनेन्ट किराये में से केवल उन्हों व्ययों को काटने के लिए प्राधिकृत होगा जो ऐसी मरम्मतों पर हुए हैं जिन्हें पूर्ण कराने के दायित्वाधीन Lessor था।
Lessee का अधिकार केवल यह है कि Lessor द्वारा उपेक्षा की दशा में वह मरम्मत कार्य स्वयं कराये तथा व्यय की गयी रकम व्याज समेत किराये में से काट ले अथवा Lessor से व्यक्तिगत तौर पर प्राप्त करे। वह लीज़ संविदा समाप्त करने या किराया का भुगतान न करने पा किराया कम करने के अधिकार से युक्त नहीं है।
Lessee द्वारा Lessor के एवज में संदाय
यह उपबंधित करता है कि यदि Lessor ऐसा संदाय करने में उपेक्षा करे जिसे करने के लिए वह आबद्ध है जो यदि उस द्वारा न किया जाता तो Lessee से या उस सम्पत्ति से वसूला जाता, तो Lessee ऐसा स्वयं कर सकेगा और उस रकम को उस भाटक या किराया में से ब्याज सहित काट सकेगा या पट्ट से अन्यथा वसूल कर सकेगा अर्थात् यदि Lessor के दायित्वों का निर्वहन Lessee करता है तो उसे वह रकम पाने का पूर्ण अधिकार है जो उसने Lessor के एवज में अदा किया था।
यदि Lessee, Lessor द्वारा देय भूराजस्व का भुगतान करता है तो वह Lessor से उक्त रकम वसूत कर सकेगा। इसी प्रकार यदि किरायेदार ने जल कर एवं सम्पत्ति कर का भुगतान किया हैं तो वह किराये की रकम में से उक्त राशि काटकर किराया का भुगतान करेगा।
यदि एक सम्पत्ति का एक व्यक्ति के पास बन्धक किया जाता है तत्पश्चात् उसी सम्पत्ति का लीज़ एक अन्य व्यक्ति को कर दिया जाता है जबकि बन्धक रकम का भुगतान नहीं हुआ था एक बन्धककर्ता Lessor ने बन्धक को रकम का भुगतान करने के लिए स्वयं को दायों बनाया था। पूर्विक बन्धकदार, Lessee द्वारा सम्पत्ति के उपभोग में व्यवधान उत्पन्न करने की धमकी देता है उसे सम्पत्ति से बेदखल करने को धमकी देता है। यदि वह बन्धक रकम का भुगतान नहीं करता है तो ऐसी भ्रमको शान्तिपूर्ण उपभोग को प्रसंविदा का उल्लंघन माना जाएगा। यदि वेदखली से बचने तथा शान्तिपूर्ण ढंग से सम्पत्ति के उपभोग करने हेतु Lessee बन्धक रकम का भुगतान कर देता है दो यह इस रकम को Lessor से प्राप्त करने का हकदार होगा।
इस सम्बन्ध में ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि Lessee केवल उस रकम को Lessor से प्राप्त करने का अधिकारी होगा जिसका भुगतान करने के लिए Lessor आबद्ध था। यदि Lessor आबद्ध नहीं था तो Lessee उक्त रकम को वसूल करने का अधिकारी इस उपबन्ध के अन्तर्गत नहीं होगा
Lessee केवल उस रकम को Lessor से वसूल करने का अधिकारी है जिसका भुगतान करने के लिए Lessor बाध्य था। अतः यदि म्यूनिसिपल कार्पोरेशन द्वारा नियमों के तहत किसी रकम की माँग की गयी थी जिसका भुगतान भूस्वामी पर गृह स्वामी को करना था, किन्तु Lessee ने उस रकम का भुगतान कर दिया तो Lessee उस रकम की वसूली Lessor से कर सकेगा या तो किराये की रकम में से उक्त रकम को काटकर या Lessor से अन्यथा वसूल कर जैसी कि दोनों के बीच सहमति हो।
परन्तु यदि रकम को माँग Lessee से की गयी है, न कि Lessor से रकम की वसूली नहीं की जा सकेगी क्योंकि इस रकम का भुगतान करने के लिए Lessor आबद्ध नहीं था। करों का समय पर भुगतान न किया जाना उपेक्षा की कोटि में आएगा और यदि ऐसी रकम का भुगतान Lessee करता है तो वह उसकी वसूली ब्याज सहित करने के लिए प्राधिकृत होगा तथा Lessor उक्त रकम को अदा करने से मना नहीं कर सकेगा।
भूबद्ध वस्तुओं को हटाने का अधिकार
यह उपबन्ध सुस्पष्ट करता है कि पट्टे के खत्म होने के पश्चात् किसी भी समय, परन्तु केवल तब तक जब तक कि Lessee का पट्टे की सम्पत्ति पर कब्जा है, उन सब वस्तुओं को जो उसने भूबद्ध की है, हटा सकेगा, परन्तु यह आवश्यक होगा कि Lessee इस कार्य के बावजूद भी सम्पत्ति को उसी अवस्था में छोड़ें, जिसमें उसने उसे प्राप्त किया था।" भू-बद्ध वस्तुओं से अभिप्रेत है।
भूमि में मूलित जैसे पेड़ और झाड़ियाँ
भूमि में निविष्ट जैसे भित्तियाँ या निर्माण, अथवा
ऐसी निविष्ट वस्तु से इसलिए बद्ध कि जिससे वह बद्ध है, उसका स्थायी लाभप्रद उपयोग किया जा सके।
Lessee पट्टे को सम्पत्ति के पश्चात् परन्तु सम्पत्ति का कब्जा सौंपने से पूर्व ऐसी सभी वस्तुओं को हटाने का अधिकारी है। Lessee को परिसर में प्रवेश करने तथा वस्तुओं को हटाने से इस आधार पर नहीं रोका जा सकेगा कि पट्टे का पर्यवसान हो गया है। यह उपबन्ध भूमि से सम्बन्धित नियम जो कुछ भी भूमि से संबद्ध है वह भूमि का अंश है तथा उन्हीं अधिकारों से प्रभावित होगा जिससे भूमि स्वयं प्रभावित है।
"भू-बद्ध वस्तुओं के सम्बन्ध में, जैसा कि धारा 108 (ज) में उल्लिखित है, स्थिति को सुप्रीम कोर्ट ने रतन लाल जैन बनाम उमा शंकर के वाद में सुस्पष्ट किया है। न्यायालय के अनुसार धारा 108 खण्ड (ज) Lessee को यह अधिकार देता है कि वह पट्टे के दौरान और यहाँ तक कि पट्टे के पर्यवसान के पश्चात् किसी समय जबकि सम्पत्ति का कब्जा उसके पास हो, परन्तु सम्पत्ति पर कब्जा समाप्त होने के पश्चात् नहीं, ऐसी सभी वस्तुओं को हटा ले जो उसने भूमि के साथ भू-बद्ध किया था तथा इसमें सम्मिलित है वह भवन भी जिसे उसने बनवाया था या खड़ा किया था लीज़जनित भूमि पर, परन्तु यहाँ Lessee का यह तत्प्रतिकूल स्थानीय प्रथा या संविदा के अध्यधीन है।
108 (ज) सपठित धारा 109 के अन्तर्गत Lessee को केवल यह अधिकार प्राप्त है कि वह अपने द्वारा किए गये निर्माण को हटा ले जिससे कि निर्णीत भूमि का कब्जा Lessor को प्रदत्त किया जा सके। जहाँ तक ऐसे निर्माण के लिए प्रतिकर प्रदान करने का प्रश्न है वह बिल्कुल ही विचारणीय नहीं है, किन्तु यदि कोई तत्प्रतिकूल संविदा है तो धारा 108 (ज) का उपबन्ध प्रवर्तित नहीं होगा।
एक प्रकरण में पट्टे की शर्तों में यह उपबन्धित था कि पट्टे के पर्यवसान पर परिसर पर खड़ा किया गया निर्माण कार्य लीज़कतां का होगा जब तक कि Lessee उन्हें पट्टे के पर्यवसान पर हटा नहीं लेता है या पर्यवसान के दो माह के अन्दर हटा नहीं लेता है तथा सभी देशों का भुगतान नहीं कर देता है एवं सभी शर्तों को पूर्ण नहीं कर देता है। पट्टे का पर्यवसान किराया का भुगतान न होने के कारण कर दिया गया और Lessee, Lessor को सम्पत्ति का कब्जा देने पर सहमत हो गया। इन तथ्यों पर यह अभिनिर्णीत हुआ कि समस्त भूबद्ध वस्तुएँ Lessor की हैं। धारा 108 (ज) में वर्णित सिद्धान्त का लाभ उपLessee को भी प्राप्त है।
एक Lessee को अधिकार है कि वह अपने द्वारा किए गये अप्राधिकृत निर्माण को पट्टे के पर्यवसान पर हटा ले तथा लीज़कतों को सम्पत्ति उसी स्थिति में लौटा दे जिस स्थिति में Lessor में सम्पत्ति उसे हस्तान्तरित किया था।
फसल हटाने का अधिकार
यदि एक अनिश्चित कालावधि का लीज़ जैसे वर्षानुवर्षी पट्टे Lessee के व्यतिक्रम के सिवाय किसी अन्य कारण द्वारा पर्यवसित कर दिया जाता है, तब वह या उसका विधिक प्रतिनिधि Lessee द्वारा रोपित या बोई गयो तथा उस भूमि पर उगी हुई कुल फसलों को एकत्रित करने एवं ले जाने के लिए अबाध रूप से आने-जाने का अधिकार होगा। इस उपबन्ध के प्रावधान इसी अधिनियम की धारा 51 में वर्णित प्रावधान के अनुरूप जिसका उद्देश्य सद्भावयुक्त अन्तरितों के हितों को संरक्षण देना है।
जहाँ सम्पत्ति कब्जा प्राप्त करने हेतु संस्थित बाद में यह आदेश पारित हुआ कि यदि वादी एक निश्चित तिथि से पूर्व एक अभिनिश्चित रकम प्रतिवादी के पास जमा नहीं कर देता है तो सम्पत्ति का कब्जा प्रतिवादी के पास बना रहेगा। वादी रकम जमा करने में विफल रहा। ऐसी स्थिति में प्रतिवादी ने उक्त भूमि पर फसल उगा दिया। इसी दौरान वादी ने रकम जमाकर कब्जे की माँग की। यह अभिनिर्णीत हुआ कि प्रतिवादी को इस उपबन्ध का लाभ प्राप्त होगा। यादी यह माँग नहीं कर सकेगा कि प्रतिवादी उसे सम्पत्ति के कब्जा के साथ ही साथ फसलों पर भी अधिकार उसे सौंप दे अथवा फसलों का मूल्य उसे प्रदान करे।