Transfer Of Property में एक साल से ज्यादा की लीज
Shadab Salim
20 Feb 2025 3:13 AM

इस एक्ट की धारा 107 में प्रावधान हैं कि एक मकान का लीज़ यदि निश्चित एक वर्ष की अवधि मात्र के लिए तो ऐसे पट्टे को मौखिक साक्ष्य तथा पट्टे के परिदान के द्वारा साबित किया जा सकेगा। एक वर्ष को निश्चित अवधि का लीज़ तथा पट्टेदार द्वारा यह अभिव्यक्ति कि वह यदि Lessor सहमत हो तो उसी रेन्ट पर सम्पत्ति को एक वर्ष की अवधि से अधिक की अवधि का लीज़ धारण करने को तैयार है, तो ऐसा लीज़ एक वर्ष से अधिक की अवधि का लीज़ नहीं होगा।
इसी प्रकार एक ऐसा लीज़ जिसके तहत Lessor अपनी सम्पत्ति एक वर्ष की अवधि के लिए पट्टे पर देने के लिए सहमति देता है, साथ ही साथ इस बात पर को सहमत होता है कि वह न तो किराया बढ़ायेगा और न ही आने वाले दो वर्षों तक सम्पत्ति को खाली नहीं करायेगा यदि पट्टेदार इसके लिए सहमत हो कि वह परिसर खाली नहीं करेंगा। उन दो वर्षों में, तो ऐसा लीज़ रजिस्ट्रीकरणीय नहीं होगा यह निष्कर्ष इस आधार पर निकाला गया है कि यदि दस्तावेज में एक वर्ष की अवधि विशिष्टतः उल्लिखित है, तो दस्तावेज में उल्लिखित अन्य शब्द जो पट्टे की निरन्तरता को दर्शाते हैं, के सन्दर्भ में यह माना जाएगा कि वे पक्षकारों की भावी सहमति से सम्बद्ध है, तथा किसी भी रूप में निर्धारित वास्तविक शर्तों को प्रभावित नहीं करेंगे।
दिल्ली मोटर कं० बनाम बासुरेकर, 5 के वाद में एक बिल्डिंग किराये पर कारोबार चलाने के उद्देश्य से एक अनिश्चितकाल के लिए दी गयी। यह तय हुआ था कि किराये का निर्धारण पन्द्रह महीने के पश्चात् अर्जित लाभ के प्रतिशत के आधार पर निर्धारित होगा। इस प्रकरण में पट्टे की अवधि एक वर्ष से अधिक की है। यह अनिवार्यतः रजिस्ट्रीकरणीय है तथा धारा 106 सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम को आकर्षित नहीं करती है।
एक स्थावर सम्पत्ति पट्टेदार के जीवनकाल के लिये लीज़, एक वर्ष से अधिक की अवधि का लीज़ होगा और यह अनिवार्यतः रजिस्ट्रीकरणीय है। यद्यपि बी० पी० सिंह बनाम सोमनाथ के वाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अभिनिर्णीत किया है कि पट्टेदार के जीवनकाल के लिए सृजित किया गया पट्टे का रजिस्ट्री करना आवश्यक नहीं है। इसी प्रकार एक सम्बत् वर्ष के लिए सृजित लीज़ के लिए रजिस्ट्रीकरण आवश्यक नहीं है।
कई दस्तावेजों में वर्णित लीज़ यदि एक लीज़ का सृजन एक से अधिक दस्तावेजों द्वारा किया जाता है, तो सम्पूर्ण पत्राचार अथवा कम से कम वे पत्र जिनमें प्रस्ताव एवं स्वीकृति का उल्लेख है का रजिस्ट्रीकरण होना आवश्यक है। इसी प्रकार उस दस्तावेज का भी रजिस्ट्री होना भी आवश्यक है जिसके द्वारा विद्यमान रजिस्ट्रीकृत पट्टे के रेंट में परिवर्तन किया गया है। यदि मूल लीज़ विलेख जिसमें नवीकरण हेतु खण्ड उपबन्धित किया गया था, रजिस्ट्रीकृत था, तो नवीकृत लीज़ भी केवल रजिस्ट्रीकृत लीज़ विलेख द्वारा सृजित होगा।
तृतीय पैरा Lessor तथा पट्टेदार द्वारा निष्पादन-
तृतीय पैराग्राफ सन् 1929 में संशोधन के फलस्वरूप इस धारा में समाविष्ट किया गया है। यह पैरा यह उपबन्धित करता है कि जहाँ स्थावर सम्पत्ति का लीज़ रजिस्ट्रीकृत लिखत द्वारा किया गया है वहाँ ऐसा लिखत या जहाँ कि एक से अधिक लिखत हैं, यहाँ हर एक ऐसी लिखत Lessor और पट्टेदार दोनों द्वारा निष्पादित की जाएगी चाहे वह लीज़ विलेख हो या कथूलियत ऐसा दस्तावेज, स्वयं निष्पादक के विरुद्ध ही साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य होगा तथा सम्पत्ति स्वामी को प्राधिकृत करेगा कि वह सम्पत्ति धारक को सम्पत्ति से बेदखल कर सके।
प्रथम पैराग्राफ के अन्तर्गत आने वाले पट्टे, जो मौखिक करार द्वारा सृजित किए गये हैं क्या द्वितीय पैराग्राफ के अन्तर्गत वैध पट्टे के रूप में स्वीकृत किए जा सकते हैं? - प्रथम पैराग्राफ में प्रयुक्त "केवल" शब्द यह सुस्पष्ट करता है इसके क्षेत्र विस्तार के अन्तर्गत आने वाले पट्टे रजिस्ट्रीकृत विलेख से भिन्न किसी अन्य रूप में सृजित नहीं किए जा सकते हैं। पर अन्य प्रकार के पट्टे इसी धारा के पैराग्राफ दो में वर्णित प्रकार से सृजित किए जा सकेंगे, अर्थात् मौखिक करार एवं सम्पत्ति के परिदान द्वारा ऐसी स्थिति में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि क्या प्रथम पैराग्राफ के अन्तर्गत आने वाले पट्टे को किन्तु जो मौखिक करार एवं पट्टे के परिदान द्वारा सृजित किया गया है, द्वितीय पैराग्राफ के अन्तर्गत वैध पट्टे के रूप में मान्यता दी जाएगी?
इस सम्बन्ध में न्यायालय का मत है कि ऐसे पट्टे को द्वितीय पैराग्राफ के अन्तर्गत वैध पट्टे के रूप में मान्यता दी जाएगी। अतः एक वर्ष से अधिक की अवधि का लीज़ जिसका सृजन मौखिक करार तथा कब्जा के परिदान द्वारा किया गया है, एक वर्ष की अवधि के लिए वैध लीज़ होगा। यह भी अभिनिर्णीत हुआ है कि यदि किसी ऐसे प्रकरण में प्रथम वर्ष के समापन के अवसर पर Lessor, Lessee से रेन्ट स्वीकार करता है तथा उसे कब्जा जारी रखने की सहमति देता है तो लीज़ वर्षानुवर्षं या मासानुमास, लीज़ के प्रयोजन के अनुरूप नवीकृत हो जाएगा
द्वितीय पैराग्राफ के अन्तर्गत आने वाले पट्टों से सम्बन्धित है। यह राज्य सरकार को प्राधिकृत करता है कि वह शासकीय राजपत्र में अभिसूचना द्वारा समय-समय पर निर्दिष्ट कर सकेगी कि वर्षानुवर्षी वर्ष से अधिक अवधि के या वार्षिक भाटक आरक्षित करने वाले पट्टों को छोड़कर स्थावर सम्पत्ति के पट्टे या ऐसे पट्टों का कोई भाग अरिजस्ट्रिीकृत लिखत द्वारा या कब्जे के परिदान द्वारा बिना मौखिक करार द्वारा किया जा सकेगा।
अतः यदि सरकार की भूमि का लीज़ सृजित किया जाता है तथा इस आशय को अधिसूचना जारी की गयी है कि ऐसा लीज़ धारा 107 के प्रावधान से प्रभावी नहीं होगा तो उस दस्तावेज का रजिस्ट्रीकरण होना आवश्यक नहीं होगा जैसा कि धारा 90 रजिस्ट्रीकरण अधिनियम में उपबन्धित है।
जब कभी भी एक स्थावर सम्पत्ति के सम्बन्ध में सरकार के साथ कोई करार किया जाता है तो संविधान के अनुच्छेद 299 के अन्तर्गत कतिपय आवश्यकताओं को पूर्ण करना होता है।
इस प्रयोजन हेतु निम्नलिखित आवश्यकताओं का पूर्ण होना आवश्यक होगा :
(1) संविदा राष्ट्रपति या राज्यपाल द्वारा प्राधिकृत किसी व्यक्ति द्वारा निष्पादित होनी चाहिए।
(2) संविदा एक ऐसे व्यक्ति द्वारा राष्ट्रपति या राज्यपाल के एवज जैसी भी स्थिति हो में निष्पादित होनी चाहिए तथा
(3) संविदा से यह सुस्पष्ट हो कि वह राष्ट्रपति या राज्यपाल जैसी भी स्थिति हो, के एवज में निष्पादित की गयी है।
एक ऐसी संविदा या करार, जो उपरोक्त तथ्यों के विरोध में की गयी हो शून्य होगी। राज्य बनाम फूल चन्द' के वाद में एक मकान उत्तर प्रदेश सरकार के पक्ष में पढ़े के रूप में 5 वर्ष की कालावधि हेतु अन्तरित किया गया। अन्तरण विलेख पर सम्पत्ति स्वामी ने अपने हस्ताक्षर किए किन्तु राज्यपाल की ओर से किसी ने हस्ताक्षर नहीं किए। अतः इस संव्यवहार के सृजन में उपरोक्त आवश्यकताओं की आपूर्ति नहीं की गयी। पट्टे की अवधि के समापन के पश्चात् Lessor को कुछ वर्षों का किराया दिया गया। इसके पश्चात् Lessor ने Lessee को बेदखली हेतु वाद संस्थित किया।
उसका अभिकथन था कि चूँकि दस्तावेज रजिस्ट्रीकृत नहीं था, अतः वह खाली करने की नोटिस देने के दायित्वाधीन नहीं था। उसका यह भी अभिकथन था कि सरकार का कब्जा केवल एक अनुज्ञापी का कब्जा है। सरकार का यह अभिकथन था कि उसे सम्पत्ति का कब्जा एक शून्य लीज़ के अध्यधीन प्राप्त हुआ था और सरकार धारा 106 के अन्तर्गत प्रतिमास के आधार पर किरायेदार है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अभिनिर्णीत किया कि सरकार का कब्जा, एक अनुज्ञापी का कब्जा था अतः वेदखली हेतु नोटिस देने की आवश्यकता नहीं थी।
एम० मोहम्मद बनाम भारत संघ के वाद में बम्बई हाईकोर्ट ने यह अभिनिर्णीत किया है कि यदि सरकार Lessor की हैसियत में है तो भी संविधान के अनुच्छेद 299 में वर्णित औपचारिकताओं का पूर्ण किया जाना आवश्यक होगा।
ओम प्रकाश एवं अन्य एक मकान के मालिक थे। उन्होंने उक्त मकान को मशीनरी (प्रा० ) लि० को 3 वर्ष की कालावधि के लिए किराए पर दिया था। यह कालावधि पुनः तीन वर्ष की अवधि के लिए विस्तारित की गयी। भवन स्वामी ने किराएदार को सूचित किया कि पट्टे को कालावधि के समापन पर सम्पत्ति का कब्जा भवन स्वामी द्वारा निर्देशित व्यक्ति को सौंप दिया जाए। किरायेदार ने मकान मालिक के निर्देशानुसार सम्पत्ति का कब्जा हस्तगत नहीं किया।
अतः सम्पत्ति का कब्जा एवं मध्यवर्ती लाभ प्राप्त करने हेतु मकान मालिक ने वाद संस्थित किया। किरायेदार का तर्क था कि पट्टे की अवधि के समापन के उपरान्त दोनों पक्षकारों के बीच एक करार हुआ था जिसमें यह तय हुआ था कि किराएदार मकान में तीन साल तक और रह सकेगा पर उसे पहले से अधिक किराया देना होगा किराये की अन्य शर्ते पूर्ववत ही रहेंगी। किरायेदार का यह भी अभिकथन था कि वह सदैव वद्धिंत किराया देने का इच्छुक था एवं तैयार था, पर मकान मालिक कभी किराया लेने ही नहीं आया किरायेदार का यह भी अभिकधन था कि पट्टेदारी को समाप्त करने हेतु उसे कभी भी समुचित नोटिस नहीं दी गयी थी।
इन तथ्यों के आधार पर दिल्ली हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूनम चन्द बनाम मोती लाल', के वाद में प्रकट किए गये सिद्धान्त का अनुसरण करते हुए सुस्पष्ट किया कि लीज़ के कालावधि के समापन के फलस्वरूप समाप्त होने की दशा में सांविधिक नोटिस की कोई आवश्यकता नहीं होती है। यदि लीज़गृहीता स्वयं पट्टे की अवधि स्वीकार करता है तथा यह भी स्वीकार करता है कि पट्टे की अवधि समाप्त हो चुकी है तो ऐसी स्थिति में नोटिस की आवश्यकता नहीं होगी। निर्धारित अवधि का लीज़ अवधि के समापन के साथ ही समाप्त कोई विशेष भूमिका नहीं होती है