Transfer Of Property में एग्रीमेंट के बिना लीज़ में संपत्ति को खाली करवाने के लिए नोटिस किस तरह होगा
Shadab Salim
19 Feb 2025 3:32 AM

लीज़ के पर्यवसान हेतु नोटिस देना आवश्यक है। धारा 106 की उपधारा (4) नोटिस दिए जाने के सम्बन्ध में प्रावधान प्रस्तुत करती है, जिसके अनुसार
(1) नोटिस लिखित हो,
(2) नोटिस देने वाले व्यक्ति द्वारा या उसकी ओर से हस्ताक्षरित हो,
(3) नोटिस अपेक्षित व्यक्ति पर तामील हो -
(क) डाक द्वारा या
(ख) व्यक्तिगत रूप में परिदत्त हो, या
(ग) सम्पत्ति के सहज भाग पर चस्पा की गयी हो।
यदि नोटिस व्यक्तिगत रूप में देने का आशय है तो यह आवश्यक नहीं है कि नोटिस सम्बन्धित व्यक्ति को ही तामील हो उपधारा (4) के अनुसार यदि नोटिस परिवार के किसी सदस्य या उसके सेवकों में से किसी एक को उसके अर्थात् आशयित व्यक्ति के निवास पर परिदत्त किया जाना नोटिस की तामील हेतु यह पर्याप्त होगा। जब सम्पत्ति को लीज़ के बंधन से मुक्त करने हेतु नोटिस की तामील की जाती है दूसरे पक्षकार पर तो बहुधा यह प्रश्न उठता है कि क्या दूसरे पक्षकार को बाध्य करने के लिए नोटिस पर्याप्त थी।
इस प्रश्न का उत्तर प्रिवी कौंसिल ने हरिहर बनर्जी बनाम राम शि राय के वाद में दिया है। न्यायालय ने सुस्पष्ट किया है कि पर्याप्तता का परीक्षण यह नहीं है कि नोटिस का अभिप्राय उस धृति जिसको वह उद्धृत करती है, के तथ्यों एवं परिस्थितियों से अनभिज्ञ एक अजनबी के लिए क्या होगा, अपितु यह है कि एक टेनेन्ट के लिए जो मामले के तथ्यों एवं परिस्थितियों से भिज्ञ है, के लिए क्या होगा?
इसके अतिरिक्त यह भी महत्वपूर्ण है कि नोटिस का अर्थान्वयन नोटिस में त्रुटि निकालने के उद्देश्य से नहीं किया जाएगा, अपितु उसे प्रभावी बनाने के उद्देश्य से किया जाएगा अन्यथा नोटिस देने का प्रयोजन विफल हो जाएगा। ऐसे प्रकरणों में सूत्र "अमान्य से मान्य करना अच्छा है' (Ut res magis valeat quam pereat) प्रभावी होगा छोड़ने की सूचना या नोटिस को विरचना सदैव उदारतापूर्वक की जानी चाहिए, परन्तु इससे यह अभिप्रेत नहीं है कि दूसरे पक्षकार के हितों को क्षति पहुँचायी जाए।
मात्र परिसर के विवरण के त्रुटिपूर्ण उल्लेख के कारण नोटिस को विफल भी नहीं किया जाना चाहिए या पट्टेदार का नाम गलत होने के कारण' या लैण्डलार्ड का नाम गलत होने के कारण या नोटिस में उल्लिखित तिथि का त्रुटिपूर्ण उल्लेख होने के कारण परन्तु यह आवश्यक है कि नोटिस युक्तियुक्तत: सुस्पष्ट हो, विद्यमान पट्टे का पर्यवसान उससे परिलक्षित होता हो तथा वह काल भी जब पट्टे का पर्यवसान आशयित है। इसे शर्त रहित होना चाहिए। यदि लीज़ के पर्यवसान हेतु नोटिस में 15 दिन का समय दिया गया है तथा यह भी उल्लिखित हैं कि नोटिस का समय (कार्तिस मास) के समापन पूर्ण होगा तो यह निष्कर्ष निकाला जाएगा कि नोटिस इस धारा की सभी औपचारिकताओं को पूर्ण करती है।
नोटिस देने का आशय केवल पट्टे का पर्यवसान होना चाहिए, कोई अन्य आशय नहीं।
उदाहरणार्थं यदि नोटिस का भय दिखाकर किराया बढ़ाना है या पट्टेदार द्वारा सम्पत्ति के उपभोग को विनियमित करना है अथवा लीज़जनित सम्पत्ति का एक अंश प्राप्त करना है, तो ऐसी नोटिस, लीज़ के पर्यवसान हेतु वैध नहीं होगी। यह भी आवश्यक है कि नोटिस में, अधिनियम में, उल्लिखित कालावधि का सुस्पष्ट उल्लेख हो।
यदि लीज़ के पर्यवसान हेतु नोटिस डाक द्वारा भेजी गयी है और वह नोटिस इस टिप्पणी के साथ लेने से इन्कार किया या मौके पर नहीं पाया गया या वापस कर देने का अनुरोध किया वापस लौट आती है तो यह स्थिति यह निष्कर्ष निकालने के लिए पर्याप्त है कि उसे नोटिस प्राप्त हो चुकी है जब तक कि इस उपधारणा को समाप्त करने हेतु साक्ष्य न हो।
इस उपधारा में वर्णित प्रावधान को प्रभावी बनाने हेतु इस बात पर ध्यान देना समीचीन होगा कि किसी तत्प्रतिकूल संविदा स्थानीय विधि अथवा प्रथा के अध्यधीन है। यदि कोई तत्प्रतिकूल संविदा है या कोई तत्प्रतिकूल स्थानीय विधि है या कोई तत्प्रतिकूल प्रथा है तो उपधारा (1) में वर्णित प्रावधान लागू नहीं होगा। तत्प्रतिकूल संविदा का अभिव्यक्त होना आवश्यक नहीं है। यह विवक्षित भी हो सकेगा; पर संविदा वैध होनी चाहिए। यदि ऐसी संविदा अवैध है तो लीज़ की अवधि को विनियमित करने के लिए इस उपधारा के उपबन्ध प्रवर्तित होंगे। उदाहरण के लिए मुम्बई शहर में आवासीय पट्टों के समापन हेतु 15 दिन के बजाय 1 महीने की नोटिस देना आवश्यक होता है।
अतः यह उपधारा वहाँ प्रभावी नहीं होती है। दक्षिण मालाबार क्षेत्र में यह प्रथा है कि अदिमापवन को स्थायी लीज़ माना जाए यदि इसका सृजन की गयी सेवा को प्रतिफल के रूप में स्वीकार कर लिया गया है। अतः जब तक सम्पत्ति पट्टेदार एवं उसके परिवार के कब्जे में हैं, पट्टेदार को सम्पत्ति से बेदखल नहीं किया जा सकेगा। इसी प्रकार बंगाल में चकरन या घाटवाल भूमि के पट्टों को इस उपधारा के अन्तर्गत समाप्त नहीं किया जा सकेगा, क्योंकि उनका विनियमन स्थानीय प्रथा के अनुसार होता है।
इसी प्रकार यदि लीज़ प्रदान करते समय पक्षकारों के बीच यह सहमति बनी थी कि लीज़, lessor को माँग पर समाप्त हो जाएगा तो लिखित नोटिस की आवश्यकता नहीं होगी। लीज़ के समापन हेतु lessor द्वारा सम्यक् रूप में माँग का प्रस्तुत करना पर्याप्त होगा उ० प्र० में मासानुमासी लीज़ के समापन हेतु 15 दिन के बजाय 1 महीने की नोटिस की आवश्यकता होगी।
विनिर्माण के प्रयोजन हेतु लीज़-
कब 6 महीने की नोटिस की आवश्यकता नहीं होगी : धारा 106 के प्रथम खण्ड को धारा 107 सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम के साथ पढ़ना उपयुक्त होगा। धारा 107 उपबन्धित करती है कि स्थावर सम्पत्ति का वर्षानुवर्ती, या एक वर्ष से अधिक की अवधि का या वार्षिक किराया आरक्षित करने वाला लीज़ केवल रजिस्ट्रीकृत लिखत द्वारा किया जा सकेगा। स्थावर सम्पत्ति के अन्य सब पट्टे या तो रजिस्ट्रीकृत लिखत द्वारा या कब्जे के परिदान सहित मौखिक करार द्वारा किए जा सकेंगे।
यदि Lessee एक अरजिस्ट्रीकृत लीज़ के अन्तर्गत सम्पत्ति धारण कर रहा है तथा lessor मकान मालिक किराया स्वीकार कर लीज़दार की स्थिति को मान्यता देता है तो धारा 106 के अन्तर्गत लीज़ की उपधारणा की जाएगी तथा बेदखली के पूर्व ऐसे पट्टेदार को नोटिस देना आवश्यक होगा। यद्यपि एक अरजिस्ट्रीकृत लीज़, एक स्थायी पट्टे के रूप में शून्य होगा, इसे मासिक लीज़ के रूप में मान्यता दी जा सकेगी एवं 15 दिन की नोटिस द्वारा समाप्त हो सकेगी। ऐसी स्थिति में 15 दिन की सूचना पर्याप्त होगी भले ही लीज़ विनिर्माण के प्रयोजन हेतु हो। श्री जानकी देवी बनाम राम स्वरूप जैन के वाद में सुप्रीम कोर्ट ने अभिप्रेक्षित किया है कि :-
"अतः भले ही लीज़ विनिर्माण के प्रयोजन के लिए था. चूँकि लीज़ वर्षानुवर्षी नहीं था, 6 महीने की सूचना को आवश्यकता नहीं थी। विनिर्माण के लिए लीज़ जो वर्षानुवर्षी नहीं है, के पर्यवसान हेतु 6 महीने की नोटिस की आवश्यकता नहीं होती। ऐसा लीज़ धारा 106 के द्वितीय पैरा के अन्तर्गत आयेगा, इसके पर्यवसान हेतु 15 दिन की नोटिस की आवश्यकता होगी।
धारा 106 तथा रेन्ट कन्ट्रोल अधिनियम- अनेक राज्यों ने अपने राज्य के लिए मकान मालिक को एवं किरायेदारों के सम्बन्धों को विनियमित करने हेतु रेन्ट कन्ट्रोल अधिनियम बनाये हैं। इन विधानों में ऐसे प्रावधानों का सृजन किया गया है जो इस धारा में वर्णित प्रावधान के प्रतिकूल है। ऐसी स्थिति में यह प्रश्न उठना अवश्यम्भावी है कि रेन्ट कन्ट्रोल अधिनियम में वर्णित प्रावधानों को अवैध घोषित किया जाए या उन्हें धारा 106 का विरोधाभाषी होने के बावजूद भी प्रभावी बनाया जाए।
न्यायालयों द्वारा निर्णीत वादों का अध्ययन करने से यह स्पष्ट होता है कि न्यायालयों ने रेन्ट कन्ट्रोल अधिनियमों को स्पेशल अधिनियम के रूप में मान्यता देकर उन्हें प्रभावी बनाया है। ये अधिनियम लीज़ की अवधि के समापन के पश्चात् भी किरायेदारों को संरक्षण प्रदान करते हैं तथा किरायेदारों को केवल रेन्ट कन्ट्रोल अधिनियमों में वर्णित प्रावधानों का अनुसरण करते हुए ही बेदखल किया जा सकेगा।
अतः सभी प्रयोजनों हेतु धारा 106 पर रेन्ट कन्ट्रोल अधिनियम के प्रावधानों को प्रभावी बनाया गया है। ऐसी स्थिति में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि क्या धारा 106 अनुपयोगी हो गयी है। इस प्रश्न पर सुप्रीम कोर्ट ने माँगी लाल बनाम सुगन चन्द के वाद में विचार किया है और यह अभिनिर्णीतकिया है कि रेन्ट कन्ट्रोल अधिनियम के प्रावधानों को स्पेशल प्रावधान मानते हुए उन्हें धारा 106 के अतिरिक्त माना जाए, न कि धारा 106 के विरोधाभाष में।
परन्तु धनपाल चेट्टियार बनाम यशोदा पो अम्मल के वाद में सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा है कि जिन मामलों में किरायेदार का कब्जा रेन्ट कन्ट्रोल अधिनियम द्वारा संरक्षित है वहाँ लीज़ से किराये की बेदखली हेतु धारा 106 के अन्तर्गत नोटिस की आवश्यकता नहीं होगी। बेदखली केवल रेन्ट कन्ट्रोल अधिनियम के अन्तर्गत ही हो सकेगी। इस मत का समर्थन सुप्रीम कोर्ट ने कृष्ण देव बनाम राम कृष्ण राक के वाद में किया है।
उपरोक्त निर्णयों के आलोक में यह कहा जा सकेगा कि रेन्ट कन्ट्रोल अधिनियमों के अस्तित्व में आ जाने से धारा 106 में वर्णित प्रावधान का महत्व कम हो गया है। पर यह अनुपयोगी नहीं हुआ है। ऐसे सभी बिन्दुओं जिनके सम्बन्ध में रेन्ट कन्ट्रोल अधिनियमों में व्यवस्था की गयी है उनका विनियमन रेन्ट कन्ट्रोल अधिनियम के अन्तर्गत होगा। परन्तु जिन बिन्दुओं पर रेन्ट कन्ट्रोल अधिनियम मौन हैं उनका विनियमन सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम 1882 के प्रावधानों द्वारा होगा।
Lessee के निष्कासन हेतु यह आवश्यक नहीं है कि वह किराया का भुगतान करने में विफल रहा हो। यदि वह किराया का भुगतान उपयुक्त स्थान एवं समय पर यथाशीघ्र करता है तो भी उसके निष्कासन की प्रक्रिया धारा 106 सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम, 1882 के अन्तर्गत वैध नोटिस देकर प्रारम्भ की जा सकेगी। केवल किराया नियंत्रण अधिनियम यह उपबन्ध प्रस्तुत करता है कि यदि किरायेदार किराया का भुगतान करने में विफल रहता है तो इस आधार पर उसे सम्पत्ति से निष्कासित किया जा सकेगा।
सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम के प्रयोजनार्थ इस तथ्य को अभिस्वीकृति कि किराया का भुगतान नहीं हुआ है को भी किराया भुगतान न होने के कारण Lessee को सम्पत्ति से निष्कासित करने हेतु, सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम के अन्तर्गत पर्याप्त आधार नहीं माना जाएगा। ऐसे तथ्य को अभिस्वीकृति का वही प्रभाव होगा जो कि lessor एवं Lessee के सम्बन्धों के अस्तित्व का होता है।
छोड़ने की नोटिस, किसके द्वारा एवं किसे–
छोड़ने की नोटिस पट्टेदार या lessor द्वारा दी जा सकेगी। नोटिस lessor या Lessee के अतिरिक्त उनके उत्तराधिकारी, अन्तरिती, निष्पादक तथा प्रशासक द्वारा भी दी जा सकेगी। इस निमित्त प्राधिकृत अभिकर्ता भी नोटिस देने के लिए सक्षम है। यदि Lessee का हित उसके अनेक उत्तराधिकारियो में टेनेन्ट इन कामन या ज्वाइंट टेनेन्ट के रूप में वितरित हो चुका है, तो छोड़ने हेतु नोटिस उन सभी को दी जाएगी या उनमें से केवल कुछ को।
यदि नोटिस उनमें से केवल कुछ को दो गयी है तो भी नोटिस पट्टेदारी को समाप्त करने के लिए पर्याप्त होगी। यदि पट्टेदार एक कारोबार संचालित कर रहे हैं एक कम्पनी के रूप में, यद्यपि उन्होंने पट्टे का निष्पादन अपनी व्यक्तिगत हैसियत में किया था, तो भी नोटिस कम्पनी पर तामील की जा सकेगी। पट्टेदार के निष्कासन हेतु वाद, फर्म के नाम में भी संस्थित किया जा सकेगा। यदि पट्टेदार ज्वाइंट टेनेन्ट हैं तो नोटिस उनमें से किसी एक को, या उनमें से किसी एक के द्वारा दी जा सकेगी।
इस मत को सुप्रीम कोर्ट ने भी उचित ठहराया है रहमत उल्ला बनाम चन्द्र कान्त के वाद में एक लैण्डलार्ड की मृत्यु हुई। उसका हित पाँच प्रति उत्तरदाताओं तथा चार अन्य को प्राप्त हुआ। यह अभिनित हुआ कि उनमें से केवल कुछ भी पट्ठेदार के निष्कासन हेतु वाद संस्थित कर सकेंगे। इसी प्रकार lessor के मुख्तार अटॉर्नी को नोटिस प्राप्तत होगी।
एच० सी० पाण्डेय बनाम जी० सी० पाल के वाद में सुप्रीम कोर्ट ने अभिव्यक्त किया:-
"ज्वाइन्ट टेनेन्सी के मामले में छोड़ने के लिए नोटिस ज्वाइंट टेनेन्ट्स से किसी एक पर नोटिस की तामील हो सकेगी पर नोटिस सभी को सम्बोधित होनी चाहिए जिससे बेदखली हेतु वाद दाखिल करने पर उन सभी को वाद का पक्षकार बनाया जा सके। यदि नोटिस सभी सह पट्टेदारों को सम्बोधित नहीं है, तो ऐसे सह पट्टेदार जिन पर नोटिस तामील नहीं हुई है उस नोटिस से बाध्य नहीं होगा।"
धारा 106 के अन्तर्गत नोटिस lessor के पावर ऑफ अटॉर्नी धारक द्वारा भी साबित की जा सकेगी यदि पावर ऑफ अटानी होल्डर यह सुस्पष्ट कर देता है कि उसके अधिवक्ता ने उसके समक्ष, नोटिस पर हस्ताक्षर किया था।
सूचना, कब आवश्यक नहीं है- यदि लीज़दार इस शर्त के साथ लीज़ ग्रहण करता है कि जब कभी भी lessor अपेक्षा करेगा कि वह लीज़जनित सम्पत्ति उसे वापस लौटा दें, तो ऐसा लीज़ इच्छा जनित लीज़ होगा एवं ऐसे पट्टे के समापन हेतु नोटिस की आवश्यकता नहीं होगी।
एक अतिचारी को बेदखल करने के लिए नोटिस की आवश्यकता नहीं होगी अतः यदि कोई सेवादाता, सेवा देने में विफल रहता है तो वह अतिचारों की स्थिति में होगा और उसके निष्कासन हेतु नोटिस देने की आवश्यकता नहीं होगी।
एक लीज़दार, जो लीज़ की अवधि के समापन के पश्चात् सम्पत्ति को, पट्टकर्ता की अनुमति के बगैर धारण करता है, वह मर्पणजात Lessee है और ऐसे पट्टे के समापन हेतु नोटिस की आवश्यकता नहीं होगी। इसी प्रकार पट्टेदार यदि अपनी पट्टेदारों के दौरान कोई करार करता है वह पट्टेदारी के समापन के पश्चात् एक निश्चित अवधि में सम्पत्ति खाली कर देगा, तो ऐसी पट्टेदारों के समापन हेतु नोटिस की आवश्यकता नहीं होगी निर्धारित अवधि का लीज़ अवधि के समापन पर समाप्त हो जाता है। अतः इसके समापन के लिए नोटिस की आवश्यकता नहीं होगी। यदि पट्टेदार ने एक निश्चित तिथि को सम्पत्ति का कब्जा प्रदान करने के लिए वचन दिया था, उसे किसी औपचारिक नोटिस की आवश्यकता नहीं होगी।
एक उप Lessee बेदखली से पूर्व नोटिस पाने के लिए हकदार नहीं है यदि मूल पट्टेदार ने लीज़ का समर्पण कर दिया है।
यदि सृजित लीज़ लीज़ करार के पंजीकृत होने के आलोक में, सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम की धारा 106 के अर्थ के अन्तर्गत वैध नहीं है तो केवल यह कहा जा सकेगा कि lessor अथवा प्रतिभूत ऋणदाता या बैंक द्वारा पट्टेदार को अग्रिम सूचना जारी किए बिना भी लीज़ प्रतिसंहरणीय होगा। ऐसी परिस्थिति में प्रतिभूत ऋणदाता/बैंक lessor की स्थिति में होता है। Lessee अनाधिकृत कब्जाधारक नहीं होता है और न ही वह अतिचारी होता है। प्रतिभूत ऋणदाता बैंक सम्पत्ति का केवल सांकेतिक कब्जा प्राप्त कर सकता है Lessee अथवा किराएदार से प्रतिभूत ऋणदाता/बैंक अथवा क्रेता जो इसके अध्यधीन सम्पत्ति प्राप्त करता है उसे सद्भाव युक्त Lessee अथवा किरायेदार से उपयुक्त विधिक प्रक्रिया का अनुपालन करते हुए हो कथित सम्पत्ति का कब्जा प्राप्त कर सकेंगा।
नोटिस की अवधि- वर्षानुवर्षी लीज़ 6 महीने को नोटिस से पर्यवसेय है। एक ऐसा लीज़ जिसमें वार्षिक किराया आरक्षित है अर्थात् वार्षिक पट्टेदारी लीज़दार बेदखली से पूर्व 7 मास की नोटिस पाने का हकदार है।
यदि टेनेन्सी मासानुमासी है तो टेनेन्ट पन्द्रह दिन की नोटिस पाने का हकदार है। परन्तु यदि ऐसी पट्टेदारी के पर्यवसान हेतु 6 मास की नोटिस दी गयी है और यह भी उल्लिखित है कि नोटिस का पर्यवसान वर्ष के अन्त के साथ होगा, दो ऐसी नोटिस अवैध नहीं होगी। वस्तुतः यह नोटिस अपेक्षा से अधिक समय, पट्टे के पर्यवसान हेतु, देकर पट्टेदार को विवश करती है कि वह लीज़जनित सम्पत्ति खाली कर दे। यह नोटिस वैध होगी। पर यदि पट्टेदारो वार्षिक या वर्षानुवर्षी प्रकृति को है तो 6 मास से कम की अवधि को नोटिस अवैध होगी और ऐसो नोटिस के आधार पर पट्टेदार को बेदखल नहीं किया जा सकेगा साधारणतया एक अवैध या अपर्याप्त नोटिस पट्टे का पर्यवसान करने में प्रभावी नहीं होगी।
त्रुटिपूर्ण नोटिस का प्रभाव इस प्रश्न पर सम्यक् विचारण सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता क्रेडिट कार्पोरेशन बनाम हॅपी होम्स प्रा० लि० के वाद में किया था। न्यायालय ने सम्यक् विवेचना को पश्चात् यह मत व्यक्त किया कि यदि नोटिस धारा 106 में वर्णित कालावधि से कम अवधि को है अथवा नोटिस का पर्यवसान 6 मास अथवा पन्द्रह दिन के समापन के साथ नहीं हो रहा है तो ऐसी नोटिस का कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा यदि पट्टेदार ने नोटिस स्वीकार कर लिया है।
यदि नोटिस प्राप्त करने वाले व्यक्ति ने नोटिस को स्वीकार कर उसके अनुरूप आचरण किया तो नोटिस देने वाला व्यक्ति विबन्धन के सिद्धान्त से बाध्य होगा तो ऐसी नोटिस की वैधता को नकार नहीं सकेगा। बंगाल इलेक्ट्रिक लैम्प वर्क्स लि० बनाम एस० सी० सिंह के वाद में कलकत्ता हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के उपरोक्त मत का अनुसरण करते हुए यह कहा कि खाली करने की नोटिस की विरचना परिस्थिति के सन्दर्भ में की जानी चाहिए। न्यायालय ने यह भी अभिनित किया कि ऐसा कोई कारण नहीं है कि नोटिस को व्याख्या भू-स्वामी के विरुद्ध तथा पट्टेदार के पक्ष में न की जाए।
यदि खाली करने को नोटिस पोस्ट या डाक द्वारा भेजी गयी है तो नोटिस की तामोल सम्यक् रूप से अभिस्वीकृति इत्यादि द्वारा साबित होनी चाहिए। यदि नोटिस की तामील को नकारा जाता है। तथा ऐसा नकारा जाना सत्य नहीं पाया जाता है तो ऐसे कथन को नकारते हुए पट्टेदार को सम्पत्ति रिक्त करने के लिए आदेशित किया जा सकेगा।
यदि खाली करने को नोटिस साधारण पोस्ट के द्वारा भेजी गयी तथा पावती ने उसे लेने से अपने आप को विरत रखा, तत्पश्चात् नोटिस स्पीड पोस्ट से भेजी गयी जो "नाट क्लेम्ड" नोट के साथ वापस आ गयी। ऐसी स्थिति में यह माना जाएगा कि Lessee को खाली करने को नोटिस की सूचना थी।
लीज़ के पर्यवसान हेतु दी गयी नोटिस त्रुटिपूर्ण है अथवा अवैध है या नहीं, इस प्रश्न का निर्धारण एक जटिल कार्य है। हरिहर बनर्जी बनाम रामशशि राय के वाद में प्रिवी कौंसिल ने अनेको निर्णयों पर विचार करने के उपरान्त निम्नलिखित मत प्रतिपादित किया है।
प्रिवी कौंसिल के अनुसार- "खाली करने की सूचना यद्यपि पूर्ण रूपेण सही न हो, या उसमें उल्लिखित कथन के वर्णन में एकरूपता न हो, फिर भी वह विधि में वैध एवं प्रभावी होगी। इसकी पर्याप्तता का परीक्षण यह नहीं है कि एक अजनबी के लिए, जो उक्त सम्पत्ति के तथ्यों एवं परिस्थितियों जिससे वह नोटिस सम्बन्धित है, उस नोटिस का क्या अर्थ होगा अपितु उस नोटिस का एक पट्टेदार के लिए, जो उत मामले के तथ्यों एवं परिस्थितियों से भिज्ञ हैं उसका क्या अर्थ होगा। इसके अतिरिक्त यह भी महत्वपूर्ण है कि खाली करने की नोटिस की विरचना इसमें त्रुटि निकालने के उद्देश्य से नहीं की जानी चाहिए जिससे वे प्रभावहीन हो जाए अपितु इस उद्देश्य से की जानी चाहिए कि कार्य पूर्ण हो जाए न कि नष्ट हो जाए।