क्या सभी अदालतों की कार्यवाही सार्वजनिक होती है? धारा 366 BNSS, 2023

Himanshu Mishra

18 Feb 2025 12:06 PM

  • क्या सभी अदालतों की कार्यवाही सार्वजनिक होती है? धारा 366 BNSS, 2023

    न्याय व्यवस्था की पारदर्शिता (Transparency) यह सुनिश्चित करती है कि न्याय न केवल किया जाए, बल्कि उसे होते हुए देखा भी जाए।

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) की धारा 366 इसी सिद्धांत को लागू करती है, जिसके तहत अपराध से जुड़े मुकदमों (Criminal Cases) की सुनवाई आम जनता के लिए खुली (Open Court) होती है। इससे न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता बनी रहती है और जनता को यह विश्वास रहता है कि मामलों का निपटारा निष्पक्ष रूप से किया जा रहा है।

    हालांकि, कुछ संवेदनशील मामलों में, विशेष रूप से यौन अपराध (Sexual Offences) से जुड़े मुकदमों में, पीड़ित की गरिमा (Dignity) और निजता (Privacy) की रक्षा के लिए गोपनीय सुनवाई (In-Camera Proceedings) की आवश्यकता होती है।इसीलिए धारा 366(2) और (3) कुछ विशेष मामलों में बंद कमरे में सुनवाई (In-Camera Trials) की अनुमति देता है। यह प्रावधान न्याय में पारदर्शिता और पीड़ितों की गोपनीयता (Confidentiality) के बीच संतुलन स्थापित करता है।

    खुले न्यायालय (Open Court) का सिद्धांत – धारा 366(1)

    आम तौर पर, कोई भी फौजदारी (Criminal) अदालत एक खुला न्यायालय (Open Court) होती है, जिसका अर्थ यह है कि आम जनता को अदालत की कार्यवाही देखने और सुनने का अधिकार होता है। इस सिद्धांत के पीछे मुख्य उद्देश्य हैं:

    1. पारदर्शिता (Transparency) – जब मुकदमों की सुनवाई सार्वजनिक रूप से होती है, तो न्यायिक प्रक्रिया पर जनता का विश्वास बना रहता है।

    2. उत्तरदायित्व (Accountability) – खुले न्यायालय का मतलब है कि न्यायाधीश (Judge) और वकीलों (Lawyers) की कार्यवाही जनता के सामने होती है, जिससे मनमाने निर्णय नहीं लिए जा सकते।

    3. अनुचित प्रभाव (Undue Influence) को रोकना – जब मुकदमे की कार्यवाही सार्वजनिक होती है, तो बाहरी दबाव और भ्रष्टाचार की संभावना कम हो जाती है।

    हालांकि, यह सुविधा अदालत की क्षमता (Capacity) पर निर्भर करती है। यदि किसी अदालत में सीमित स्थान है, तो केवल उतने ही लोगों को अनुमति दी जा सकती है, जितनी वहां जगह हो।

    उदाहरण के लिए, अगर किसी ज़िला न्यायालय (District Court) में हत्या के एक बड़े मामले की सुनवाई हो रही है, तो आम जनता को अदालत में उपस्थित होने की अनुमति दी जा सकती है। लेकिन अगर कोर्टरूम पूरी तरह भर चुका है, तो अतिरिक्त लोगों को अंदर नहीं जाने दिया जाएगा। यह प्रतिबंध केवल व्यावहारिक कठिनाइयों की वजह से होता है, न कि किसी के अधिकार का हनन करने के लिए।

    न्यायाधीश (Judge) को सार्वजनिक प्रवेश प्रतिबंधित करने का अधिकार

    यद्यपि सामान्य स्थिति में अदालतें खुली होती हैं, लेकिन धारा 366(1) न्यायाधीश को यह अधिकार देती है कि वह विशेष परिस्थितियों में जनता को अदालत कक्ष (Courtroom) से बाहर कर सकता है।

    कोई भी न्यायाधीश, अगर उसे लगे कि:

    1. जनता की उपस्थिति से कार्यवाही में बाधा (Disruption) आ सकती है,

    2. गवाह (Witness) को डराने-धमकाने (Intimidation) की संभावना है, या

    3. मुकदमे की निष्पक्षता (Fair Trial) पर असर पड़ सकता है,

    तो वह आदेश दे सकता है कि या तो आम जनता को प्रवेश न दिया जाए, या फिर किसी विशेष व्यक्ति को अदालत कक्ष में आने से रोका जाए।

    उदाहरण के लिए, यदि कोई मामला राष्ट्रीय सुरक्षा (National Security) से संबंधित है और न्यायाधीश को लगता है कि खुली सुनवाई से संवेदनशील जानकारी लीक हो सकती है, तो वह बंद कमरे में सुनवाई (Closed Proceedings) का आदेश दे सकता है।

    गोपनीय सुनवाई (In-Camera Proceedings) के लिए अपवाद – धारा 366(2)

    यद्यपि अधिकतर मामलों की सुनवाई खुले न्यायालय में होती है, कुछ मामलों में गोपनीयता बनाए रखना आवश्यक होता है। धारा 366(2) में कहा गया है कि निम्नलिखित अपराधों की सुनवाई गोपनीय तरीके (In-Camera) से की जाएगी:

    • बलात्कार (Rape) और यौन अपराध (Sexual Offences) – भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023) की धारा 64 से 71 के अंतर्गत आने वाले अपराध।

    • बाल यौन अपराध (Child Sexual Offences) – POCSO Act, 2012 (Protection of Children from Sexual Offences Act, 2012) की धारा 4, 6, 8, और 10।

    गोपनीय सुनवाई में केवल आवश्यक व्यक्तियों को ही प्रवेश की अनुमति दी जाती है, जैसे:

    • न्यायाधीश (Judge)

    • अभियोजन पक्ष (Prosecution) और बचाव पक्ष (Defense) के वकील

    • आरोपी (Accused) और पीड़ित (Victim)

    • अदालत के आवश्यक कर्मचारी

    इस प्रकार की सुनवाई का मुख्य उद्देश्य यह है कि पीड़ित को कोई मानसिक पीड़ा (Mental Trauma) न हो और वह बिना किसी डर के अपनी बात रख सके।

    उदाहरण के लिए, यदि एक नाबालिग लड़की के साथ यौन अपराध हुआ है और उसे अदालत में गवाही देनी है, तो उसे गोपनीय माहौल देने के लिए इन-कैमरा ट्रायल किया जाएगा।

    महिला न्यायाधीश द्वारा सुनवाई की प्राथमिकता

    धारा 366(2) यह भी कहता है कि बलात्कार और यौन अपराधों के मामलों की सुनवाई, जहां तक संभव हो, महिला न्यायाधीश (Woman Judge) या महिला मजिस्ट्रेट (Woman Magistrate) द्वारा की जानी चाहिए।

    उदाहरण के लिए, अगर एक नाबालिग लड़की के साथ दुर्व्यवहार हुआ है, तो एक महिला न्यायाधीश उसकी गवाही लेने में अधिक संवेदनशीलता (Sensitivity) और सहानुभूति (Empathy) दिखा सकती हैं।

    मीडिया रिपोर्टिंग पर रोक – धारा 366(3)

    इस धारा में कहा गया है कि इन-कैमरा सुनवाई की किसी भी जानकारी को बिना अदालत की अनुमति के प्रकाशित (Publish) या प्रसारित (Broadcast) नहीं किया जा सकता। यह प्रावधान पीड़ित की निजता (Privacy) की रक्षा करता है और मीडिया ट्रायल (Media Trial) से बचाता है।

    हालांकि, बलात्कार (Rape) के मामलों में न्यायालय की अनुमति से रिपोर्टिंग की जा सकती है, लेकिन पीड़िता का नाम और पता गोपनीय रखना अनिवार्य होगा।

    उदाहरण के लिए, यदि कोई समाचार चैनल किसी बलात्कार पीड़िता की पहचान उजागर कर देता है, तो उस पर कानूनी कार्यवाही की जा सकती है।

    धारा 366 BNSS, 2023 यह सुनिश्चित करती है कि न्यायिक कार्यवाही पारदर्शी हो लेकिन पीड़ितों की गरिमा और गोपनीयता की रक्षा भी की जाए। यह प्रावधान खुले न्यायालय के सिद्धांत को बनाए रखते हुए उन मामलों में गोपनीय सुनवाई की अनुमति देता है, जहां इसकी आवश्यकता होती है।

    इस धारा के तहत:

    1. अधिकांश मुकदमे खुले न्यायालय में चलते हैं, जिससे न्याय में पारदर्शिता बनी रहती है।

    2. कुछ संवेदनशील मामलों में न्यायाधीश को सुनवाई बंद कमरे में करने का अधिकार है, जिससे पीड़ित को सुरक्षा और गोपनीयता मिलती है।

    3. मीडिया को सीमित तरीके से रिपोर्टिंग की अनुमति है, जिससे पीड़ित की पहचान सुरक्षित बनी रहे।

    इस प्रकार, धारा 366 जनता और पीड़ितों के अधिकारों के बीच संतुलन बनाए रखने का एक महत्वपूर्ण कानून है।

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