जब किसी मामले की सुनवाई एक से अधिक मजिस्ट्रेट द्वारा की जाती है : धारा 365 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023
Himanshu Mishra
17 Feb 2025 5:32 PM IST

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023 - BNSS) में ऐसे कई प्रावधान (Provisions) हैं जो यह सुनिश्चित करते हैं कि न्यायिक प्रक्रिया (Judicial Process) प्रभावी और निष्पक्ष बनी रहे।
धारा 365 (Section 365) उन्हीं महत्वपूर्ण प्रावधानों में से एक है, जो यह स्पष्ट करती है कि अगर किसी न्यायाधीश (Judge) या मजिस्ट्रेट (Magistrate) ने किसी मामले की सुनवाई आंशिक रूप (Partially) से की हो और फिर उसे दूसरे न्यायाधीश को सौंप दिया जाए, तो उस स्थिति में मामले को कैसे आगे बढ़ाया जाएगा।
न्यायिक व्यवस्था (Judicial System) में स्थानांतरण (Transfer) एक सामान्य प्रक्रिया है। कई बार किसी मजिस्ट्रेट के स्थानांतरण, पदोन्नति (Promotion) या सेवानिवृत्ति (Retirement) के कारण एक मामले की सुनवाई दो या अधिक न्यायिक अधिकारियों (Judicial Officers) द्वारा की जाती है। इस धारा का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि स्थानांतरण के कारण मामलों में अनावश्यक देरी (Unnecessary Delay) न हो और मामले को बिना बाधा के सुचारू रूप से आगे बढ़ाया जा सके।
धारा 365 के प्रमुख प्रावधान (Key Provisions of Section 365)
पहले दर्ज किए गए साक्ष्यों (Evidence) का उपयोग
धारा 365(1) के अनुसार, यदि किसी मजिस्ट्रेट ने किसी मामले में पूर्ण या आंशिक रूप से साक्ष्य (Evidence) दर्ज कर लिया हो और फिर किसी कारणवश वह मामले की सुनवाई से अलग हो जाए, तो नए मजिस्ट्रेट को यह अधिकार है कि वह पूर्व में दर्ज किए गए साक्ष्यों का उपयोग कर सकता है। उसे नए सिरे से मामले की सुनवाई शुरू करने की आवश्यकता नहीं होगी।
उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि एक धोखाधड़ी (Fraud) के मामले में एक मजिस्ट्रेट ने पाँच गवाहों की गवाही (Testimony) दर्ज कर ली, लेकिन फिर उसका स्थानांतरण (Transfer) हो गया। इस स्थिति में, नया मजिस्ट्रेट उन गवाहों की दोबारा गवाही दर्ज करने की बजाय पहले दर्ज किए गए साक्ष्यों को स्वीकार कर सकता है और सुनवाई को आगे बढ़ा सकता है।
गवाहों (Witnesses) को फिर से बुलाने का अधिकार
हालांकि नया मजिस्ट्रेट पहले दर्ज किए गए साक्ष्यों पर कार्य कर सकता है, लेकिन अगर उसे लगे कि किसी गवाह की फिर से जाँच (Re-examination) करना जरूरी है, तो वह उस गवाह को दोबारा बुला सकता है।
प्रावधान (Proviso) के अनुसार, यदि नए मजिस्ट्रेट को यह संदेह हो कि किसी गवाह की गवाही अस्पष्ट (Unclear) या अधूरी है, तो वह उसे पुनः बुलाकर पूछताछ कर सकता है। यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि न्यायिक प्रक्रिया में किसी भी प्रकार की गलतफहमी (Misunderstanding) या पक्षपात (Bias) न हो।
उदाहरण के लिए, किसी हत्या (Murder) के मामले में, यदि एक गवाह की पहले दर्ज की गई गवाही अधूरी है और नया मजिस्ट्रेट समझता है कि उसे और अधिक जानकारी की जरूरत है, तो वह उस गवाह को दोबारा बुलाकर जिरह (Cross-examination) कर सकता है।
मजिस्ट्रेट के अधिकार क्षेत्र (Jurisdiction) का समाप्त होना
धारा 365(2) के तहत, जब किसी मामले को एक न्यायाधीश से दूसरे न्यायाधीश को स्थानांतरित कर दिया जाता है, तो पूर्व न्यायाधीश की उस मामले पर कोई न्यायिक शक्ति (Judicial Authority) नहीं रहती। अब नया न्यायाधीश ही पूरी प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए अधिकृत होगा।
उदाहरण के लिए, यदि किसी मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (Chief Judicial Magistrate - CJM) ने किसी मामले को एक प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट (First-Class Magistrate) को सौंप दिया, तो अब वह पहले वाले मजिस्ट्रेट के अधिकार क्षेत्र से बाहर हो जाएगा और नया मजिस्ट्रेट मामले को संभालेगा।
किन मामलों पर धारा 365 लागू नहीं होती?
धारा 365(3) में यह स्पष्ट किया गया है कि यह प्रावधान कुछ विशेष मामलों पर लागू नहीं होता। इनमें शामिल हैं:
1. संक्षिप्त सुनवाई (Summary Trials) - छोटे और साधारण अपराधों (Minor Offences) के लिए संक्षिप्त सुनवाई की जाती है, जिसमें नए सिरे से साक्ष्य रिकॉर्ड करना जरूरी हो सकता है।
2. धारा 361 के तहत स्थगित (Stayed) मामले - यदि किसी मामले की सुनवाई को धारा 361 के तहत स्थगित कर दिया गया है, तो धारा 365 लागू नहीं होगी।
3. धारा 364 के तहत उच्च अधिकारी को सौंपे गए मामले - यदि किसी मजिस्ट्रेट ने धारा 364 के तहत किसी मामले को किसी उच्च अधिकारी के पास भेज दिया है, तो इस स्थिति में धारा 365 के नियम लागू नहीं होंगे।
व्यवहारिक दृष्टिकोण (Practical Implications of Section 365)
न्यायिक प्रक्रिया (Judicial Process) की निरंतरता सुनिश्चित करना
इस धारा का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि स्थानांतरण के कारण किसी भी मामले की सुनवाई में विलंब (Delay) न हो। भारत में न्यायाधीशों और मजिस्ट्रेटों का स्थानांतरण एक आम प्रक्रिया है, लेकिन इस प्रावधान के कारण अदालतों पर अनावश्यक बोझ नहीं बढ़ता और मामलों की सुनवाई प्रभावित नहीं होती।
उचित और निष्पक्ष सुनवाई (Fair Trial) का अधिकार
हालांकि यह प्रावधान पहले दर्ज किए गए साक्ष्यों को मान्यता देता है, लेकिन यह भी सुनिश्चित करता है कि यदि आवश्यक हो तो गवाहों की दोबारा जाँच (Re-examination) की जा सके। यह प्रावधान इस धारणा को रोकता है कि न्याय प्रक्रिया महज एक औपचारिकता (Formality) है और इससे मूल्यांकन (Evaluation) की निष्पक्षता बनी रहती है।
गवाहों को बार-बार बुलाने से बचाव
अगर प्रत्येक स्थानांतरण के बाद सभी गवाहों को फिर से बुलाने की आवश्यकता होती, तो यह गवाहों के लिए भारी असुविधा (Inconvenience) का कारण बन सकता था। धारा 365 यह सुनिश्चित करती है कि गवाहों को अनावश्यक रूप से अदालत में बार-बार उपस्थित न होना पड़े, जिससे उनके समय और संसाधनों की बचत होती है।
पूर्व विधिक व्यवस्था (Comparison with Previous Legal Framework)
पूर्व में दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (Code of Criminal Procedure - CrPC, 1973) में इसी तरह का एक प्रावधान मौजूद था। हालाँकि, BNSS में इसे अधिक स्पष्ट और विस्तृत रूप दिया गया है, ताकि न्याय प्रक्रिया में अधिक पारदर्शिता (Transparency) लाई जा सके।
उदाहरण (Illustration)
मान लीजिए कि एक भ्रष्टाचार (Corruption) के मामले में एक मजिस्ट्रेट ने 60% गवाहों की गवाही दर्ज कर ली, लेकिन फिर उनका स्थानांतरण हो गया। यदि धारा 365 लागू नहीं होती, तो नए मजिस्ट्रेट को दोबारा पूरी प्रक्रिया को दोहराना पड़ता, जिससे अनावश्यक देरी होती। लेकिन इस धारा के तहत, नया मजिस्ट्रेट पहले से दर्ज किए गए साक्ष्यों पर काम कर सकता है और यदि आवश्यक हो तो केवल कुछ गवाहों को ही दोबारा बुला सकता है।
धारा 365, BNSS, 2023 का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है जो न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावी, सुगम और न्यायपूर्ण बनाता है। यह स्थानांतरण के कारण होने वाली अनावश्यक देरी और जटिलताओं को कम करता है, जिससे मामलों की सुनवाई को तेजी से पूरा किया जा सके। साथ ही, यह नया मजिस्ट्रेट को यह अधिकार देता है कि यदि न्याय के हित में आवश्यक हो तो गवाहों को फिर से बुलाया जाए।
न्यायिक प्रणाली में इस प्रकार के प्रावधान यह सुनिश्चित करते हैं कि न्याय केवल शीघ्रता से ही नहीं, बल्कि पूरी निष्पक्षता के साथ दिया जाए, जिससे नागरिकों का न्याय व्यवस्था पर विश्वास बना रहे।