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Hindu Marriage Act में मैरिज की शर्तों में पक्षकारों का हिन्दू होना और प्रोहिबिटेड रिलेशनशिप का महत्त्व
हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के अधीन जो शर्त दी गई है उनमें सबसे पहली शर्त दो हिंदू पक्षकारों का होना अति आवश्यक है। कोई भी विवाह हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के अधीन तब ही संपन्न होगा जब दोनों पक्षकार हिंदू होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने भीमराव लोखंडे बनाम महाराष्ट्र राज्य एआईआर 1985 सुप्रीम कोर्ट 1564 के मामले में कहा है कि जब विवाह के दोनों पक्षकार हिंदू हो तो ही हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत कोई हिंदू विवाह संपन्न माना जाएगा।यदि विवाह का कोई एक पक्षकार हिंदू है तथा दूसरा पक्षकार गैरहिंदू है तो विवाह इस...
Indian Partnership Act, 1932, की धारा 48-50 : फर्म के विघटन के बाद खातों का निपटान और देनदारियों का भुगतान
भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 (Indian Partnership Act, 1932) का यह खंड फर्म के विघटन (Dissolution of a Firm) के बाद के सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक पर केंद्रित है: खातों का निपटान (Settlement of Accounts) और देनदारियों का भुगतान (Payment of Liabilities). यह सुनिश्चित करता है कि व्यवसाय के समापन पर वित्तीय मामलों को एक व्यवस्थित और न्यायसंगत तरीके से संभाला जाए।भागीदारों के बीच खातों के निपटान का तरीका (Mode of Settlement of Accounts Between Partners) धारा 48 (Section 48) यह बताती है कि फर्म...
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13: तलाक के आधार
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act, 1955) का सबसे महत्वपूर्ण और क्रांतिकारी (Revolutionary) प्रावधानों में से एक तलाक (Divorce) का परिचय है। पारंपरिक हिंदू कानून में, विवाह को एक अटूट संस्कार (Indissoluble Sacrament) माना जाता था, और तलाक लगभग अज्ञात (Almost Unknown) था, सिवाय कुछ समुदायों में प्रचलित रीति-रिवाजों (Customs) के।धारा 13 (Section 13) इस दृष्टिकोण को बदलती है, जिससे पति या पत्नी दोनों को विशिष्ट आधारों (Specific Grounds) पर विवाह को भंग (Dissolve) करने की अनुमति मिलती है।...
Sales of Goods Act, 1930 की धारा 62-64: नीलामी बिक्री
माल विक्रय अधिनियम (Sales of Goods Act), 1930 का अध्याय VII विविध प्रावधानों (Miscellaneous Provisions) से संबंधित है जो अधिनियम के पिछले अध्यायों को पूरक बनाते हैं। ये धाराएँ कुछ सामान्य सिद्धांतों, 'उचित समय' के निर्धारण, और नीलामी बिक्री (Auction Sale) के विशिष्ट नियमों पर प्रकाश डालती हैं।निहित शर्तों और निबंधनों का अपवर्जन (Exclusion of Implied Terms and Conditions) धारा 62 पार्टियों को निहित शर्तों और निबंधनों को बदलने की अनुमति देती है: जहाँ बिक्री अनुबंध के तहत कानून के निहितार्थ...
भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 की धारा 51-52: फर्म के विघटन पर प्रीमियम की वापसी और धोखाधड़ी/गलत बयानी के मामले में अधिकार
भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 (Indian Partnership Act, 1932) के ये खंड उन विशिष्ट परिस्थितियों को संबोधित करते हैं जो फर्म के समय से पहले विघटन (Premature Dissolution) या धोखाधड़ी (Fraud) और गलत बयानी (Misrepresentation) के आधार पर भागीदारी अनुबंध को रद्द (Rescinded) करने पर उत्पन्न होती हैं।समय से पहले विघटन पर प्रीमियम की वापसी (Return of Premium on Premature Dissolution) धारा 51 (Section 51) उस स्थिति से संबंधित है जब एक भागीदार ने एक निश्चित अवधि (Fixed Term) के लिए भागीदारी में प्रवेश करते...
क्या भारत में एंप्लॉयमेंट बॉन्ड वैध हैं? सुप्रीम कोर्ट ने दी स्पष्टता
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में इस विवादास्पद मुद्दे को हल किया कि क्या रोजगार बांड भारत में वैध और कानूनी रूप से लागू करने योग्य हैं।यह माना गया कि न्यूनतम सेवा अवधि को अनिवार्य करने वाले रोजगार बांड समझौते या प्रारंभिक इस्तीफे के लिए वित्तीय जुर्माना लगाना कानूनी रूप से वैध है। न्यायालय ने फैसला सुनाया कि इस तरह के खंड भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 की धारा 27 का उल्लंघन नहीं करते हैं, जो व्यापार पर प्रतिबंध को प्रतिबंधित करता है, बशर्ते प्रतिबंध केवल रोजगार की अवधि के दौरान लागू हों और कर्मचारी के...
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955: धारा 11 द्वारा निर्धारित शून्य विवाह और धारा 12 द्वारा परिभाषित शून्यकरणीय विवाह के आधार
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act, 1955) के तहत, विवाह हमेशा पूर्ण रूप से वैध (Perfectly Valid) नहीं होते हैं। कुछ परिस्थितियों में, एक विवाह को शून्य (Void) या शून्यकरणीय (Voidable) घोषित किया जा सकता है।धारा 11 (Section 11) उन विवाहों से संबंधित है जो शुरू से ही अमान्य (Invalid) होते हैं, जबकि धारा 12 (Section 12) उन विवाहों का विवरण देती है जो कुछ विशेष आधारों (Specific Grounds) पर रद्द (Annulled) किए जा सकते हैं, लेकिन तब तक वैध बने रहते हैं जब तक उन्हें अदालत द्वारा रद्द नहीं...
Sales of Goods Act, 1930 की धारा 59, 60 और 61: अनुबंध के उल्लंघन के लिए उपाय - वारंटी, अग्रिम खंडन, और विशेष क्षतिपूर्ति
माल विक्रय अधिनियम (Sales of Goods Act), 1930 का अध्याय VI अनुबंध के उल्लंघन (Breach of Contract) के लिए उपलब्ध विभिन्न कानूनी उपायों को जारी रखता है। ये धाराएँ विशेष रूप से वारंटी के उल्लंघन, नियत तारीख से पहले अनुबंध के खंडन (Anticipatory Repudiation), और ब्याज व विशेष क्षतिपूर्ति की वसूली से संबंधित हैं।वारंटी के उल्लंघन के लिए उपाय (Remedy for Breach of Warranty) धारा 59 वारंटी के उल्लंघन के लिए खरीदार के उपलब्ध उपायों को स्पष्ट करती है: 1. माल अस्वीकार करने का अधिकार नहीं - धारा 59(1): ...
Indian Partnership Act, 1932 की धारा 45-47: फर्म के विघटन के बाद की देनदारियां और अधिकार
विघटन के बाद भागीदारों के कार्यों के लिए देनदारी (Liability for Acts of Partners Done After Dissolution)भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 (Indian Partnership Act, 1932) की धारा 45 (Section 45) इस बात को स्पष्ट करती है कि फर्म के विघटन (Dissolution of a Firm) के बाद भी भागीदारों की तीसरे पक्षों के प्रति देनदारी (Liability to Third Parties) कैसे बनी रहती है: 1. सार्वजनिक सूचना तक देनदारी का जारी रहना (Continued Liability Until Public Notice): किसी फर्म के विघटन के बावजूद, भागीदार तीसरे पक्षों के...
क्या किसी दूसरे राज्य में दर्ज FIR के लिए भी अग्रिम जमानत दी जा सकती है?
प्रिया इंडोरिया बनाम कर्नाटक राज्य (2023) के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि क्या कोई कोर्ट, जिसकी क्षेत्रीय सीमा (Territorial Jurisdiction) से बाहर FIR दर्ज हुई है, उस मामले में अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail) दे सकता है या नहीं। यह फैसला लंबे समय से चली आ रही कानूनी बहस को समाप्त करता है और यह तय करता है कि न्याय और प्रक्रिया (Procedure) के संतुलन में कैसे व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Personal Liberty) की रक्षा की जा सकती है।CrPC की धारा 438 और अग्रिम जमानत का प्रावधान...
Hindu Marriage Act में Custom and usage, Full blood and half blood, Sapinda relationship शब्द के अर्थ
इस एक्ट की धारा 3 के अनुसार इस अधिनियम में प्रयुक्त होने वाले शब्दों की परिभाषाएं दी गई है। इन परिभाषाओं से उन शब्दों के संबंध में कोई संशय नहीं रहता है तथा सभी स्थितियां स्पष्ट हो जाती है।Custom and usageहिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 3 के अनुसार रूढ़ि और प्रथा शब्द की परिभाषाएं दी गयी है। यदि किसी मामले में पारिवारिक रूढ़ि का सहारा लिया जाता है तो उसे सिद्ध भी किया जाएगा। रूढ़ि को सबूतों द्वारा सिद्ध किया जा सकता है। इसके विभिन्न तत्व होते हैं। जैसे रूढ़ि और प्रथा अवैधानिक एवं लोकनीति के विरुद्ध...
Hindu Marriage Act किन लोगों पर लागू होता है?
कोई भी अधिनियम केवल किसी देश के अधिवासी लोगों पर अधिनियमित होता है लेकिन इस एक्ट की धारा 1 के अनुसार हिंदू विवाह अधिनियम भारत राज्यों में अधिवासी समस्त हिंदुओं तथा भारत के बाहर रह रहे भारत के अधिवासी हिंदुओं के संबंध में भी लागू होता है।गौर गोपाल राय बनाम शिप्रा राय एआईआर 1978 कोलकाता 163 के मामले में यह कहा गया है कि अंतर्राष्ट्रीय विधि के अनुसार यदि कोई व्यक्ति स्थाई रूप से दूसरे देश में रहने लगे तो उसे इस देश की विधि व्यक्तिगत संबंधों में लागू नहीं की जाएगी किंतु उस व्यक्ति के अधिवास के देश...
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 9-10: दांपत्य अधिकारों की बहाली और Judicial Separation
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act, 1955) केवल विवाह के नियमों को ही परिभाषित नहीं करता, बल्कि यह उन स्थितियों से निपटने के लिए भी कानूनी प्रावधान (Legal Provisions) प्रदान करता है जब वैवाहिक संबंध (Marital Relationship) में तनाव आ जाता है।धारा 9 (Section 9) का उद्देश्य पति-पत्नी के बीच सहवास (Cohabitation) को बहाल करना है, जबकि धारा 10 (Section 10) तलाक (Divorce) के एक विकल्प के रूप में न्यायिक पृथक्करण (Judicial Separation) की अवधारणा (Concept) प्रस्तुत करती है, जिससे पति-पत्नी...
Indian Partnership Act, 1932 की धारा 45-47: फर्म के विघटन के बाद की देनदारियां और अधिकार
विघटन के बाद भागीदारों के कार्यों के लिए देनदारी (Liability for Acts of Partners Done After Dissolution)भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 (Indian Partnership Act, 1932) की धारा 45 (Section 45) इस बात को स्पष्ट करती है कि फर्म के विघटन (Dissolution of a Firm) के बाद भी भागीदारों की तीसरे पक्षों के प्रति देनदारी (Liability to Third Parties) कैसे बनी रहती है: 1. सार्वजनिक सूचना तक देनदारी का जारी रहना (Continued Liability Until Public Notice): किसी फर्म के विघटन के बावजूद, भागीदार तीसरे पक्षों के...
क्या हर आपराधिक साजिश को PMLA के तहत अनुसूचित अपराध माना जा सकता है?
पावना डिब्बूर बनाम प्रवर्तन निदेशालय (2023) में सुप्रीम कोर्ट ने Prevention of Money Laundering Act, 2002 (PMLA) की व्याख्या करते हुए यह तय किया कि क्या केवल आपराधिक साजिश (Criminal Conspiracy) के आधार पर किसी व्यक्ति के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग का मामला चलाया जा सकता है, जब मूल अपराध (Predicate Offence) PMLA की अनुसूची (Schedule) में शामिल न हो।यह फैसला स्पष्ट करता है कि किसी व्यक्ति को केवल IPC की धारा 120-B (Criminal Conspiracy) के तहत अभियोजन (Prosecution) नहीं किया जा सकता, जब तक कि जिस अपराध...
Sales of Goods Act, 1930 की धारा 55-58: अनुबंध के उल्लंघन के लिए वाद
माल विक्रय अधिनियम (Sales of Goods Act), 1930 का अध्याय VI अनुबंध के उल्लंघन (Breach of Contract) के लिए उपलब्ध विभिन्न उपायों (Remedies) से संबंधित है। यह उन स्थितियों को स्पष्ट करता है जहाँ या तो विक्रेता (Seller) या खरीदार (Buyer) अपने अनुबंध संबंधी दायित्वों (Contractual Obligations) को पूरा करने में विफल रहता है, और पीड़ित पक्ष (Aggrieved Party) क्या कानूनी कार्रवाई कर सकता है।कीमत के लिए वाद (Suit for Price) धारा 55 उन परिस्थितियों को बताती है जिनमें एक विक्रेता खरीदार पर कीमत वसूलने के...
Hindu Marriage Act शादी और डिवोर्स का कानून
हिंदुओं के विवाह से संबंधित विधि को सहिंताबद्ध करने के उद्देश्य से भारत गणराज्य के छठे वर्ष में संसद द्वारा अधिनियमित किया गया है। यह अधिनियम हिंदुओं के विवाह से संबंधित संपूर्ण विधि उपलब्ध करता है।प्राचीन काल से वर्तमान समय तक स्त्री और पुरुष के संबंधों में विवाह को सर्वाधिक योग्य एवं उपयोगी प्रथा माना गया है। आज भी विवाह से अधिक सार्थक प्रथा मनुष्यों के पास स्त्री और पुरुषों के संबंध को लेकर उपलब्ध नहीं है। प्राचीन हिंदू विधि में विवाह एक संस्कार माना गया है। विवाह को हिंदुओं के सोलह संस्कारों...
Hindu law किसे कहा जाता है?
भारत की जनता को उनकी रूढ़ि और प्रथा से जुड़ा हुआ व्यक्तिगत लॉ दिया गया है। भारत के सभी नागरिकों को अपनी धार्मिक तथा जातिगत परंपराओं और रिवाजों को अपने व्यक्तिगत मामलों में कानून का दर्जा दिया गया है। इन परंपराओं और रीति-रिवाजों को अधिनियम के माध्यम से समय-समय पर बल दिया गया है तथा इन प्रथाओं को सहिंताबद्ध किया गया है।भारत के मुसलमानों को उनकी शरीयत के अधीन विधान दिया गया है जो उनके विवाह, तलाक तथा उत्तराधिकार से संबंधित मामलों को नियंत्रित करता है। इसी प्रकार भारत के हिंदुओं को उनका अपना...
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 7-8: विवाह समारोह और पंजीकरण
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act, 1955) न केवल एक वैध हिंदू विवाह (Valid Hindu Marriage) की शर्तों (Conditions) को निर्धारित करता है, बल्कि यह विवाह के अनुष्ठान (Rituals) और उसके पंजीकरण (Registration) से संबंधित प्रक्रियाओं (Procedures) को भी स्पष्ट करता है।धारा 7 (Section 7) इस बात पर प्रकाश डालती है कि हिंदू विवाह कैसे संपन्न (Solemnized) किए जा सकते हैं, जबकि धारा 8 (Section 8) विवाह के पंजीकरण की प्रक्रिया और उसके महत्व का विवरण देती है, हालांकि यह इसकी वैधता (Validity) के लिए...
Sales of Goods Act, 1930 की धारा 53-54 : खरीदार और विक्रेता द्वारा अंतरण के अधिकार
माल विक्रय अधिनियम (Sales of Goods Act), 1930 का अध्याय V अदत्त विक्रेता (Unpaid Seller) के अधिकारों पर केंद्रित है, विशेष रूप से जब माल के साथ अतिरिक्त लेन-देन होते हैं। धारा 53 खरीदार द्वारा माल के आगे की बिक्री (Sub-sale) या गिरवी (Pledge) के प्रभावों को स्पष्ट करती है, जबकि धारा 54 बताती है कि कैसे ग्रहणाधिकार (Lien) या पारगमन में माल को रोकने का अधिकार (Stoppage in Transit) का प्रयोग बिक्री अनुबंध को रद्द करता है या नहीं, और पुनर्बिक्री (Re-sale) के अधिकार को विस्तृत करता है।खरीदार द्वारा...




















