हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

28 Aug 2022 4:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (22 अगस्त, 2022 से 26 अगस्त, 2022) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    "यह विरोधाभास है कि मंदिर को बंद करना शांति की ओर ले जाता है": मद्रास हाईकोर्ट ने उपासकों के बीच 'अहंकार संघर्ष' पर चिंता व्यक्त की

    मद्रास हाईकोर्ट ने हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती के सहायक आयुक्त को इरोड में श्री मदुरै वीरन, करुपरायण और कन्नीमार मंदिर के मामलों को देखने के लिए उपयुक्त व्यक्ति नियुक्त करने का निर्देश देते हुए चिंता व्यक्त की कि उपासकों के बीच "अहंकार के टकराव" के कारण कैसे मंदिर अशांति का कारण बन रहे हैं।

    मंदिर एक ऐसा स्थान है, जहां भगवान भक्तों द्वारा शांति की तलाश में पहुंचा जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह पूजा, बलिदान और भक्ति के माध्यम से मनुष्यों और देवताओं को एक साथ लाने के लिए बनाई गई संरचना है। दुर्भाग्य से कई मामलों में मंदिर ही अशांति और कानून व्यवस्था की समस्या का कारण बन जाता है। इसके परिणामस्वरूप, मंदिर का पूरा उद्देश्य ही खत्म हो जाता है।

    केस टाइटल: एम शेखर बनाम जिला कलेक्टर और अन्य

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    एनडीपीएस अधिनियम जब्त वाहन की रिहाई के लिए सीआरपीसी की धारा 451 के तहत सुपरदारी पर मालिक को वाहन सौंपने पर रोक नहीं लगाता : पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने एनडीपीएस अधिनियम की धारा 18 के तहत दर्ज मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि जब्त की गई मोटरसाइकिल को याचिकाकर्ता को सुपरदारी पर छोड़ा जाना चाहिए। जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर की पीठ ने आगे कहा कि मोटरसाइकिल को पुलिस परिसर में खराब होने से बचाने के लिए याचिकाकर्ता को सुपरदारी पर जारी करना न्यायसंगत और समीचीन दोनों है।

    केस टाइटल: संजू बनाम पंजाब राज्य

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    धारा 482 सीआरपीसी याचिका असाधारण मामलों में सुनवाई योग्य, जहां सीआरपीसी के तहत पुनर्विचार का उपचार उपलब्ध: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल के एक मामले में माना कि धारा 482 सीआरपीसी के तहत एक याचिका सुनवाई योग्य है क्योंकि निचली अदालत ने याचिकाकर्ता के खाते में राशि (संपत्ति) को फ्रीज करने के लिए धारा 451 सीआरपीसी के तहत आदेश पारित करने में गलती की थी, जिसका किसी भी अपराध के साथ कोई उचित संबंध नहीं था।

    केस टाइटल: मैसर्स डिजाइन टेक सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम आंध्र प्रदेश राज्य

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    धारा 42 एनडीपीएस एक्‍ट "ट्रांजिट में" वाहन पर लागू नहीं; सूर्यास्त के बाद तलाशी की गई हो तो वारंट प्राप्त करना अनिवार्य नहीं : पी एंड एच हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा है कि एनडीपीएस एक्‍ट की धारा 42 जो बिना वारंट या ऑथराइजेशन के एंट्री, तलाशी, जब्ती और गिरफ्तारी के अधिकारों से संबंधित है, केवल एक इमारत, वाहन या संलग्न स्थान की तलाशी से संबंधित है, इसमें 'पार्क किए गए वाहन' भी शामिल हैं। हालांकि, अधिनियम की धारा 43 जो सार्वजनिक स्थान पर जब्ती और गिरफ्तारी की शक्ति प्रदान करती है, "ट्रांजिट में" वाहनों से संबंधित है।

    केस टाइटल: मनदीप कौर बनाम पंजाब राज्य, जुड़े मामलों के साथ

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    व्हाट्सएप की नई निजता नीति फेसबुक के साथ संवेदनशील डेटा साझा करती है, उपयोगकर्ताओं को विकल्प की मृगतृष्णा प्रदान करके उन्हें समझौते के लिए मजबूर करती है: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्‍ली हाईकोर्ट ने व्हाट्सएप की निजता नीति की भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) द्वारा प्रस्तावित जांच को बरकरार रखा है। कोर्ट ने कहा है कि 2021 की नीति अपने उपयोगकर्ताओं को "स्वीकार करो या छोड़ दो" की स्थिति में रखती है, वस्तुतः उपयोगकर्ताओं को विकल्पों की मृगतृष्णा प्रदान करके उन्हें समझौते के लिए मजबूर किया जा रहा है और फिर नीति के तहत फेसबुक कंपनियों के साथ उपयोगकर्ताओं के संवेदनशील डेटा को साझा करने की परिकल्पना की गई है।

    केस टाइटल: व्हाट्सएप एलएलसी बनाम सीसीआई, फेसबुक बनाम सीसीआई

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    सीआरपीसी की धारा 482 | कथित अपराध के समय अभियुक्त की अनुपस्थिति दिखाने के लिए केवल सीडीआर पेश करना कार्यवाही को बंद करने का कारण नहीं बन सकता: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने पाया कि आरोपी द्वारा यह दिखाने के लिए कि वह कथित घटना के समय मौजूद नहीं था, केवल कॉल रिकॉर्ड विवरण प्रस्तुत करने से सीआरपीसी की धारा 482 के तहत शक्तियों का प्रयोग करके आपराधिक कार्यवाही को बंद नहीं किया जाएगा।

    जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 के तहत आरोपित मनीष कुमार सिंह उर्फ मनीष द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए कहा, "याचिकाकर्ता की दलील है कि वह कॉल रिकॉर्ड विवरण के आधार पर घटना की घटना के समय उपस्थित नहीं था, जिसे उसने याचिका में जोड़ा। इसके लिए सबूत की आवश्यकता होगी।"

    केस टाइटल: मनीष कुमार सिंह @ मनीष बनाम कर्नाटक राज्य

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    असफल संबंध आईपीसी की धारा 376 (2) (एन) के तहत बार-बार बलात्कार के लिए एफआईआर दर्ज करने का आधार नहीं: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल के मामले में अंसार मोहम्मद बनाम राजस्थान राज्य (2022 लाइव लॉ (एससी) 599) में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून को दोहराया कि यदि शिकायतकर्ता स्वेच्छा से रिश्ते में रही है तो बार-बार बलात्कार भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376(2)(n) के तहत अपराध के लिए एफआईआर दर्ज करने का आधार नहीं हो सकता।

    केस टाइटल: जतोथ आदित्य राठौड़ बनाम आंध्र प्रदेश राज्य

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    [प्रिवेंटिव डिटेंशन] केवल वे कृत्य जो सार्वजनिक व्यवस्था के लिए प्रतिकूल हैं वे राज्य की सुरक्षा के लिए प्रतिकूल कृत्य माने जाएंगे: जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने बुधवार को फैसला सुनाया कि राज्य की सुरक्षा के लिए हानिकारक कृत्य सार्वजनिक व्यवस्था के लिए हानिकारक होगा, लेकिन इसका उल्ट सच नहीं है। पीठ ने कहा कि यह केवल सार्वजनिक व्यवस्था के लिए प्रतिकूल कृत्य हैं जो 'गंभीर प्रकृति' के हैं जो राज्य की सुरक्षा के लिए प्रतिकूल कृत्य कहलाने के योग्य होंगे।

    केस टाइटल: जलाल उद दीन गनई बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर

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    धारा 482 सीआरपीसी | हाईकोर्ट सजा के बाद के सेटलमेंट को स्वीकार कर सकते हैं और गैर-जघन्य अपराधों में शामिल आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर सकते हैं: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने दोषसिद्धि के एक के आदेश को तब रद्द कर दिया जब कार्यवाही के पक्षकारों ने दोषसिद्धि के आदेश के बाद समझौता किया और याचिकाकर्ता के खिलाफ किए गए अपराधों के कंपाउंडिंग की मांग की।

    जस्टिस एम नागप्रसन्ना की सिंगल जज बेंच ने लक्ष्मीबाई नामक महिला द्वारा दायर याचिका को स्वीकार कर लिया, जिसे निचली अदालत ने आईपीसी की धारा 326 (खतरनाक हथियारों या साधनों से स्वेच्छा से गंभीर चोट पहुंचाना) और 448 (घर में घुसना) के लिए दंडनीय अपराधों के लिए 2011 में दोषी ठहराया था।

    केस टाइटल: लक्ष्मीबाई बनाम कर्नाटक राज्य

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    बीमाकर्ता को मोटर वाहन अधिनियम के तहत अपनी देयता से बचने के लिए लापरवाही और उचित देखभाल का अभाव दिखाना चाहिए: जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि मोटर वाहन अधिनियम के तहत मौजूद ना होना, नकली या अमान्य ड्राइविंग लाइसेंस या प्रासंगिक समय पर चालक की अयोग्यता बीमित व्यक्ति या तीसरे पक्ष के खिलाफ बीमाकर्ता के लिए उपलब्ध बचाव नहीं हो सकता। बीमित व्यक्ति के प्रति दायित्व से बचने के लिए, बीमाकर्ता को यह साबित करना होगा कि बीमित व्यक्ति लापरवाही का दोषी था और उचित देखभाल करने में विफल रहा।

    केस टाइटल: नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम मुश्ताक अहमद कुतारी

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    [उत्तर प्रदेश गौ हत्या अधिनियम] यूपी के भीतर गाय, गौवंश के परिवहन के लिए किसी परमिट की आवश्यकता नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने कहा है कि उत्तर प्रदेश राज्य के भीतर गाय या गौवंश का परिवहन यूपी गौ हत्या अधिनियम (UP Cow Slaughter Act) के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन नहीं है। जस्टिस मो. असलम ने आगे कहा कि उत्तर प्रदेश राज्य के भीतर गाय और उसके वंश को ले जाने के लिए किसी परमिट की आवश्यकता नहीं है।

    केस टाइटल - मोहम्मद शाकिब बनाम यू.पी. राज्य [आवेदन यू/एस 482 संख्या – 23143 ऑफ 2021]

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    यौन इरादे से बच्चे के निजी अंगों को छूना POCSO एक्ट आकर्षित करने के लिए पर्याप्त, चोट की अनुपस्थिति प्रासंगिक नहीं : बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि केवल यौन इरादे से बच्चे के निजी अंगों को छूना POCSO एक्ट (The Protection of Children from Sexual Offences Act) की धारा 7 के तहत यौन उत्पीड़न के रूप में माना जाने के लिए पर्याप्त है। इसके साथ ही चोट का प्रदर्शन करने वाला मेडिकल सर्टिफिकेट अनिवार्य नहीं है।

    केस टाइटल: रामचंद्र श्रीमंत भंडारे बनाम महाराष्ट्र राज्य

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    बार काउंसिल द्वारा अनुशासनात्मक कार्यवाही में कानूनी कार्रवाई के खिलाफ वैधानिक क्षतिपूर्ति है: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में वकीलों के खिलाफ शुरू की गई अनुशासनात्मक कार्यवाही के संबंध में बार काउंसिल को उपलब्ध "वैधानिक क्षतिपूर्ति" पर जोर दिया। अदालत बार काउंसिल ऑफ तमिलनाडु और पुडुचेरी द्वारा निचली अदालत के आदेश के खिलाफ दायर आपराधिक पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें बार काउंसिल से नुकसान की मांग करने वाले वकील द्वारा दायर याचिका खारिज करने के लिए बार काउंसिल के आवेदन को खारिज कर दिया गया।

    केस टाइटल: बार काउंसिल ऑफ तमिलनाडु एंड पुडुचेरी बनाम वीके सेतुकुमार और अन्य

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    तलाक/द्व‌िव‌िवाह| पार्टियों को पर्सनल लॉ में उपलब्ध उपचारों का उपयोग करने से रोकने में कोर्ट की कोई भूमिका नहीं: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में दो आदेशों को रद्द करते हुए, जिसमें एक मुस्लिम व्यक्ति को अपरिवर्तनीय तलाक का प्रयोग करने और दूसरी शादी करने से रोक दिया गया था, कहा कि अदालतें पार्टियों को व्यक्तिगत कानूनों में उपलब्ध उपचारों का उपयोग करने से रोक नहीं सकती हैं, यह संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत उपलब्ध अधिकारों का उल्‍लंघन होगा।

    जस्टिस ए मोहम्मद मुस्ताक और जस्टिस सोफी थॉमस की खंडपीठ ने कहा, "व्यक्तिगत कानून में उपलब्ध उपायों का उपयोग करने से पार्टियों को रोकने में न्यायालय की कोई भूमिका नहीं है। न्यायालय को भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 के मैंडेट को नहीं भूलना चाहिए। यह न केवल किसी को अपने धर्म को मानने बल्‍कि अभ्यास करने की अनुमति देता है। संक्षेप में, यदि किसी व्यक्ति को व्यक्तिगत विश्वास और व्यवहार के अनुसार कार्य करने से रोकने के लिए कोई आदेश पारित किया जाता है, तो यह उसके संवैधानिक रूप से संरक्षित अधिकारों का अतिक्रमण होगा।

    केस टाइटल: अनुवारुदीन बनाम सबीना

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    अनुच्छेद 19(1)(जी) | शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने के नागरिकों के अधिकार को केवल विधायी अधिनियम द्वारा प्रतिबंधित किया जा सकता है, न कि केवल सर्कुलर द्वारा: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने इस तर्क को स्वीकार कर लिया कि नागरिक को शैक्षणिक संस्थान की स्थापना और प्रशासन के अधिकार से तब तक वंचित नहीं किया जा सकता है, जब तक कि विधायिका अपने विवेक से इस मौलिक अधिकार के प्रयोग पर आम जनता के हित में उचित प्रतिबंध लगाने का फैसला नहीं करती। जस्टिस रेखा पल्ली ने कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (जी) के तहत अधिकार के प्रयोग पर कोई प्रतिबंध केवल कानून द्वारा हो सकता है। इससे अनुच्छेद 19 (6) के तहत प्रदत्त शक्ति का उल्लंघन होगा।

    केस टाइटल: मेहता शिक्षक प्रशिक्षण कॉलेज बनाम शिक्षक शिक्षा और अन्य के लिए राष्ट्रीय परिषद और अन्य जुड़ी याचिकाएं

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    हाईकोर्ट एफआईआर के अभाव में भी गिरफ्तारी की आशंका वाले व्यक्ति को ट्रांजिट अग्रिम जमानत दे सकता है: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट (Gujarat High Court) ने कहा कि गिरफ्तारी की आशंका रखने वाला व्यक्ति ट्रांजिट अग्रिम जमानत मांग सकता है ताकि मामले में क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र वाले सक्षम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के लिए समय मिल सके, यहां तक कि एफआईआर दर्ज न होने पर भी।

    ट्रांज़िट ज़मानत एक ऐसी ज़मानत होती है, जो किसी ऐसे न्यायालय द्वारा दी जाती है, जिसका उस स्थान पर अधिकार क्षेत्र नहीं होता, जहां अपराध किया गया है। इसलिए एक "ट्रांजिट अग्रिम जमानत" तब होती है जब कोई व्यक्ति उस राज्य के अलावा किसी अन्य राज्य की पुलिस द्वारा गिरफ्तारी की आशंका रखता है जहां वह वर्तमान में स्थित है। जैसा कि "ट्रांजिट" शब्द से पता चलता है, यह एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने या ले जाने की क्रिया है।

    केस नंबर: आर/सीआर.एमए/13550/2022

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    यदि विवाद को तय करने के लिए गवाही आवश्यक है तो सीआरपीसी की धारा 311 गवाह को वापस बुलाने के लिए ट्रायल कोर्ट को बाध्य करती है : आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम से संबंधित एक मामले में ट्रायल कोर्ट द्वारा (एक आपराधिक याचिका में )पारित एक आदेश को रद्द करते हुए दोहराया है कि सीआरपीसी की धारा 311 के तहत दायर आवेदनों से निपटने के दौरान, न्यायालय को मनमौजी या मनमाने ढंग की बजाय विवेकपूर्ण ढंग से अपने अधिकार का प्रयोग करने की आवश्यकता है।

    केस टाइटल-सेवा स्वर्ण कुमारी उर्फ कुमारम्मा व अन्य बनाम आंध्र प्रदेश राज्य

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    जब तक संविधान/सांविधिक प्रावधानों का उल्लंघन कर सार्वजनिक कार्यालय में नियुक्ति नहीं की जाती तब तक क्वो वारंटो की रिट जारी नहीं की जा सकती: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कर्नाटक राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में डॉ शांत एवरहल्ली थिमैया की नियुक्ति के खिलाफ एक स्नातकोत्तर कानून की छात्रा द्वारा दायर याचिका खारिज कर दी है।

    कार्यवाहक चीफ जस्टिस आलोक अराधे और जस्टिस एस विश्वजीत शेट्टी की खंडपीठ ने पुष्पा बी गावडी द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए कहा, "जब सार्वजनिक पद के धारक को संविधान या वैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन कर नियुक्त किया गया है तो को वारंटो (Writ of Quo Warranto) की ‌रिट जारी की जा सकती है। मौजूदा मामले में याचिकाकर्ता यह प्रदर्शित करने में सक्षम नहीं है कि प्रतिवादी संख्या 4 को कि वैधानिक प्रावधान का उल्लंघन कर नियुक्त किया गया है। "

    केस टाइटल: पुष्पा बी गावडी बनाम कर्नाटक सरकार

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    वाहन मालिक के कानूनी उत्तराधिकारी एमवी एक्ट की धारा 163ए के तहत मुआवजे की मांग नहीं कर सकते, जहां बीमा पॉलिसी केवल तीसरे पक्ष को कवर करती है: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि यदि बीमा पॉलिसी मालिक को कवर नहीं करती है और केवल तीसरे पक्ष को कवर करती है तो मालिक या दावा करने वाले उससे संबंधित किसी अन्य व्यक्ति की मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 163-ए के तहत याचिका सुनवाई योग्य नहीं हो सकती है।

    जस्टिस पंकज जैन की पीठ ने कहा कि 1988 की अधिनियम की धारा 146 के तहत वाहन के उपयोग से पहले उसके मालिक के लिए वैधानिक रूप से यह जरूरी होता है कि वह तीसरे पक्ष के जोखिम के खिलाफ बीमा कराये। वाहन मालिक के कवर के संबंध में ऐसा कोई आदेश निर्धारित नहीं है। हालांकि, बीमाकर्ता और बीमाधारक वैधानिक पॉलिसी के विस्तार के लिए करार कर सकते हैं।

    केस शीर्षक: नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम रूपा और अन्य

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    भविष्य निधि और मृतक के कानूनी उत्तराधिकारियों द्वारा प्राप्त अन्य आर्थिक लाभ का मोटर दुर्घटना दावे के साथ कोई संबंध नहीं: जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि भविष्य निधि, पेंशन, बीमा, बैंक बैलेंस, शेयर, सावधि जमा आदि किसी की मृत्यु के बाद वारिसों को मिलने वाले आर्थिक लाभ हैं, लेकिन इन सभी का मोटर वाहन अधिनियम के तहत मुआवजे के रूप में प्राप्य राशि के साथ कोई संबंध नहीं है। यह कानून केवल दुर्घटना में मृत्यु के कारण लागू होता है।

    केस टाइटल: यूनाइटेड इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम जवाहिरा बेगम और अन्‍य

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    सिविल जज भर्ती | आरक्षण का लाभ पाने के लिए इंटरव्यू में 'नॉन-क्रीमी लेयर का ओरिजनल सर्टिफिकेट' पेश करना आवश्यक: पटना हाईकोर्ट

    पटना हाईकोर्ट ने आरक्षित श्रेणी के एक उम्‍मीदवार पर विचार नहीं करने के बिहार लोक सेवा आयोग (न्यायिक शाखा) के निर्णय को बरकरार रखा है। उम्‍मीदवार इंटरव्यू लेटर की शर्त के अनुसार इंटरव्यू के समय ओरिजनल नॉन-क्रीमी लेयर सर्टिफिकेट प्रस्तुत नहीं कर पाया था।

    जस्टिस अश्विनी कुमार सिंह और जस्टिस शैलेंद्र सिंह की खंडपीठ ने कहा, "यह अच्छी तरह से तय है कि निर्धारित चयन प्रक्रिया के अनुसार चयर प्रक्रिया का आयोजन सख्ती से किया जाना चाहिए...और विज्ञापन के नियमों और शर्तों में कोई छूट नहीं दी जा सकती है, जब तक कि ऐसी शक्ति विशेष रूप से प्रासंगिक नियमों में या विज्ञापन दी गई हो..."

    केस टाइटल: राकेश कुमार पटेल बनाम बिहार लोक सेवा आयोग और अन्य।

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    भुगतान रोकने, खाता बंद होने और हस्ताक्षर बेमेल होने के कारण अस्वीकृत चेक के मामले भी धारा 138 एनआई एक्ट के दायरे में आते हैं: जे एंड के एंड एल हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि एनआई एक्ट की धारा 138 में निहित प्रावधानों की उदार व्याख्या की जानी चाहिए ताकि उस उद्देश्य को पाया जा सके जिसके लिए यह प्रावधान अधिनियमित किया गया है।

    पीठ ने कहा, न केवल धन की कमी या व्यवस्था की अधिकता के कारण बल्‍कि चेक के अनादर के ऐसे मामले, जिनमें "भुगतान रोको", "खाता बंद" और "हस्ताक्षर बेमेल" जैसे मामले शामिल हो, वह भी उक्त प्रावधान के तहत अपराध के दायरे में आते हैं।

    केस टाइटल: मोहम्मद शफी वानी बनाम नूर मोहम्मद खान

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    पेंशन लाभ स्वीकार करने के बाद एससी/एसटी एक्ट की धारा 3(1)(p) को 'आर्म ट्विस्टिंग' के उपकरण के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना कि अनुसूचित जाति समुदाय के सदस्य बैंक कर्मचारी के खिलाफ अनियमितताएं बरतने के आरोप पर शुरू की गई अनुशासनात्मक कार्यवाही को कर्मचारी द्वारा पेनल्टी स्वीकार कर पेंशन प्राप्त कर लेने के बाद एससी/एसटी एक्ट की धारा 3(1)(p) के तहत चुनौती नहीं दी जा सकती। अधिनियम की धारा 3(1)(p) निर्देश देती है कि यदि अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य के खिलाफ झूठा, दुर्भावनापूर्ण या तंग करने वाला मुकदमा या आपराधिक या कानूनी कार्यवाही की जाती है तो वह अधिनियम के तहत अपराध होगा।

    केस टाइटल: के.पी.एन. शेनॉय और अन्य बनाम कर्नाटक राज्य

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    मुस्लिम कानून के तहत प्यूबर्टी की उम्र प्राप्त कर चुकी नाबालिग लड़की माता-पिता की सहमति के बिना शादी कर सकती है, 18 साल से कम उम्र में भी पति के साथ रहने का अधिकार: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने कहा कि मुस्लिम कानून (Muslim Law) के तहत प्यूबर्टी की उम्र प्राप्त कर चुकी नाबालिग लड़की माता-पिता की सहमति के बिना शादी कर सकती है और उसे अपने पति के साथ रहने का अधिकार है, भले ही उसकी उम्र 18 वर्ष से कम हो।

    जस्टिस जसमीत सिंह ने इस साल मार्च में मुस्लिम रीति-रिवाजों के अनुसार शादी करने वाले एक मुस्लिम जोड़े को सुरक्षा प्रदान करते हुए यह टिप्पणी की। दंपति ने याचिका दायर कर यह सुनिश्चित करने का निर्देश देने की मांग की थी कि कोई उन्हें अलग न करें।

    केस टाइटल: फीजा एंड अन्य बनाम राज्य

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    अनुशासनात्मक प्राधिकारी आरोपी-कर्मचारी के खिलाफ समानांतर आपराधिक कार्यवाही में प्रस्तुत दस्तावेजों पर भरोसा नहीं कर सकता: पटना हाईकोर्ट

    पटना हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि विभागीय जांच के उद्देश्य से अनुशासनात्मक प्राधिकारी (Disciplinary Authority) आरोपी-कर्मचारी के खिलाफ समानांतर आपराधिक कार्यवाही के दौरान बाहरी दस्तावेजों पर भरोसा नहीं कर सकता।

    जस्टिस पीबी बजंथरी ने कहा, "जांच प्राधिकरण या अनुशासनात्मक प्राधिकरण द्वारा बाहरी दस्तावेज़ पर विचार नहीं किया जा सकता है। सीआरपीसी की धारा 164 के तहत बयान पर भरोसा करने में अनुशासनात्मक प्राधिकरण का निर्णय बाहरी है और यह विनियम, 1976 के विनियम 7 के संदर्भ में नहीं है।"

    केस टाइटल: अजय कुमार सिंह बनाम केनरा बैंक और अन्य।

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    आदेश XLI नियम 25 सीपीसी | अपीलीय न्यायालय द्वारा तय किए गए अतिरिक्त मुद्दों को निर्धारित करने के लिए पक्ष अदालत के सीमित क्षेत्राधिकार में वाद में संशोधन नहीं कर सकता: सिक्किम हाईकोर्ट

    सिक्किम हाईकोर्ट ने हाल ही में संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत दायर एक याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें प्रतिवादियों द्वारा दायर किए गए प्रति-दावे के लिए वाद में संशोधन और लिखित बयान दर्ज करने की अनुमति मांगी गई थी, जबकि आदेश XLI नियम 25 सीपीसी के तहत सिविल कोर्ट के समक्ष कार्यवाही लंबित थी। प्रावधान यह है कि एक अपीलीय न्यायालय कुछ अतिरिक्त मुद्दों को जांच के लिए तैयार कर सकता है और उन्हें ट्रायल कोर्ट में भेज सकता है जिसकी डिक्री की अपील की जाती है।

    केस टाइटल: श्री अशोक शेरिंग भूटिया बनाम संभागीय वन अधिकारी (टी) और अन्य।

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    जम्मू-कश्मीर पब्लिक सेफ्टी एक्ट | अदालतें समाज की रक्षा के लिए एहतियाती उपाय के तौर पर हिरासत में लेने के प्राधिकरण के फैसले की जगह नहीं ले सकतीं: हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि जम्मू-कश्मीर सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (J&K Public Safety Act) के तहत हिरासत प्राधिकरण (Detaining Authority) के आदेश की जांच करते समय हिरासत में लेने वाले प्राधिकारी के निर्णय को न्यायालय द्वारा प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता है।

    जस्टिस सिंधु शर्मा ने कहा: "निरोध आदेश की जांच करते समय हिरासत में लेने वाले प्राधिकारी के निर्णय को न्यायालय द्वारा प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता। चूंकि निवारक निरोध समाज को गतिविधियों से बचाने के लिए एहतियाती उपाय है, जो उनके जीवन और स्वतंत्रता को नुकसान पहुंचा सकता है। निवारक निरोध समाज की सुरक्षा के लिए ऐसा एहतियाती उपाय है, जो बड़ी संख्या में लोगों को उनके अधिकारों से वंचित कर सकती है और उनके जीवन और संपत्ति को नुकसान पहुंचाने से बचा सकती है।"

    केस टाइटल: फहीम सुल्तान गोजरी बनाम जम्मू-कश्मीर का केंद्र शासित प्रदेश और दूसरा

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    किशोर न्याय | धारा 94 के तहत किशोर की उम्र निर्धारित करने की शक्ति केवल जेजेबी के पास, न कि ट्रायल कोर्ट के पास: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट, इंदौर खंडपीठ ने हाल ही में कहा कि किशोर न्याय (देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 94 के तहत ट्रायल कोर्ट के पास आरोपी की उम्र निर्धारित करने की शक्ति नहीं है, जिसे उसने चुनौती दी है और किशोर न्याय बोर्ड ही इस शक्ति का प्रयोग कर सकता है।

    केस टाइटल: श्रीराम रावत बनाम मध्य प्रदेश राज्य

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    एनडीपीएस एक्ट की धारा 43- 'गजेटेड पुलिस ऑफिसर 'दिन हो या रात' संलग्न स्थानों की वैध सर्च कर सकता है': पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट (Punjab & Haryana High Court) ने एनडीपीएस अधिनियम (NDPS Act) के प्रावधानों के तहत दर्ज एफआईआर में नियमित जमानत की मांग वाली याचिका पर विचार करते हुए कहा कि अधिनियम की धारा 42 के प्रावधान सर्च के संबंध में जांच अधिकारी द्वारा पूर्व सूचना प्राप्त होने पर इमारतों, वाहन और संलग्न स्थान की तलाशी पर लागू होते हैं और तलाशी, परस्पर सूर्यास्त, और सूर्योदय के बीच की जाती है।

    केस टाइटल: नवजोत सिंह @ जोटा बनाम पंजाब राज्य

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    'उत्तर प्रदेश मृतक आश्रित भर्ती नियमावली' के तहत पत्नी की मौजूदगी में अनुकंपा नियुक्ति लाभ का दावा बहन नहीं कर सकती: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि उत्तर प्रदेश सेवाकाल में मृतक सरकारी सेवकों के आश्रितों की भर्ती नियमावली 1974 (UP Recruitment of Dependents of Government Servants Dying in Harness Rules, 1974) के तहत सेवा के दौरान मृत सरकारी कर्मचारी की पत्नी की मौजूदगी में उसकी बहन को अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति का लाभ नहीं दिया जा सकता।

    जस्टिस नीरज तिवारी की पीठ ने कहा कि यूपी डाइंग इन हार्नेस नियम 1974 के अंतर्गत 2021 के नियमों में संशोधन के तहत, एक पत्नी को अनुकंपा नियुक्ति का पहला अधिकार है, और उसकी उपस्थिति में, बहन को अनुकंपा नियुक्ति का अधिकार नहीं है।

    केस टाइटल - कुमारी मोहिनी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार और दो अन्य [रिट-अपील नंबर 4174/2022]

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    शारीरिक रूप से सक्षम पति यह तर्क नहीं दे सकता कि वह अपनी पत्नी का भरण-पोषण करने की स्थिति में नहीं है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि सक्षम पति यह तर्क नहीं दे सकता कि वह अपनी पत्नी का भरण-पोषण करने की स्थिति में नहीं है।

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पति द्वारा शुरू की गई तलाक की कार्यवाही में हिंदू विवाह अधिनियम [भरण पोषण और पेडेंट लाइट और कार्यवाही के खर्च] की धारा 24 के तहत पारिवारिक अदालत द्वारा पारित आदेश के खिलाफ पति द्वारा दायर एक अपील को खारिज करते हुए यह अवलोकन किया। हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 में भरण पोषण पेंडेंट लाइट में प्रावधान है, जहां अदालत प्रतिवादी को कार्यवाही के खर्च का भुगतान करने और ऐसी उचित मासिक राशि का भुगतान करने का निर्देश दे सकती है, जिसे दोनों पक्षों की आय के संदर्भ में उचित माना जाता है।

    केस टाइटल - वैभव सिंह बनाम श्रीमती। दिव्याशिका सिंह [पहली अपील नम्बर - 554/2022]

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    गाय की खाल के चमड़े का परिवहन उत्तर प्रदेश गौ हत्या अधिनियम के उल्लंघन के दायरे में नहीं : इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि गाय के चमड़े का परिवहन उत्तर प्रदेश गौ हत्या रोकथाम अधिनियम, 1955 के प्रावधानों के किसी भी उल्लंघन के दायरे में नहीं है और इसलिए, मजिस्ट्रेट के पास सीआरपीसी की धारा 451 या धारा 457 के तहत उस वाहन को छोड़ने की शक्ति है, जिस वाहन के द्वारा कथित रूप से गाय या गौवंश का चमड़ा ले जाया जा रहा था।

    जस्टिस मो. असलम ने विशेष मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, आगरा का एक आदेश रद्द कर दिया, जिसमें याचिकार्ता द्वारा दायर आवेदन को खारिज कर दिया गया था। इस आवेदन में कथित तौर पर गाय के चमड़े के परिवहन के लिए इस्तेमाल किए गए अपने वाहन को छोड़ने की मांग की गई थी।

    केस टाइटल- मंजीत तंवर @ मंजीत टंकर बनाम उत्तर राज्य और दो अन्य

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