शारीरिक रूप से सक्षम पति यह तर्क नहीं दे सकता कि वह अपनी पत्नी का भरण-पोषण करने की स्थिति में नहीं है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Sharafat

25 Aug 2022 3:11 PM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि सक्षम पति यह तर्क नहीं दे सकता कि वह अपनी पत्नी का भरण-पोषण करने की स्थिति में नहीं है।

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पति द्वारा शुरू की गई तलाक की कार्यवाही में हिंदू विवाह अधिनियम [भरण पोषण और पेडेंट लाइट और कार्यवाही के खर्च] की धारा 24 के तहत पारिवारिक अदालत द्वारा पारित आदेश के खिलाफ पति द्वारा दायर एक अपील को खारिज करते हुए यह अवलोकन किया।

    हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 में भरण पोषण पेंडेंट लाइट में प्रावधान है, जहां अदालत प्रतिवादी को कार्यवाही के खर्च का भुगतान करने और ऐसी उचित मासिक राशि का भुगतान करने का निर्देश दे सकती है, जिसे दोनों पक्षों की आय के संदर्भ में उचित माना जाता है।

    यह एक ऐसे पति या पत्नी को अंतरिम भरण-पोषण के अवॉर्ड का प्रावधान करता है जिसके पास उसकी सहायता करने और कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए पर्याप्त स्वतंत्र आय नहीं है।

    मौजूदा मामले में पति ने परिवार अदालत के आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का रुख किया था, जिसमें पति को प्रतिवादी-पत्नी को अंतरिम भरण-पोषण के लिए प्रति माह 3000/- रुपये के साथ-साथ 5000 / - रुपए कार्यवाही के खर्च के लिए भुगतान करने का निर्देश दिया गया था।

    उसने अदालत के समक्ष तर्क दिया कि वह बेरोजगार है और उसके पास आय का कोई स्रोत नहीं है और प्रतिवादी-पत्नी की स्वतंत्र आय है क्योंकि वह अपने डॉक्टर पिता के साथ एक मेडिकल स्टोर चला रही है।

    जस्टिस सुनीता अग्रवाल और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की पीठ ने इसे देखते हुए कहा कि प्रतिवादी-पत्नी शिक्षित है और जीवित रहने के लिए कुछ कर रही है क्योंकि उसे अपने वैवाहिक घर से बाहर निकाल दिया गया है, लेकिन यह अंतरिम भरण पोषण से इनकार करने का कोई कारण नहीं हो सकता।

    "शारीरिक रूप से सक्षम पति यह तर्क नहीं दे सकता कि वह अपनी पत्नी के भरण पोषण की स्थिति में नहीं है। यह एक पुरुष की सामाजिक, कानूनी और नैतिक जिम्मेदारी है कि वह अपनी पत्नी का भरण पोषण करे और अपीलकर्ता के महज कोरे दावे के आधार पर इसका कोई अपवाद हमारे द्वारा नहीं लिया जा सकता।"

    रजनेश बनाम नेहा 2021 (2) SCC 324 में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का उल्लेख करते हुए और शीर्ष न्यायालय द्वारा चर्चा किए गए भरण पोषण के कानून को देखते हुए न्यायालय को अपील पर विचार करने के लिए कोई अच्छा आधार नहीं मिला।

    इस प्रकार अपील को प्रवेश चरण में ही खारिज कर दिया गया।

    केरल हाईकोर्ट ने वर्ष 2017 में भरण-पोषण के लिए एक पति के दावे को खारिज कर दिया था। इस मामले में कोर्ट ने माना था कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 के तहत भरण पोषण का भुगतान पति को तभी किया जाना है जब वह किसी भी अक्षमता या बाधा को साबित करने में सक्षम हो।

    जस्टिस ए.एम. शफीक और जस्टिस के. रामकृष्णन ने आगे कहा कि ऐसी परिस्थितियों के अभाव में पतियों को भरण-पोषण देने से उनमें "आलस्य" को बढ़ावा मिलेगा।

    केस टाइटल - वैभव सिंह बनाम श्रीमती। दिव्याशिका सिंह [पहली अपील नम्बर - 554/2022]

    साइटेशन : 2022 लाइव लॉ (एबी) 393

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