हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

29 May 2022 10:00 AM IST

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (23 मई, 2022 से 27 मई, 2022 तक) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मामलों को सावधानी से निपटाया जाना चाहिए, मौलिक अधिकारों के सम्मान और निष्पक्ष जांच के बीच संतुलन स्थापित किया जाना चाहिए: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता से संबंधित मामलों को सावधानी से निपटा जाना चाहिए। इसके लिए उसके मौलिक अधिकारों के सम्मान और स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच के बीच भी संतुलन बनाना होगा।

    जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376डी, 506 और 34 के तहत दर्ज एफआईआर में व्यक्ति को जमानत देते हुए यह टिप्पणी की। यह शिकायतकर्ता, याचिकाकर्ता की सगी बहन का मामला यह है कि विचाराधीन घटना कथित रूप से मार्च 2019 में हुई थी। जब शिकायतकर्ता के वकील से एफआईआर दर्ज करने में देरी के कारण के बारे में पूछा गया तो उसने कहा गया कि चूंकि यह संवेदनशील मामला है, इसलिए उनके पिता के कहने पर, जिनका दुर्भाग्य से अक्टूबर, 2021 में निधन हो गया था, शिकायतकर्ता ने कोई शिकायत दर्ज नहीं की।

    केस टाइटल: निजामुद्दीन खान बनाम राज्य और अन्य।

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    एससी/एसटी एक्ट: समन आदेश के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अपील सुनवाई योग्य नहीं, केवल धारा 14A(1) के तहत अपील सुनवाई योग्यः इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम के अपराध में एक विशेष न्यायाधीश द्वारा पारित समन आदेश के खिलाफ धारा 482 सीआरपीसी के तहत आवेदन नहीं दायर किया जा सकता है। न्यायालय ने एससी/एसटी एक्ट की धारा 14ए(1) को ध्यान में रखते हुए यह टिप्पणी की।

    न्यायालय के समक्ष मौजूदा मामले में 482 सीआरपीसी के तहत एक आवेदन दायर किया गया था, जिसमें द्वितीय अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश/विशेष न्यायाधीश, एससी/एसटी अधिनियम, लखीमपुर खीरी द्वारा धारा 323/504/506 आईपीसी और एससी/एसटी अधिनियम के 3(1) के तहत अपराध के लिए आवेदक के खिलाफ पारित समन आदेश को रद्द करने की प्रार्थना की गई थी।

    केस टाइटल- अनुज कुमार @ संजय और अन्य बनाम यूपी राज्य, प्रिंसिपल सेक्रेटरी, होम डिपार्टमेंट, लखनऊ के माध्यम से [ Application U/S 482 No.-2763 of 2022]

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    वेतन/पेंशन की पात्रता अनुच्छेद 21 और 300ए के तहत कर्मचारी के जीवन और संपत्ति के अधिकारों का आंतरिक हिस्सा: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने माना कि किसी कर्मचारी या पूर्व कर्मचारी को उसके वेतन या पेंशन का अधिकार, जैसा भी मामला हो, संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उसके जीवन के अधिकार और अनुच्छेद 300 ए के तहत संपत्ति के अधिकार का एक आंतरिक हिस्सा है।

    एक सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी के बकाया पर ब्याज के भुगतान की अनुमति देते हुए, जस्टिस संजीव कुमार पाणिग्रही की एकल पीठ ने कहा, "कर्मचारियों की बिना किसी गलती के नियोक्ता की ओर से निष्क्रियता के कारण कर्मचारियों को पीड़ित होने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।

    केस टाइटल: सोवाकर गुरु बनाम ओडिशा राज्य और अन्य।

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    किराया नियंत्रण अधिनियम का उद्देश्य मालिक को उनकी वास्तविक संपत्तियों से वंचित करना नहीं है: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट ने देखा है कि राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 1950 का मूल उद्देश्य बेईमान मालिकों से किरायेदारों के उत्पीड़न को बचाना है। अदालत ने कहा कि उक्त उद्देश्य मालिक को उनकी वास्तविक संपत्तियों से वंचित करना नहीं है।

    जस्टिस सुदेश बंसल ने देखा, "यह देखा जा सकता है कि किराया नियंत्रण कानून मकान मालिक और किरायेदार के बीच एक उचित संतुलन बनाने का हकदार था। एक तरफ जहां किरायेदार को आक्रामक रूप से डिजाइन किए गए लालची मकान मालिक के हाथों अपनी बेदखली के खिलाफ पर्याप्त सुरक्षा की आवश्यकता होती है, साथ ही मकान मालिक को भी उचित रूप से किराया बढ़ाने और कानून में अनुमेय आधार पर किरायेदार को बेदखल करने के लिए सुरक्षा की आवश्यकता होती है। किराया नियंत्रण अधिनियम, 1950 का मूल उद्देश्य बेईमान जमींदारों से किरायेदार के उत्पीड़न को बचाना है। किराया नियंत्रण अधिनियम, 1950 का उद्देश्य जमींदारों को उनकी वास्तविक संपत्तियों से वंचित करना नहीं है।"

    केस टाइटल: एलआरएस के माध्यम से मंगल दास बनाम एलआरएस के माध्यम से अमर सिंह

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    कर्मचारियों को सर्विस करियर के अंत में जन्म तिथि बदलने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने माना कि जब कर्मचारी अपने सर्विस करियर के अंतिम दिनों में जन्मतिथि बदलने के लिए आवेदन करते हैं तो ऐसे आवेदनों पर विचार नहीं किया जाना चाहिए।

    जस्टिस संजीव कुमार पाणिग्रही की खंडपीठ ने कहा, "अधिसूचना और उक्त दिशा-निर्देशों के अलावा, माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में स्पष्ट रूप से कहा है कि कर्मचारियों को सर्विस करियर के अंत में जन्म तिथि बदलने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। मौजूदा मामले में याचिकाकर्ता के सर्विस करियर के अंतिम दिनों में परिवर्तन का आवेदन दायर किया गया है।"

    केस टाइटल: उग्रसेन साहू बनाम उड़ीसा राज्य और अन्य।

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    पेंशन लाभ की गणना करते समय कर्मचारी द्वारा प्रदान की जाने वाली दैनिक वेतन सेवा पर विचार किया जाए: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में एक रिट याचिका को अनुमति दी, जिसमें उत्तर हरियाणा बिजली वितरण निगम के एक कर्मचारी ने मांग की थी कि उसकी सेवाओं को नियमित करने तक उसके द्वारा प्रदान की जाने वाली दैनिक वेतन सेवा को उसके पेंशन लाभों की गणना के लिए ध्यान में रखा जाना चाहिए।

    ज‌स्टिस हरसिमरन सिंह सेठी की खंडपीठ ने कहा कि पंजाब सिविल सेवा नियम, 1970 को प्रतिवादी-निगम द्वारा अपनाया गया है और उक्त नियमों के नियम 3.17 के अनुसार, एक कर्मचारी द्वारा उसके नियमितीकरण से पहले की गई दैनिक वेतन सेवाओं को उसके पेंशन लाभों की गणना के लिए अर्हक सेवा के रूप में माना जाएगा।

    केस टाइटल: महावीर सिंह बनाम उत्तर हरियाणा बिजली वितरण निगम लिमिटेड और अन्य

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    पुलिस सब-इंस्पेक्टर को जांच पड़ताल करने और चार्जशीट दाखिल करने का अधिकार: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना है कि एक पुलिस सब-इंस्पेक्टर (उप-निरीक्षक) को जांच करने और आरोप पत्र दाखिल करने का अधिकार है। पुलिस सब-इंस्पेक्टर द्वारा जांच के बाद दाखिल किए गए आरोप पत्र में कोई खामी नहीं है।

    जस्टिस के नटराजन की सिंगल जज बेंच ने कहा, "पुलिस सब-इंस्पेक्टर या इंस्पेक्टर दोनों थाने के प्रभारी हैं..., पुलिस सब-इंस्पेक्टर द्वारा उचित जांच के बाद दायर चार्जशीट में कोई दोष नहीं है। इसलिए इस आधार पर याचिकाकर्ता के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द नहीं की जा सकती।"

    केस टाइटल : ईएस प्रवीण कुमार बनाम कर्नाटक राज्य

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    न्याय के लक्ष्य को पूरा करने के लिए यदि आवश्यक हो तो धारा 482 सीआरपीसी हाईकोर्ट को सीआरपीसी में विचार नहीं किए गए आवेदनों पर विचार करने का अधिकार देता हैः पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि सीआरपीसी की धारा 482 हाईकोर्ट को असाधारण शक्तियां प्रदान करती है और न्याय की आवश्यकता के मामले में आपराधिक प्रक्रिया संहिता में विचार नहीं किए गए आवेदनों पर विचार करने का अधिकार देती है।

    कोर्ट ने कहा, "यह खंड इस न्यायालय को उन आवेदनों पर विचार करने की शक्ति देता है जिन पर दंड प्रक्रिया संहिता में विचार नहीं किया गया है, इस घटना में, यह महसूस किया जाता है कि न्याय के उद्देश्यों की आवश्यकता होगी कि न्यायालय असाधारण शक्तियों का प्रयोग कर सकता है जिनका प्रयोग संयम के साथ किया जाना है न कि हल्के में।"

    केस टाइटल: अमित बनाम हरियाणा राज्य और अन्य

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    जब तक मनमानी का स्पष्ट मामला नहीं बनता, अदालतें संविदात्मक मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकतीं: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि आम तौर पर, अदालतें संविदात्मक मामलों में हस्तक्षेप करने से घृणा करती हैं, जब तक कि मनमानी या दुर्भावना या पूर्वाग्रह या तर्कहीनता का स्पष्ट मामला नहीं बनता है।

    चीफ जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस आशुतोष शास्त्री की पीठ ने कहा कि वाणिज्यिक मामलों में अनावश्यक हस्तक्षेप से तबाही मच सकती है और इसलिए, न्यायालयों को ऐसे मामलों में अपनी सीमाओं का एहसास होना चाहिए।

    केस शीर्षक: सुमेश इंजीनियर्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम मध्य गुजरात विज कंपनी लिमिटेड

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    एमएसएमईडी अधिनियम की धारा नौ के अनुसार 75% से अधिक राशि का प्री-डिपोसिट किश्तों में जमा किया जा सकता है: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने हाल ही में एक पक्षकार को माइक्रो, स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज डेवलपमेंट (एमएसएमईडी) एक्ट, 2006 के तहत अपील की अनुमति दी। उक्त पक्षकार अधिनियम की धारा 19 के तहत पूर्व-डिपोज़िट बनाने के लिए अर्थात् 75% राशि का किस्तों में करने की मांग कर रहा था। याचिकाकर्ता अतिरिक्त जिला न्यायाधीश के आदेश से पीड़ित था। उक्त न्यायाधीश ने अवॉर्ड अमाउंट के 75% को जमा करने के लिए समय के विस्तार के उसके आवेदन को अस्वीकार कर दिया था।

    केस टाइटल: यमुना केबल्स एक्सेसरीज प्रा. लिमिटेड बनाम एस देसाई एंटरप्राइज

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    [मुंबई लोकल] सीजन टिकट रखने वाला व्यक्ति रेलवे अधिनियम के तहत दुर्घटना मुआवजे के लिए वास्तविक यात्री है, भले ही आईडी कार्ड न हो: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने कहा है कि सीजन टिकट रखने वाला व्यक्ति रेलवे अधिनियम (Railway Act), 1989 के तहत मुआवजे का दावा करने के उद्देश्य से एक वास्तविक "यात्री" है, यहां तक कि पहचान पत्र के अभाव में भी। कोर्ट ने कहा कि सीजन टिकट के साथ आईडी कार्ड दिखाने में विफल रहने वाले यात्री को टिकट रहित यात्री मानने के मंत्रालय के निर्देश अनिवार्य नहीं हैं।

    जस्टिस संदीप के शिंदे ने इस प्रकार रेलवे दावा न्यायाधिकरण के 17 मार्च, 2009 के आदेश को रद्द कर दिया और रेलवे दावा न्यायाधिकरण को निर्देश दिया कि अपीलकर्ता को, जो 18 साल पहले ट्रेन से गिर गया था, को मेडिकल साक्ष्य के सत्यापन के बाद 3 लाख का मुआवजा दे।

    केस टाइटल: हरीश चंद्र दामोदर बनाम यूओआई

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    जब पक्षकारों को मध्‍यस्‍थता एवं सुलह अधिनियम की धारा 8 के तहत मध्यस्थता के लिए संदर्भित किया जाता है तो वादी कोर्ट फीस की वापसी का हकदार नहीं है: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने माना है कि जब पक्षकारों को मध्‍यस्‍थता एवं सुलह अधिनियम [Arbitration and Conciliation Act] की धारा 8 के तहत मध्यस्थता के लिए संदर्भित किया जाता है तो वादी कोर्ट फीस की वापसी का हकदार नहीं है।

    जस्टिस अमित बंसल की एकल पीठ ने माना कि कोर्ट फीस अधिनियम की धारा 16[1] का लाभ वादी को तभी मिलेगा जब पक्षकारों को सीपीसी की धारा 89 के तहत निपटान के लिए मध्यस्थता के लिए भेजा जाता है, न कि मध्‍यस्‍थता एवं सुलह अधिनियम की धारा 8 के तहत।

    केस टाइटल: ए-वन रीयलटर्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम एनर्जी एफिशिएंसी सर्विसेज लिमिटेड, CS (COMM) 610 of 2019

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    बच्चा कोई वस्तु नहीं है, माता-पिता की आय और बेहतर शिक्षा की संभावना कस्टडी तय करने का एकमात्र मानदंड नहीं: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

    छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 9 साल की एक बच्‍ची की गॉर्जियनश‌िप उसकी मां को प्रदान की है। जस्टिस गौतम भादुड़ी ने अपने फैसले में कहा, ऐसे मामलों का फैसला केवल कानूनी प्रावधानों की व्याख्या करके नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा, 'यह एक मानवीय समस्या है और इसे मानवीय स्पर्श से हल करना होगा।' मौजूदा मामले में पिता ने एक फैसले के खिलाफ अपने बच्चे की कस्टडी की मांग करते हुए एक अपील दायर की। फैसले में उन्हें उसे मुलाक़ात के अधिकार से वंचित कर दिया गया था।

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    [सीआरपीसी की धारा 256] कोर्ट को अपने न्यायिक विवेक और रिकॉर्ड को लागू करना चाहिए जो मामले को खारिज करने का औचित्य साबित करता है: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट (Calcutta High Court) ने हाल ही में नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट की धारा 138 के तहत दर्ज एक शिकायत के लिए सीआरपीसी की धारा 256 के तहत एक आरोपी को बरी करने के आदेश को यह कहते हुए खारिज कर दिया है कि एक मजिस्ट्रेट इस तरह के आदेश को केवल न्यायिक राय बनाए बिना शिकायतकर्ता के पेश नहीं होने के कारण पारित नहीं कर सकता है।

    धारा 256 में कहा गया है कि यदि शिकायतकर्ता शिकायत पर समन जारी होने के बाद नियत दिन पर उपस्थित नहीं रहता है और जब तक शिकायतकर्ता की उपस्थिति समाप्त नहीं हो जाती है, मजिस्ट्रेट आरोपी को बरी कर देगा। प्रावधान में आगे कहा गया है कि यदि मजिस्ट्रेट को लगता है कि उस तारीख को बरी करने का आदेश पारित नहीं किया जाना चाहिए, तो मजिस्ट्रेट को कारण बताना होगा।

    केस टाइटल: वन टेक्सटाइल बनाम उमेश भरेच

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    [आत्महत्या के लिए उकसाना] शब्दों की धारणा लोगों की अलग-अलग होती है, ट्रायल के बिना प्राथमिकी रद्द नहीं की जा सकती: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक आरोपी के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले को रद्द करने से इनकार करते हुए कहा है कि धमकी देने वाले शब्द की धारणा अलग-अलग लोगों में भिन्न होती है और इस प्रकार, मामले के तथ्यों में यह उचित नहीं होगा कि प्राथमिकी को बिना ट्रायल के रद्द कर दिया जाए।

    जस्टिस के नटराजन की सिंगल जज बेंच ने कहा, "यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि वे मामले को कैसे आगे बढ़ाते हैं। यदि कोई गाली-गलौज और गंदी भाषा का उपयोग करके डांटता है, तो कुछ लोग इसे गंभीरता से नहीं लेते हैं, लेकिन कुछ लोग, जो संवेदनशील लोग हैं, इसे बहुत गंभीरता से लेते हैं। अदालत इसे नहीं ले सकती है और यह मानना कि आत्महत्या के लिए कोई उकसाना नहीं है। आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए आईपीसी की धारा 107 को आकर्षित करने के उद्देश्य से कई तथ्यों पर विचार किया जाना है। इसलिए, मुकदमे के बिना यह कोर्ट सीआरपीसी की धारा 482 के तहत शक्ति का प्रयोग करने के उद्देश्य से कोई भी दस्तावेज और सबूत का सराहना नहीं कर सकता है।"

    केस टाइटल: वी श्रीनिवासराजू बनाम येलहंका पुलिस के माध्यम से राज्य।

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    कश्मीरी अलगाववादी नेता यासीन मलिक को जम्मू-कश्मीर टेरर फंडिंग मामले में उम्र कैद की सज़ा

    दिल्ली की एक विशेष एनआईए अदालत ने बुधवार को कश्मीरी अलगाववादी नेता यासीन मलिक को जम्मू-कश्मीर टेरर फंडिंग मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद उम्रकैद की सजा सुनाई। मलिक ने मामले में अपना दोष स्वीकार किया था और अपने खिलाफ लगे आरोपों का विरोध नहीं किया था। विशेष एनआईए न्यायाधीश प्रवीण सिंह ने इस साल मार्च में मामले में गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत मलिक और अन्य के खिलाफ आरोप तय किए थे। हालांकि मलिक ने इन आरोपों में अपना गुनाह कबूल कर लिया था।

    केस टाइटल: एनआईए बनाम हाफिज मुहम्मद सईद और अन्य।

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    अनुच्छेद 226 को लागू करने वाले व्यक्ति को साफ हाथों से आना चाहिए, पूर्ण और सही तथ्यों का खुलासा करना चाहिए: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने वाले व्यक्ति को साफ हाथों से आना चाहिए, और पूर्ण और सही तथ्यों का खुलासा करना चाहिए।

    चीफ एक्टिंग जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस नवीन चावला की खंडपीठ ने यह भी कहा कि एक याचिकाकर्ता को किसी भी भौतिक तथ्यों को नहीं दबाना चाहिए और कानूनी कार्यवाही के लिए बार-बार या समानांतर सहारा नहीं लेना चाहिए। कोर्ट ने एसोसिएशन ऑफ एमडी फिजिशियन द्वारा 25,000 रुपये जुर्माने के साथ दायर याचिका को खारिज करने वाले एकल न्यायाधीश के फैसले को चुनौती देने वाली एक अपील पर विचार करते हुए यह टिप्पणी की।

    केस टाइटल: एसोसिएशन ऑफ एमडी फिजिशियन बनाम नेशनल बोर्ड ऑफ एक्जामिनेशन एंड अन्य।

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    धारा 437 सीआरपीसी | गैर-जमानती अपराध के लिए महिला को जमानत दी जा सकती है: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने यह देखते हुए कि यह कानून नहीं है कि ऐसे मामले में जमानत से इनकार किया जाना चाहिए, जहां अपराध की सजा मौत या आजीवन कारावास हो, हाल ही में पति की हत्या के आरोपी एक महिला को जमानत दी।

    जस्टिस एम नागप्रसन्ना की सिंगल जज बेंच ने नेत्रा नामक एक व्यक्ति की याचिका को स्वीकार कर लिया और आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 437 के आधार पर उसे जमानत दे दी। सीआरपीसी की धारा 437 के अनुसार, गैर-जमानती अपराध में तीन परिस्थितियों में जमानत दी जा सकती है, (i) आरोपी की उम्र 16 साल से कम हो, (ii) महिला हो और (iii) बीमार या दुर्बल हो।

    केस टाइटल: नेथरा बनाम कर्नाटक राज्य

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    बार एसोसिएशन किसी व्यक्ति का प्रतिनिधित्व करने के खिलाफ प्रस्ताव नहीं पारित कर सकते, इसे संविधान का उल्लंघन माना जाएगा: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने कराइकुडी बार एसोसिएशन के उस प्रस्ताव को पारित करने के कृत्य की निंदा की जिसमें कहा गया है कि कि कोई भी इस मामले में कुछ अभियुक्तों का प्रतिनिधित्व नहीं करेगा। कोर्ट ने कहा कि ऐसा प्रस्ताव अवैध है और इसे शून्य माना जाएगा। ऐसे मामलों में भी जहां अधिवक्ताओं पर हमला हुआ है, उसकी कड़ी निंदा की जानी चाहिए और हमलावरों से निपटा जाना चाहिए। लेकिन फिर भी, बार एसोसिएशन से इस तरह के प्रस्तावों को पारित करने की उम्मीद नहीं की जाती है। इसे भारतीय संविधान का उल्लंघन माना जाएगा।

    केस टाइटल: गणपति एंड अन्य बनाम पुलिस निरीक्षक के माध्यम से राज्य

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    मेडिक्लेम पॉलिसी के तहत बीमा कंपनी द्वारा दी गयी राशि मोटर दुर्घटना दावे के मुआवजे से कटौती योग्य: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने माना है कि मेडिकल खर्च के लिए मुआवजा प्रतिपूर्ति का मामला है और इसलिए एक बार बीमा कंपनी द्वारा सड़क दुर्घटना के शिकार व्यक्ति को मेडिकल खर्च के लिए क्षतिपूर्ति करने का निर्णय लेने के बाद, मोटर वाहन अधिनियम के तहत एक बार फिर से इसका दावा नहीं किया जा सकता है।

    जस्टिस टीका रमन की पीठ ने इस प्रकार व्यवस्था दी कि चिकित्सा पॉलिसी कवरेज के तहत बीमा कंपनी द्वारा सीधे अस्पताल को भुगतान की गई राशि को मोटर दुर्घटना न्यायाधिकरण द्वारा घायलों को मुआवजे की गणना करते समय कम किया जाएगा।

    केस टाइटल : प्रबंधक, टाटा एआईजी जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम कथामुथु और अन्य

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    यदि पर्याप्त स्पष्टीकरण प्रस्तुत किया गया हो तो मोटर दुर्घटना दावों में एफआईआर दर्ज करने में देरी घातक नहीं है: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने हाल ही में मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण को एक मोटर दुर्घटना पीड़ित द्वारा दायर दावा याचिका पर विचार करने का निर्देश दिया, भले ही पुलिस को मामले की रिपोर्ट करने में लगभग एक महीने की देरी हुई हो।

    दावा याचिका को खारिज करने को चुनौती देते हुए मोटर वाहन अधिनियम 1988 की धारा 173 के तहत दायर पहली अपील में निर्देश पारित किया गया था। इस तथ्य पर ध्यान आकर्षित किया गया था कि यहां पीड़ित अपने कृषि कार्य से 1,50,000 रुपये कमा रहा था और इसलिए दावेदार 11,00,000 रुपये का मुआवजा पाने के हकदार थे।

    केस टाइटल: हरदासभाई रायमलभाई गोहिल बनाम संजयभाई अरविंदभाई जबुआनी

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    आर्बिट्रेटर केवल इसलिए समझौते की शर्तों को फिर से नहीं लिख सकता क्योंकि यह बिजनेस कॉमन सेंस का उल्लंघन करता है: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि मध्यस्थ पार्टियों के बीच समझौते की शर्तों को केवल इसलिए दोबारा नहीं लिख सकता, क्योंकि समझौते में शामिल पार्टियों ने व्यापार की सामान्य समझ का उपहास किया है।

    जस्टिस विभु बाखरू की स‌िंगल बेंच ने माना कि एक अवॉर्ड, जिसमें मध्यस्थ पार्टियों के बीच समझौते में बदलाव करता है, क्योंकि यह एक पक्ष के लिए व्यावसायिक रूप से मुश्किल है, वह भारतीय कानून की मौलिक नीति के खिलाफ होगा और पेटेंट अवैधता से प्रभावित होगा।

    केस टाइटल: यूनियन ऑफ इंडिया, रेल मंत्रालय, रेलवे बोर्ड और अन्य बनाम मैसर्स जिंदल रेल इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड, ओएमपी (COMM) 227 ऑफ 2019।

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    सीमा शुल्क अधिनियम की धारा 108- ' कंपनियों के प्रबंध निदेशकों को तभी तलब किया जाना चाहिए जब अधिकृत प्रतिनिधि सहयोग नहीं कर रहे हों': गुवाहाटी हाईकोर्ट

    गुवाहाटी हाईकोर्ट (Gauhati High Court) ने कहा कि किसी कंपनी के प्रबंध निदेशक को सीमा शुल्क अधिनियम की धारा 108 के तहत अधिकारियों द्वारा सीधे तलब नहीं किया जाना चाहिए।

    कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आम तौर पर, किसी कंपनी के अधिकृत प्रतिनिधियों को बुलाया जाता है और प्रबंध निदेशकों को केवल तभी बुलाया जा सकता है जब अधिकृत प्रतिनिधि सहयोग नहीं कर रहे हों या यदि जांच को तेजी से पूरा किया जाना है, जैसा भी मामला हो।

    केस टाइटल: सेंचुरी प्लाईबोर्ड्स (इंडिया) लिमिटेड एंड अन्य बनाम भारत संघ एंड अन्य।

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    न्यायालयों को विवेक का प्रयोग करना चाहिए ताकि उचित परिक्षण के बाद लिखित बयान दाखिल करने में देरी को माफ किया जा सके: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने एड‌िसनल सिविल जज (सीनियर डि‌विजन), फिरोजपुर के आदेश के खिलाफ दायर एक याचिका, जिसके माध्यम से याचिकाकर्ता का बचाव किया गया था, पर विचार करते हुए माना कि सीपीसी के आदेश 8 नियम 1 के प्रावधान प्रकृति में निर्देशिका हैं, हालांकि, न्यायालयों को उचित सावधानी बरतने के बाद लिखित बयान दाखिल करने में देरी को माफ करने के लिए अपने विवेक का प्रयोग करना चाहिए और यदि ऐसा प्रतीत होता है कि प्रतिवादी देरी करने की रणनीति का इस्तेमाल करने का प्रयास किया है तो न्यायालयों को इसे बिना किसी हिचकिचाहट के समाप्त करना चाहिए।

    केस टाइटल: पारो और अन्य बनाम महिंदो

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    यदि बाद की सरकारी नौकरी सक्षम प्राधिकारी से अनुमति के साथ ली गई है तो पेंशन लाभ की गणना के लिए पिछली सेवा को जब्त नहीं किया जा सकता : मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने कहा है कि एक इस्तीफे के कारण पिछले रोजगार की सेवा अवधि की जब्ती (forfeiture) नहीं होगी, यद‌ि इस्तीफा एक और सरकारी नियुक्ति के लिए उचित अनुमति के साथ पेश किया गया है। कोर्ट ने माना कि ऐसी परिस्थितियों में, तमिलनाडु पेंशन रूल्स, 1978 के तहत पेंशन लाभों की गणना के लिए पिछले रोजगार की सेवा अवधि को ध्यान में रखा जाएगा।

    जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम निदेशक, ग्रामीण विकास और पंचायत राज निदेशालय के आदेश और डिंडीगुल जिले के कलेक्टर के आदेश के खिलाफ दायर एक याचिका पर विचार कर रहे थे। आक्षेपित आदेशों में पेंशन और अन्य मौद्रिक लाभों के लिए याचिकाकर्ता द्वारा की गई पिछली सेवा की गणना के दावे को खारिज कर दिया गया था।

    केस टाइटल: एसएसएस प्रहलादन बनाम सचिव और अन्य

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    निचली अदालत द्वारा आरोपी को दोषी ठहराए जाने के बाद आपराधिक अपील पर दबाव नहीं डालना आरोपी द्वारा अपराध स्वीकार करने के समान: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने हाल ही में आईपीसी की धारा 354 [स्त्री की लज्जा भंग करने के आशय से उस पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग] के तहत एक व्यक्ति की सजा बरकरार रखते हुए कहा, "निचली अदालत द्वारा आरोपी को दोषी ठहराए जाने के बाद आपराधिक अपील पर दबाव नहीं डालना आरोपी द्वारा अपराध स्वीकार करने जैसा है।" जस्टिस सुरेश कुमार गुप्ता की खंडपीठ ने दोषी की सजा को उसके द्वारा पहले से ही जेल में बिताई गई अवधि (लगभग 8 महीने) तक कम कर दिया।

    केस टाइटल - रामसागर बनाम उत्तर प्रदेश राज्य [आपराधिक अपील संख्या – 465 ऑफ 2020]

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    मामले को स्थगित करते समय अदालत द्वारा अनजाने में हुई गलती से पक्षकार के साक्ष्य का मूल्यवान अधिकार नहीं छीना जा सकता: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत दायर पुनर्विचार याचिका पर विचार करते हुए ट्रायल कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया। इस आदेश में ट्रायल कोर्ट ने वादी के साक्ष्य के लिए मामले को स्थगित करने के बजाय अनजाने में खंडन साक्ष्य के लिए तय कर दिया था। हाईकोर्ट ने माना कि केवल इसलिए कि अदालत ने मामले को स्थगित करते समय गलती की थी, उन मुद्दों पर सकारात्मक साक्ष्य के उनके मूल्यवान अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है, जिन पर उन पर आरोप लगाया गया है।

    केस टाइटल: सिमरजीत कौर @ सिमरजीत कौर @ सिमरजीत कौर बनाम मनिंदर कौर

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    'यूपी गैंगस्टर एक्ट' के तहत एक ही केस के आधार पर एफआईआर दर्ज की जा सकती है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने हाल ही में देखा कि उत्तर प्रदेश गैंगस्टर्स और असामाजिक गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1986 के तहत एक पिछले मामले में एक आरोपी की संलिप्तता के आधार पर एफआईआर दर्ज की सकती है।

    जस्टिस सूर्य प्रकाश केसरवानी और जस्टिस पीयूष अग्रवाल की खंडपीठ ने रितेश कुमार उर्फ रिक्की बनाम यूपी राज्य एंड अन्य मामले में हाईकोर्ट के पहले के फैसले पर भरोसा करते हुए यह टिप्पणी की। रितेश कुमार मामले में हाईकोर्ट ने माना था कि यूपी गैंगस्टर्स अधिनियम के तहत एक व्यक्ति की संलिप्तता के आधार पर भी एफआईआर दर्ज करना वैध और अनुमेय है।

    केस टाइटल- अनवर शहजाद बनाम यू.पी. राज्य एंड अन्य [आपराधिक विविध। रिट याचिका संख्या - 2021 का 3668]

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    सीआरपीसी की धारा 125 के तहत याचिका को इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता कि पत्नी के पास के पर्याप्त साधन हैं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि एक पत्नी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता पाने का मौका इस आधार पर नहीं गंवा सकती है कि उसके पास अपने और अपने बच्चों के भरणपोषण के लिए पर्याप्त साधन हैं। उसे संपत्ति बेचने के बाद पैसा मिला है। जस्टिस बृज राज सिंह की खंडपीठ ने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत कृष्णा देवी की याचिका को खारिज करने के फैमिली कोर्ट के फैसले और आदेश को रद्द कर दिया। उन्होंने अपने पति से मासिक भरणपोषण के रूप में कम से कम दस हजार रुपये का भुगतान करने के लिए निर्देश देने की मांग की।

    केस टाइटल- श्रीमती कृष्णा देवी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्‍य [CRIMINAL REVISION No. - 205 of 2016]

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