एससी/एसटी एक्ट: समन आदेश के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अपील सुनवाई योग्य नहीं, केवल धारा 14A(1) के तहत अपील सुनवाई योग्यः इलाहाबाद हाईकोर्ट

Avanish Pathak

28 May 2022 9:30 AM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट


    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम के अपराध में एक विशेष न्यायाधीश द्वारा पारित समन आदेश के खिलाफ धारा 482 सीआरपीसी के तहत आवेदन नहीं दायर किया जा सकता है। न्यायालय ने एससी/एसटी एक्ट की धारा 14ए(1) को ध्यान में रखते हुए यह टिप्पणी की।

    न्यायालय के समक्ष मौजूदा मामले में 482 सीआरपीसी के तहत एक आवेदन दायर किया गया था, जिसमें द्वितीय अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश/विशेष न्यायाधीश, एससी/एसटी अधिनियम, लखीमपुर खीरी द्वारा धारा 323/504/506 आईपीसी और एससी/एसटी अधिनियम के 3(1) के तहत अपराध के लिए आवेदक के खिलाफ पारित समन आदेश को रद्द करने की प्रार्थना की गई थी।

    यह ध्यान दिया जा सकता है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 14ए (1) एक नॉन ऑब्सटेंट क्लॉज (Non Obstante Clause) से शुरू होती है और इसे सीआरपीसी में निहित सामान्य प्रावधानों को ओवरराइड करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

    सरल शब्दों में, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम की धारा 14ए(1) के तहत, किसी भी निर्णय, संज्ञान आदेश, आदेश जो विशेष न्यायालय का इंटरलोक्यूटरी ऑर्डर नहीं है, .....अपील की जा सकती है।

    इसका मतलब यह है कि इस न्यायालय की संवैधानिक और अंतर्निहित शक्तियों को धारा 14 ए द्वारा "बेदखल" नहीं किया गया है, लेकिन उन मामलों और स्थितियों में उन्हें लागू नहीं किया जा सकता है जहां धारा 14 ए के तहत अपील की जा सकती है और कानून की इस स्थिति को पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने "संदर्भ मेंः अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम, 2015 की धारा 14ए का प्रावधान" में स्वीकार कर लिया है।

    अब, हाईकोर्ट के समक्ष एकमात्र प्रश्न यह था कि क्या धारा 14ए की उपधारा (1) में आने वाले शब्द "आदेश" में मध्यवर्ती आदेश भी शामिल होंगे और क्या किसी अपराध का संज्ञान लेना और आरोपी को समन करना मध्यवर्ती आदेश है?

    इसका उत्तर देने के लिए जस्टिस अनिल ओझा की खंडपीठ ने गिरीश कुमार सुनेजा बनाम सीबीआई, (2017) 14 एससीसी 809 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया, जिसमें यह माना गया था कि अपराध का संज्ञान लेना और आरोपी को तलब करना एक मध्यवर्ती आदेश है।

    न्यायालय ने माना कि आवेदन धारा 482 सीआरपीसी द्वितीय अपर सत्र न्यायाधीश/विशेष न्यायाधीश, एससी/एसटी अधिनियम, लखीमपुर खीरी द्वारा पारित समन आदेश के विरुद्ध दायर नहीं किया जा सकता है।

    धारा 482 सीआरपीसी के तहत आवेदन को इस अवलोकन के साथ निपटाया गया था कि आवेदकों को उपयुक्त मंच के समक्ष नई याचिका दायर करने की अनुमति है।

    केस टाइटल- अनुज कुमार @ संजय और अन्य बनाम यूपी राज्य, प्रिंसिपल सेक्रेटरी, होम डिपार्टमेंट, लखनऊ के माध्यम से [ Application U/S 482 No.-2763 of 2022]

    केस साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (एबी) 264

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें

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