धारा 437 सीआरपीसी | गैर-जमानती अपराध के लिए महिला को जमानत दी जा सकती है: कर्नाटक हाईकोर्ट

Avanish Pathak

25 May 2022 11:45 AM GMT

  • धारा 437 सीआरपीसी | गैर-जमानती अपराध के लिए महिला को जमानत दी जा सकती है: कर्नाटक हाईकोर्ट

    Karnataka High Court

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने यह देखते हुए कि यह कानून नहीं है कि ऐसे मामले में जमानत से इनकार किया जाना चाहिए, जहां अपराध की सजा मौत या आजीवन कारावास हो, हाल ही में पति की हत्या के आरोपी एक महिला को जमानत दी।

    जस्टिस एम नागप्रसन्ना की सिंगल जज बेंच ने नेत्रा नामक एक व्यक्ति की याचिका को स्वीकार कर लिया और आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 437 के आधार पर उसे जमानत दे दी।

    सीआरपीसी की धारा 437 के अनुसार, गैर-जमानती अपराध में तीन परिस्थितियों में जमानत दी जा सकती है, (i) आरोपी की उम्र 16 साल से कम हो, (ii) महिला हो और (iii) बीमार या दुर्बल हो।

    मौजूदा मामले में याचिकाकर्ता पर पति की हत्या का आरोप है। मृतक के पिता की शिकायत के अनुसार, जब वह आधी रात को अपने बेटे के घर पहुंचा तो उसने उसे मृत पाया, जबकि याचिकाकर्ता, जो हाथ में हथियार लिए हुए थी, उसे देखकर भाग गई।

    याचिकाकर्ता को न्यायिक हिरासत में ले लिया गया था। वह 8 नवंबर, 2021 से हिरासत में है। याचिकाकर्ता ने जांच के लंबित ‌होन के दरमियान ही सीआरपीसी की धारा 439 के तहत जमानत के लिए आवेदन किया। जमानत अर्जी पर विचार नहीं किया गया।

    पुलिस ने जांच के बाद 25-01-2022 को अंतिम रिपोर्ट/चार्जशीट दाखिल की। बाद में 17.02.2022 को जमानत के लिए आवेदन किया गया। हालांकि इस तथ्य के बावजूद खारिज कर दिया गया कि इस मामले में इस आधार पर आरोप पत्र दायर किया गया था कि अपराध मौत या आजीवन कारावास से दंडनीय है।

    याचिकाकर्ता की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट हशमथ पाशा ने तर्क दिया कि आईपीसी की धारा 302 के तहत आरोप एक दंडनीय होने के बावजूद, एक महिला होने के नाते आरोपी कानूनी रूप से जमानत पर रिहा होने के लिए विचार करने का हकदार है, वह भी ऐसे मामले में जहां आरोप पत्र पहले ही दायर किया जा चुका है।

    उन्होंने बताया कि मामले में सह आरोपी पहले ही जमानत पर रिहा हो चुका है।

    दूसरी ओर अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि कथित अपराध मौत या आजीवन कारावास से दंडनीय है। ऐसा होने पर, महिला होने और सीआरपीसी की धारा 437 के तहत विचार करने की हकदार होने के बावजूद, याचिकाकर्ता को मामले में रिहा नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि वह समाज के लिए खतरा होगी।

    निष्कर्ष

    अदालत ने सीआरपीसी की धारा 437 का जिक्र करते हुए कहा, "याचिकाकर्ता एक महिला है। वह सीआरपीसी की धारा 437 के तहत विचार की हकदार है।"

    कोर्ट ने तब हाईकोर्ट के तीन निर्णयों कविता बनाम कर्नाटक राज्य Crl.P.No.2509 of 2019, रत्नाव्वा बनाम कर्नाटक राज्य Crl.P.No.100503 of 2014, थ‌िप्‍पम्‍मा बनाम कर्नाटक राज्य ,Crl.P.No.8575 of 2017 पर भरोसा किया।

    कोर्ट ने कहा,

    "मेरे विचार में मामले में मौजूद तथ्य वे नहीं हैं, जो सीआरपीसी की धारा 437 के तहत मामले पर विचार करने के हकदार नहीं हैं, विशेष रूप से कथित हत्या के बाद पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करने के लिए याचिकाकर्ता के आचरण को देखते हुए। याचिकाकर्ता के सिर पर लटकी मौजूदा तलवार के अलावा कोई आपराधिक इतिहास नहीं है, और उसकी रिहाई पर समाज के लिए कोई खतरा नहीं होगी, इस तथ्य के साथ कि पुलिस ने जांच पूरी कर ली है और मामले में आरोप पत्र दायर कर दिया है।"

    कोर्ट ने 2 लाख रुपये के निजी मुचलके और इतनी ही राशि के एक जमानतदार के साथ जमानत दी। कोर्ट ने कुछ शर्ते भी लगाईं।

    केस टाइटल: नेथरा बनाम कर्नाटक राज्य

    केस नंबर: CRIMINAL PETITION No.2306 OF 2022

    साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (कर) 169

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