मामले को स्थगित करते समय अदालत द्वारा अनजाने में हुई गलती से पक्षकार के साक्ष्य का मूल्यवान अधिकार नहीं छीना जा सकता: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

Shahadat

23 May 2022 6:26 AM GMT

  • मामले को स्थगित करते समय अदालत द्वारा अनजाने में हुई गलती से पक्षकार के साक्ष्य का मूल्यवान अधिकार नहीं छीना जा सकता: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत दायर पुनर्विचार याचिका पर विचार करते हुए ट्रायल कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया। इस आदेश में ट्रायल कोर्ट ने वादी के साक्ष्य के लिए मामले को स्थगित करने के बजाय अनजाने में खंडन साक्ष्य के लिए तय कर दिया था। हाईकोर्ट ने माना कि केवल इसलिए कि अदालत ने मामले को स्थगित करते समय गलती की थी, उन मुद्दों पर सकारात्मक साक्ष्य के उनके मूल्यवान अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है, जिन पर उन पर आरोप लगाया गया है।

    केवल इसलिए कि मामले को स्थगित करते समय न्यायालय द्वारा अनजाने में गलती की गई थी, वादी-प्रतिवादी को उन मुद्दों पर सकारात्मक साक्ष्य देने के अपने मूल्यवान अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता, जिन पर उन पर आरोप लगाया गया।

    जस्टिस अलका सरीन की पीठ उस आदेश को चुनौती देने वाली वर्तमान पुनर्विचार याचिका पर विचार कर रही थी, जिसके तहत गवाह-नरजीत सिंह ढिल्लों नाम के गवाह के हलफनामे को खारिज करने के लिए प्रतिवादी-याचिकाकर्ता द्वारा दायर आवेदन को खारिज कर दिया गया था।

    अदालत ने ध्यान दिया कि प्रतिवादी-याचिकाकर्ता द्वारा आरोप लगाए गए मुद्दों पर अपने साक्ष्य का नेतृत्व करने के बाद वादी-प्रतिवादी के खंडन साक्ष्य के लिए मामला स्थगित कर दिया गया था। वादी-प्रतिवादी ने हलफनामा दायर किया और प्रतिवादी-याचिकाकर्ता ने इस आधार पर इसे अस्वीकार करने के लिए आवेदन दायर किया कि वादी-प्रतिवादी हलफनामे के माध्यम से खंडन साक्ष्य की आड़ में सकारात्मक साक्ष्य का नेतृत्व करना चाहता था, जो अनुमेय नहीं है।

    अदालत ने देखा कि वादी-प्रतिवादी की ओर से उन मुद्दों पर कोई सबूत नहीं दिया गया है जो उस पर डाले गए है। ट्रायल कोर्ट ने यह भी दर्ज किया कि वादी-प्रतिवादी ने अभी तक अपने साक्ष्य को सकारात्मक रूप में पेश नहीं किया। ट्रायल कोर्ट द्वारा आगे यह देखा गया कि वादी के साक्ष्य के लिए मामले को स्थगित करने के बजाय अनजाने में खंडन साक्ष्य के लिए मामला तय किया गया था।

    कोर्ट ने अंततः निष्कर्ष निकाला कि वादी-प्रतिवादी को उन मुद्दों पर सकारात्मक रूप से अपने साक्ष्य का नेतृत्व करने का अधिकार होगा, जिन पर उन पर और साथ ही उन मुद्दों पर खंडन किया गया था, जिनकी जिम्मेदारी प्रतिवादी-याचिकाकर्ता पर डाली गई है और जो कि साक्ष्य का नेतृत्व किया जा चुका है।

    इसके बाद वादी-प्रतिवादी को उन मुद्दों पर सकारात्मक रूप से अपने साक्ष्य का नेतृत्व करने का अधिकार होगा, जिन पर वादी-प्रतिवादी के साथ-साथ उन मुद्दों पर खंडन किया गया था, जिनकी जिम्मेदारी प्रतिवादी-याचिकाकर्ता पर डाली गई है। इसके अलावा, सबूत का नेतृत्व पहले ही किया जा चुका है।

    ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित आदेश में कोई अवैधता या दुर्बलता नहीं पाते हुए अदालत ने याचिका को बिना योग्यता के पाते हुए खारिज कर दिया।

    केस टाइटल: सिमरजीत कौर @ सिमरजीत कौर @ सिमरजीत कौर बनाम मनिंदर कौर

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