सुप्रीम कोर्ट मंथली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Update: 2024-08-04 05:30 GMT

सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (01 जुलाई, 2024 से 02 अगस्त, 2024 तक) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

आजीवन कारावास की सजा तभी निलंबित किया जा सकता है जब दोषसिद्धि टिकाऊ न हो: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आजीवन कारावास की सजा पाने वाले दोषी को सजा के निलंबन का लाभ केवल तभी दिया जा सकता है, जब प्रथम दृष्टया ऐसा लगे कि दोषसिद्धि टिकाऊ नहीं है और दोषी के पास दोषसिद्धि के खिलाफ अपील में सफल होने की उच्च संभावना है। कोर्ट ने कहा कि यदि ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं है जिससे यह निष्कर्ष निकाला जा सके कि दोषसिद्धि कानून में टिकाऊ नहीं है तो दोषी को सजा के निलंबन का लाभ नहीं दिया जा सकता।

जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस उज्जल भुयान की बेंच ने कहा कि कोर्ट निश्चित अवधि की सजा के निलंबन की याचिका पर फैसला करते समय दोषी को जमानत पर रिहा करने के लिए अपने विवेक का इस्तेमाल कर सकता है, लेकिन आजीवन कारावास की सजा के निलंबन की याचिका पर फैसला करते समय इस तरह के विवेक का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।

केस टाइटल: भूपतजी सरताजी जबराजी ठाकोर बनाम गुजरात राज्य, डायरी नंबर 27298/2024

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NEET UG 2024| अकेले व्यक्ति के लिए दोबारा परीक्षा आयोजित किए जाने की उम्मीद न करें: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने याचिका की सुनवाई स्थगित की। उक्त याचिका में अन्य बातों के अलावा, NEET-UG परीक्षा की OMR Sheet में हेरफेर करने में राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (NTA) के अधिकारियों की संलिप्तता का आरोप लगाया गया था।

जस्टिस सी.टी. रविकुमार और जस्टिस मनोज मिश्रा की वेकेशन बेंच ने याचिकाकर्ता के वकील से भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत अदालत का दरवाजा खटखटाने के लिए सवाल किया।

केस टाइटल: सबरीश राजन बनाम राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (एनटीए) और अन्य, डायरी नंबर 27585-2024

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CIC के पास केंद्रीय सूचना आयोग के सुचारू संचालन के लिए पीठों का गठन करने और नियम बनाने का अधिकार: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि मुख्य सूचना आयुक्त (CIC) के पास सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act) की धारा 12(4) के तहत केंद्रीय सूचना आयोग के मामलों के प्रभावी प्रबंधन के लिए पीठों का गठन करने और नियम बनाने का अधिकार है।

जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने कहा, "महत्वपूर्ण रूप से RTI Act की धारा 12(4) CIC को आयोग के मामलों का सामान्य अधीक्षण, निर्देशन और प्रबंधन प्रदान करती है। इस प्रावधान का तात्पर्य है कि CIC के पास कामकाज की देखरेख और निर्देशन करने का व्यापक अधिकार है। यह व्यापक धारा CIC को आयोग के सुचारू और कुशल कामकाज को सुनिश्चित करने वाले उपायों को लागू करने की अनुमति देती है, जिसमें आयोग की पीठों का गठन, इसके प्रभावी संचालन के लिए आवश्यक निर्णय लेना शामिल है।"

केस टाइटल- केंद्रीय सूचना आयोग बनाम डीडीए और अन्य।

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PMLA Act| ED गंभीर संदेह पर गिरफ्तारी नहीं कर सकता; आरोपी को दोषी मानने के लिए लिखित कारण होने चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को अंतरिम जमानत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA Act) की धारा 19 के तहत गिरफ्तारी केवल जांच के उद्देश्य से नहीं की जा सकती। बल्कि, इस शक्ति का प्रयोग तभी किया जा सकता है, जब संबंधित अधिकारी अपने पास मौजूद सामग्री के आधार पर और लिखित में कारण दर्ज करके यह राय बनाने में सक्षम हो कि गिरफ्तार व्यक्ति दोषी है।

केस टाइटल: अरविंद केजरीवाल बनाम प्रवर्तन निदेशालय, एसएलपी (सीआरएल) 5154/2024

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Foreigners Act | प्राधिकारी बिना किसी जानकारी के किसी व्यक्ति से केवल संदेह के आधार पर भारतीय नागरिकता साबित करने के लिए नहीं कह सकते: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्राधिकारी बिना किसी जानकारी या संदेह के किसी व्यक्ति पर विदेशी होने का आरोप नहीं लगा सकते और न ही उसकी राष्ट्रीयता की जांच शुरू कर सकते हैं।

2012 में असम में विदेशी ट्रिब्यूनल द्वारा दी गई घोषणा (जैसा कि 2015 में गुवाहाटी हाईकोर्ट द्वारा पुष्टि की गई) को दरकिनार करते हुए कि अपीलकर्ता एक विदेशी था, सुप्रीम कोर्ट ने प्राधिकारी द्वारा बिना किसी जानकारी के केवल संदेह के आधार पर कार्यवाही शुरू करने के लापरवाह तरीके पर निराशा व्यक्त की।

केस - मोहम्मद रहीम अली @ अब्दुर रहीम बनाम असम राज्य और अन्य।

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PC Act | धारा 319 CrPC के तहत लोक सेवक को अतिरिक्त आरोपी के रूप में बुलाने के लिए मंजूरी आवश्यक : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि अभियोजन स्वीकृति के अभाव में न्यायालय भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत लोक सेवक द्वारा किए गए अपराध का संज्ञान नहीं ले सकता। कोर्ट ने कहा कि यह शर्त दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 319 के तहत लोक सेवक को अतिरिक्त आरोपी के रूप में बुलाने पर भी लागू होती है।

कोर्ट ने कहा कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (PC Act) की धारा 19 की अनिवार्य आवश्यकता का पालन किए बिना आरोपी को धारा 319 सीआरपीसी (अब BNSS की धारा 358) के तहत मुकदमे का सामना करने के लिए नहीं बुलाया जा सकता।

केस टाइटल: पंजाब राज्य बनाम प्रताप सिंह वेरका

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Hindu Marriage Act| वैवाहिक अधिकार आदेश की बहाली को एक साल से अधिक समय तक नजरअंदाज करने पर तलाक की याचिका दायर की जा सकती है: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तलाक की याचिका इस आधार पर पेश की जा सकती है कि वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए डिक्री पारित करने के बाद एक वर्ष या उससे अधिक की अवधि के लिए विवाह के पक्षकारों के बीच वैवाहिक अधिकारों की कोई बहाली नहीं हुई है। कोर्ट ने इस संबंध में हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13 (1 A) (ii) का उल्लेख किया।

"धारा 13 (1 A) (ii) के तहत, यह प्रदान किया गया है कि तलाक की याचिका इस आधार पर प्रस्तुत की जा सकती है कि वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए डिक्री पारित करने के बाद एक वर्ष या उससे अधिक की अवधि के लिए विवाह के पक्षों के बीच वैवाहिक अधिकारों की कोई बहाली नहीं हुई है ।

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तीन तलाक द्वारा अवैध रूप से तलाकशुदा मुस्लिम महिलाएं धारा 125 CrPC के तहत भरण-पोषण की मांग कर सकती हैं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि तीन तलाक के माध्यम से अवैध रूप से तलाकशुदा मुस्लिम महिला दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125 के अनुसार अपने पति से भरण-पोषण की मांग करने की हकदार है।

यह अधिकार मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम 2019 के तहत दिए गए उपाय के अतिरिक्त है, जो निर्दिष्ट करता है कि महिला, जिसे तीन तलाक के अधीन किया गया, वह अपने पति से निर्वाह भत्ता का दावा करने की हकदार होगी।

केस टाइटल: मोहम्मद अब्दुल समद बनाम तेलंगाना राज्य और अन्य, विशेष अनुमति अपील (सीआरएल) 1614/2024

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राज्य सरकार की अनुमति के बिना CBI मामले की जांच नहीं कर सकती : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम 1946 (DSPE Act) की योजना से पता चलता है कि इसकी देखरेख केंद्र सरकार करती है। उक्त अधिनियम से केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को अपना अधिकार प्राप्त होता है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि DSPE (विशेष पुलिस बल) के गठन से लेकर केंद्र शासित प्रदेशों से परे इसकी शक्तियों के विस्तार तक केंद्र सरकार की गहरी चिंता है।

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने CBI द्वारा मामले दर्ज करने को लेकर केंद्र के खिलाफ पश्चिम बंगाल राज्य के मुकदमे की स्वीकार्यता पर फैसला करते हुए ये टिप्पणियां कीं।

केस टाइटल: पश्चिम बंगाल राज्य बनाम भारत संघ | मूल वाद नंबर 4, 2021

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आईपीसी की धारा 300 की अन्य शर्तें पूरी होने पर चाकू से हुई मौत को भी हत्या माना जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने (08 जुलाई को) आरोपी/वर्तमान अपीलकर्ता की सजा बरकरार रखते हुए इस बात पर प्रकाश डाला कि यदि भारतीय दंड संहिता, 1860 (आईपीसी) की धारा 300 की अन्य शर्तें पूरी होती हैं तो एक चाकू से हुई मौत को भी हत्या माना जा सकता है।

जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस पंकज मित्तल की खंडपीठ अपीलकर्ता द्वारा दायर आपराधिक अपील पर फैसला कर रही थी, जिसे 'शराब विरोधी आंदोलन' के सदस्य की हत्या के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।

केस टाइटल: जॉय देवराज बनाम केरल राज्य, आपराधिक अपील नंबर 32/2013

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सह-प्रतिवादियों के बीच हितों का टकराव होने पर उनके बीच रेस-ज्युडिकेटा का सिद्धांत लागू होगा: सुप्रीम कोर्ट

यह देखते हुए कि रेस-ज्युडिकेटा का सिद्धांत न केवल वादी और प्रतिवादियों के बीच बल्कि सह-प्रतिवादियों के बीच भी लागू होता है, सुप्रीम कोर्ट ने माना कि सह-प्रतिवादियों के बीच रेस-ज्युडिकेटा के सिद्धांत को लागू करने के लिए शर्त यह है कि सह-प्रतिवादियों के बीच हितों का टकराव होना चाहिए।

जस्टिस अभय एस. ओक और जस्टिस पंकज मित्तल की खंडपीठ ने कहा कि जब तक सह-प्रतिवादियों के बीच हितों का टकराव नहीं होता, तब तक रेस-ज्युडिकेटा का सिद्धांत लागू नहीं होगा।

केस टाइटल: हर नारायण तिवारी (डी) टीएचआर और अन्य बनाम छावनी बोर्ड, रामगढ़ छावनी और अन्य।

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त्वरित ट्रायल के अधिकार का उल्लंघन होने पर संवैधानिक न्यायालय वैधानिक प्रतिबंधों के बावजूद जमानत दे सकते हैं: UAPA मामले में सुप्रीम कोर्ट

गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (UAPA Act) के तहत आरोपों का सामना कर रहे विचाराधीन कैदी को जमानत देने वाले महत्वपूर्ण फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि कोई संवैधानिक न्यायालय पाता है कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत त्वरित सुनवाई के अधिकार का उल्लंघन किया गया है तो वह वैधानिक प्रतिबंधों के बावजूद जमानत दे सकता है।

जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस उज्ज्वल भुयान की खंडपीठ ने मुकदमे में ज्यादा प्रगति के बिना नौ साल की लंबी कैद के आधार पर शेख जावेद इकबाल नामक व्यक्ति को जमानत दी।

केस टाइटल- शेख जावेद इकबाल @ अशफाक अंसारी @ जावेद अंसारी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य

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पंजाब कृषि उपज मंडी अधिनियम के तहत बाजार शुल्क ग्रामीण विकास अधिनियम के तहत शुल्क से अलग: सुप्रीम कोर्ट

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि पंजाब कृषि उपज मंडी अधिनियम, 1961 के तहत एकत्र किए गए बाजार शुल्क और पंजाब ग्रामीण विकास अधिनियम के तहत एकत्र किए गए ग्रामीण विकास शुल्क अलग-अलग हैं

बाजार शुल्क के भुगतान से छूट के संबंध में पंजाब राज्य की 2003 की नीति पर विचार करते हुए, न्यायालय ने कहा कि भले ही दो अलग-अलग क़ानूनों के तहत कुछ हितों का टकराव हो सकता है, लेकिन यह एक से दूसरे में प्रवाहित होने वाले लाभों के बराबर नहीं होगा।

केस : पंजाब राज्य और अन्य बनाम मेसर्स पंजाब स्पिनटेक्स लिमिटेड, सिविल अपील संख्या 10970-10971/2014

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अलग-अलग पदों पर संयोगवश समान वेतनमान होने से वेतन समानता का अपरिवर्तनीय अधिकार नहीं बनता: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि वेतन समानता को अपरिवर्तनीय अधिकार के रूप में तब तक दावा नहीं किया जा सकता जब तक कि सक्षम प्राधिकारी जानबूझकर दो पदों को उनके अलग-अलग नामकरण या योग्यता के बावजूद समान करने का फैसला न ले।

“वेतन समानता को अपरिवर्तनीय लागू करने योग्य अधिकार के रूप में तब तक दावा नहीं किया जा सकता जब तक कि सक्षम प्राधिकारी ने जानबूझकर दो पदों को उनके अलग-अलग नामकरण या अलग-अलग योग्यता के बावजूद समान करने का फैसला न ले लिया हो। दो या दो से अधिक पदों को समान वेतनमान प्रदान करना, ऐसे पदों के बीच किसी स्पष्ट समीकरण के बिना, वेतनमान में ऐसी विसंगति नहीं कही जा सकती, जिसे हमारे संविधान के अनुच्छेद 16 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन करने वाला कहा जा सकता है।

केस - उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य बनाम वीरेंद्र बहादुर कठेरिया एवं अन्य।

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Specific Performance Suit | वादी को सेल्स के लिए समझौते की पूर्व जानकारी के साथ निष्पादित बाद के सेल डीड रद्द करने की मांग करने की आवश्यकता नहीं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब विक्रेता वादी को वाद की संपत्ति हस्तांतरित करने के लिए संविदात्मक दायित्व के तहत होता है और वाद की संपत्ति किसी तीसरे व्यक्ति को हस्तांतरित करता है तो अनुबंध के विशिष्ट प्रदर्शन के लिए मुकदमा दायर करते समय वादी को विक्रेता द्वारा तीसरे व्यक्ति के पक्ष में की गई सेल्स रद्द करने की दलील देने की आवश्यकता नहीं, यदि संपत्ति सद्भावना के बिना और सेल्स के लिए समझौते की सूचना के साथ खरीदी गई है।

कोर्ट ने कहा कि अनुबंध के विशिष्ट प्रदर्शन के लिए मुकदमा तीसरे व्यक्ति (बाद के हस्तांतरिती) के खिलाफ लागू होगा, जिसने यह जानते हुए भी कि वाद की संपत्ति की सेल्स वादी के पक्ष में निष्पादित की जानी थी, वाद की संपत्ति खरीदी थी।

केस टाइटल: महाराज सिंह और अन्य बनाम करण सिंह (मृत) तीसरे एलआरएस और अन्य।

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नियमितीकरण नीति का लाभ सभी पात्र कर्मचारियों को समान रूप से दिया जाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

सोमवार (22 जुलाई) को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों को नियमितीकरण की मांग करने का कानूनी रूप से अधिकार नहीं है, लेकिन सक्षम प्राधिकारी द्वारा नियमितीकरण के लिए लिए गए किसी भी नीतिगत निर्णय का लाभ सभी पात्र व्यक्तियों को दिया जाना चाहिए।

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भुइयां की खंडपीठ ने जबलपुर के सरकारी कलानिकेतन पॉलिटेक्निक कॉलेज में दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी की नियुक्ति को नियमित करने के निर्देश देने वाला एमपी हाईकोर्ट का आदेश बरकरार रखा।

केस टाइटल- मध्य प्रदेश राज्य और अन्य बनाम श्याम कुमार यादव और अन्य।

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थर्ड पार्टी बीमा के लिए PUC सर्टिफिकेट अनिवार्य नहीं : सुप्रीम कोर्ट ने 2017 का निर्देश वापस लिया

सुप्रीम कोर्ट ने 10 अगस्त, 2017 के आदेश द्वारा लगाई गई शर्त हटा दी। उक्त शर्त के अनुसार, वाहनों के लिए थर्ड पार्टी बीमा प्राप्त करने के लिए प्रदूषण नियंत्रण (PUC) सर्टिफिकेट की आवश्यकता होती है।

जस्टिस एएस ओक और जस्टिस एजी मसीह की खंडपीठ ने जनरल इंश्योरेंस काउंसिल द्वारा दायर आवेदन स्वीकार किया, जिसमें 2017 के आदेश के बारे में चिंताओं को उजागर किया गया।

केस टाइटल- एमसी मेहता बनाम भारत संघ और अन्य।

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Kanwar Yatra : सुप्रीम कोर्ट ने नेमप्लेट लगाने के निर्देश पर लगी रोक बढ़ाई

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (26 जुलाई) को उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकारों के निर्देशों पर रोक लगाने वाले अंतरिम आदेश को बढ़ा दिया, जिसमें कांवरिया तीर्थयात्रियों के मार्ग पर स्थित भोजनालयों को मालिकों और कर्मचारियों के नाम प्रदर्शित करने के निर्देश दिए गए थे। रोक का आदेश अगली सुनवाई की तारीख 5 अगस्त तक जारी रहेगा।

जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस एसवीएन भट्टी की खंडपीठ एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा, प्रोफेसर अपूर्वानंद और स्तंभकार आकार पटेल द्वारा उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकारों के निर्देशों के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।

केस टाइटल: नागरिक अधिकार संरक्षण संघ (एपीसीआर) बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य, डब्ल्यू.पी.(सी) संख्या 463/2024

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कंपनी एक्ट, 2013 की धारा 164(2) का वित्त वर्ष 2014-15 से पहले कोई पूर्वव्यापी प्रभाव नहीं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्णय से प्रथम दृष्टया सहमति व्यक्त की है कि कंपनी एक्ट 2013 (Company Act) की धारा 164(2), जो तीन वित्तीय वर्षों की किसी भी निरंतर अवधि के लिए बैलेंस शीट और वार्षिक रिटर्न दाखिल न करने के कारण निदेशकों को (पांच वर्षों के लिए) अयोग्य ठहराने का प्रावधान करती है, उसका वित्त वर्ष 2014-15 से पहले की अवधि पर कोई पूर्वव्यापी प्रभाव नहीं है।

केस टाइटल: यूनियन ऑफ इंडिया बनाम जय शंकर अग्रहरि, डायरी संख्या - 10488/2021

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खनिज अधिकारों पर कर लगाने की राज्यों की शक्ति एमएमडीआर अधिनियम द्वारा सीमित नहीं है; रॉयल्टी कर नहीं है: सुप्रीम कोर्ट ने 8:1 से फैसला सुनाया

सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की संविधान पीठ ने गुरुवार को 8:1 बहुमत से फैसला सुनाया कि राज्यों के पास खनिज अधिकारों पर कर लगाने की शक्ति है और केंद्रीय कानून - खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम 1957 - राज्यों की ऐसी शक्ति को सीमित नहीं करता है।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने खुद और सात सहयोगियों की ओर से फैसला लिखा। जस्टिस बीवी नागरत्ना ने असहमति वाला फैसला सुनाया। न्यायालय ने जिन मुख्य प्रश्नों की जांच की, वे थे (1) क्या खनन पट्टों पर रॉयल्टी को कर माना जाना चाहिए और (2) क्या संसदीय कानून खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम 1957 के अधिनियमन के बाद राज्यों के पास खनिज अधिकारों पर रॉयल्टी/कर लगाने का अधिकार है।

मामले : मिनरल एरिया डेवलपमेंट बनाम मेसर्स स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया और अन्य (सीए संख्या 4056/1999)

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Haldwani Evictions | रेलवे के लिए लोगों को बेदखल करने से पहले पुनर्वास जरूरी: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (24 जुलाई) को कहा कि उत्तराखंड में हल्द्वानी रेलवे स्टेशन के विकास के लिए जमीन सुरक्षित करने के लिए लोगों को बेदखल करने से पहले अधिकारियों को उनका पुनर्वास सुनिश्चित करना चाहिए।

जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ भारत संघ/रेलवे द्वारा दायर आवेदन पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें हल्द्वानी में रेलवे की संपत्तियों पर कथित रूप से अतिक्रमण करने वाले लगभग 50,000 लोगों को बेदखल करने पर रोक लगाने के आदेश में संशोधन की मांग की गई। रेलवे ने कहा कि पिछले साल मानसून के दौरान घुआला नदी के तेज बहाव के कारण रेलवे पटरियों की सुरक्षा करने वाली एक दीवार ढह गई और आग्रह किया कि रेलवे परिचालन को सुविधाजनक बनाने के लिए जमीन की एक पट्टी तत्काल उपलब्ध कराई जाए।

केस टाइटल: अब्दुल मतीन सिद्दीकी बनाम यूओआई और अन्य। डायरी नंबर 289/2023 और इससे जुड़े मामले।

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पदोन्नति अनुदान की तिथि से प्रभावी होती है, रिक्ति सृजित होने पर नहीं: सुप्रीम कोर्ट

बिहार राज्य विद्युत बोर्ड द्वारा पूर्वव्यापी पदोन्नति की मांग करने वाले एक कर्मचारी के विरुद्ध दायर अपील पर विचार करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि पदोन्नति उस तिथि से प्रभावी होगी जिस दिन उसे प्रदान किया गया है, न कि उस तिथि से जब विषयगत पद पर रिक्ति होती है या जब पद स्वयं सृजित होता है।

जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने टिप्पणी की, "निःसंदेह, पदोन्नति के लिए विचार किए जाने के अधिकार को न्यायालयों द्वारा न केवल वैधानिक अधिकार के रूप में बल्कि मौलिक अधिकार के रूप में माना गया है, साथ ही, पदोन्नति स्वयं कोई मौलिक अधिकार नहीं है...यह मानते हुए कि विषयगत पदों पर रिक्ति थी, इससे प्रतिवादी के पक्ष में अगले उच्च पद पर पूर्वव्यापी पदोन्नति का दावा करने के लिए स्वतः ही कोई मूल्यवान अधिकार नहीं सृजित होता। प्रतिवादी को त्वरित पदोन्नति का लाभ तभी दिया गया जब वास्तविक रिक्ति उत्पन्न हुई और वह भी निर्धारित प्रक्रिया से गुजरने के बाद।"

केस : बिहार राज्य विद्युत बोर्ड और अन्य बनाम धर्मदेव दास, सिविल अपील संख्या 6977/2015

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सुप्रीम कोर्ट ने NEET-UG 2024 रद्द करने से इनकार किया, कहा- सिस्टम में गड़बड़ी दिखाने के लिए कोई सबूत नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (23 जुलाई) को पेपर लीक और गड़बड़ी के आधार पर NEET-UG 2024 परीक्षा रद्द करने से इनकार किया। कोर्ट ने कहा कि ऐसा कोई सबूत नहीं है, जिससे पता चले कि लीक सिस्टम में हैं और इससे पूरी परीक्षा की पवित्रता प्रभावित हुई।

कोर्ट ने यह भी कहा कि दोबारा परीक्षा कराने का आदेश देने से 23 लाख से ज़्यादा स्टूडेंट पर गंभीर असर पड़ेगा और शैक्षणिक कार्यक्रम में व्यवधान आएगा, जिसका आने वाले सालों में व्यापक असर होगा।

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पूर्व कार्यकारी निर्णय विधानमंडल को विपरीत दृष्टिकोण अपनाने से नहीं रोकता : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई व्यक्ति किसी कार्यकारी कार्रवाई के आधार पर किसी लागू करने योग्य कानूनी अधिकार का दावा नहीं कर सकता, जिसे बाद में राज्य विधानमंडल द्वारा व्यापक जनहित में संशोधित किया जाता है। न्यायालय ने कहा कि न तो वैध अपेक्षा का अधिकार और न ही वचनबद्ध रोक का दावा कार्यकारी कार्रवाइयों के आधार पर किया जा सकता है, जिसे विधानमंडल बाद में जनहित में बदलता है।

केस टाइटल: मेसर्स रीवा टोलवे पी. लिमिटेड बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य।

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Gujarat Value Added Tax Act | 'खरीद मूल्य' की परिभाषा में मूल्य वर्धित कर शामिल नहीं: सुप्रीम कोर्ट

गुजरात मूल्य वर्धित कर अधिनियम 2003 (GVAT) के तहत 'खरीद मूल्य' की परिभाषा की व्याख्या करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (2 अगस्त) को कहा कि मूल्य वर्धित कर को खरीद मूल्य की परिभाषा में शामिल नहीं किया जाएगा।

कोर्ट ने कहा कि कर की गणना करने के लिए खरीद मूल्य में कोई मूल्य वर्धित कर नहीं जोड़ा जाएगा, क्योंकि इसका उल्लेख GVAT की धारा 2(18) के तहत कर/शुल्क की श्रेणियों में नहीं किया गया।

केस टाइटल: गुजरात राज्य बनाम मेसर्स अंबुजा सीमेंट लिमिटेड, सिविल अपील नंबर 7874/2024

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National Housing Bank Act | कंपनी के व्यवसाय के लिए जिम्मेदार होने की विशेष दलील के बिना निदेशकों के लिए कोई प्रतिनिधि दायित्व नहीं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नेशनल हाउसिंग बैंक एक्ट, 1987 (National Housing Bank Act) के तहत कंपनी द्वारा किए गए अपराध के लिए कंपनी के निदेशकों के खिलाफ शिकायत में यह स्पष्ट रूप से कहा जाना चाहिए कि निदेशक अपराध के समय कंपनी के व्यवसाय के लिए जिम्मेदार थे।

जस्टिस अभय ओक और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने सीआरपीसी की धारा 200 के तहत कंपनी के निदेशकों के खिलाफ शिकायत खारिज की, जिसमें 1987 के अधिनियम की धारा 29ए के उल्लंघन का आरोप लगाया गया था।

केस टाइटल- नेशनल हाउसिंग बैंक बनाम भेरुदन दुगर हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड और अन्य।

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SC/ST के भीतर उप-वर्गीकरण की अनुमति, इससे अधिक पिछड़े लोगों को अलग से कोटा दिया जा सकेगा: सुप्रीम कोर्ट

सामाजिक समानता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की बेंच (6-1 से) ने माना कि अनुसूचित जातियों (SC/ST) का उप-वर्गीकरण अनुसूचित जातियों के भीतर अधिक पिछड़े लोगों को अलग से कोटा देने के लिए अनुमति है।

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उप-वर्गीकरण की अनुमति देते समय राज्य किसी उप-वर्ग के लिए 100% आरक्षण निर्धारित नहीं कर सकता है। साथ ही राज्य को उप-वर्ग के प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता के संबंध में अनुभवजन्य डेटा के आधार पर उप-वर्गीकरण को उचित ठहराना होगा।

केस टाइटल: पंजाब राज्य और अन्य बनाम दविंदर सिंह और अन्य सी.ए. नंबर 2317/2011

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प्रत्येक याचिकाकर्ता की परिस्थितियों के संदर्भ के बिना सरोगेसी की आयु सीमा को चुनौती देने पर फैसला नहीं सुनाया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 (the Surrogacy (Regulation) Act, 2021) और सरोगेसी (विनियमन) नियम, 2022 (Surrogacy (Regulation) Rules, 2022) के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह स्पष्ट किया कि वह प्रत्येक मामले के तथ्यों का सहारा लिए बिना किसी भी चीज को रद्द या हस्तक्षेप नहीं करेगा।

केस टाइटल: अरुण मुथुवेल बनाम भारत संघ | डब्ल्यू.पी. (सिविल) संख्या 756/2022 (और संबंधित मामले)

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बार काउंसिल एनरॉलमेंट फीस के रूप में एडवोकेट एक्ट की धारा 24 के तहत निर्दिष्ट राशि से अधिक नहीं ले सकते : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (30 जुलाई) को कहा कि सामान्य श्रेणी के वकीलों के लिए एनरॉलमेंट फीस 750 रुपये से अधिक नहीं हो सकता तथा अनुसूचित जाति/जनजाति श्रेणी के वकीलों के लिए 125 रुपये से अधिक नहीं हो सकता।

कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि राज्य बार काउंसिल "विविध फीस" या अन्य फीस के मद में ऊपर निर्दिष्ट राशि से अधिक कोई राशि नहीं ले सकते। राज्य बार काउंसिल और बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) एडवोकेट एक्ट (Advocate Act) की धारा 24(1)(एफ) के तहत निर्दिष्ट राशि से अधिक वकीलों को रोल में शामिल करने के लिए कोई राशि नहीं ले सकते।

केस टाइटल: गौरव कुमार बनाम यूनियन ऑफ इंडिया डब्ल्यू.पी.(सी) संख्या 352/2023 और इससे जुड़े मामले।

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'न्यायालय द्वारा संज्ञान लिए जाने के बाद ED गिरफ्तार नहीं कर सकता': सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को ओडिशा प्रशासनिक सेवा (ओएएस) के अधिकारी बिजय केतन साहू को अग्रिम जमानत दी। उन पर आय से अधिक संपत्ति के मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा दायर धन शोधन का आरोप है।

जस्टिस अभय ओक और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने 24 जून, 2024 को साहू को गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण प्रदान करने वाला आदेश पारित किया। न्यायालय ने तरसेम लाल बनाम प्रवर्तन निदेशालय के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें कहा गया कि ED विशेष न्यायालय द्वारा शिकायत का संज्ञान लिए जाने के बाद धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA Act) की धारा 19 (गिरफ्तारी की शक्ति) के तहत किसी आरोपी को गिरफ्तार नहीं कर सकता।

केस टाइटल- बिजय केतन साहू बनाम प्रवर्तन निदेशालय

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