सह-प्रतिवादियों के बीच हितों का टकराव होने पर उनके बीच रेस-ज्युडिकेटा का सिद्धांत लागू होगा: सुप्रीम कोर्ट
Shahadat
9 July 2024 4:32 PM IST
यह देखते हुए कि रेस-ज्युडिकेटा का सिद्धांत न केवल वादी और प्रतिवादियों के बीच बल्कि सह-प्रतिवादियों के बीच भी लागू होता है, सुप्रीम कोर्ट ने माना कि सह-प्रतिवादियों के बीच रेस-ज्युडिकेटा के सिद्धांत को लागू करने के लिए शर्त यह है कि सह-प्रतिवादियों के बीच हितों का टकराव होना चाहिए।
जस्टिस अभय एस. ओक और जस्टिस पंकज मित्तल की खंडपीठ ने कहा कि जब तक सह-प्रतिवादियों के बीच हितों का टकराव नहीं होता, तब तक रेस-ज्युडिकेटा का सिद्धांत लागू नहीं होगा।
सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 11 के तहत निहित रेस ज्यूडिकाटा के सिद्धांत के अर्थ और संदर्भ की व्याख्या करते हुए जस्टिस अभय एस ओक द्वारा गोविंदम्मल बनाम वैद्यनाथन पर भरोसा करते हुए लिखे गए फैसले में तीन शर्तें बताई गई हैं, जिन्हें सह-प्रतिवादियों के बीच रेस ज्यूडिकाटा के सिद्धांत को लागू करने के लिए पूरा किया जाना आवश्यक है।
(i) सह-प्रतिवादियों के बीच हितों का टकराव होना चाहिए।
(ii) वादी को राहत देने के लिए उक्त टकराव का फैसला करना आवश्यक है।
(iii) उक्त टकराव का फैसला करने वाला अंतिम निर्णय है।
अदालत ने कहा,
“एक बार ये सभी शर्तें पूरी हो जाने के बाद रेस ज्यूडिकाटा के सिद्धांत को सह-प्रतिवादियों के बीच लागू किया जा सकता है।”
वर्तमान मामले में अपीलकर्ता/वादी स्वतंत्र रूप से 0.30 एकड़ भूमि पर अधिकार का दावा कर रहा था, जो कि कैंटोनमेंट बोर्ड की संपत्ति का हिस्सा है, जबकि प्रतिवादी/कैंटोनमेंट बोर्ड, रामगढ़ 2.55 एकड़ भूमि पर अधिकार का दावा कर रहा था, जो कि राजा की संपत्ति का हिस्सा थी।
प्रतिवादी ने तर्क दिया कि वादी का मुकदमा रेस जुडिकाटा के सिद्धांत द्वारा वर्जित था, क्योंकि मुकदमे की संपत्ति पर अधिकार महारानी द्वारा दायर पहले के मुकदमे में वादी के खिलाफ तय किए गए, जहां अपीलकर्ता और प्रतिवादी सह-प्रतिवादी थे। हालांकि, महारानी द्वारा दायर मुकदमे को कैंटोनमेंट बोर्ड, रामगढ़ के साथ मुकदमे की भूमि पर वादी-अपीलकर्ता के किसी भी अधिकार के न्यायनिर्णयन के बिना सरलता से खारिज कर दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चूंकि महारानी द्वारा दायर मुकदमे में अपीलकर्ता के दावे वाली संपत्ति पर अधिकारों का कोई निर्णय नहीं हुआ, जहां प्रतिवादी भी प्रतिवादी था, इसलिए "पूर्व न्याय के सिद्धांत को आकर्षित नहीं किया जाएगा, क्योंकि वर्तमान मुकदमे में मुद्दा न तो प्रत्यक्ष रूप से और न ही अप्रत्यक्ष रूप से पिछले मुकदमे में मुद्दा था और उक्त पिछले मुकदमे में सह-प्रतिवादियों के बीच कोई हितों का टकराव नहीं था, जिस पर कभी निर्णय नहीं हुआ।"
न्यायालय ने कहा कि वादी-अपीलकर्ता के दावे वाली भूमि या उसके पक्ष में तय की गई 2.55 एकड़ भूमि पर छावनी बोर्ड के अधिकार का महारानी द्वारा दायर पिछले मुकदमे में कभी निर्णय नहीं हुआ, इसलिए वादी-अपीलकर्ता द्वारा छावनी बोर्ड, रामगढ़ के खिलाफ दावे वाली भूमि पर मालिकाना हक का दावा करने वाला मुकदमा धारा 11 सीपीसी के तहत वर्जित नहीं है।
केस टाइटल: हर नारायण तिवारी (डी) टीएचआर और अन्य बनाम छावनी बोर्ड, रामगढ़ छावनी और अन्य।