राज्य सरकार की अनुमति के बिना CBI मामले की जांच नहीं कर सकती : सुप्रीम कोर्ट

Shahadat

11 July 2024 4:58 AM GMT

  • राज्य सरकार की अनुमति के बिना CBI मामले की जांच नहीं कर सकती : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम 1946 (DSPE Act) की योजना से पता चलता है कि इसकी देखरेख केंद्र सरकार करती है।

    उक्त अधिनियम से केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को अपना अधिकार प्राप्त होता है।

    कोर्ट ने स्पष्ट किया कि DSPE (विशेष पुलिस बल) के गठन से लेकर केंद्र शासित प्रदेशों से परे इसकी शक्तियों के विस्तार तक केंद्र सरकार की गहरी चिंता है।

    जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने CBI द्वारा मामले दर्ज करने को लेकर केंद्र के खिलाफ पश्चिम बंगाल राज्य के मुकदमे की स्वीकार्यता पर फैसला करते हुए ये टिप्पणियां कीं।

    मुकदमे की उत्पत्ति यह थी कि DSPE Act के तहत केंद्रीय एजेंसी के लिए राज्य की सहमति के निरस्त होने के बावजूद, CBI ने राज्य के भीतर हुए अपराधों के संबंध में एफआईआर दर्ज करना जारी रखा। नवंबर 2018 में राज्य सरकार ने अपनी सहमति वापस ले ली थी, जिसके तहत CBI को पश्चिम बंगाल में मामलों की जांच करने की अनुमति दी गई थी।

    इसके विपरीत, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि केंद्र के खिलाफ मुकदमा चलाने योग्य नहीं है, क्योंकि CBI स्वतंत्र कानूनी व्यक्ति है। इस प्रकार, भारत संघ के बाहर इसकी एक अलग कानूनी पहचान है। हालांकि, राज्य की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने जोर देकर कहा कि इस मुद्दे पर मुकदमे के इस चरण में नहीं बल्कि गुण-दोष के आधार पर निर्णय लिया जाएगा।

    इस त्वरित निर्णय के माध्यम से न्यायालय ने केंद्र सरकार के तर्क को खारिज कर दिया। अपने निष्कर्षों का समर्थन करने और उन्हें मजबूत करने के लिए न्यायालय ने अधिनियम की प्रासंगिक धाराओं का विस्तार से उल्लेख किया।

    इसने देखा कि DSPE Act की धारा 4 के अनुसार, भ्रष्टाचार के मामलों को छोड़कर DSPE की निगरानी के लिए केंद्र सरकार जिम्मेदार है। न्यायालय ने यह भी कहा कि अधिनियम की धारा 3 के अनुसार, DSPE केवल उन अपराधों की जांच करने का हकदार है, जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित किया गया।

    इससे संकेत लेते हुए न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि यद्यपि अधिनियम की धारा 5 के तहत DSPE की शक्तियों को किसी भी राज्य तक बढ़ाया जा सकता है, लेकिन यह राज्य सरकार की सहमति के अधीन है (अधिनियम की धारा 6 ऐसा निर्धारित करती है)।

    कोर्ट ने कहा,

    "वैधानिक योजना यह स्पष्ट करती है कि DSPE Act की धारा 5 के तहत ऐसी शक्तियों का विस्तार करने के लिए DSPE Act की धारा 6 के तहत उस राज्य की सरकार की सहमति के बिना ऐसा नहीं किया जा सकता है।"

    उपर्युक्त तर्क के साथ न्यायालय ने इस तर्क को स्पष्ट रूप से खारिज किया कि CBI को भारत सरकार के बराबर नहीं माना जा सकता है। न्यायालय ने कहा कि संघ का तर्क "कोई आधार नहीं रखता है।"

    न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला,

    "हमारे विचार में CBI एक अंग या निकाय है, जिसे DSPE Act द्वारा अधिनियमित वैधानिक योजना के मद्देनजर भारत सरकार द्वारा स्थापित किया गया और जो उसके अधीन है।"

    इसके अतिरिक्त, यह ध्यान देने योग्य है कि संघ ने विनीत नारायण (1997) के उदाहरण का हवाला दिया। इस मामले में केंद्रीय एजेंसी को केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) की निगरानी में रखा गया। सॉलिसिटर ने कहा कि विनीत नारायण का विचार केंद्रीय जांच ब्यूरो को अलग वैधानिक निकाय की निगरानी में लाना और इसे केंद्र सरकार से अलग करना था।

    इस संदर्भ में न्यायालय ने स्वीकार किया कि CBI हमेशा स्वतंत्र रूप से अपराधों की जांच करने की हकदार होगी। हालांकि, इसी के साथ न्यायालय ने यह भी कहा कि इससे DSPE पर केंद्र सरकार के प्रशासनिक नियंत्रण को "कम" नहीं किया जाएगा।

    न्यायालय ने कहा,

    इसमें कोई संदेह नहीं है कि केंद्र के अधीक्षण की शक्ति प्रकृति में प्रशासनिक है और CBI द्वारा की गई जांच तक विस्तारित नहीं होती है।

    न्यायालय ने आगे कहा,

    "हालांकि, इससे DSPE के प्रशासनिक नियंत्रण और अधीक्षण को कम नहीं किया जाएगा, जो केंद्र सरकार के पास है।"

    केस टाइटल: पश्चिम बंगाल राज्य बनाम भारत संघ | मूल वाद नंबर 4, 2021

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