प्रत्येक याचिकाकर्ता की परिस्थितियों के संदर्भ के बिना सरोगेसी की आयु सीमा को चुनौती देने पर फैसला नहीं सुनाया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

Shahadat

31 July 2024 5:53 AM GMT

  • प्रत्येक याचिकाकर्ता की परिस्थितियों के संदर्भ के बिना सरोगेसी की आयु सीमा को चुनौती देने पर फैसला नहीं सुनाया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 (the Surrogacy (Regulation) Act, 2021) और सरोगेसी (विनियमन) नियम, 2022 (Surrogacy (Regulation) Rules, 2022) के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह स्पष्ट किया कि वह प्रत्येक मामले के तथ्यों का सहारा लिए बिना किसी भी चीज को रद्द या हस्तक्षेप नहीं करेगा।

    इससे पहले कोर्ट ने मामले को सुनवाई के लिए पोस्ट करने से पहले निम्नलिखित मुद्दे तय किए थे:

    1. क्या सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 की धारा 4(ii)(बी) और 4(ii)(सी) के तहत वाणिज्यिक सरोगेसी पर प्रतिबंध संवैधानिक है?

    2. क्या सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम की धारा 4(iii)(c)(I) के साथ धारा 2(1)(h) में प्रावधान के अनुसार महिला के मामले में 23 से 50 वर्ष की आयु के बीच और पुरुष के मामले में 26 से 55 वर्ष की आयु के बीच के विवाहित जोड़ों तक सीमित सरोगेसी का लाभ उठाने का एक जोड़े का अधिकार संवैधानिक है?

    3. क्या सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम 2021 की धारा 2(1)(s) के तहत प्रावधान के अनुसार 35 से 45 वर्ष की आयु के बीच की विधवाओं या तलाकशुदा महिलाओं तक सीमित एकल महिला के सरोगेसी का लाभ उठाने का अधिकार संवैधानिक है?

    4. क्या सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम 2021 की धारा 4(iii)(c)(II) के तहत प्रावधान के अनुसार सरोगेसी का लाभ उठाने का इच्छुक जोड़े का अधिकार केवल उन जोड़ों तक सीमित है, जिनके पास कोई जीवित बच्चा नहीं है, संवैधानिक है?

    5. क्या सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 के अधिनियमन से पहले सरोगेसी का लाभ उठाने की प्रक्रिया शुरू करने वाले व्यक्तियों को अधिनियम की धारा 53 के दायरे में आने वाले मामलों को छोड़कर, सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 के दायरे से बाहर किसी तरीके से सरोगेसी का लाभ उठाने का कोई अधिकार है?

    जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस नोंगमईकापम कोटिस्वर सिंह की खंडपीठ ने 52 वर्षीय महिला की याचिका पर सुनवाई शुरू की, जिसकी दूसरी शादी से कोई संतान नहीं है। इस प्रकार, वर्तमान याचिका उपर्युक्त मुद्दे संख्या 2 से संबंधित है।

    सुनवाई के दौरान, जस्टिस नागरत्ना ने अपनी चिंता व्यक्त की कि इन मामलों को प्रत्येक मामले के तथ्यों के आधार पर देखा जाना चाहिए।

    उन्होंने कहा,

    “अगर उन्होंने कहा होता कि 35 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाएं सरोगेसी नहीं कर सकतीं तो हम समझ जाते...हम इसे खारिज कर देते। यही समस्या है...हमें उद्देश्य देखना होगा। प्रत्येक मामले के विशिष्ट तथ्यों के बिना हम यह नहीं कह सकते कि 50 वर्ष से अधिक आयु का कोई भी व्यक्ति (सरोगेसी) क्यों नहीं करवा सकता।”

    जस्टिस नागरत्ना ने यह भी कहा कि यदि याचिकाकर्ता सामान्य तरीके से गर्भधारण नहीं कर सकती, क्योंकि उसे मासिक धर्म नहीं हो रहा था तो यह नहीं कहा जा सकता कि “भले ही मैं 60 या 70 वर्ष की हो जाऊं, एक दिन मैं सरोगेसी करवाने का निर्णय ले लूंगी।”

    याचिकाकर्ता की ओर से पेश एडवोकेट मोहिनी प्रिया ने प्रस्तुत किया कि अधिनियम लागू होने की दृष्टि से भावी है। विस्तार से बताते हुए उन्होंने कहा कि यदि दंपतियों ने अपने भ्रूण को फ्रीज भी कर लिया तो भी वे उनका उपयोग आईवीएफ या सरोगेसी के लिए नहीं कर सकते। इसके अलावा, कड़े प्रावधानों के कारण क्लीनिक सीधे मना कर रहे हैं।

    जस्टिस नागरत्ना ने यहां कहा:

    “यदि वह 52 वर्ष की आयु में मासिक धर्म नहीं कर रही है तो सामान्य तरीके से वह बच्चे को गर्भ धारण नहीं कर सकती। जो काम वह स्वाभाविक तरीके से नहीं कर सकती, उसे वह अब अप्राकृतिक तरीके से करने की कोशिश कर रही है और वह भी 52 साल की उम्र में। ये वो चीजें हैं, जिन्हें हमें देखना चाहिए...हमें उद्देश्य (आयु को सीमित करने के लिए) को देखना होगा। हम यह नहीं कह सकते कि संसद द्वारा चुनी गई कुछ आयु सीमा मनमानी है।

    एडवोकेट मोहिनी प्रिया ने कहा कि संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट में आयु सीमा पर चर्चा नहीं की गई। उन्होंने उन अध्ययनों पर भी भरोसा किया, जिनसे पता चला है कि बुजुर्ग दंपति में सामाजिक और आर्थिक रूप से बच्चे का पालन-पोषण करने की बेहतर क्षमता होती है।

    हालांकि, जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि कुछ दुर्भाग्यपूर्ण दंपति 50 वर्ष की आयु तक रोगी बन जाते हैं। प्रिया ने न्यायालय को अवगत कराया कि वर्तमान मामले में इच्छुक दंपति स्वस्थ है। इसके बावजूद, न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि वह शून्य में नियमों को रद्द नहीं कर सकता है और पक्षों को प्रत्येक याचिकाकर्ता के लिए एक तथ्यात्मक पृष्ठभूमि चार्ट तैयार करने का आदेश दिया।

    न्यायालय ने मामले की सुनवाई 10 सितंबर को निर्धारित की।

    केस टाइटल: अरुण मुथुवेल बनाम भारत संघ | डब्ल्यू.पी. (सिविल) संख्या 756/2022 (और संबंधित मामले)

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