हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Update: 2022-05-08 04:30 GMT

देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (2 मई, 2022 से 6 मई, 2022 तक) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण द्वारा दिए गए ब्याज पर आयकर लागू नहीं: गुजरात हाईकोर्ट

गुजरात हाईकोर्ट की एक बेंच ने माना कि मोटर वाहन अधिनियम 1988 की धारा 171 के तहत मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (एमएसीटी) द्वारा दिया गया ब्याज आयकर अधिनियम, 1961 के तहत कर योग्य नहीं है।

बेंच में जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस निशा एम ठाकोर शामिल थे। मामले में रिट आवेदक, ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, एक बीमा कंपनी है। अहमदाबाद के सिटी सिविल कोर्ट में मोटर दुर्घटना दावा याचिका दायर की गई थी। दावा याचिका को एमएसीटी ने अनुमति दी थी।

केस शीर्षक: ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम मुख्य आयकर आयुक्त (टीडीएस)

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विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम की धारा 41(एच) के तहत अधिक प्रभावी उपाय उपलब्ध है, इसका चयन पार्टी का कानूनी दायित्व है: पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने 28 अप्रैल, 2022 को एक पुनर्विचार याचिका पर विचार करते हुए कहा कि यह सुस्थापित कानून है कि विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम की धारा 41 (एच) के तहत वैधानिक प्रावधानों के आलोक में, जहां एक अधिक प्रभावकारी उपाय उपलब्ध है, उसका चयन पार्टी का कानूनी दायित्व है।

न्यायमूर्ति फतेह दीप सिंह की पीठ ने वकील की दलीलों का मूल्यांकन किया कि पति इस आधार पर स्थायी निषेधाज्ञा के परिणामी राहत के साथ एक मात्र घोषणा और अनिवार्य निषेधाज्ञा की मांग कर रहा है कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत एक अर्ज पर पारित निर्णय और आदेश धोखाधड़ी का परिणाम है और इसलिए घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम, 2005 के तहत क्रूरता, भरण-पोषण, रखरखाव भत्ते में परिवर्तन और कार्यवाही के तहत अन्य याचिकाएं कोर्ट की प्रक्रिया का दुरुपयोग हैं।

केस शीर्षक: आमिर कपूर बनाम निशा और अन्य

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जमानत के चरण में अभियोजन पक्ष के गवाहों के मार्शलिंग की अनुमति नहीं: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 11 वर्षीय बलात्कार पीड़िता द्वारा दिए गए स्पष्ट बयान पर विचार करते हुए हाल ही में आरोपी की जमानत याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि जमानत पर विचार करने के चरण में अभियोजन पक्ष के गवाहों की मार्शलिंग की अनुमति नहीं है।

जस्टिस अनिल वर्मा ने देखा: "जमानत के विचार के स्तर पर सतीश जग्गी बनाम छत्तीसगढ़ राज्य और अन्य के मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार अभियोजन पक्ष के गवाहों की मार्शलिंग की अनुमति नहीं है। कोर्ट ने (सीआरए संख्या 651 / 2007) 30/07/2007 को निर्णय लिया।"

केस शीर्षक: अशोक बनाम मध्य प्रदेश और अन्य की स्टेटस।

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धारा 167 (2) सीआरपीसी- जांच एजेंसी गंभीर आरोपों को लागू करके अभियुक्तों के डिफॉल्ट बेल के अधिकार को कम नहीं कर सकती: बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि एक जांच एजेंसी गंभीर आरोप लगाकर किसी आरोपी के डिफॉल्ट बेल को विफल नहीं कर सकती। जस्टिस सीवी भडांग ने देखा, "इसमें कोई संदेह नहीं है कि जांच जांच एजेंसी का अधिकार क्षेत्र है।

हालांकि इसका अर्थ यह नहीं कि अदालत, लगभग सभी मामलों में, अभियोजन एजेंसी की ओर से आरोपी के खिलाफ एक विशेष धारा में आरोप लगाने के बाद बाध्य हो जाएगी। ऐसा इसलिए है क्योंकि धारा या प्रावधान लगाना निर्णायक नहीं होगा। इसे अन्य तरीके से कहें तो यह डिफॉल्ट बेल के अधिकार को जांच एजेंसी की दया पर रखने जैसा होगा, और परोक्ष रूप से मजिस्ट्रेट के ल‌िए अधिकारों को, जहां जरूरी हो, लागू करने के कर्तव्य को त्याग करने जैसे होगा।"

केस शीर्षक: अलनेश अकील सोमजी बनाम महाराष्ट्र राज्य

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एक बार नागरिक घोषित होने पर उसे विदेशी घोषित नहीं किया जा सकता क्योंकि विदेशी ट्रिब्यूनल कार्यवाही पर रेस ज्यूडिकाटा सिद्धांत लागू होता है : गुवाहाटी हाईकोर्ट

अब्दुल कुद्दस बनाम भारत संघ [(2019) 6 एससीसी 604] के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए, गुवाहाटी हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी व्यक्ति की नागरिकता के संबंध में विदेशी ट्रिब्यूनल की राय न्यायिक के रूप में काम करेगी।

यह ध्यान दिया जा सकता है कि रेस ज्यूडिकाटा कानून का एक सिद्धांत है जिसमें कहा गया है कि एक बार एक ही पक्ष के बीच एक मामले पर किसी सक्षम अदालत द्वारा अंतिम निर्णय दिया गया है, वही बाध्यकारी होगा और वही पक्ष और वही मुद्दे, लेकर फिर से मुकदमा नहीं किया जा सकता।

केस - सीतल मंडल बनाम भारत संघ और अन्य संबंधित याचिकाओं के साथ

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पत्नी का वैवाहिक घर छोड़ना भरण-पोषण देने से इनकार करने का आधार नहीं,अगर उसने पति द्वारा किए गए दुर्व्यवहार के कारण घर छोड़ा हैः कर्नाटक हाईकोर्ट

कर्नाटक हाईकोर्ट ने हाल ही में माना है कि यदि कोई पत्नी पति द्वारा किए गए दुर्व्यवहार के कारण वैवाहिक घर को छोड़कर चली जाती है, तो वह यह दावा नहीं कर सकता कि वह आपसी सहमति से घर से चली गई है और इस प्रकार वह भरण-पोषण की राशि का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी नहीं है।

जस्टिस एम नागप्रसन्ना की पीठ ने सतीश एन नामक व्यक्ति की तरफ से दायर एक याचिका को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की है। जिसने प्रतिवादी-पत्नी द्वारा उससे भरण-पोषण की मांग करने वाली कार्यवाही पर सवाल उठाया गया था।

केस का शीर्षक- सतीश.एन बनाम अंबिका.जे

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उचित संदेह से परे साबित करने में विफलता पर दोषमुक्ति, अनुशासनात्मक कार्यवाही, जहां परीक्षण संभावनाओं की प्रबलता है, को रोकती नहीं है: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने माना है कि आपराधिक कार्यवाही में दोषमुक्ति जिसमें एक व्यक्ति के अपराध को उचित संदेह से परे साबित किया जाना है, अनुशासनात्मक कार्यवाही, जिसमें कदाचार के आरोप संभावनाओं की प्रबलता पर स्‍थापित किया जाना है, को नहीं रोकता है।

जस्टिस अनु मल्होत्रा ने कहा कि आपराधिक कार्यवाही में दोषमुक्ति, प्रबंधन को किसी कर्मचारी के खिलाफ विभागीय कार्यवाही को आगे बढ़ाने से नहीं रोकती है।

केस शीर्षक: सतीश सचिन बाबा बनाम सीपीडब्ल्यूडी (एमआरडी)

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मोटर दुर्घटना की तिथि के अनुसार व्यक्ति के एकमात्र व्यवसाय के संदर्भ में काम करने में असमर्थता निर्धारित की जानी चाहिए: कर्नाटक हाईकोर्ट

कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि एक व्यक्ति जो पेशे से ड्राइवर है, मोटर दुर्घटना में एक आंख की पूरी दृष्टि खो देता है तो वह ड्राइविंग के पेशे को जारी नहीं रख पाएगा, इस प्रकार इसे एक स्थायी शारीरिक विकलांगता और कमाई क्षमता का 100% नुकसान माना जाएगा।

जस्टिस प्रदीप सिंह येरूर की सिंगल जज बेंच ने नागेंद्र नाम के एक व्यक्ति की अपील को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए कहा, "याचिकाकर्ता के पेशे में मोटर वाहन को चलाने के लिए विशिष्ट कौशल और सतर्कता शामिल है। दुर्घटना की किसी भी घटना से बचने या खुद को चोट से बचाने के लिए ड्राइवर के रूप में काम करने के लिए दोनों आंखों की रोशनी पूरी तरह से अच्छी स्थिति में होनी चाहिए।"

केस शीर्षक: यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, बनाम नागेंद्र

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थाना प्रभारी की अनुमति के बिना किसी को मौखिक रूप से थाने नहीं बुलाया जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट (लखनऊ खंडपीठ) ने हाल ही में उत्तर प्रदेश राज्य और पुलिस समेत अन्य शासन तंत्रों को जारी एक महत्वपूर्ण निर्देश में कहा कि किसी भी व्यक्ति को, जिसमें एक आरोपी भी शामिल है, थाना प्रभारी की सहमति/अनुमोदन के बिना अधीनस्थ पुलिस अधिकारी मौखिक रूप से पुलिस थाने में समन नहीं कर सकते।

जस्टिस अरविंद कुमार मिश्रा- I और जस्टिस मनीष माथुर की खंडपीठ ने अधिकारियों को निर्देश दिया, "यदि किसी पुलिस स्टेशन में कोई आवेदन या शिकायत दी जाती है, जिसमें जांच और आरोपी की उपस्थिति की आवश्यकता होती है तो आपराधिक प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों के तहत निर्धारित कार्रवाई का पालन किया जाना चाहिए, जिसमें ऐसे व्यक्ति को लिखित नोटिस भेजे जाने पर विचार किया गया है, हालांकि यह भी मामला दर्ज होने के बाद ही किया जा सकता है।"

केस शीर्षक- राम विलास, बेटी सरोजनी के माध्यम से और एक अन्य बनाम यूपी राज्य, प्र‌िंसिपल सेक्रेटरी होम और अन्य के माध्यम से [HABEAS CORPUS WRIT PETITION No. - 80 of 2022]

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केवल कुछ महीनों तक साथ रहने और बच्चा होने से विवाह की धारणा नहीं बनती, पार्टियों का आचरण प्रासंगिक: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने हाल ही में एक घोषणात्मक मुकदमे में आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर कहा कि विवाह की धारणा आचरण, जीवन के ढंग और अन्य व्यक्तियों के झुकाव से निर्धारित होती है।

जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस संजय एस अग्रवाल की खंडपीठ ने कहा, "कानून का अनुमान विवाह के पक्ष में और अवैध रिश्ते (concubinage)के खिलाफ है। जब एक पुरुष और एक महिला को कई वर्षों तक लगातार साथ रहे, लेकिन सबूत यह है कि अपीलकर्ता नंबर एक श्रीमती जानकी यादव केवल कुछ महीनों के लिए ही रहीं, इसलिए उक्त विवाह का अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता।

केस शीर्षक: श्रीमती जानकी यादव और और अन्य बनाम श्री गोरखनाथ यादव

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उम्रकैद यानी आखिरी सांस तक कैद, अदालत आजीवन कारावास की अवधि तय नहीं कर सकती : इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि आजीवन कारावास (Life Sentence) की सजा अभियुक्त के प्राकृतिक जीवन तक है जिसे हाईकोर्ट द्वारा वर्षों की संख्या में तय नहीं किया जा सकता।

जस्टिस सुनीता अग्रवाल और जस्टिस सुभाष चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने वर्ष 1997 के एक मामले में निचली अदालत द्वारा हत्या के पांच दोषियों को दी गई उम्रकैद की सजा बरकरार रखते हुए कहा। अदालत के समक्ष जब यह तर्क दिया गया कि दोषियों में से एक, कल्लू, जो पहले ही लगभग 20-21 साल जेल में काट चुका है, उसकी सज़ा की अवधि को देखते हुए क्या उसकी उम्र कैद की सज़ा कम करके उसे रिहा किया जा सकता है?

केस का शीर्षक - फूल सिंह और अन्य बनाम यूपी राज्य और संबंधित अपील

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शुतुरमुर्ग मानसिकता वाले लोगों द्वारा दिए गए प्रमाण पत्र से महिला के चरित्र का फैसला नहीं किया जा सकता: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण अवलोकन में कहा है कि यदि पत्नी पति की इच्छा के अनुसार सांचे में नहीं ढलती है तो यह बच्चे की कस्टडी को खोने का निर्णायक कारक नहीं होगा।

जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस संजय एस अग्रवाल की खंडपीठ ने कहा कि समाज के कुछ सदस्यों द्वारा दिया गया चरित्र प्रमाण पत्र, जो शुतुरमुर्ग मानसिकता वाले हो सकते हैं, एक महिला के चरित्र को तय करने का आधार नहीं हो सकते। इसके साथ, कोर्ट ने फैमिली कोर्ट, महासमुंद के एक आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें प्रतिवादी/पिता के पक्ष में 14 साल के बच्चे की कस्टडी दी गई थी और आदेश दिया गया था कि बच्चे की कस्टडी उसकी मां (अपीलकर्ता) को सौंप दी जाए।

केस शीर्षक- दीपा नायक बनाम पीताम्बर नई [FAM No. 35 of 2016]

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पुनर्मूल्यांकन केवल अधिकारी या उसके उत्तराधिकारी द्वारा किया जाना चाहिए, न कि समान रैंक के किसी अधिकारी द्वारा: गुजरात हाईकोर्ट

जस्टिस सोनिया गोकानी और जस्टिस राजेंद्र एम. सरैन की गुजरात हाईकोर्ट की खंडपीठ ने डीआरआई (Directorate of Revenue Intelligence) द्वारा शुरू किए गए पुनर्मूल्यांकन को अमान्य करते हुए कहा कि मूल्यांकन करने वाला अधिकारी ही पुनर्मूल्यांकन कर सकता है।

याचिकाकर्ता/निर्धारिती (Assessee) प्राइवेट लिमिटेड कंपनी है और इंकजेट प्रिंटर, लेजर प्रिंटर, और प्रिंटर के लिए पुर्जों के साथ-साथ सामान जैसे सामानों के व्यापार और निर्माण के व्यवसाय में है। याचिकाकर्ता कंटीन्यूअस इंकजेट प्रिंटर्स (सीआईजे प्रिंटर्स), लेजर मार्किंग मशीन, सीआईजे प्रिंटर्स के लिए पुर्जे और एक्सेसरीज और इस तरह के अन्य सामानों का विदेशों से आयात करती रही है। इन्हें 2014 से 2021 की अवधि के दौरान चीन से सामान आयात किया जा रहा है।

केस शीर्षक: मेसर्स एज़्टेक फ्लूड्स एंड मशीनरी प्रा. लिमिटेड बनाम भारत संघ

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जब कोई व्यक्ति पुलिस/न्यायिक हिरासत में होता है, तब भी निवारक निरोध आदेश पारित किए जा सकते हैं: जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट

जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने कहा कि निवारक निरोध के आदेश (Preventive Detention Orders) तब भी पारित किए जा सकते हैं, जब कोई व्यक्ति पुलिस/न्यायिक हिरासत में हो या किसी आपराधिक मामले में शामिल हो, लेकिन ऐसा करने के लिए बाध्यकारी कारणों को दर्ज किया जाना चाहिए।

जस्टिस संजय धर ने कहा: "यह कानून है कि निवारक निरोध आदेश तब भी पारित किया जा सकता है जब कोई व्यक्ति पुलिस/न्यायिक हिरासत में हो या किसी आपराधिक मामले में शामिल हो, लेकिन ऐसा करने के लिए बाध्यकारी कारणों को दर्ज किया जाना चाहिए। हिरासत में लेने वाला प्राधिकारी बाध्यकारी कारण रिकॉर्ड करने के लिए बाध्य है। कारण बताते हैं कि क्यों सामान्य कानून का सहारा लेकर बंदी को विध्वंसक गतिविधियों में शामिल होने से नहीं रोका जा सकता और इन कारणों की अनुपस्थिति में हिरासत का आदेश कानून में अस्थिर हो जाएगा।"

केस शीर्षक: मुश्ताक अहमद अहंगर बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर और अन्य।

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जिस आर्बिट्रल अवार्ड में एनएचए के तहत अधिग्रहित भूमि पर वैधानिक मुआवजा नहीं दिया गया, वह विकृत: मद्रास हाईकोर्ट

मद्रास हाईकोर्ट ने माना है कि एक मध्यस्थ निर्णय जो राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम, 1956 के तहत अधिग्रहित भूमि के संबंध में अनिवार्य वैधानिक मुआवजे के भुगतान का प्रावधान नहीं करता है, विकृत है।

जस्टिस पीटी आशा ने कहा कि राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने वाले मध्यस्थ को यह सुनिश्चित करने में अधिक सतर्क रहना होगा कि मध्यस्थ निर्णय उचित हो और भूमि मालिक को उसके कानूनी अधिकार के अनुसार पर्याप्त मुआवजा दिया जाए।

केस शीर्षक: परियोजना निदेशक (एलए), एनएचएआई बनाम टी पलानीसामी और अन्य

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गणना किए जाने वाले दस्तावेज़ को रद्द करने की मांग वाले मुकदमे में दस्तावेज़ में दिखाए गए मूल्य के आधार पर कोर्ट फीस का भुगतान किया जाएगा: केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) ने हाल ही में कहा कि जब किसी दस्तावेज़ को रद्द या शून्य घोषित करने की मांग की जाती है, तो कोर्ट फीस का भुगतान दस्तावेज़ में दिखाए गए मूल्य के आधार पर किया जाएगा, जब तक कि मूल्यांकन का विषय सक्षम हो।

जस्टिस ए. बधारुद्दीन ने दोहराया कि विभाजन के एक मुकदमे में यह घोषणा करने की मांग की गई है कि एक समझौता डीड अमान्य है या अवैध है, उक्त घोषणा के लिए एक अलग कोर्ट फीस आवश्यक नहीं है।

केस का शीर्षक: भगवथियप्पन आर. एंड अन्य बनाम भारतमणि एंड अन्य।

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न्यायालय नए राजमार्गों के निर्माण की आवश्यकता पर निर्णय नहीं ले सकता, यह विशुद्ध रूप से नीतिगत निर्णय है: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें सरकारी भूमि अधिग्रहण को इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि नए राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि पहले से ही राजमार्ग मौजूद है जिसे मरम्मत करके चौड़ा किया जा सकता है।

जस्टिस मोक्ष खजूरिया काज़मी और जस्टिस पंकज मिथल की खंडपीठ ने याचिका को खारिज करते हुए कहा: "यह प्रस्तुत करना कि नए राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि पहले से ही एक राजमार्ग मौजूद है जिसे मरम्मत और चौड़ा किया जा सकता है, यह उल्लेख करना उचित होगा कि राष्ट्रीय राजमार्ग का निर्माण नीतिगत निर्णय (Policy Decision) है, जिसे विशेषज्ञों की राय द्वारा लिया जाता है। याचिकाकर्ताओं के साधारण कहने पर ऐसे मामलों में हस्तक्षेप करना इस न्यायालय के लिए नहीं है कि ऐसी सड़क या राजमार्ग की आवश्यकता नहीं है।"

केस शीर्षक: अशोक कुमार और अन्य बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर और अन्य

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भरण-पोषण की कार्यवाही में पति को सैलरी स्लिप प्रस्तुत करने के लिए कहना, उसकी निजता का उल्लंघन नहीं कहा जा सकता: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (ग्वालियर बेंच) ने कहा है कि भरण-पोषण की कार्यवाही के प्रभावी अधिनिर्णय के लिए पति को अपनी सैलरी स्लिप प्रस्तुत करने के लिए कहना, उसे उसके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित करना नहीं कहा जा सकता है।

न्यायमूर्ति जीएस अहलूवालिया की खंडपीठ ने आगे कहा कि इस तरह की कार्यवाही में पति को अपनी सैलरी स्लिप पेश करने के लिए कहना, उसकी निजता का उल्लंघन नहीं कहा जा सकता है। वर्तमान मामले में, पति को प्रधान न्यायाधीश, फैमिली कोर्ट, ग्वालियर ने कुल मिलाकर उसकी पत्नी और बच्चों को भरण-पोषण के रूप में 18,000/- रुपये प्रति माह का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था। हालांकि, वह कथित तौर पर मामले में देरी करने की कोशिश कर रहा था।

केस का शीर्षक - राशि गुप्ता एंड अन्य बनाम गौरव गुप्ता

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लोक अदालत के माध्यम से लंबित सिविल मामले का निपटारा होने पर पूरी कोर्ट फीस वापस किया जाना चाहिए: केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने कहा कि लोक अदालत के माध्यम से लंबित सिविल मामले का निपटारा होने पर पूरी कोर्ट फीस वापस किया जाना चाहिए। न्यायमूर्ति वी.जी. अरुण ने पाया कि पहले से भुगतान किए गए कोर्ट फीस में 7% की कटौती बरकरार रखने योग्य है क्योंकि ऐसे मामले विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम और न्यायालय शुल्क अधिनियम द्वारा शासित हैं, न कि केरल न्यायालय शुल्क और सूट मूल्यांकन (राजस्व बोर्ड) नियम से।

बेंच ने कहा, "जब एक लंबित दीवानी मामले में एक विवाद को लोक अदालत में भेजा जाता है और निपटाया जाता है, तो भुगतान की गई पूरी अदालती फीस वापस करने के लिए उत्तरदायी होती है। विवाद का निपटारा, निर्णय पारित करना और अदालती फीस की परिणामी वापसी विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम और न्यायालय शुल्क अधिनियम के प्रावधानों द्वारा शासित किया जा रहा है। केरल न्यायालय शुल्क और सूट मूल्यांकन (राजस्व बोर्ड) नियम, 1960 पर भरोसा करके भुगतान किए गए अदालत शुल्क के 7% की कटौती स्पष्ट रूप से बरकरार रखा गया है।"

केस टाइटल: मिथुन टी. अब्राहम बनाम सब कोर्ट ऑफ ज्यूडिकेचर एंड अन्य।

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पार्टियां अनुच्छेद 227 के तहत हाईकोर्ट के पास जाने से पहले सुप्रीम कोर्ट में वैकल्पिक उपाय समाप्त नहीं कर सकतींः दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 226/227 के तहत हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने से पहले किसी पक्ष को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष उपलब्ध वैकल्पिक उपाय को समाप्त करने का निर्देश नहीं दिया जा सकता है। शेक्सपियर के जूलियस सीजर का जिक्र करते हुए जस्टिस सी हरि शंकर ने कहा, "सीज़र से मार्क एंटनी के लिए कोई अपील नहीं हो सकती।"

कोर्ट इंडियाबुल्स ग्रीन्स पनवेल नामक एक परियोजना में 51 आवंटियों द्वारा याचिकाकर्ता लुसीना लैंड डेवलपमेंट लिमिटेड और अन्य के खिलाफ राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) के समक्ष दायर एक शिकायत से संबंधित मामले को निस्तारित कर रहा था।

केस शीर्षक: लुसीना लैंड डेवलपमेंट लिमिटेड बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्‍य

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ऊंची अदालतों पर जमानत के आदेश में दखल देने पर कोई कानूनी रोक नहीं: केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि हालांकि जमानत देने के आदेश में आमतौर पर हाईकोर्टों द्वारा हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा, फिर भी इस प्रकार के हस्तक्षेप पर कोई कानूनी रोक नहीं है।

जस्टिस कौसर एडप्पागथ ने कहा कि न्याय के लक्ष्य को सुरक्षित करने और किसी भी अदालत की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए आवश्यक आदेश की मदद में हाईकोर्ट सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अपनी अंतर्निहित शक्तियों का उपयोग कर सकता है।

केस शीर्षक: एक्स बनाम केरल राज्य और अन्य।

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सेवा की गलत समाप्ति के मामले में सेवा की निरंतरता और पिछले वेतन के साथ बहाली सामान्य नियम: तेलंगाना हाईकोर्ट

तेलंगाना हाईकोर्ट ने हाल ही में औद्योगिक न्यायाधिकरण द्वारा एक कर्मचारी की गलत तरीके से सेवा समाप्त करने के लिए दी गई राहत की पुष्टि की और रिट अपील को खारिज कर दिया। कर्मचार को 50% पिछले वेतन के साथ सेवा में बहाल करने की राहत दी गई थी।

मामला एक रिट याचिका पर 21.10.2016 को आदेश जारी किया गया था, जिसके बाद उक्त अपील दायर की गई थी। मामले के तथ्य यह थे कि कर्मचारी पर अनुशासनात्मक कार्यवाही की गई थी। 2000 में उसके खिलाफ आरोप पत्र जारी किया गया था और उसके बाद मामले की जांच की गई थी।

केस शीर्षक: डीएम, टीएसआरटीसी बनाम गोलामंडल सुब्बा राजू आनो

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POCSO Act-एफएसएल रिपोर्ट के बिना दायर चार्जशीट अधूरी नहीं, सीआरपीसी की धारा 167(2) के तहत डिफ़ॉल्ट जमानत के लिए कोई आधार नहीं बनताः पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम, 2012 (पॉक्सो) के प्रावधानों के तहत दर्ज एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा है कि यौन उत्पीड़न के अपराध के लिए, पीड़ित के बयान पर अंतिम रिपोर्ट पूरी मानी जाएगी और एफएसएल रिपोर्ट का उपयोग केवल उनके बयानों की पुष्टि के लिए किया जा सकता है।

जस्टिस सुवीर सहगल की पीठ ने कहा कि जांच एजेंसी द्वारा दायर चालान के आधार पर अदालत अपराध का संज्ञान ले सकती है।

केस का शीर्षक-कुलविंदर सिंह बनाम पंजाब राज्य

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पारिवारिक व्यवस्था का पंजीकरण केवल तभी आवश्यक है, जब शर्तों को लिखित रूप में कर दिया जाए, न कि जहां व्यवस्था मौखिक है: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि जहां पारिवारिक व्यवस्था मौखिक हो, वहां पंजीकरण आवश्यक नहीं है और यह तभी आवश्यक है जब व्यवस्था की शर्तों को लिखित कर दिया जाए।

जस्टिस नजमी वजीरी ने दोहराया, "यह बखूबी तय है कि पंजीकरण केवल तभी आवश्यक होगा जब परिवार व्यवस्था की शर्तों को लिखित रूप में दर्ज कर दिया जाए। यहां भी दस्तावेज के तहत किए गए पारिवारिक व्यवस्था की शर्तों और विवरणों वाले दस्तावेज के बीच एक अंतर किया जाना चाहिए और परिवार की व्यवस्था के बाद तैयार किया गया ज्ञापन या तो रिकॉर्ड के उद्देश्य से या अदालत की जानकारी के लिए आवश्यक उत्परिवर्तन के लिए तैयार किया गया था।

केस शीर्षक : डॉ संजीव गुप्ता और अन्य बनाम श्री एसएस वर्मा

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अगर पति अपनी वैवाहिक स्थिति पर विवाद करता है तो मजिस्ट्रेट घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत पत्नी की याचिका में तलाक की वैधता तय कर सकते हैं: केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) ने फैसला सुनाया कि अगर पति अपनी वैवाहिक स्थिति पर विवाद करता है तो मजिस्ट्रेट घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत पत्नी की याचिका में तलाक की वैधता तय कर सकते हैं।

न्यायमूर्ति कौसर एडप्पागथ ने इस तरह एक आपराधिक पुनरीक्षण याचिका की अनुमति देते हुए कहा कि अपीलीय अदालत का यह निष्कर्ष कि मजिस्ट्रेट के पास तलाक की वैधता का फैसला करने की कोई शक्ति नहीं है, गलत है और अपीलीय अदालत के फैसले को पलटा जाता है।

केस का शीर्षक: शमीना सिद्दीकी एंड अन्य बनाम एम. अबूबेखर सिद्दीक़ एंड अन्य।

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मध्यस्थता और सुलह अधिनियम की धारा 11 | कोर्ट को मध्यस्थ की नियुक्ति के दावे/प्रति-दावे के गुण-दोष में जाने की आवश्यकता नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि हाईकोर्ट को मध्यस्‍थ की नियुक्त‌ि के लिए मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 11 के तहत दायर एक याचिका में पक्षों के दावे या प्रति-दावे, यदि कोई हो, के गुण-दोषों का विश्लेषण नहीं करना है।

जस्टिस संजीव सचदेवा ने कहा कि जब तक कि रिकॉर्ड से यह स्पष्ट न हो कि विवाद की कोई उपयोगिता नहीं है, हाईकोर्ट को इस बात की जांच करनी है कि क्या पक्षों के बीच कोई मध्यस्थता समझौता है और कोई विवाद है।

केस टाइटल: ओयो होटल्स एंड होम्स प्रा लिमिटेड बनाम परवीन जुनेजा और अन्य।

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घटना के साथ ही या उसके तुरंत बाद ‌‌दिए गए ऐसे बयान, जो इधर-उधर से सुने गए थे, साक्ष्य अधिनियम की धारा 6 के तहत साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य: एमपी हाईकोर्ट

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने हाल ही में कहा कि घटना के साथ ही या उसके तुरंत बाद मृतक की ओर से दिया गया बयान भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 32 के तहत मृत्युकालीन घोषणा (dying declaration) के रूप में स्वीकार्य होगा।

इसके अलावा, मृतक द्वारा कहे गई बातों के संबंध में शिकायतकर्ताओं द्वारा दिए गए बयान, हालांकि इधर-उधर से सुने हुए, भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 6 के तहत स्वीकार्य हैं। (रेस जेस्टे res gestae का नियम)

केस शीर्षक: बसंत बनाम मध्य प्रदेश राज्य।

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चुनाव प्रक्रिया शुरू होने के बाद हस्तक्षेप करने के लिए रिट क्षेत्राधिकार का प्रयोग नहीं किया जा सकता: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में आंध्र प्रदेश पारस्परिक रूप से सहायता प्राप्त सहकारी समिति अधिनियम, 1995 के तहत रजिस्टर्ड बैंक की चुनाव प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। याचिका में चुनाव को अनियमित और कानून के विपरीत बताया गया था, लेकिन अदालत ने माना कि चुनाव प्रक्रिया शुरू होने के बाद इसे रोक नहीं सकता।

मामले के संक्षिप्त तथ्य यह याचिकाकर्ता का मामला है कि वह प्रतिवादी बैंक का सदस्य है, जो आंध्र प्रदेश पारस्परिक सहायता प्राप्त सहकारी समिति अधिनियम, 1995 के प्रावधानों के तहत रजिस्टर्ड है। बैंक के निदेशक मंडल में 15 से अधिक सदस्य नहीं हैं और जो हैं, वे पात्र सदस्यों में से चुने जाते हैं। याचिकाकर्ता की शिकायत यह है कि प्रतिवादी बैंक के तीन निदेशकों के चुनाव के लिए चुनाव कैसे कराया जाए इसके लिए कोई नियम नहीं है।

केस शीर्षक: येलमंचिली सत्य कृष्ण बनाम आंध्र प्रदेश राज्य

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अपने मुवक्किल का प्रतिनिधित्व करने वाले एडवोकेट को समन जारी करना एडवोकेट के कद को प्रभावित करता है: मद्रास हाईकोर्ट

मद्रास हाईकोर्ट (Madras High Court) के न्यायमूर्ति एन आनंद वेंकटेश ने सीआरपीसी की धारा 91 और 160 के तहत एक पक्ष का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील को समन भेजने वाले पुलिस अधिकारियों के रवैये और लापरवाही को गंभीरता से लिया है।

अदालत ने कहा कि यह आदेश बिना सोचे-समझे दिया गया और इस तरह का समन जारी करना एक वकील के कद को प्रभावित करता है। अदालत ने इस तरह के रवैये और लापरवाही को गंभीरता से लिया जिस तरह से पुलिस ने याचिकाकर्ता के वकील को समन भेजा था।

केस का शीर्षक: ए. शंकर बनाम वी. कुमार एंड अन्य

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हाईकोर्ट के रिट क्षेत्राधिकार के तहत पुलिस द्वारा अनुचित जांच के मुद्दे का निर्णय नहीं किया जा सकता: तेलंगाना हाईकोर्ट

तेलंगाना हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि रिट याचिका में पुलिस द्वारा दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों में निष्क्रियता का फैसला नहीं किया जा सकता। बस, निजी शिकायत दर्ज करनी होगी।

जस्टिस ललिता कन्नेगंती ने कहा: "दिन-प्रतिदिन कई रिट याचिकाएं दायर की जा रही हैं, जिसमें कहा गया है कि पुलिस उचित जांच नहीं कर रही है, आरोप पत्र दाखिल नहीं कर रही है और न ही वे आरोपियों को गिरफ्तार कर रहे हैं। इन मुद्दों पर इस न्यायालय द्वारा निर्णय नहीं किया जा सकता है, जबकि संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अधिकारिता का प्रयोग करते हुए निजी शिकायत दर्ज कराई जा सकती है।"

केस शीर्षक: के.साव्या बनाम स्टेशन हाउस ऑफिसर

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वैश्यावृत्ति का सिर्फ ग्राहक होने से कोई व्यक्ति अभियोजन के लिए उत्तरदायी नहीं होगा : आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट में एक याचिकाकर्ता ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत एक आपराधिक याचिका दायर करते हुए अपने खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द करने की मांग की। याचिकर्ता ने प्रस्तुत किया कि प्राप्त जानकारी के आधार पर पुलिस ने याचिकाकर्ता के खिलाफ अपराध दर्ज किया और जांच करने के बाद आरोप पत्र दायर किया।

याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप यह है कि जिस समय पुलिस ने वेश्यालय (brothel house) पर छापा मारा, उन्होंने वहां याचिकाकर्ता को ग्राहक के रूप में पाया।

केस शीर्षक: चेन्नुबोइना राज कुमार बनाम आंध्र प्रदेश राज्य

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