POCSO Act-एफएसएल रिपोर्ट के बिना दायर चार्जशीट अधूरी नहीं, सीआरपीसी की धारा 167(2) के तहत डिफ़ॉल्ट जमानत के लिए कोई आधार नहीं बनताः पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

2 May 2022 12:43 PM GMT

  • POCSO Act-एफएसएल रिपोर्ट के बिना दायर चार्जशीट अधूरी नहीं, सीआरपीसी की धारा 167(2) के तहत डिफ़ॉल्ट जमानत के लिए कोई आधार नहीं बनताः पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    Punjab & Haryana High court

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम, 2012 (पॉक्सो) के प्रावधानों के तहत दर्ज एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा है कि यौन उत्पीड़न के अपराध के लिए, पीड़ित के बयान पर अंतिम रिपोर्ट पूरी मानी जाएगी और एफएसएल रिपोर्ट का उपयोग केवल उनके बयानों की पुष्टि के लिए किया जा सकता है।

    जस्टिस सुवीर सहगल की पीठ ने कहा कि जांच एजेंसी द्वारा दायर चालान के आधार पर अदालत अपराध का संज्ञान ले सकती है।

    अदालत निचली अदालत के आदेश को चुनौती देने हुए सीआरपीसी की धारा 401 के तहत दायर एक याचिका पर विचार कर रही थी। निचली अदालत ने मामले के आरोपी को संहिता की धारा 167 (2) के तहत डिफ़ॉल्ट जमानत देने से इनकार कर दिया था।

    अदालत के समक्ष विवादास्पद सवाल यह था कि क्या एफएसएल रिपोर्ट प्रस्तुत न करने पर आरोपी महिलाओं के यौन शोषण से संबंधित मामले में धारा 167 (2) के तहत डिफ़ॉल्ट जमानत पाने का हकदार हो जाएगा?

    याचिकाकर्ता के एडवोकेट ने तर्क दिया कि ट्रायल कोर्ट के समक्ष पेश किया गया चालान दोषपूर्ण/डिफेक्टिव है क्योंकि इसके साथ एफएसएल रिपोर्ट दायर नहीं की गई है। यह तर्क दिया गया कि दोषपूर्ण चालान/आरोपपत्र को वैधानिक प्रावधानों के अनुपालन में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है और याचिकाकर्ता संहिता की धारा 167 (2) के तहत डिफ़ॉल्ट जमानत पाने का हकदार है।

    राज्य ने तर्क दिया कि आरोपपत्र निर्धारित अवधि के भीतर दायर किया गया है। इसके अलावा, केवल अंतिम रिपोर्ट के साथ एफएसएल रिपोर्ट दाखिल न करने से चालान अधूरा नहीं बन जाएगा। वहीं याचिकाकर्ता आरोपों की प्रकृति और उसके द्वारा कथित रूप से किए गए अपराध की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए डिफ़ॉल्ट जमानत पर रिहा होने का हकदार नहीं है।

    वर्तमान मामले में जांच एजेंसी द्वारा प्रस्तुत अंतिम रिपोर्ट के साथ पीड़िता व उसकी मां का बयान, जन्म प्रमाण पत्र, कपड़े, आरोपी और पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट और दोषी ठहराने वाली अन्य सामग्री दायर की गई है,हालांकि जहां तक एफएसएल रिपोर्ट का संबंध है, तो यह उल्लेख किया गया है कि यह रिपोर्ट अभी तक प्राप्त नहीं हुई है।

    हरियाणा राज्य बनाम मेहल सिंह व अन्य, 1978 एआईआर (पी एंड एच) 341 और 'राकेश उर्फ मोनी बनाम हरियाणा राज्य' के मामले में दिए गए फैसले पर भरोसा करने के बाद, अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि यौन उत्पीड़न के अपराध में पीड़ित के बयान पर अंतिम रिपोर्ट पूरी मानी जाएगी और एफएसएल रिपोर्ट का उपयोग केवल अभियोजन पक्ष के बयान की पुष्टि के लिए किया जा सकता है।

    यह विवादित नहीं है कि याचिकाकर्ता के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 376-एबी, 506 और पॉक्सो अधिनियम की धारा 6 के तहत अपराध के लिए निर्धारित अवधि के भीतर चालान प्रस्तुत किया गया है। यौन उत्पीड़न के अपराध के लिए, संहिता की धारा 161 और 164 के तहत पीड़िता द्वारा दिए गए बयान पर अंतिम रिपोर्ट पूरी होगी और एफएसएल रिपोर्ट का उपयोग केवल अभियोजन पक्ष के बयान की पुष्टि के लिए किया जा सकता है।

    कोर्ट ने आगे निर्धारित किया कि जांच एजेंसी द्वारा दायर चालान के आधार पर अदालत द्वारा अपराध का संज्ञान लिया जा सकता है और चालान के साथ एफएसएल रिपोर्ट दाखिल न करने से चालान अधूरा नहीं होता है।

    इस प्रकार, ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित आदेश में कोई अवैधता या विकृति नहीं पाई गई और तत्काल याचिका को बिना योग्यता के पाया गया,इसलिए अदालत ने याचिका को खारिज कर दिया।

    केस का शीर्षक-कुलविंदर सिंह बनाम पंजाब राज्य

    साइटेशन- 2022 लाइव लॉ (पीएच) 91

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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