जानिए हमारा कानून
पब्लिक सर्वेंट की जिम्मेदारियाँ और गिरफ्तारी में रुकावट के मामले: भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 264 और 265
भारतीय न्याय संहिता 2023 (Bharatiya Nyaya Sanhita 2023) ने 1 जुलाई, 2024 से प्रभावी होकर भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) का स्थान लिया है। इस संहिता के अंतर्गत धारा 264 और 265 में पब्लिक सर्वेंट (Public Servants) की उन ज़िम्मेदारियों को शामिल किया गया है, जिनमें उन्हें किसी व्यक्ति को गिरफ़्तार करने या हिरासत में रखने का कर्तव्य दिया गया है। इसके अलावा, कानून में उन स्थितियों पर भी प्रावधान है जहाँ लोग गिरफ़्तारी से बचने या अवरोध उत्पन्न करने का प्रयास करते हैं।पिछली धाराओं में कुछ गंभीर...
चार्जेस से संबंधित गलतियों का प्रभाव और कानूनी शब्दों की व्याख्या : BNSS, 2023 की धारा 237 और धारा 238
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) ने पुराने Criminal Procedure Code को बदलते हुए न्यायिक प्रक्रियाओं को सरल बनाने और अपराध से जुड़े मामलों में स्पष्टता और निष्पक्षता को सुनिश्चित करने का प्रयास किया है।इसमें दो मुख्य धाराएँ—धारा 237 और धारा 238—इस बात पर विशेष ध्यान देती हैं कि आरोप पत्र (Charge Sheet) में लिखे शब्द कैसे समझे जाने चाहिए और आरोप में हुई गलतियों का मामले पर क्या प्रभाव पड़ता है। ये दोनों धाराएँ न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता बनाए रखने और आरोपी के अधिकारों की सुरक्षा करने...
क्या सेवा में कार्यरत न्यायिक अधिकारी सीधे डिस्ट्रिक्ट जज की भर्ती प्रक्रिया में भाग ले सकते हैं? – विजय कुमार मिश्रा मामले का विश्लेषण
सुप्रीम कोर्ट के फैसले विजय कुमार मिश्रा और अन्य बनाम पटना हाईकोर्ट और अन्य, Civil Appeal No. 7358 of 2016 में, संविधान के अनुच्छेद 233(2) (Article 233(2)) की व्याख्या स्पष्ट की गई। इस मामले का मुख्य प्रश्न यह था कि क्या कोई वर्तमान में कार्यरत न्यायिक अधिकारी बिना इस्तीफा दिए सीधे District Judge की भर्ती प्रक्रिया में भाग ले सकता है।यह लेख इस फैसले में न्यायालय द्वारा उठाए गए महत्वपूर्ण संवैधानिक (Constitutional) प्रावधानों और मुद्दों का विश्लेषण करता है। अनुच्छेद 233(2) के प्रावधानों...
जानिए आर्बिटेशन एंड कॉन्सिलिएशन एक्ट
किसी भी डिस्प्यूट् को अदालत के बाहर सुलझाने के लिए यह कानून भारत की संसद द्वारा लाया गया है। इस एक्ट के पीछे मूल उद्देश्य है कि अंतरराष्ट्रीय राष्ट्रीय, प्रादेशिक विवादों को सुलझाने में मध्यस्थता के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाए। यह एक्ट अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है। इस एक्ट में कुल 86 धाराएं हैं तथा जिसे अलग-अलग भागों में बांटा गया है। इस एक्ट के अंतर्गत 3 अनुसूचियां भी शामिल की गई हैं। इसके पहले के मध्यस्थता एक्ट 1940 में अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता...
जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में प्रोटेक्शन कौन-से बालकों को मिलता है?
जुवेनाइल जस्टिस एक्ट कुछ ऐसे बच्चों के लिए प्रोटेक्शन की भी व्यवस्था करता है जिन्हें ऐसे प्रोटेक्शन की ज़रूरत है। इस अधिनियम की धारा 29 के अंतर्गत प्रत्येक जिले के लिए, जैसा कि अधिसूचना में विहित किया जाए देख रेख और संरक्षण की आवश्यकता वाले बालक के कल्याण के लिए ऐसी समिति को प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग और कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए एक या अधिक कल्याण समितियों का गठन कर सकती है। ऐसी बालक कल्याण समितियों में एक अध्यक्ष और चार अन्य सदस्य होगे जिनमे वें कम से कम एक को महानगरीय मजिस्ट्रेट होना...
जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में जुवेनाइल आरोपी और जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड
जुवेनाइल जस्टिस एक्ट की धारा 4 जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के में बताया गया है। इस धारा की उपधारा (5) में यह उपबंधित है कि (i) राज्य द्वारा जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के किसी भी सदस्य की नियुक्ति को उचित जांच के पश्चात् समाप्त किया जा सकता है, यदि उसने अपनी किसी शक्ति का 4. दुरुपयोग किया हो; या (ii) उसे किसी नैतिक अधमता के लिए दोषसिद्ध ठहराया गया हो, और उसे अपराध के लिए क्षमा प्रदान न की गयी हो, या (iii) वह बिना किसी उचित कारण के निरन्तर तीन माह तक बोर्ड की कार्यवाही से अनुपस्थित रहा हो या उसने वर्ष में...
जानिए जुवेनाइल जस्टिस एक्ट
जुवेनाइल जस्टिस एक्ट (JJ Act) अवयस्क लोगों के लिए लागू होता है जिन पर किसी भी अपराध का आरोप है। ऐसे अवयस्क बाल अपचारी को वयस्क लोगों की तरह से प्रक्रिया से अभियोजन नहीं चलाया जाता है बल्कि उसके लिए जुवेनाइल जस्टिस एक्ट लागू है। इस एक्ट के हिंदी नाम किशोर न्याय बालकों की देखरेख और संरक्षण अधिनियम, 2000 है। भारतीय न्याय संहिता सात वर्ष से कम आयु के शिशु के कार्य को अपराध नहीं मानती है अर्थात कोई ऐसा बालक जिसकी आयु 7 वर्ष से कम है उसके द्वारा किया गया। कोई भी कार्य अपराध नहीं माना जाता है लेकिन 12...
अभियुक्त को चार्जेस की स्पष्ट जानकारी देना : भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 236
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) या BNSS, जो 1 जुलाई 2024 से लागू हुई है, में आरोपों (Charges) को लेकर स्पष्टता लाने के लिए खास दिशानिर्देश दिए गए हैं। इस नए कानून का उद्देश्य अभियुक्त (Accused) को आरोप के संबंध में सही जानकारी देना है ताकि न्याय की प्रक्रिया पारदर्शी रहे।धारा 236 इसी उद्देश्य के लिए बनाई गई है, जो ये सुनिश्चित करती है कि अगर पहले से दिए गए विवरण पर्याप्त नहीं हैं, तो आरोप में अतिरिक्त विवरण (Particulars) जोड़े जाएं। इससे अभियुक्त को...
क्या आत्महत्या की धमकी देना और पति को परिवार से अलग करने का दबाव बनाना मानसिक क्रूरता माना जा सकता है?
सुप्रीम कोर्ट ने नरेंद्र बनाम के. मीना (2016) के मामले में यह महत्वपूर्ण प्रश्न उठाया कि क्या आत्महत्या की धमकी देना और पति को परिवार से अलग करने का दबाव बनाना मानसिक क्रूरता (Mental Cruelty) माना जा सकता है और क्या यह तलाक (Divorce) के लिए पर्याप्त आधार है।इस फैसले में कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act) की धारा 13(1)(ia) के तहत "क्रूरता" (Cruelty) की व्याख्या पर गहराई से विचार किया और कई महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णयों का उल्लेख किया। तलाक के लिए मानसिक क्रूरता (Mental...
अपनी या अन्य व्यक्ति की वैध गिरफ्तारी में बाधा डालने पर सज़ा: भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 262 और 263
भारतीय न्याय संहिता 2023, जो 1 जुलाई 2024 से लागू हुई है, पुराने भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) को प्रतिस्थापित करती है। इस संहिता की धाराओं 262 और 263 में यह निर्धारित किया गया है कि वैध (Lawful) गिरफ्तारी में रुकावट पैदा करने या गिरफ्तारी को रोकने के प्रयास करने पर क्या परिणाम हो सकते हैं।ये प्रावधान उन स्थितियों को समझाते हैं जब एक व्यक्ति अपनी ही या किसी अन्य व्यक्ति की गिरफ्तारी रोकने का प्रयास करता है। आइए, इन दोनों धाराओं को उदाहरणों के साथ सरल भाषा में समझें। धारा 262: अपनी वैध...
क्या राज्य प्रभावी कानूनों के माध्यम से महिला भ्रूण हत्या पर रोक लगा सकता है?
वॉलंटरी हेल्थ एसोसिएशन ऑफ पंजाब बनाम भारत संघ (2016) के मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने महिला भ्रूण हत्या की गंभीर समस्या पर विचार किया। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि Pre-Conception and Pre-Natal Diagnostic Techniques (PCPNDT) Act, 1994 के प्रभावी क्रियान्वयन के अभाव में भ्रूण हत्या बढ़ रही है, जिससे समाज में लिंग अनुपात (Sex Ratio) असंतुलित हो रहा है।इस कानून का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि मेडिकल तकनीक का उपयोग लिंग परीक्षण (Sex Determination) और महिला भ्रूण हत्या के लिए न हो, ताकि सामाजिक...
पुलिस को कब मिलता है ट्रांजिट रिमांड?
पुलिस को रिमांड इसलिए दिया जाता है जिससे वह अभियुक्त से पूछताछ कर मामले की बराबर तहकीकात कर सके और उसमें इन्वेस्टिगेशन के बाद चार्जशीट फ़ाइल कर सके। रिमांड की परिभाषा भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 35(1) (2) के अंतर्गत प्राप्त होती है। इस धारा के अंतर्गत पुलिस किसी व्यक्ति को कब गिरफ्तार कर सकती है इसका उल्लेख किया गया है। कोई व्यक्ति वारंट के बिना पुलिस द्वारा संज्ञेय मामले की परिस्थिति में गिरफ्तार किया जाता है। जब भी कोई व्यक्ति पुलिस द्वारा बगैर वारंट के गिरफ्तार किया जाता है या फिर...
जानिए कोई भी क्रिमिनल केस अभियुक्त की मौत पर खत्म क्यों नहीं होता?
किसी भी क्रिमिनल केस में वास्तव में सरकार और अभियुक्त पार्टी होते हैं। सरकार मुकदमा चलाती है और अभियुक्त मुकदमे को डिफेंस करता है। कोई भी क्राइम सरकार के ही खिलाफ होता है। एक अभियुक्त जिस पर कोई मुकदमा चलाया जा रहा है यदि वे कोई अपराध करता है तब उसका अपराध पीड़ित के खिलाफ नहीं होता है, अपितु स्टेट के खिलाफ होता है। जैसे कि भारत सरकार ने संसद द्वारा अधिनियमित किए गए कानून के माध्यम से उतावलेपन से मोटरयान चलाना एक अपराध बनाया है। ऐसे उतावलेपन के कारण अगर किसी व्यक्ति को किसी भी तरह की कोई क्षति...
चार्ज में अपराध से जुड़े समय, स्थान और व्यक्ति का विवरण : BNSS, 2023 की धारा 235
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) जो 1 जुलाई, 2024 को लागू हुई और जिसने Criminal Procedure Code की जगह ली है, इस संहिता ने Criminal Justice System में कई नए और महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं।इस संहिता की धारा 235 का उद्देश्य अदालत में चार्ज (Charge) प्रस्तुत करते समय अपराध की स्थिति और उससे जुड़े पहलुओं को विशेष रूप से स्पष्ट करना है। इससे आरोपी को मामले की पूरी जानकारी मिलती है जिससे वे अपनी रक्षा के लिए तैयारी कर सकें। धारा 234, जो चार्ज के सामान्य स्वरूप...
पब्लिक सर्वेंट द्वारा जानबूझकर गिरफ्तारी में चूक और लापरवाही से दोषी का भागना: BNS, 2023, धारा 260 और 261
भारतीय न्याय संहिता, 2023 (Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023), जिसने भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) का स्थान लिया और 1 जुलाई, 2024 से लागू हुई, में पब्लिक सर्वेंट (Public Servants) के लिए विशिष्ट कर्तव्य और जिम्मेदारियाँ निर्धारित की गई हैं।यह संहिता विशेष रूप से उन मामलों पर ध्यान देती है जब पब्लिक सर्वेंट किसी अपराध के दोषी या न्यायिक हिरासत (Custody) में रखे गए व्यक्ति को कानूनी तौर पर सुरक्षा में रखने में विफल रहते हैं। धारा 260 और 261 ऐसे मामलों से निपटने के लिए बनाई गई हैं, जिनमें या तो...
क्या कोर्ट कई अपराधों के लिए क्रमागत उम्रकैद की सजा दे सकती है?
सुप्रीम कोर्ट के एक संविधान पीठ ने एक अहम फैसले में यह स्पष्ट किया कि क्या किसी दोषी को एक ही सुनवाई में अलग-अलग अपराधों के लिए क्रमागत (Consecutive) उम्रकैद की सजा दी जा सकती है।इस फैसले ने दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure – CrPC) की धारा 31 और धारा 427(2) की अलग-अलग व्याख्याओं पर विराम लगाया। अदालत ने यह तय किया कि उम्रकैद का अर्थ क्या होता है और क्या किसी व्यक्ति को उसकी बाकी की जिंदगी जेल में बिताने के लिए लगातार कई उम्रकैद की सजा दी जा सकती है। मामले के तथ्य और मुख्य मुद्दे...
क्या घरेलू हिंसा कानून के तहत वयस्क महिला रिश्तेदारों को भी जिम्मेदार ठहराया जा सकता है?
Hiral P. Harsora और अन्य बनाम Kusum Narottamdas Harsora और अन्य मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005 (घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा कानून) की धारा 2(q) की संवैधानिक वैधता पर विचार किया। इस धारा में केवल “adult male person” (वयस्क पुरुष) को ही प्रतिवादी (Respondent) के रूप में शामिल किया गया था, जिसका अर्थ था कि महिला रिश्तेदारों को घरेलू हिंसा के आरोपों से बाहर रखा गया।अदालत के सामने सवाल यह था कि क्या यह प्रावधान महिलाओं को पर्याप्त सुरक्षा देने...
जानिए किसी केस में पक्षकारों की डेथ हो जाने पर क्या इफेक्ट होता है?
कोई अदालती मुकदमे में दो पक्ष होते हैं, एक पक्ष होता है जो मुकदमा कोर्ट में लाता है और दूसरा पक्ष वह होता है जो मुकदमे को डिफेंट करता है। केस दो तरह के होते हैं, एक सिविल केस और दूसरा क्रिमिनल केस। सिविल केस प्राइवेट लगाया जाता है और क्रिमिनल केस सरकार द्वारा लगाया जाता है क्योंकि अपराध सरकार के खिलाफ होता है और किसी भी अपराध में फरियादी केवल एक गवाह होता है और इत्तिलाकर्ता होता है।ऐसे किसी भी केस में किसी भी व्यक्ति की मृत्यु हो जाने से सभी मामलों में वादकारण समाप्त नहीं हो जाता है। जैसे अगर...
लीगल ऐड से मुफ्त कानूनी मदद से संबंधित प्रावधान
सरकार द्वारा गरीब लोगों को मुफ्त कानूनी मदद उपलब्ध करवायी जाती है। ऐसी मदद केवल कानूनी सलाह तक ही सीमित नहीं होती है बल्कि किसी भी व्यक्ति को अपना मुकदमा लड़वाने के लिए मुफ्त वकील भी उपलब्ध करवाए जाते हैं। शासन गरीब कैदी को भी मुफ़्त में जमानत हेतु वकील उपलब्ध करवाती है।कोई भी गरीब व्यक्ति अपना मुकदमा अदालत में केस चला पाएगा और अपने पर लगे हुए आपराधिक प्रकरण में स्वयं का बचाव कैसे कर पाएगा क्योंकि गरीब व्यक्ति के पास इतने साधन नहीं होते हैं कि वह एक महंगे वकील को नियुक्त कर सके।भारत सरकार ने और...
भाग 2: आरोप की भाषा का महत्व और अदालतें आरोपों की व्याख्या कैसे करती हैं? धारा 234, BNSS 2023
इस लेख के पहले भाग में, हमने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के सेक्शन 234 के तहत आरोप (Charges) की रूपरेखा, संरचना और उनके फ्रेमिंग के लिए आवश्यकताओं पर चर्चा की थी। अब इस दूसरे भाग में, हम इन प्रावधानों के न्यायिक प्रक्रिया, कानूनी पेशेवरों और आरोपी के लिए व्यावहारिक प्रभावों पर गहराई से चर्चा करेंगे। हम इस पर भी चर्चा करेंगे कि आरोप से संबंधित नियम निष्पक्ष मुकदमे को कैसे सुनिश्चित करते हैं, आरोप में प्रयुक्त भाषा का महत्व, और अदालतें इन नियमों को कैसे समझती और लागू करती हैं। आरोपों में...