झूठे साक्ष्य देने पर त्वरित सुनवाई की प्रक्रिया : धारा 383 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023
Himanshu Mishra
10 March 2025 3:22 PM

न्यायिक प्रक्रिया (Judicial Proceedings) में झूठे साक्ष्य (False Evidence) देना एक गंभीर अपराध है, जिससे निर्दोष को सजा मिल सकती है या अपराधी छूट सकता है। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023 - BNSS, 2023) की धारा 383 इस अपराध को रोकने के लिए एक त्वरित (Immediate) कानूनी प्रक्रिया उपलब्ध कराती है।
यह धारा सेशन न्यायालय (Court of Session) या प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट (Magistrate of the First Class) को यह शक्ति देती है कि यदि किसी गवाही (Testimony) में जानबूझकर झूठ बोला गया है या झूठे साक्ष्य गढ़े गए हैं, तो उसी समय इस अपराध पर संज्ञान (Cognizance) लेकर त्वरित सुनवाई (Summary Trial) की जा सकती है।
इस धारा के तहत, यदि न्यायालय यह पाता है कि किसी व्यक्ति ने जानबूझकर न्यायालय को गुमराह करने के लिए झूठे साक्ष्य दिए हैं, तो उसे तीन महीने तक की कैद (Imprisonment) या एक हजार रुपये तक का जुर्माना (Fine) या दोनों (Both) की सजा दी जा सकती है। यह प्रावधान न्यायिक व्यवस्था (Judicial System) की पवित्रता बनाए रखने और झूठी गवाही देने वालों को दंडित करने के लिए बनाया गया है।
झूठे साक्ष्य (False Evidence) पर त्वरित कार्रवाई (Immediate Action) का प्रावधान
धारा 383(1) में यह कहा गया है कि यदि किसी सेशन न्यायालय या प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट को किसी न्यायिक प्रक्रिया (Judicial Proceeding) के अंतिम निर्णय (Final Judgment) या आदेश (Final Order) देते समय यह लगता है कि किसी गवाह (Witness) ने जानबूझकर झूठी गवाही दी है या झूठे साक्ष्य गढ़े हैं, तो वह न्यायालय इस अपराध पर उसी समय संज्ञान (Cognizance) ले सकता है।
इस प्रावधान का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि न्यायालय की कार्यवाही में झूठे साक्ष्य देने वालों को तुरंत दंडित किया जाए, ताकि कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग न हो। इसके लिए एक अलग मुकदमे (Separate Trial) की आवश्यकता नहीं होगी, जिससे न्यायिक प्रणाली (Judicial System) में देरी नहीं होगी और झूठे साक्ष्य देने वालों को जल्दी सजा मिल सकेगी।
उदाहरण: मान लीजिए कि किसी हत्या के मामले (Murder Case) में एक गवाह झूठी गवाही देता है कि उसने आरोपी को अपराध स्थल (Crime Scene) पर देखा था। लेकिन जिरह (Cross-Examination) के दौरान यह साबित हो जाता है कि गवाह उस समय किसी दूसरे शहर में था।
इस स्थिति में, यदि न्यायालय यह मानता है कि गवाह ने जानबूझकर झूठ बोला है, तो न्यायालय को धारा 379 के तहत अलग से शिकायत करने की जरूरत नहीं होगी, बल्कि वह धारा 383 के तहत तत्काल कार्रवाई कर सकता है।
अपराधी (Offender) को अपना पक्ष रखने का अवसर (Opportunity to Explain)
किसी भी व्यक्ति को दंडित करने से पहले न्यायालय यह सुनिश्चित करेगा कि उसे अपनी सफाई देने का उचित अवसर (Reasonable Opportunity) मिले। यह प्रावधान इस उद्देश्य से शामिल किया गया है कि कोई निर्दोष व्यक्ति गलत तरीके से सजा न पाए।
इसका अर्थ यह है कि अदालत झूठे साक्ष्य देने के आरोप में आरोपी को तुरंत सजा नहीं दे सकती, जब तक कि उसे यह साबित करने का अवसर न दिया जाए कि उसकी गवाही गलती से गलत हो गई थी या जानबूझकर नहीं दी गई थी।
उदाहरण: यदि कोई गवाह किसी घटना को याद करने में गलती कर देता है और बाद में न्यायालय में सुधार करता है, तो यह झूठी गवाही (False Testimony) नहीं मानी जाएगी। लेकिन अगर कोई व्यक्ति जानबूझकर गलत बयान देता है, जिससे मामले की दिशा बदल सकती है, तो उसे इस धारा के तहत सजा मिल सकती है।
झूठे साक्ष्य पर सजा (Punishment for False Evidence)
यदि न्यायालय को यह लगता है कि कोई व्यक्ति सच में झूठी गवाही (False Testimony) देने का दोषी (Guilty) है, तो उसे निम्नलिखित सजा दी जा सकती है:
• तीन महीने तक की कैद (Imprisonment up to Three Months)
• एक हजार रुपये तक का जुर्माना (Fine up to One Thousand Rupees)
• या दोनों (Both)
इस सजा का उद्देश्य झूठे साक्ष्य देने वालों को दंडित करने के साथ-साथ दूसरों को इस अपराध से बचने की चेतावनी देना भी है।
उदाहरण: मान लीजिए कि किसी भ्रष्टाचार (Corruption) के मामले में एक गवाह झूठा बयान देता है कि उसने आरोपी को रिश्वत लेते हुए नहीं देखा, जबकि वह वास्तव में गवाह था। यदि यह साबित हो जाता है कि गवाह ने जानबूझकर झूठ बोला है, तो उसे इस धारा के तहत तीन महीने की जेल या जुर्माने की सजा हो सकती है।
संक्षिप्त सुनवाई (Summary Trial) की प्रक्रिया
धारा 383(2) में कहा गया है कि न्यायालय को इस अपराध की सुनवाई के लिए संक्षिप्त सुनवाई (Summary Trial) की प्रक्रिया अपनानी चाहिए।
संक्षिप्त सुनवाई (Summary Trial) का अर्थ है:
• मामले की सुनवाई तेजी से की जाएगी।
• साक्ष्य (Evidence) को सीधे और सरल तरीके से जांचा जाएगा।
• आरोपी को अपना पक्ष रखने का उचित अवसर दिया जाएगा।
इसका उद्देश्य न्यायिक प्रक्रिया को तेज करना है ताकि झूठे साक्ष्य देने वालों को जल्द से जल्द सजा मिले और झूठी गवाही देने की प्रवृत्ति को रोका जा सके।
धारा 379 के तहत शिकायत करने का विकल्प (Option to File a Complaint under Section 379)
धारा 383(3) में यह स्पष्ट किया गया है कि यह धारा न्यायालय की उस शक्ति को समाप्त नहीं करती, जिसके तहत वह धारा 379 के अंतर्गत अलग से शिकायत दर्ज कर सकता है।
इसका मतलब है कि यदि झूठे साक्ष्य का मामला बहुत गंभीर है और उसे एक विस्तृत जांच की आवश्यकता है, तो न्यायालय धारा 379 के तहत अलग से मामला दर्ज कर सकता है।
उदाहरण: यदि कोई व्यक्ति नकली दस्तावेज (Forged Documents) न्यायालय में पेश करता है और यह साबित हो जाता है कि दस्तावेज जाली हैं, तो न्यायालय केवल तीन महीने की सजा देने के बजाय धारा 379 के तहत मामला दर्ज कर सकता है, जिससे आरोपी को कड़ी सजा मिल सके।
यदि अपील या पुनरीक्षण (Appeal or Revision) लंबित हो तो कार्यवाही रोकना (Stay of Proceedings if Appeal is Pending)
धारा 383(4) कहता है कि यदि किसी व्यक्ति के खिलाफ इस धारा के तहत सुनवाई चल रही हो और उसी समय मामले के फैसले के खिलाफ अपील (Appeal) या पुनरीक्षण याचिका (Revision Petition) दायर की गई हो, तो न्यायालय को इस धारा के तहत कार्यवाही रोक देनी चाहिए, जब तक कि अपील या पुनरीक्षण का फैसला न हो जाए।
इस प्रावधान का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई व्यक्ति तब तक सजा न पाए जब तक कि मूल निर्णय (Original Judgment) अंतिम रूप से तय न हो जाए।
उदाहरण: यदि किसी गवाह को झूठी गवाही देने का दोषी ठहराया गया है, लेकिन मूल मामले के आरोपी ने उच्च न्यायालय (High Court) में अपील दायर कर दी है, तो न्यायालय को तब तक कार्यवाही रोकनी होगी जब तक कि उच्च न्यायालय अपना निर्णय न सुना दे।
धारा 383 न्यायपालिका (Judiciary) की ईमानदारी और निष्पक्षता बनाए रखने के लिए एक महत्वपूर्ण प्रावधान है। यह झूठे साक्ष्य देने वालों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई (Immediate Action) की अनुमति देता है, जिससे न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग न हो।
इस धारा के तहत दी गई सजा अन्य गवाहों को भी सच बोलने के लिए प्रेरित करेगी और न्यायिक प्रक्रिया को निष्पक्ष बनाए रखेगी।