न्यायालय में अवमानना से संबंधित प्रक्रिया – भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 384

Himanshu Mishra

11 March 2025 11:11 AM

  • न्यायालय में अवमानना से संबंधित प्रक्रिया – भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 384

    न्यायालय की अवमानना (Contempt of Court) एक गंभीर अपराध है क्योंकि यह न्यायपालिका की गरिमा (Dignity) और अधिकार (Authority) को कमजोर करता है।

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023 - BNSS) की धारा 384 न्यायालय (Court) के समक्ष किए गए अवमाननापूर्ण कृत्यों (Contemptuous Acts) से निपटने की विशेष प्रक्रिया (Procedure) प्रदान करती है।

    यह प्रावधान (Provision) न्यायालय को त्वरित कार्रवाई (Immediate Action) का अधिकार देता है, साथ ही आरोपी (Accused) को अपना पक्ष रखने का उचित अवसर (Fair Opportunity) भी देता है।

    धारा 384 का सारांश (Understanding Section 384 of BNSS, 2023)

    इस धारा में न्यायालय के समक्ष किए गए अवमानना संबंधी अपराधों से निपटने की प्रक्रिया दी गई है। यह धारा भारतीय न्याय संहिता, 2023 (Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023 - BNS) की निम्नलिखित धाराओं के तहत अपराधों पर लागू होती है:

    • धारा 210 – झूठे साक्ष्य (False Evidence) देना।

    • धारा 213 – झूठे साक्ष्य गढ़ना (Fabricating False Evidence)।

    • धारा 214 – झूठे दावे (False Claim) या झूठी प्रतिरक्षा (False Defence) करना।

    • धारा 215 – न्यायिक प्रक्रिया (Judicial Proceedings) में बैठे लोक सेवक (Public Servant) का अपमान (Insult) या बाधा (Interruption) डालना।

    • धारा 267 – लोक सेवकों के वैध अधिकार (Lawful Authority) की अवमानना।

    इस धारा के तहत न्यायालय को यह अधिकार प्राप्त है कि वह अपराधी (Offender) को तुरंत हिरासत (Detention) में ले सकता है, लेकिन इससे पहले उसे अपनी सफाई देने का अवसर देना आवश्यक होता है।

    तत्काल हिरासत (Immediate Detention) और संज्ञान (Cognizance) की प्रक्रिया

    अगर कोई व्यक्ति न्यायालय के सामने उपर्युक्त अपराध करता है, तो न्यायाधीश (Judge) को यह अधिकार है कि वह उसे तत्काल हिरासत में ले सकता है। यह शक्ति (Power) इसलिए दी गई है ताकि न्यायालय की कार्यवाही (Court Proceedings) में बाधा न आए और न्याय का पालन (Administration of Justice) सुचारू रूप से हो।

    उदाहरण:

    • यदि कोई गवाह (Witness) जानबूझकर झूठी गवाही (False Testimony) देता है और न्यायाधीश इसे तुरंत पहचान लेता है, तो उसे हिरासत में लिया जा सकता है।

    • अगर कोई वकील (Lawyer) या पक्षकार (Litigant) न्यायाधीश को अपमानित (Insult) करता है या कार्यवाही में व्यवधान (Obstruction) डालता है, तो उसे तुरंत हिरासत में लिया जा सकता है।

    इसके अतिरिक्त, न्यायालय को उसी दिन कार्यवाही समाप्त होने से पहले इस अपराध का संज्ञान (Cognizance) लेना होता है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि अपराधी को तुरंत उत्तरदायी (Responsible) ठहराया जाए।

    सजा देने से पहले कारण बताने का अवसर (Opportunity to Show Cause Before Punishment)

    हालांकि न्यायालय को तुरंत कार्रवाई करने का अधिकार है, लेकिन आरोपी को अपना पक्ष रखने का उचित अवसर दिया जाता है।

    उदाहरण:

    • अगर कोई वकील आवेश (Frustration) में आकर न्यायाधीश से ऊँची आवाज में बहस करता है और बाद में माफी माँगता है, तो न्यायालय उसकी सफाई पर विचार करेगा।

    • अगर कोई व्यक्ति अपनी गलती स्वीकार कर लेता है और खेद प्रकट करता है, तो सजा में रियायत दी जा सकती है।

    यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि सजा अनुचित (Arbitrary) न हो और आरोपी को न्याय मिले।

    अवमानना की सजा (Punishment for Contempt in Court)

    अगर न्यायालय आरोपी की सफाई से संतुष्ट नहीं होता, तो उसे अधिकतम ₹1000 तक का जुर्माना (Fine) लगाया जा सकता है। यदि आरोपी जुर्माना भरने में असमर्थ रहता है, तो उसे एक महीने तक के साधारण कारावास (Simple Imprisonment) की सजा दी जा सकती है।

    उदाहरण:

    • यदि कोई व्यक्ति बार-बार न्यायाधीश को अपशब्द (Abusive Words) कहता है और न्यायालय की कार्यवाही बाधित करता है, तो न्यायालय उसे जुर्माने की सजा दे सकता है।

    • यदि वह जुर्माना नहीं चुकाता, तो उसे एक महीने की जेल (Imprisonment) हो सकती है।

    अपराध का रिकॉर्ड रखना (Recording the Offence and Statement of the Offender)

    धारा 384(2) के तहत, जब भी न्यायालय इस धारा के अंतर्गत कार्रवाई करता है, उसे निम्नलिखित बातें लिखित रूप में दर्ज (Record) करनी होती हैं:

    1. अपराध से जुड़े तथ्य (Facts of the Offence)।

    2. आरोपी का बयान (Statement of the Accused)।

    3. न्यायालय का अंतिम निष्कर्ष (Final Finding) और दी गई सजा (Sentence)।

    यह प्रक्रिया पारदर्शिता (Transparency) सुनिश्चित करती है और न्यायालय की शक्ति के दुरुपयोग (Misuse of Power) को रोकती है।

    उदाहरण:

    • अगर किसी व्यक्ति को न्यायालय के अपमान (Insulting the Court) के लिए सजा दी गई है और वह बाद में दावा करता है कि उसे सफाई देने का मौका नहीं मिला, तो न्यायालय का रिकॉर्ड यह साबित कर सकता है कि उसे उचित अवसर दिया गया था।

    धारा 267 के अंतर्गत विशेष प्रावधान (Special Provision for Offences Under Section 267 of BNS)

    अगर अपराध धारा 267 (लोक सेवकों की वैध अधिकार की अवमानना) के अंतर्गत आता है, तो न्यायालय को अतिरिक्त रूप से निम्नलिखित विवरण दर्ज करना आवश्यक होता है:

    1. न्यायिक कार्यवाही का वह चरण (Stage of Judicial Proceedings) जब अपमान या बाधा हुई।

    2. अपमान (Insult) या व्यवधान (Interruption) की सटीक प्रकृति।

    उदाहरण:

    • यदि एक वकील जिरह (Cross-Examination) के दौरान न्यायाधीश पर निराधार आरोप (Baseless Allegations) लगाने लगे, तो न्यायालय को उस समय चल रही कार्यवाही और अपमान के सटीक शब्द दर्ज करने होंगे।

    अवमानना के कुछ उदाहरण (Illustrations of Contempt in Court)

    1. उदाहरण 1:

    एक गवाह हत्या के मामले में जानबूझकर झूठी गवाही देता है। न्यायाधीश इसे पकड़ लेता है और उसे धारा 210 के तहत हिरासत में लेता है। सफाई देने का मौका मिलने के बावजूद, जब उचित कारण नहीं दिया जाता, तो ₹1000 का जुर्माना लगाया जाता है।

    2. उदाहरण 2:

    एक वकील, न्यायालय के फैसले से नाराज होकर, जोर-जोर से चिल्लाने लगता है। उसे हिरासत में लिया जाता है। बाद में, माफी मांगने के बावजूद, उसे अनुशासन बनाए रखने के लिए जुर्माना देना पड़ता है।

    3. उदाहरण 3:

    एक पक्षकार (Litigant) नाराज होकर न्यायाधीश की मेज पर फाइल फेंकता है और गालियाँ देने लगता है। उसे तुरंत हिरासत में लिया जाता है और बाद में एक महीने की जेल की सजा दी जाती है।

    धारा 384, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 न्यायालय को यह अधिकार देती है कि वह न्यायालय की कार्यवाही में होने वाली अवमानना से तुरंत निपटे। यह न्यायालय की गरिमा बनाए रखने के साथ-साथ अभियुक्त (Accused) को निष्पक्ष सुनवाई (Fair Hearing) का अधिकार भी देती है।

    इसके अंतर्गत दी जाने वाली सजा न्यायालय की मर्यादा (Dignity) बनाए रखने में सहायक होती है। इसके अलावा, न्यायालय द्वारा प्रत्येक मामले में रिकॉर्ड रखने की अनिवार्यता पारदर्शिता और न्याय की निष्पक्षता (Impartiality) सुनिश्चित करती है।

    यह प्रावधान न्यायालय को एक अनुशासित (Disciplined) वातावरण में न्याय प्रदान करने में सहायक सिद्ध होता है।

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