जानिए हमारा कानून
क्या जजों को एयरपोर्ट पर सुरक्षा जांच से छूट मिलनी चाहिए?
इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने यह सवाल उठाया कि क्या हाईकोर्ट के जजों को एयरपोर्ट पर प्री-एंबार्केशन (Pre-Embarkation) सुरक्षा जांच से छूट मिलनी चाहिए।यह मामला राजस्थान हाईकोर्ट के एक निर्णय से उत्पन्न हुआ, जिसमें उसने यूनियन गवर्नमेंट (Union Government) को निर्देश दिया था कि मुख्य न्यायाधीशों और हाईकोर्ट के जजों को उनकी संवैधानिक स्थिति (Constitutional Status) को ध्यान में रखते हुए सुरक्षा जांच से छूट दी जाए। इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक अधिकार (Judicial Authority), कार्यकारी विवेक...
अवमानना के दोषी वकील को प्रैक्टिस की अनुमति मिलनी चाहिए?
अवमानना और न्यायालय की भूमिका (Contempt and Role of the Court)इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह प्रश्न उठाया कि क्या अवमानना (Contempt) के दोषी वकील को कानून प्रैक्टिस जारी रखने का अधिकार होना चाहिए। Contempt of Courts Act, 1971 के अंतर्गत अवमानना का अर्थ है न्यायालय की गरिमा कम करना या न्यायिक प्रक्रिया में बाधा डालना। संविधान से प्राप्त अवमानना शक्ति न्यायालय की प्रतिष्ठा बनाए रखने और न्यायिक कार्यवाही की सुचारुता सुनिश्चित करने के लिए है। इस मामले में, न्यायालय ने उस वकील के आचरण का परीक्षण...
क्या सड़क सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए हाइवे पर शराब की दुकानें बंद होनी चाहिए?
संवैधानिक ढांचा और शक्तियाँ (Constitutional Framework and Powers)इस ऐतिहासिक मामले में, भारत के सुप्रीम कोर्ट ने हाइवे पर शराब की दुकानों और सड़क सुरक्षा के बीच संबंध का अध्ययन किया। संविधान के तहत केंद्र और राज्य सरकारें सड़कों और हाइवे पर कानून बना सकती हैं। अनुच्छेद 246 के तहत, सातवीं अनुसूची में कानून बनाने के अधिकार विभाजित किए गए हैं। संसद राष्ट्रीय हाइवे (Union List, Entry 23) पर कानून बना सकती है, जबकि राज्य सरकारों को स्थानीय सड़कों और राज्य के भीतर यातायात (State List, Entry 13) पर...
भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य की सुरक्षा: संक्रमण फैलाने के अपराधों पर BNS, 2023 की धारा 271, 272 और 273
भारतीय न्याय संहिता, 2023 (Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023 - BNS) में, भारत सरकार ने संक्रमण फैलाने वाले गैर-जिम्मेदाराना, दुश्मनीपूर्ण या नियमों की अवहेलना करने वाले व्यवहार पर सख्त प्रावधान बनाए हैं। यह नया कानून, जो भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) की जगह लाया गया है, सार्वजनिक स्वास्थ्य को सुरक्षित रखने के लिए एक कानूनी ढांचा प्रदान करता है।इसमें व्यक्ति की हरकतों से समाज पर होने वाले प्रभाव को समझा गया है। इस लेख में, हम BNS की धारा 271, 272 और 273 का विश्लेषण करेंगे, जिनके तहत खतरनाक...
प्रत्येक अलग अपराध के लिए अलग चार्जेस : BNSS, 2023 की धारा 241 और 242
अपराधों का मिलान (Joinder of Charges) का सिद्धांतभारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) 2023 की धारा 241 और 242 अपराधों के मिलान से जुड़े हैं। ये प्रावधान न्याय प्रक्रिया में पारदर्शिता और दक्षता को बनाए रखने के लिए हैं। इन धाराओं के अनुसार, एक व्यक्ति पर एक से अधिक अपराधों का आरोप हो सकता है और इनका परीक्षण (Trial) कैसे होना चाहिए, यह इन्हीं प्रावधानों में तय किया गया है। धारा 241: प्रत्येक अलग अपराध के लिए अलग आरोप धारा 241 में कहा गया है कि यदि किसी व्यक्ति पर अलग-अलग प्रकार के अपराधों का आरोप...
भारतीय साक्ष्य अधिनियम में डाइंग डिक्लेरेशन
भारतीय साक्ष्य अधिनियम में डाइंग डिक्लियरेशन का उल्लेख है। साक्ष्य अधिनियम की धारा 26(क) के अंतर्गत डाइंग डिक्लियरेशन का वर्णन किया गया है तथा डाइंग डिक्लियरेशन को साक्ष्य के अंदर अधिकारिता दी गई है। साक्ष्य अधिनियम में सुसंगत तथ्य क्या होंगे इस संबंध में एक पूरा अध्याय दिया गया है,इस अध्याय के अंदर ही धारा 26 (क) का भी समावेश है। इस धारा के अंतर्गत यह बताने का प्रयास किया गया है कोई भी कथन डाइंग डिक्लियरेशन है तो उसे सुसंगत माना जाएगा।व्यक्ति अपने ईश्वर से मिलने वाला होता है, अंतिम समय बिल्कुल...
भारतीय साक्ष्य अधिनियम में एडमिशन का कॉन्सेप्ट
नए लागू हुए भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 के अंतर्गत एडमिशन को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। अधिनियम की धारा 15 के अनुसार- एडमिशन वह मौखिक या दस्तावेजी या इलेक्ट्रॉनिक रूप में अंतर्विष्ट कथन है, जो किसी विवाधक तथ्य या सुसंगत तथ्य के बारे में कोई अनुमान इंगित करता है और जो ऐसे व्यक्तियों में से किसी के द्वारा ऐसी परिस्थितियों में किया गया है जो एतस्मिन पश्चात वर्णित है।इस धारा में तीन बातों की ओर ध्यान आकर्षित किया गया है। पहली यह धारा एडमिशन की परिभाषा देती है, दूसरी धारा कहती है कि एडमिशन तभी...
आरोप में बदलाव के बाद गवाहों को पुनः बुलाने का अधिकार: भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 240
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita) 2023 के अंतर्गत, धारा 240 अभियुक्त (Accused) और अभियोजन पक्ष (Prosecutor) को यह अधिकार देती है कि अगर मुकदमे के दौरान आरोप (Charge) में कोई बदलाव या नई धाराएं जोड़ी जाती हैं, तो वे गवाहों (Witnesses) को पुनः बुला सकते हैं और उनसे नए आरोप के संदर्भ में सवाल कर सकते हैं।यह प्रावधान इस बात को सुनिश्चित करता है कि नए या परिवर्तित आरोपों के अनुसार दोनों पक्षों को उचित तैयारी और जवाब देने का अवसर मिले। धारा 239: मुकदमे के दौरान आरोपों...
जीवन की गरिमा और समानता का अधिकार: जीजा घोष और अन्य बनाम भारत संघ
जीजा घोष और अन्य बनाम भारत संघ के मामले में, भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एयरलाइनों द्वारा दिव्यांग व्यक्तियों (PWDs – Persons with Disabilities) के प्रति असंवेदनशीलता और भेदभावपूर्ण व्यवहार पर ध्यान केंद्रित किया। इस मामले ने हवाई यात्रा के दौरान दिव्यांगों को होने वाली समस्याओं को उजागर किया।अदालत ने इस मुद्दे को संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीवन और गरिमा का अधिकार) के संदर्भ में देखा। कोर्ट ने इस बात पर भी विचार किया कि भारत ने United Nations Convention on the Rights...
भारतीय न्याय संहिता, 2023 के अंतर्गत धारा 270, 292, और 293 में लोक उपद्रव से जुड़े अपराध
भारतीय न्याय संहिता, 2023, जो भारतीय दंड संहिता का स्थान ले चुकी है और 1 जुलाई 2024 से लागू हुई है, सार्वजनिक स्वास्थ्य (Public Health), सुरक्षा (Safety), सुविधा (Convenience), शालीनता (Decency), और नैतिकता (Morality) को प्रभावित करने वाले अपराधों से संबंधित नियमों का वर्णन करती है।संहिता के अध्याय XV में लोक उपद्रव (Public Nuisance) से संबंधित अपराधों को परिभाषित किया गया है। इसमें बताया गया है कि किन कार्यों या चूक (Omissions) को सामूहिक खतरे, असुविधा या नुकसान (Injury) के रूप में देखा जा सकता...
स्वराज अभियान बनाम भारत संघ: सूखा प्रबंधन और आपदा प्रबंधन पर सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण
स्वराज अभियान बनाम भारत संघ के मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने सूखा प्रबंधन की चुनौतियों और इससे जुड़े संवैधानिक (Constitutional) और प्रशासनिक (Administrative) प्रश्नों पर गंभीर विचार किया।सुप्रीम कोर्ट ने विशेष रूप से आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 (Disaster Management Act, 2005) के प्रावधानों और अनुच्छेद 21 व 32 की भूमिका पर जोर दिया। यह मामला इस बात पर केंद्रित था कि राज्य और केंद्र सरकारें कैसे प्रभावित नागरिकों के जीवन और गरिमा (Dignity) की रक्षा के लिए अपने दायित्वों का पालन करें। आपदा प्रबंधन...
आर्बिट्रेशन एंड कॉन्सिलिएशन एक्ट में आर्बिट्रेटर का अपॉइंटमेंट
आर्बिट्रेशन एक्ट के अंतर्गत आर्बिट्रेटर की नियुक्ति होती है जो किसी भी विवाद में आर्बिटेशन करता है। आर्बिट्रेटर की नियुक्ति आर्बिटेशन करार के प्रावधानों के अनुसार की जाती है। आर्बिट्रेटर की नियुक्ति तीन प्रकार से की जा सकती है- पक्षकारों द्वारा, निर्दिष्ट प्राधिकारी द्वारा, आर्बिटेशन अधिकरण द्वारा-जहाँ आर्बिट्रेटर या आर्बिट्रेटरों को नियुक्ति पक्षकारों द्वारा की गई हो, वहां वह तत्काल को मध्यस्य निर्देशित कर आर्बिटेशन कार्यवाही प्रारम्भ कर सकते हैं। आर्बिट्रेटर किसी भी राष्ट्रीयता का व्यक्ति को...
पेशेंट को अस्पताल के खिलाफ क्या कानूनी राइट्स उपलब्ध हैं?
किसी भी पेशेंट को अस्पताल के विरुद्ध भी कानूनी अधिकार उपलब्ध होते हैं। पेशेंट के साथ किसी भी प्रकार की लापरवाही नहीं बरती जा सकती है। एक पेशेंट अस्पताल और डॉक्टर का ग्राहक होता है इसलिए पेशेंट अस्पताल या डॉक्टर से प्रतिकर भी प्राप्त कर सकता है।ऑपरेशन जैसी पद्धति एलोपैथिक चिकित्सा द्वारा होती है। एलोपैथी का रजिस्टर्ड डॉक्टर ऑपरेशन करता है। कभी-कभी देखने में यह आता है कि डॉक्टर की लापरवाही से गलत ऑपरेशन कर दिया जाता है या फिर कुछ गलत दवाइयां दे दी जाती है जिससे मरीज को स्थाई रूप से नुकसान हो जाता...
क्या RTI Act के तहत परीक्षकों की पहचान, उत्तर पुस्तिकाओं और इंटरव्यू में प्राप्त अंकों का खुलासा किया जा सकता है?
यह लेख Kerala Public Service Commission (KPSC) v. State Information Commission मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर केंद्रित है। कोर्ट ने इस सवाल का समाधान किया कि क्या उम्मीदवारों को RTI Act के तहत उन परीक्षकों (Examiners) के नाम जानने का अधिकार है जिन्होंने उनकी उत्तर पुस्तिकाओं (Answer Sheets) का मूल्यांकन किया। इस निर्णय ने पारदर्शिता (Transparency) और गोपनीयता (Confidentiality) के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास किया है, खासकर उन मामलों में जहाँ सार्वजनिक निकाय (Public Authority) विशेष...
धारा 239, BNSS, 2023 के तहत अदालत के चार्जेस बदलने के अधिकार
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) में धारा 239 अदालत को यह अधिकार देती है कि वह मामले के निर्णय सुनाने से पहले किसी भी समय आरोपों (Charges) को बदल सके या उसमें जोड़ कर सके।यह प्रावधान न्यायिक प्रक्रिया में लचीलापन प्रदान करता है ताकि सच्चाई के साथ न्याय हो सके और केस के तथ्यों के अनुरूप आरोप लगाए जा सकें। धारा 239 को पूरी तरह समझने के लिए, इसे धारा 237 और 238 के संदर्भ में देखना महत्वपूर्ण है। ये पूर्ववर्ती धाराएं आरोपों को समझने और उन पर गलतियों के प्रभाव को स्पष्ट करती हैं, जो...
BNS 2023 के अंतर्गत शर्तों का उल्लंघन, न्यायिक कार्यवाही में व्यवधान, असलियत से विपरीत पहचान और जमानत उल्लंघन के परिणाम धारा 266 - 269
भारतीय न्याय संहिता 2023 (Bharatiya Nyaya Sanhita 2023), जो 1 जुलाई 2024 से प्रभाव में आई है, भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) का स्थान ले चुकी है। यह संहिता भारत के आपराधिक न्याय तंत्र को अधिक व्यवस्थित और सुसंगठित बनाने के उद्देश्य से बनाई गई है।संहिता में उल्लिखित कुछ मुख्य प्रावधानों में शर्तों के उल्लंघन, न्यायिक कार्यवाही में व्यवधान, असलियत से विपरीत पहचान और जमानत उल्लंघन शामिल हैं। धारा 266 से 269 तक इन अपराधों के लिए विशेष दंड का प्रावधान किया गया है। धारा 266: दंड माफी की शर्त...
क्या आर्टिकल 226 और 227 के तहत याचिका में ट्रिब्यूनल को अनिवार्य पक्षकार बनाना ज़रूरी है?
यह लेख सुप्रीम कोर्ट के उस निर्णय पर केंद्रित है, जिसमें यह स्पष्ट किया गया है कि क्या Tribunal को उनकी ओर से पारित आदेशों को चुनौती देने वाली याचिकाओं में पक्षकार (Party) बनाना अनिवार्य है।इस निर्णय ने न केवल प्रक्रिया संबंधी नियमों को स्पष्ट किया है, बल्कि कुछ मामलों में Tribunals की स्वतंत्रता को भी मज़बूत किया है। यह निर्णय Sh Jogendrasinhji Vijaysinghji v. State of Gujarat (2015) और गुजरात हाईकोर्ट के फैसले Gujarat State Road Transport Corporation v. Firoze M. Mogal जैसे महत्वपूर्ण फैसलों...
आर्बिट्रेशन एंड कॉन्सिलिएशन एक्ट की परिभाषाएं
किसी भी एक्ट में शुरुआत की धाराओं में ऐसे शब्दों की परिभाषाएं प्रस्तुत कर दी जाती है जिससे उन शब्दों का खुलासा हो जाए। इस एक्ट में भी कुछ ऐसे शब्द हैं जिन्हें सेक्शन 2 में विशेष तौर पर बताया गया है।आर्बिटेशनधारा 2 (1) (a) के अनुसार आर्बिटेशन से अभिप्रेत है कोई भी मध्यस्थ चाहे स्थाई मध्यस्थता संस्था द्वारा प्रायोजित किया जाये या न किया जाये।इस परिभाषा में वे व्यक्ति भी शामिल हैं जो व्यक्तिगत पक्षकारों के स्वैच्छिक करार पर आधारित हो या विधि के प्रावधानों के फलस्वरूप अस्तित्व में आये हों। पर...
आर्बिट्रेशन एंड कॉन्सिलिएशन एक्ट में आर्बिट्रेशन एग्रीमेंट क्या होता है?
आर्बिटेशन एंड कॉन्सिलिएशन एक्ट में आर्बिटेशन एग्रीमेंट जैसा कॉन्सेप्ट दिया गया है। पार्टी के बीच किसी डिस्प्यूट किसी मध्यस्थता को सौंपने का करार आर्बिटेशन एग्रीमेंट वर्तमान के विवादों या भविष्य के विवादों के सन्दर्भ में हो सकता है।धारा 7 उपबन्धित करती है कि 'इस भाग में आर्बिटेशन एग्रीमेंट' से अभिप्रेत है एक ऐसा करार जो पक्षकारों द्वारा उन सभी अथवा कुछ विवादों को, जो उनमें एक परिभाषित विधिक संबंध से जन्म लेेते है को प्रेषित किये जाने हेतु किया गया हो।इस परिभाषा में यह स्पष्ट है कि जो विवाद...
जिला जज की नियुक्ति : कानूनी ढांचा और संवैधानिक प्रावधान
जिला न्यायाधीशों (District Judges) की नियुक्ति न्यायपालिका की स्वतंत्रता (Independence of Judiciary) बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। भारतीय संविधान में जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए गए हैं, ताकि केवल योग्य व्यक्तियों को ही इस महत्वपूर्ण पद पर नियुक्त किया जा सके।अनुच्छेद 233 (Article 233) जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति, पदस्थापना (Posting), और पदोन्नति (Promotion) से संबंधित प्रावधान करता है। यह लेख जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति के कानूनी प्रावधानों,...