Transfer Of Property में गिफ्ट को कौन कैंसिल कर सकता है?
Shadab Salim
10 March 2025 3:13 PM

प्रतिसंहरण का अधिकार दाता का व्यक्तिगत अधिकार है। अतः इस अधिकार का प्रयोग केवल वह ही कर सकेगा। वह इस अधिकार का अन्तरण नहीं कर सकेगा क्योंकि इस अधिकार की प्रकृति, वाद संस्थित करने का अधिकार को प्रकृति जैसी हो तथा वाद संस्थित करने का अधिकार इसी अधिनियम की धारा 6 (ङ) के अन्तर्गत अनन्तरणीय घोषित किया गया है। फलतः यह भी एक अनन्तरणीय अधिकार है, पर यह अधिकार दाता की मृत्यु के पश्चात् उसके उत्तराधिकारियों को उत्तराधिकार में प्राप्त हो सकेगा कपट अथवा अनुचित प्रभाव के आधार पर गिफ्ट को रद्द कराने का अधिकार दाता को मृत्यु कारण समाप्त नहीं होता है। यह अधिकार उसके विधिक प्रतिनिधियों एवं निष्पादकों में निहित हो जाता है।
करार द्वारा प्रतिसंहरण- इस धारा के प्रथम पैरा में उल्लिखित करार, गिफ्ट के समय ही अस्तित्व में आ जाना चाहिए क्योंकि यदि गिफ्ट जब गिफ्ट की कार्यवाही हुई थी पूर्ण एवं आत्यन्तिक हो चुका है, तो बाद में कोई शर्त जोड़कर उसमें संशोधन या परिवर्तन नहीं किया जा सकेगा उदाहरण के लिए दाता 'क' ने आदाता 'ख' कि पक्ष में एक रजिस्ट्रीकृत करार दाता के पक्ष में निष्पादित किया जिसमें यह उल्लिखित था कि आदाता दाता को, उसकी मृत्युपर्यन्त सेवा करता रहेगा और यदि वह ऐसा करने में विफल रहता है तो दाता गिफ्ट विलेख का प्रतिसंहरण कर सकेगा अथवा वैकल्पिक रूप में भरण-पोषण हेतु भत्ता प्राप्त कर सकेगा।
यह अभिनिगाँत हुआ कि दोनों दस्तावेज एक ही संव्यवहार के घटक हैं और एक साथ पढ़ने पर वे धारा 131 एवं 126 की परिधि में आते हैं। आदाता द्वारा रकम का भुगतान करने में हुई विफलता, विनिर्दिष्ट घटना, जिसका उल्लेख धारा 126 एवं 31 में हुआ है, को गठित करती हुई मानी जाएगी। शर्त के सम्बन्ध में की गयी। व्यवस्था, जिस पर दाता गिफ्ट का प्रतिसंहरण कर सकेगा का रजिस्ट्रीकरण अपेक्षित नहीं है। दाता, ऐसी स्थिति में आदाता द्वारा दाता का भरण-पोषण न करने के कारण, गिफ्ट का प्रतिसंहरण करने के लिए प्राधिकृत हैं। किन्तु यदि केवल यह शर्त लगी है कि "आदाता" को दाता का भरण-पोषण करना चाहिए" और आदाता ऐसा करने में विफल रहता है तो दाता गिफ्ट का प्रतिसंहरण नहीं कर सकेगा जब तक कि भरण-पोषण में विफलता के कारण गिफ्ट के प्रतिसंहरण के आशय का उपबन्ध न हो।
निष्काषन जो दाता की इच्छा पर आश्रित न हों- दानदाता मात्र की इच्छा पर प्रतिसंहरणीय नहीं है। अतः यदि पक्षकार इस बात पर सहमत हैं कि दानदाता की इच्छा पर प्रतिसंहरणीय होगा, तो ऐसा गिफ्ट इस धारा के अन्तर्गत वैध गिफ्ट नहीं होगा। ऐसा गिफ्ट शून्य होगा।
यदि गिफ्ट विलेख विधितः निष्पादित किया गया था दाता द्वारा आदाता के पक्ष में तथा कालान्तर में दाता का यह अभिकथन करता है कि उसने गिफ्ट करने के साथ ही साथ गिफ्ट का स्वयं प्रतिसंहरण भी कर लिया था तो ऐसा कथन एवं इसके आलोक में किया गया प्रतिसंहरण वैध नहीं होगा। धारा 126 सुस्पष्ट करती है कि दान, केवल दोनों पक्षकारों की इच्छा से ही प्रतिसंहत हो सकेगा गिफ्ट का ऐसा प्रतिसंहरण जो केवल दाता की इच्छा पर निर्भर है वैध नहीं है। गिफ्ट का केवल वह प्रतिसंहरण वैध है जो गिफ्ट के दोनों पक्षकारों की इच्छा से हो।
यदि एक भूखण्ड अनुगिफ्ट के रूप में इस शर्त पर दिया गया है कि आदाता, दाता को अपनी सेवायें समर्पित करेगा, आदाता उक्त सम्पत्ति को तभी प्राप्त कर सकेगा जब वह दाता को अपनी सेवायें समर्पित करें। किन्तु आदाता जब तक सेवा देने के लिए इच्छुक होगा एवं सेवा देने के लिए सक्षम होगा तब तक दाता उस संव्यवहार को समाप्त नहीं करा सकेगा।
रजिस्ट्रीकरण से पूर्व प्रतिसंहरण गिफ्ट विलेख निष्पादित होने एवं आदाता को परिदत्त होने पर, जहाँ तक दाता का प्रश्न है, गिफ्ट पूर्ण हो जाता है। अतः दाता उक्त गिफ्ट को रजिस्ट्रीकरण से पूर्व भी प्रतिसंहरित नहीं कर सकेगा इस आधार पर कि गिफ्ट का अभी रजिस्ट्रीकरण नहीं हुआ है और जब तक रजिस्ट्रीकरण नहीं हो जाता है गिफ्ट अपूर्ण है। रजिस्ट्रीकरण का प्रभाव केवल गिफ्ट की प्रक्रिया को स्थायित्व देना मात्र है। जहाँ तक आदाता में सम्पत्ति निहित होने का प्रश्न है सम्पत्ति उसी समय निहित हो जाती है जब आदाता उसे स्वीकार करता है।
गिफ्ट कब प्रतिसंहरित हो सकेगा-
इस धारा का पैराग्राफ 2 इस प्रकार उपबन्धित करता है-
"उन दशाओं में से प्रतिफल के अभाव या असफलता की दशा को छोड़कर किसी भी दशा में प्रतिसंहरित किया जा सकेगा जिनमें कि यदि वह संविदा होता तो विखण्डित किया जा सकता है।"
उपरोक्त पैराग्राफ से यह निष्कर्ष निकलता है कि जिन आधारों पर संविदा, संविदा अधिनियम, 1872 के अन्तर्गत विखण्डनीय हैं, उन्हीं आधारों पर गिफ्ट भी विखण्डनीय होगा। संविदाएं संविदा अधिनियम, 1872 के अन्तर्गत प्रपीड़न, असम्यक् प्रभाव, कपट, भूल एवं मिथ्या व्यपदेशन आदि के आधार पर विखण्डनीय है अतः इस धारा अर्थात् धारा 126 पैराग्राफ 2, सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम का अनुगमन करते हुए यह कहा जा सकेगा कि गिफ्ट भी प्रपीड़न, असम्यक् प्रभाव, मिथ्याव्यपदेशन, कपट या भूल के आधार पर प्रतिसंहरित हो सकेगा।
यह साबित करने का भार कि गिफ्ट उपरोक्त में से किसी भी एक आधार पर प्रतिसंहरणीय है उस व्यक्ति पर होता है जो उस गिफ्ट को रद्द कराना चाहता है। यदि मात्र विधि की भूल है तो यह आधार गिफ्ट के प्रतिसंहरण हेतु पर्याप्त आधार नहीं होगा।
यदि दाता एवं आदाता के बीच यजमान एवं पुरोहित का सम्बन्ध था तथा दाता अपने खराब स्वास्थ्य के कारण अपनी समस्त सम्पत्ति अपने पुरोहित के पक्ष में गिफ्ट कर देता है जो एक प्रभावशाली व्यक्ति था जिसका प्रभाव दाता पर भी था इस स्थिति में यह साबित करने का भार कि दाता संव्यवहार के विधिक प्रभाव को समझता था प्रभावशाली आदाता पर होगा। यदि वह अपने इस दायित्व का निर्वहन करने में विफल रहता है तो गिफ्ट रद्द कर दिया जाएगा। इस मामले में गिफ्ट कोर्ट द्वारा रद्द कर दिया गया था। यदि एक मुवक्किल अपनी सम्पत्ति त्वरित आवेग में आकर अपने वकील की पत्नी के पक्ष में अन्तरित करता है तो यह अन्तरण रद्द किए जाने योगय नहीं होगा।
राम चन्दर बनाम शीतल प्रसाद के वाद में एक विभिन्न स्थिति उत्पन्न हुई थी। एक पिता ने अपनी समस्त सम्पत्ति एक ऐसे व्यक्ति के पक्ष में गिफ्ट द्वारा अन्तरित किया जो उसको पुत्री का प्रेमी था। प्रेमी भी उसी घर में निवास कर रहा था जिसमें पिता एवं पुत्री निवास कर रहे थे। इस परिस्थिति में कोर्ट को यह विचार करना था कि पिता द्वारा किया गया गिफ्ट क्या वैध था? कोर्ट ने समस्त परिस्थिति के अवलोकन कर मामले को इस प्रकार अभिव्यक्त किया-
पुत्री तथा उसका प्रेमी जो आदाता था, दाता पिता की इच्छा को प्रभावित करने की स्थिति में थे।
दाता द्वारा अपनी समस्त सम्पत्ति पुत्री के हित की उपेक्षा कर आदाता को देना संव्यवहार को अन्तःकरण के विरुद्ध बनाता है।
उपरोक्त वर्णित दोनों स्थितियाँ संयुक्त रूप में इस उपधारणा को जन्म देती हैं कि गिफ्ट विलेख असम्यक् प्रभाव के अन्तर्गत अस्तित्व में आया। अतः यह अभिनिर्णत हुआ कि दाता संव्यवहार को रद्द करा सकेगा। जब तक दाता को अपने अधिकार का ज्ञान नहीं होता है तथा गिफ्ट असम्यक् प्रभाव से मुक्त है तब तक गिफ्ट के प्रति अपनी मंशा अभिव्यक्त करना या उसे अनुमोदित करना दाता के लिए सम्भव नहीं होगा।
पैराग्राफ 2 यह प्रकल्पित करता है कि अस्तित्व में आया गिफ्ट शून्यकरणीय हो शून्य। परन्तु यथार्थ यह है कि गिफ्ट प्रारम्भ से ही शून्य होता है, उपरोक्त उल्लिखित कारकों की कि प्रारम्भ से उपस्थिति में अतः वाद पत्र द्वारा कथित गिफ्ट के संव्यवहार को शून्य कराये जाने की आवश्यकता नहीं होती है। यह धारा इसी अधिनियम की धारा 10 से नियंत्रित है। अतः गिफ्ट विलेख में इस आशय का उपबन्ध कि आदाता या उसके उत्तराधिकारी गिफ्ट सम्पत्ति का अन्तरण नहीं कर सकेंगे शून्य होगा। यदि अन्तरितों के अन्तरण करने के अधिकार पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा दिया जाता है तो गिफ्ट का संव्यवहार शून्य होगा।
असम्यक् प्रभाव या कपट के आधार पर गिफ्ट का प्रतिसंहरण-
असम्यक् प्रभाव या कपट का दो जीवित व्यक्तियों के बीच हुए गिफ्ट के संव्यवहार पर वही प्रभाव पड़ता है जो इसका प्रमुख संविदा के मामले में होता है। अतः इस आधार पर गिफ्ट को रद्द कराने वाले व्यक्ति को संविदा अधिनियम की धारा 16 (1) में उल्लिखित परिस्थितियों को अभिवाचित करना होगा एवं उसे साबित भी करना होगा सबूत का भार आदाता पर टालने के लिए, उसमें उल्लिखित दोनों ही शर्तों को सन्तुष्ट करना होगा।
इस सन्दर्भ में तीन बिन्दुओं पर विचार करना होगा-
(1) यह कि क्या वादी या असम्यक् प्रभाव के आधार पर उपचार माँगने वाला व्यक्ति साबित कर चुका है कि दोनों के बीच इस प्रकार सम्बन्ध थे कि उनमें से एक दूसरे की इच्छा को प्रभावित करने की स्थिति में था।
(2) यह कि क्या प्रभाव, असम्यक् प्रभाव के तुल्य हैं, जिसके कारण संव्यवहार अन्तःकरण के विरुद्ध था।
(3) यह कि असम्यक् प्रभाव डालने वाले व्यक्ति को यह साबित करना होगा कि उसने असम्यक् प्रभाव नहीं डाला था।
इन तीनों अवयवों का पूर्ण होना गिफ्ट के प्रतिसंहरण के लिए आवश्यक हैं।
अजमेर सिंह बनाम आत्मा सिंह के वाद में एक वृद्ध व्यक्ति ने जिसकी दृष्टि भी क्षीण हो गयी थी अपने द्वारा अपने पुत्र के पक्ष में सृजित गिफ्ट विलेख के निरस्तीकरण हेतु इस आधार पर वाद संस्थित किया कि उसने स्वेच्छया वह सम्पत्ति गिफ्ट में अन्तरित नहीं किया था। परिस्थितियों से यह प्रकट था कि वादी ने स्वेच्छया गिफ्ट नहीं किया था। प्रतिवादी आदाता ने उसकी मंशा को प्रभावित किया क्योंकि वह ऐसा करने की स्थिति में था। ऐसी स्थिति में यह साबित करने का मात्र आदाता पर था कि गिफ्ट स्वेच्छया किया गया था ऐसा साबित न होने पर गिफ्ट शून्य घोषित कर दिया गया।
एक अन्य प्रकरण में यह आरोप लगाया गया था कि गिफ्ट एक पर्दानशीन स्त्री से कपट का सहारा लेकर प्राप्त किया गया था। वादी जो एक पर्दानशीन स्त्री थी, उससे उस संव्यवहार का ज्ञान नहीं था तथा उसके साथ कपट कर उससे गिफ्ट कराया गया। यदि वह स्त्री कपट साबित करने में असमर्थ रहती है तो भी आदाता को साबित करना होगा कि उस स्त्री के साथ कपट नहीं किया गया।
कब गिफ्ट का प्रतिसंहरण नहीं हो सकेगा
गिफ्ट का कब प्रतिसंहरण हो सकेगा, उन परिस्थितियों का उल्लेख धारा 126 के पैरा 1 एवं 2 में किया गया है। पैरा तीन सुस्पष्ट करता है कि गिफ्ट अन्यथा प्रतिसंहरणीय नहीं है। अतः यदि इस धारा के पैरा 1 एवं 2 में वर्णित परिस्थितियों के अतिरिक्त किसी अन्य परिस्थिति में गिफ्ट का प्रतिसंहरण करने का प्रयास किया जा रहा है तो गिफ्ट का प्रतिसंहरण नहीं हो सकेगा। अतः एक गिफ्ट का प्रतिसंहरण, जो पूर्णरूपेण दाता की मंशा पर निर्भर हो, प्रतिसंहृत कर ले, ऐसा नहीं हो सकेगा क्योंकि गिफ्ट द्वारा सम्पत्ति का अन्तरण जैसे ही संव्यवहार पूर्ण होता है अन्तिम एवं बाध्यकारी हो जाता है।
एक बार गिफ्ट का संव्यवहार पूर्ण होने के बाद, दाता इस आधार पर उसका प्रतिसंहरण नहीं कर सकेगा कि उसने त्रुटिवश अन्तरण किया था अथवा उसने सोचा था कि आदाता उसका अन्तिम संस्कार या मृत्यु संस्कार पूर्ण करेगा। यदि गिफ्ट का संव्यवहार पूर्ण होने के उपरान्त दाता का विचार आदाता के प्रति बदल जाता है अथवा दाता का नजरिया आदाता के प्रति बदल जाता है तो भी वह गिफ्ट का प्रतिसंहरण नहीं कर सकेगा।
यदि दावा ने असम्यक् प्रभाव के अन्तर्गत गिफ्ट दिया था इसके बावजूद उसने बाद में गिफ्ट हेतु अपनो सम्मति व्यक्त कर दी तो सम्मति देने के बाद वह गिफ्ट को चुनौती नहीं दे सकेगा। गिफ्ट का प्रतिसंहरण तब भी नहीं हो सकेगा जब दाता यह अभिकथन कर रहा हो कि बिना सम्यक् विचार किए और अपनी मूर्खतावश उसने अचल सम्पत्ति का अन्तरण कर दिया था।
हिन्दू एवं मुस्लिम वैयक्तिक विधि के अन्तर्गत गिफ्ट का प्रतिसंहरण- गिफ्ट के प्रतिसंहरण के सम्बन्ध में हिन्दू वैयक्तिक विधि सुस्पष्ट है। एक बार वैध गिफ्ट का सृजन होने के उपरान्त उसका प्रतिसंहरण केवल तभी हो सकेगा जब यह साबित हो जाए गिफ्ट स्वेच्छया नहीं निष्पादित किया गया थाः अपितु असम्यक् प्रभाव अथवा कपट के कारण यह अस्तित्व में आया था। यदि गिफ्ट के संव्यवहार पर असम्यक् प्रभाव के कारण प्रश्नचिह्न लगाया गया है तो पक्षकारों के वैयक्तिक सम्बन्धों पर सर्वप्रथम विचार होना चाहिए। मुस्लिम विधि में स्थिति भिन्न है, अतः धारा 126 में उल्लिखित उपबन्ध मुस्लिम विधि पर लागू नहीं होगा।
दावा मुस्लिम विधि के अन्तर्गत सम्पत्ति का कब्जा परिदत्त करने के बाद भी उसका प्रतिसंहरण सिवाय निम्नलिखित स्थितियों को छोड़कर कर सकेगा-
जब गिफ्ट एक पति द्वारा पत्नी को किया गया हो अथवा पत्नी द्वारा जारी किया गया हो।
जब आदाता, दाता से प्रतिषिद्ध सम्बन्धों द्वारा जुड़ा हो।
जब गिफ्ट सदका हो, (अर्थात् खैरात हेतु अथवा किसी धार्मिक प्रयोजन के लिए गिफ्ट किया गया हो।
जब आदाता मृत हो।
जब गिफ्ट को विषयवस्तु आदाता के कब्जा से परे विक्रय, गिफ्ट अथवा अन्यथा द्वारा चली गयी हो।
जब गिफ्ट में दी गयी वस्तु खो गयी हो अथवा नष्ट हो गयी है।
जब गिफ्ट में दी गयी वस्तु के मूल्य में वृद्धि हो गयी हो, वृद्धि का कारण कुछ भी क्यों न हो।
जब गिफ्ट में दी गयी वस्तु के स्वरूप में इस प्रकार परिवर्तन हो गया हो कि उसकी पहचान (शिनाख्त) न हो सके जैसे गेंहू का आटे में परिवर्तित हो जाना।
जबकि दाता ने गिफ्ट के एवज में आदाता से कुछ प्राप्त किया हो उपरोक्त वर्णित परिस्थितियों को छोड़कर मुस्लिम विधि में गिफ्ट का प्रतिसंहरण हो सकेगा। दान, दाता की इच्छा मात्र से ही प्रतिसंहृत हो सकेगा, पर उसके लिए कोर्ट की डिक्री आवश्यक होगी।
गिफ्ट का निरस्तीकरण- गिफ्ट यदि कपट, प्रपीड़न, असम्यक् प्रभाव या मिथ्या व्यपदेशन पर आधारित नहीं था और न ही सभार था तो उसका एकपक्षीय निरस्तीकरण नहीं हो सकेगा। ऐसे गिफ्ट का निरस्तीकरण केवल विधिक प्रक्रिया के माध्यम से सक्षम कोर्ट द्वारा ही हो सकेगा।