Transfer Of Property में गिफ्ट से किसी प्रॉपर्टी का ट्रांसफर
Shadab Salim
8 March 2025 1:33 PM

Transfer Of Property Act की धारा 123 के अंतर्गत गिफ्ट के माध्यम से संपत्ति के अंतरण से संबंधित प्रक्रिया को प्रस्तुत किया गया है। गिफ्ट भी संपत्ति के अंतरण का एक माध्यम है। धारा 123 गिफ्ट से होने वाले संपत्ति के अंतरण से संबंधित विस्तृत प्रक्रिया का उल्लेख कर रही है। धारा 123, गिफ्ट किस प्रकार किया जाए के सम्बन्ध में प्रावधान प्रस्तुत करती है। धारा 123 का प्रथम पैरा यह उपबन्धित करता है कि अचल सम्पत्ति का गिफ्ट करने के लिए आवश्यक है कि अन्तरण दाता द्वारा या उसकी ओर से हस्ताक्षरित और कम से कम दो साक्षियों द्वारा अनुप्रमाणित रजिस्ट्रीकृत लिखत द्वारा हो।
दूसरे शब्दों में अचल सम्पत्ति का गिफ्ट प्रभावी हो सकेगा यदि-
(क) गिफ्ट एक रजिस्ट्रीकृत लिखत द्वारा किया गया हो, (गिफ्ट की सम्पत्ति का मूल्य महत्वहीन है)
(ख) दाता द्वारा या उसकी ओर से लिखत हस्ताक्षरित हो।
(ग) लिखत दो साक्षियों द्वारा अनुप्रमाणित हो।
पैरा 2, धारा 123 उपबन्धित करता है कि यदि गिफ्ट की विषयवस्तु चल सम्पत्ति है तो अन्तरण या तो दाता या उसकी ओर से हस्ताक्षरित एवं कम से कम दो साक्षियों द्वारा अनुप्रमाणित रजिस्ट्रीकृत लिखत द्वारा अथवा वस्तु के परिगिफ्ट द्वारा किया जा सकेगा।
दूसरे शब्दों में चल वस्तु का दान-
(क) या तो अचल वस्तु के गिफ्ट से सम्बन्धित प्रक्रिया का अनुसरण करके किया जा सकेगा, या
(ख) सम्पत्ति के परिगिफ्ट द्वारा जैसा कि माल विक्रय अधिनियम, 1930 की धारा 33 में उपबन्धित हैं, किया जा सकेगा।
इन औपचारिकताओं के उचित पालन के बिना गिफ्ट की गयी सम्पत्ति आदाता को अन्तरित नहीं हो सकेगी। भागिक पालन का सिद्धान्त गिफ्ट के प्रकरणों में प्रवर्तनीय है। गोमती बाई बनाम मुट्ठलाला के वाद में सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय दिया है कि दाता द्वारा निष्पादित लेखबद्ध लिखत दो साक्षियों द्वारा अनुप्रमाणन एवं रजिस्ट्रीकरण एवं आदाता द्वारा उसकी स्वीकृति के अभाव में अचल सम्पत्ति का गिफ्ट पूर्ण नहीं होगा, पर लिखत उसका अनुप्रमाणन एवं रजिस्ट्रीकरण चल सम्पत्ति के गिफ्ट के सम्बन्ध में आवश्यक प्रक्रिया नहीं है। यह एक गौड़ प्रक्रिया है।
गिफ्ट विलेख की प्रस्तुति मात्र तथा दो में से एक साक्षी का परीक्षण यह निष्कर्ष निकालने के लिए पर्याप्त नहीं है कि गिफ्ट प्रभावी हो गया है विशेषकर जबकि दाता एक वृद्ध व्यक्ति हो तथा दाता एवं आदाता दोनों साथ-साथ रह रहे हों।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मन्नूलाल बनाम राधा किशन जी के वाद में यह अभिनिर्णीत किया हैं कि इस धारा में उल्लिखित उपबन्ध धार्मिक गिफ्ट के मामलों में भी प्रवर्तनीय है। उसी प्रकार पटना हाईकोर्ट ने यह अभिनिर्णीत किया है कि हिन्दू विधि के अन्तर्गत गिफ्ट से सम्बन्धित विधि इस अधिनियम की धारा 129 द्वारा पूर्णतः निरस्त कर दी गयी है तथा हिन्दू विधि के अन्तर्गत भी एक वैध गिफ्ट का सृजन केवल धारा 123 के अनुपालन द्वारा ही हो सकेगा। अतः अचल सम्पत्ति का गिफ्ट दाता द्वारा या उसकी ओर से हस्ताक्षरित और कम से कम दो व्यक्तियों द्वारा अनुप्रमाणित रजिस्ट्रीकृत लिखत द्वारा ही हो सकेगा।
इसके विपरीत मद्रास हाईकोर्ट का यह अभिमत है कि धार्मिक प्रयोजन हेतु किया समर्पण इन नियमों से विनियमित नहीं होता है, क्योंकि एक प्रतिमा या मूर्ति के पक्ष में किया गया समर्पण एक जीवधारी के पक्ष में किया गया अन्तरण नहीं है अतः यह गिफ्ट की कोटि में नहीं आयेगा। यह ईश्वर के पक्ष में किया गया समर्पण है अतः किसी मन्दिर पर मूर्ति के पक्ष में किसी विशिष्ट अवसर पर जैसे विवाह या श्राद्ध सम्पत्ति के एक तुच्छ अंश का अंतरण लिखित एवं पंजीकृत रूप में होना आवश्यक नहीं है। अन्तरण मौखिक रूप में हो सकेगा एवं वैध होगा, पर यदि अन्तरण लिखत के द्वारा किया जा रहा है तो उसका रजिस्ट्रीकरण आवश्यक होगा। यदि सम्पत्ति का समर्पण मंदिर के न्यासों के पक्ष में किया जा रहा है तो उसका लिखित एवं रजिस्ट्रीकृत होना आवश्यक है। अतः यह कहना समीचीन होगा कि सम्पूर्ण स्थिति इस पर निर्भर करती है कि विन्यास किस प्रकार किया जा रहा है।
प्रिवी कौंसिल ने गांगी रेड्डी बनाम तम्मी रेड्ड के वाद में यह अभिनिर्णीत किया है कि पारिवारिक सम्पत्ति के एक भाग (जिसमें अचल सम्पत्ति भी सम्मिलित हो) का समर्पण धार्मिक प्रयोजनों के लिए खैरात के रूप में जैसे ब्राह्मणों के लिए एक खैरात गृह का निर्माण बिना किसी लिखत एवं रजिस्ट्रीकरण के किया जा सकेगा। इस निर्णय के सम्बन्ध में यह विचारणीय है कि बिना धारा 123 की चर्चा किए यह निर्णय दिया गया था। उपरोक्त के आधार पर यह कहा जा सकेगा कि इस विषय पर विधि सुनिश्चित नहीं है।
चूँकि सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम एक जीवित व्यक्ति से दूसरे जीवित व्यक्ति के पक्ष में सम्पत्ति अन्तरण हेतु प्रावधान प्रस्तुत करता है अतः एक मूर्ति या प्रतिमा के पक्ष में सम्पत्ति का अन्तरण, इस अधिनियम की धारा 5 के अन्तर्गत अन्तरण नहीं है। इस अधिनियम की धारा 5 के अन्तर्गत अन्तरण नहीं है। अतः मूर्ति या प्रतिमा के पक्ष में किया जाने वाले अन्तरण का लिखित एवं पंजीकृत होना आवश्यक नहीं है। प्रतिमा या मूर्ति यद्यपि एक विधिक व्यक्ति के रूप में मान्यता प्राप्त है, किन्तु वह निष्ठतः एक जीवित व्यक्ति नहीं है।
यदि सम्पत्ति के सह स्वामी सम्पत्ति का आपस में विभाजन या बँटवारा करते हैं तथा बंटवारे के दौरान उक्त सम्पत्ति का एकमात्र एक अन्य व्यक्ति, जो उक्त सम्पत्ति का सह स्वामी नहीं था, के पक्ष में अन्तरित किया जाता है तो अन्तरण गिफ्ट की कोटि में आयेगा एवं इस संव्यवहार की वैधता के लिए यह आवश्यक होगा कि इस धारा में उल्लिखित औपचारिकताएं पूर्ण हों अन्तरण के पक्षकार इस अधिनियम में उल्लिखित औपचारिकताओं को पूर्ण करने से केवल इस कारण से नहीं बेच सकेंगे कि वे अन्तरण को गिफ्ट न मानकर किसी अन्य संव्यवहार के रूप में उसे देखते हैं। एक निमुक्ति विलेख कतिपय परिस्थिति में गिफ्ट विलेख के रूप में प्रवर्तित हो सकेगी।
गोमती बाई बनाम मुट्ठलाल के प्रकरण में वाद के पक्षकारों ने एक रजिस्ट्रीकृत विभाजन विलेख के द्वारा अपनी चचेरी बहन के पक्ष में कतिपय सम्पत्ति का गिफ्ट किया तथा चचेरी बहन के पक्ष में कतिपय सम्पत्ति का गिफ्ट किया तथा चचेरी बहन ने उक्त सम्पत्ति स्वीकार कर लिया गिफ्ट के रूप में। पर न तो लिखित दस्तावेज का निष्पादन किया गया और न ही उसका धारा 123 के अन्तर्गत रजिस्ट्रीकरण किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने यह अभिनिर्णीत किया कि गिफ्ट विलेख के अरजिस्ट्रीकृत लिखत के अभाव में तथा आदाता द्वारा स्वीकृत न होने के कारण, यह नहीं कहा जा सकेगा कि चचेरी बहन के पक्ष में सम्पत्ति का विधित अन्तरण हुआ है। दूसरे शब्दों में विधि को दृष्टि में गिफ्ट का संव्यवहार पूर्ण नहीं हुआ है।
गिफ्ट के प्रत्येक मामले में रजिस्ट्रीकरण के अतिरिक्त यह भी साबित होना चाहिए कि दाता ने अपने आप को गिफ्ट सम्पत्ति से पूर्णरूपेण विरत कर लिया है अर्थात् दाता ने सम्पत्ति का स्वेच्छया एवं बिना प्रतिफल के आदाता के पक्ष में अन्तरण कर दिया है तथा आदाता ने उसे स्वीकार कर लिया है। अतः रजिस्ट्रीकरण के बावजूद भी गिफ्ट पूर्ण हुआ नहीं समझा जाएगा यदि दावा गिफ्ट की सम्पत्ति को निरन्तर धारण किए रहता है। यदि गिफ्ट लिखत के रजिस्ट्रीकरण एवं लिखत के परिगिफ्ट के बावजूद भी यह प्रतीत होता है कि दाता कभी भी विलेख को प्रभावी बनाने हेतु इच्छुक नहीं था तथा गिफ्ट को पूर्ण करने हेतु जो कुछ भी वह कर सकता था नहीं किया, अपितु गिफ्ट सम्पत्ति का कब्जा निरन्तर धारण किए रहा एवं आदाता ने इस पर कभी भी आपत्ति नहीं दर्ज की एवं कालान्तर में दाता ने सम्पत्ति किसी अन्य व्यक्ति के पक्ष में हस्तान्तरित कर दिया। इन तथ्यों के आधार पर यह अभिनिणात हुआ कि गिफ्ट विलेख के रजिस्ट्रीकृत होने के बावजूद भी गिफ्ट की कार्यवाही कभी भी पूर्ण नहीं हुई।
यदि एक पिता एक संयुक्त हिन्दू परिवार की सम्पत्ति बिना किसी कारण या प्रयोजन के तथा पैतृक अचल सम्पत्ति का गिफ्ट करने हेतु विधि द्वारा अपेक्षित परिस्थितियों के न होते हुए भी पैतृक सम्पत्ति के सम्बन्ध में गिफ्ट विलेख का निष्पादन करता है तो ऐसा गिफ्ट वैध नहीं होगा इस संव्यवहार के सम्बन्ध में यह कहा जा सकता है कि जहाँ तक पिता दाता का पैतृक सम्पत्ति में अंश है उसका गिफ्ट वह विधित कर सकेगा एवं आदाता उसे प्राप्त कर सकेगा बशर्ते कि दाता को पैतृक सम्पत्ति में अपना अंश अन्तरित करने का अधिकार हो। यदि इस अधिकार का प्रयोग करते हुए पिता दाता अपना अंश अन्तरित करता है तथा आदाता उसे स्वीकार करता है तो अन्तरण गिफ्ट के रूप में वैध होगा।
यदि एक पिता कतिपय सम्पत्ति का गिफ्ट अपने अवयस्क पुत्रों के पक्ष में करता है तो इस गिफ्ट को इस आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकेगी कि गिफ्ट की स्वीकृति अवयस्क के संरक्षक द्वारा नहीं की गयी और उन्हें सम्पत्ति का कब्जा भी परिदत्त नहीं किया गया। पेनूचामी बनाम बाला सुब्रमनियम के वाद में पिता अपने अवयस्क पुत्र का एक मात्र संरक्षक था अवयस्क को शरीर एवं उसको सम्पत्ति दोनों का, जहाँ था पिता ने स्वयं गिफ्ट विलेख अवयस्क के पक्ष में निष्पादित किया था तथा गिफ्ट के पश्चात् भी दाता एवं आदाता एक साथ रह रहे थे तो गिफ्ट की स्वीकृति की परिकल्पना की जा सकेगी, क्योंकि गिफ्ट की स्वीकृति केवल पिता द्वारा संरक्षक के रूप में की जा सकेगी। गिफ्ट वैध माना गया।
एस० पी० सैगल बनाम सुनौल' के वाद में एक विधवा ने अपनी पैतृक सम्पत्ति जो पाकिस्तान में थी, के एवज में प्राप्त प्रतिकर की रकम से एक सम्पत्ति क्रय किया तथा कालान्तर में उसने उक्त सम्पत्ति गिफ्ट में अपने पुत्र को हस्तान्तरित कर दिया। पुत्र को सम्पत्ति का आत्यन्तिक स्वामी माना गया यद्यपि माता एवं पुत्र दोनों साथ-साथ रह रहे थे।
एक रजिस्ट्रीकृत गिफ्ट विलेख जो सम्यक् रूप में निष्पादित, अनुप्रमाणित स्वीकृत तथा आदाता द्वारा कृत किया गया हो, का प्रभाव यह होता है कि उक्त द्वारा दाता से आदाता के पक्ष में विधिक स्वत्व हस्तान्तरित हो जाता है। दाता के मन में विद्यमान कोई गुप्त मंशा या विचार या भावना, जो इस संव्यवहार के प्रतिकूल है, प्रभावहीन होगी। गोलक जेना बनाम वंशीधर के वाद में दो व्यक्ति एक मकान को संयुक्त रूप में धारण कर रहे थे। उनमें से एक ने मकान के एक भाग का एक अन्य व्यक्ति जो अवयस्क था, के पक्ष में रजिस्ट्रीकृत गिफ्ट विलेख द्वारा सम्पत्ति का अन्तरण कर दिया। गिफ्ट विलेख अवयस्क की माँ को हस्तगत कर दिया गया। यह अभिनिर्णीत हुआ कि माँ द्वारा गिफ्ट की स्वीकृति वैध है।